माता-पिता की परामर्श कार्यक्रम में भूमिका
माता-पिता की परामर्श कार्यक्रम में भूमिका (The Role of Parents as a Counsellor)– माता-पिता जीवन-पर्यन्त अपने बच्चों के लिए एक अच्छे परामर्शदाता होते हैं। व्यक्तिगत तथा व्यावसायिक दोनों ही मामलों में परामर्श देते हैं। उनका यह सहयोग उसके विकास प्रक्रम में कितना उपयोगी सिद्ध हुआ है। इसका निर्धारण अलग-अलग व्यक्ति के लिए अलग-अलग हो सकता है। माता-पिता बच्चों के विकास की दिशा में पालन-पोषण, शिक्षण- प्रशिक्षण आदि जैसे संसाधनों का अधिक से अधिक जुटाने का प्रयास करते हैं। बच्चों हेतु परामर्श प्रक्रिया में उनके माता-पिता या पालकों की भूमिका सर्वश्रेष्ठ देखी जाती है। अगर हम निर्देशनकर्ता (Guidance-expert) की बात करें तो बिना माता-पिता की भूमिका के सहयोग के बिना कोई भी निर्देशन कार्यक्रम सफलता से क्रियान्वित नहीं किया जा सकता। पालक बच्चों के शैक्षिक, व्यावसायिक तथा व्यक्तित्व विकास (Personality Development) में सहयोगी होने के साथ-साथ कभी- कभी बच्चों की कुछ समस्याओं के कारण भी अथवा ये कहें कि समायोजनात्मक समस्याओं के स्रोत साबित होते हैं।
परामर्श कार्यक्रम के क्रियान्वयन में निर्देशनकर्ता का निर्देशनार्थी बच्चे के माता-पिता से मिला सहयोग काफी सहयोगी सिद्ध होता है। माता-पिता की भूमिका को निम्न बिन्दुओं के द्वारा उल्लेखित किया जा सकता है-
1. व्यक्ति मूल्यांकन- परमार्श कार्यक्रम के अन्तर्गत व्यक्ति मूल्यांकन सेवा में बच्चे के माता-पिता की भूमिका विशेष महत्वपूर्ण होती है। इस सेवा का मूल आधार व्यक्ति या बच्चे के रूप में प्राप्त विभिन्न जानकारियाँ या सूचनाएं ही होती हैं। निर्देशनार्थी की विशेषताओं, रुचियों, क्षमताओं, अभिवृत्ति, आकांक्षाओं, चिन्ताओं व अभिलाषाओं को समझे बिना किसी के लिए निर्देशन कार्यक्रम प्रभावी ढंग से नही बनाया जा सकता। बच्चे हों या अल्प वयस्क (Youngsters), उनका अधिकतर समय अपने पालकों के साथ ही बीतता है। स्पष्टतः उनके बारे में विस्तृत व वास्तविक जानकारी तो माता-पिता या संरक्षकों के पास ही हो सकती है। इसे पर्यापत रूप में प्राप्त करके परामर्शदाता अपने परामर्श कार्यक्रम को अधिक प्रभावी बना सकता है।
2. सम्बन्धित अनुभवों को प्रदान करने में- कुछ बच्चों के माता-पिता विभिन्न संगठन में सेवा रूप में कार्यरत होते हैं। ऐसी स्थिति में वह माता-पिता अपने अनुभवों व अनुभूतियों को बालकों को वास्तविक रूप में उन स्थितियों से अवगत करा सकते हैं और बच्चों में यह जानकारी मिल सकती है कि अमुक क्षेत्र या कार्य क्षेत्र में किस-किस प्रकार की चुनौतियाँ या समस्याएँ आना सम्भावित होती हैं। ऐसा होने से बच्चा सम्बन्धित क्षेत्र की समस्याओं या जटिलताओं से निपटने के लिए पहले से ही अपने आपको तैयार कर लेता है। माता-पिता में प्राप्त सन्दर्भित अनुभव बच्चों के व्यावसायिक जीवन में काफी उपयोगी सिद्ध होते हैं और वह स्वयं को अधिक सफल बना सकता है।
बच्चों के लिए माता-पिता के ये अनुभव सामान्य और विशिष्ट दोनों ही प्रकार के हो सकते हैं। बच्चों को समुचित परामर्श केन्द्र पर भेजना भी पालकों की भूमिका ही होती है।
3, विभिन्न लक्ष्य निर्धारण में- पालकों की यह आशा होती है कि उनकी सन्तान दुनियाँ में सफलता का एक ऊँचा स्थान प्राप्त करें, लेकिन जितना यह सोचना आसान है उतना ही प्राप्त करना कठिन होता है। पालक विभिन्न सम्भावित स्रोतों के द्वारा अनेक क्षेत्रों, पाठ्यक्रमों व व्यवसायों के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण जानकारी के माध्यम से अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य हेतु उत्तम तथा उनकी वास्तविक सामर्थ्य के आधार पर उनके लक्ष्य निर्धारण में अनेक प्रकार से सहयोग कर सकते हैं जिससे उन बच्चों को अपने लक्ष्य प्राप्ति में मदद मिल सके।
4. विकासात्मक निर्देशन में- प्रत्येक माता-पिता अपने जीवन के मूल लक्ष्य अपनी सन्तान को ऊँची से ऊँची सफलता उपलब्ध करा पाना मानते हैं तथा इस दिशा में वे यथा-सम्भव प्रयास भी करते हैं। उनके जीवन का आधार भी अपनी सन्तान का सर्वांगीण विकास करना देखा जाता है। इस कार्यक्रम के सहयोग में कार्य करते हुए पालक स्वयं भी इस विषय में आधुनिक मनोवैज्ञानिक विचारों एवं विधियों का परिचय प्राप्त करके बच्चों की लक्ष्य पूर्ति में पहले की अपेक्षा अधिक सहयोगी ढंग से भूमिका अदा कर सकते हैं। परामर्शदाताओं को पालकों से यह स्पष्ट कराने का प्रयास करना चाहिए कि वह अपने बच्चों पर कभी अपनी अपेक्षाओं व इच्छाओं का भार न थोंपे। उनका ऐसा करना बच्चों के विकास मार्ग में बाधक तो सिद्ध होता ही है। कभी- कभी अति समस्यात्मक भी सिद्ध हो जाता है। बच्चों में सदैव अनुशासन का विकास, आत्मानुशासन के रूप में ही करना चाहिए।
5. निर्देशन कार्यक्रम के मूल्यांकन में (In Evaluation of Guidance Programme)- अपने बच्चों के सच्चे समीक्षक व मूल्यांकनकर्ता बच्चों के माता-पिता स्वयं भी हो सकते हैं। निर्देशनकर्ता के लिए भी माता-पिता निर्देशन कार्यक्रम के सम्बन्ध में अपने विचार व होने वाले परिवर्तनों की वास्तविकता को बताकर मूल्यांकन व सुधार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
6. रुचि के अनुसार परामर्श देने में सहायक- माता-पिता या अभिभावकों को अपने बालकों की रुचि का पता होना चाहिये। उन्हें यह पता होना चाहिये कि वह अपने व्यावसायिक क्षेत्र में किस दिशा को चुन रहे हैं। उसी के अनुसार उन्हें परामर्श दिया जाना चाहिये। उन्हें ऐसे विषयों के चुनाव के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये जो उसके भावी विकास की दृष्टि से उपयोगी हों। इस दृष्टि से अभिभावक को चाहिये कि वह अपनी संतान की वास्तविक क्षमताओं और योग्यताओं के अनुरूप उसकी शिक्षा की व्यवस्था करे और ऐसे विद्यालय में प्रवेश दिलायें जहाँ की शिक्षा छात्र के मनचाहे कैरियर के लिये तैयारी में सहायक हो। इस निमित्त अभिभावक का यह कर्त्तव्य है कि वह अपनी संतान के लिये ऐसे वातावरण का निर्माण करे जो उसकी रुचि के अनुकूल हो और ऐसा साहित्य, पत्र- पत्रिकायें लाकर दें जो उसकी दृष्टि के विस्तार में सहायक हो।
बहुधा ऐसे कार्यक्रम भी विद्यालय में आयोजित होते हैं जो भावी कैरियर के चुनाव में सहायता प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिये, किसी सरकारी, अर्ध सरकारी अथवा गैर सरकारी व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में जाना और यह देखना कि किस प्रकार से कार्य हो रहा है और उसके निमित्त कैसे प्रशिक्षण की आवश्यकता है। अच्छे विद्यालय में कैरियर मास्टर होते हैं और वे अपने विद्यार्थियों की सहायता उनकी इच्छा के अनुरूप कैरियर की तैयारी कराते हैं, जिससे कि छात्र अपनी रुचि के व्यवसाय में सफलतापूर्वक आगे बढ़े और जीविकोपार्जन के लिये उपयोगी व्यवसाय अपनायें। रुचि के व्यवसाय में होने से एक लाभ यह है है कि प्रत्येक क्षेत्र की क्षमताओं का रचनात्मक उपयोग होता है।
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