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विद्यालय छात्रालयाध्यक्ष (School warden) – अर्थ एवं उसके गुण in Hindi

विद्यालय छात्रालयाध्यक्ष  अर्थ एवं उसके गुण

विद्यालय छात्रालयाध्यक्ष  अर्थ एवं उसके गुण

विद्यालय छात्रालयाध्यक्ष  अर्थ एवं उसके गुण

विद्यालय छात्रालयाध्यक्ष (School warden) – शिक्षा के साधन के रूप में छात्रावास की उपयोगिता पर्याप्त सीमा तक छात्रालयाध्यक्ष के गुणों तथा योग्यताओं पर निर्भर है। छात्रालयाध्यक्ष सम्पूर्ण विद्यालय पद्धति की धुरी है। इसी के द्वारा छात्रावास के अच्छे या बुरे चरित्र का निर्धारण होता है। जब बालक छात्रावास में प्रवेश लेता है तब वह अपरिपक्व होता है। ऐसे बालकों को समाज का उत्तरदायी सदस्य बनने तथा सामूहिक जीवन व्यतीत करने योग्य बनाने के लिए छात्रालयाध्यक्ष के ऊपर बहुत बड़ा दायित्व रहता है। उससे यह अपेक्षा की जाती है कि वह उनको उत्तरदायी नागरिक बनाने के लिए सतत् प्रयत्न करे। इसके अतिरिक्त छात्रालयाध्यक्ष ही छात्रावास की सम्पूर्ण व्यवस्था एवं उसमें उत्तम अनुशासन हेतु अन्ततः उत्तरदायी होता है। सामान्यत: इस कार्य का भार विद्यालय के किसी अध्यापक को सौंप दिया जाता है। इसके बदले में उसके  शिक्षण-कार्य में कुछ कमी कर दी जाती है।

इस व्यवस्था को अधिक उपयोगी बनाने में विद्यालय के अन्य शिक्षक छात्रालयाध्यक्ष को सहायता दे सकते हैं। छात्रालयाध्यक्ष छात्रावास की व्यवस्था का नियन्त्रण एवं निरीक्षण करने के साथ विद्यालयय में भी कार्य करता है, इसलिए उसको सहायता मिलनी ही चाहिए। क्योंकि उनके सहयोग से वह अपने दायित्वों को पूर्ण करने में अधिक समर्थ हो सकेगा।

छात्रालयाध्यक्ष को विद्यालय-छात्रावास की समस्त व्यवस्थाओं का निरीक्षण एवं नियन्त्रण करना है। विद्यालय-छात्रावास की कोई क्रिया उसकी दृष्टि से ओझल नहीं होनी चाहिए । यदि छात्रावास को घर का रूप ग्रहण करना है तो उसको बालकों के अभिभावनकों का स्थान लेने के लिए भरसक प्रयत्न करना चाहिए और उन्हें माता-पिता की भाँति सर्वोत्तम प्रकार का पथ-प्रदर्शन, सहायता एवं परामर्श प्रदान करना चाएिह। छात्रालयाध्यक्ष को छात्रों के लिए छात्रावास में वे आवश्यक सुविधाएं प्रदान करनी चाहिए जो कि उन्हें घर पर प्राप्त हो सकती है। हर सम्भव उपाय से छात्रावास के जीवन को पारिवारिक जीवन का रूप देने का प्रयत्न करना चाहिए।

छात्रालयाध्यक्ष का महत्वपूर्ण कर्तव्य यह भी है कि वह छात्रावास में जनतन्त्रात्मक वातावरण की स्थापना करे। इसके लिए दायित्व के विभाजन के सिद्धान्त को अपनाना चाहिए। इस सिद्धान्त के अनुसार विभिन्न दायित्वों को छात्रों की विभिन्न समितियों को सौंपा जा सकता है। इससे बालकों में कर्तव्य-परायणता, आत्मनिर्भता एवं सहकारिता के गुणों का विकास होता है। छात्रावास की विभिन्न क्रियाओं के संगठन एवं संचालन का दायित्व बालकों के ऊपर डाला जाय। इसके लिए छात्रालयाध्यक्ष छात्रों को विभिन्न समितियों का निर्माण करवा सकता है, उदाहरणार्थ-भोजन समिति, सफाई समिति, साहित्यिक समिति, सांस्कृतिक समिति ,खेल-कूद समिति, अनुशासन समिति एवं सुरक्षा समिति। ये विभिन्न समितियां अपने-अपने क्षेत्राधिकार में स्वतन्त्रतापूर्वक कार्य करती हैं, परन्तु इसको छात्रालयाध्यक्ष का सदैव पथ-प्रदर्शन प्राप्त होता है। छात्रालयाध्यक्ष इनके कार्यों का निरन्तर निरीक्षण भी करता है। इस प्रकार की व्यवस्था से बालक यह अनुभव करेंगे कि अपने घर पर ही रह रहे हैं और उनका दायित्व है कि अपने घर (छात्रावास) की प्रतिष्ठा को स्थिर ही न रखें, वरन् उसको उच्च बनायें। इसके अतिरिक्त जनतन्त्रात्मक वातावरण छात्रों के बीच सहयोग, पारस्परिक सहायता, सामाजिकता तथा अधिकारियों एवं नियमों के प्रति आज्ञाकारिता की भावना उत्पन्न करने के लिए अवसर प्रदान करेगा। ऐसी व्यवस्था प्रजातन्त्रीय देश के नागरिक के लिए अत्यन्त आवश्यक है, जिससे बालक उत्तरदायी सदस्य बनें तथा अपने भावी जीवन में योग्य नागरिक सिद्ध हो सकें।

छात्रालयाध्यक्ष का दूसरा महत्वपूर्ण कर्तव्य छात्रावास में रहन-सहन की उपयुक्त दशाओं को स्थापना करना है। इस सम्बन्ध में उसे यह देखना है कि छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिए छात्रावास में उपयुक्त व्यवस्था है या नहीं।

इस उद्देश्य के लिए उसे निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए-

  1. प्रत्येक बालक को रहने के लिए उपयुक्त स्थान तथा आवश्यक सामग्री-खाट, मेज, कुर्सी , रैक, अल्मारी प्राप्त हो।
  2. जिन कमरों या शयनागारों में बालक रह रहे हैं, उनमें प्रकाश एवं शुद्ध वायु का उचित प्रबन्ध हो।
  3. निवास-कक्षों, रसोई-गृहों, स्नान-गृहों तथा शैचालयों की सफाई के लिए उचित व्यवस्था हो।
  4. उनके शरीरिक विकास के लिए व्यायाम, खेल-कूद आदि का उचित प्रबन्ध हो ।
  5. सामान्य कक्ष तथा वाचनालय के लिए उचित व्यवस्था हो।
  6. बालकों में बच्छी आदतों का निर्माण हो, जैसे-नियमितता, समय-निष्ठता, नियमों के प्रति आज्ञाकारिता, सहयोग, दूसरों की सहायता करना तथा मितव्ययी जीवन व्यतीत करना।
  7. छात्रालयाध्यक्ष का यह भी कर्तव्य है कि वह देखे कि बालकों को सन्तुलित एवं पौष्टिक भोजन मिल रहा है या नहीं तथा भोजन के लिए बालकों से जो धनराशि ली जाती है, उसके अनुसार उनको भोजन मिलता है या नहीं । पूर्व सूचना दिये बिना भोजन और रसोईघर की सफाई का निरीक्षण करना चाहिए। इसके अतिरिक्त बर्तनों की सफाई एवं पीने के पानी की व्यवस्था का भी निरीक्षण आवश्यक है।
  8. विभिन्न पाठ्यक्रम-सहगामी क्रियाओं के संगठन एवं संचालन के लिए उचित व्यवस्था हो तो छात्रावास में ऐसी सुविधाएं एवं अवसर प्राप्त हों जिससे छात्र व छात्राएं घरों के क्रिया-कलापों में भी दक्षता प्राप्त कर सकते हैं, कभी-कभी आवश्यकता होने पर या वैसे ही उन पर खाना बनाने का भी दायित्व डाला जाय तो उनको लाभकारी अनुभव प्राप्त होंगे। खाना परोसने एवं दूसरों को खिलाने का दायित्व प्रतिदिन उन्हीं पर रखना चाहिए। इसके लिए नौकर रखना उचित नहीं।

विद्यालय छात्रालयाध्यक्ष के गुण (Qualities of Hostel warden)

उपर्युक्त विवेचन के आधार पर हम कह सकते हैं कि छात्रालयाध्यक्ष के कन्धों पर छात्रावास के अनुशासन, उसकी व्यवस्था तथा निरीक्षण आदि सभी कार्यों का भार है।

उसके गुणों का वर्णन निम्न हैं-

1. प्रशासकीय योग्यता- छात्रावास में सुव्यवस्था स्थापित करने के लिए छात्रालयाध्यक्ष को कुशल संगठनकर्ता एवं प्रबन्धक होना चाहिए।

2. सामाजिक गुण- छात्रालयाध्यक्ष में सहयोग, सहानुभूति, न्यायप्रियता आदि गुणों का होना आवश्कय है।, जिससे बालकों के लिए छात्रावास में सहयोगी वातावरण निर्मित कर सके। इसके अतिरिक्त उसे मृदुभाषी, धैर्यवान, निष्पक्ष व्यवहार करने वाला व्यक्ति होना चाहिए।

3. व्यक्तिव- छात्रालयाध्यक्ष में उन गुणों का होना आवश्यक है जो एक उत्तम व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं, उदाहरणार्थ, नेतृत्व करने की क्षमता, उच्च चरित्र, सहनशील एवं स्पष्ट चिन्तन निष्पक्षता एवं दूरदर्शिता आदि। उसमें वात्सल्य भाव का होना भी परमावश्यक है जिसके अभाव में वह छात्रावास में वास्तविक पारिवारिक जीवन की पूर्ति नहीं कर सकता।

4. मानवीय दृष्टिकोण- छात्रालयाध्यक्ष में मानव-प्रकृति की विशेषताओं एवं मानवीय सम्बन्धों को समझने की क्षमता होनी चाहिए। इसके अभाव में वह छात्रों एवं उनके अभिभावकों तथा शिक्षकों आदि से उचित सम्बन्ध स्थापित करने में असमर्थ रहेगा। इसके अतिरिक्त उसकों उदार दृष्टिकोण रखना चाहिए। वह छात्रों की योग्यता एवं शक्ति में निष्ठा रखने की क्षमता रखे।
मानव प्रकृति को समझने के लिए उसे मनोविज्ञान का ज्ञान भी होना आवश्यक है।

छात्रालयाध्यक्ष सम्पूर्ण पद्धति की धुरी है। इसी के द्वारा छात्रावास के अच्छे या बुरे चरित्र का निर्धारण होता है। जब विद्यार्थी छात्रावास में प्रवेश लेता है तब वह अपरिपक्व होता है। उन्हें उचित परामर्श की आवश्कयकता होती है। छात्रालयाध्यक्ष एक अच्छा परामर्शदाता सावित हो सकता है जिसके निम्न कार्य है-

  1. छात्रालयाध्यक्ष छात्रावास की सम्पूर्ण व्यवस्था एवं उत्तम अनुशासन का उत्तरदायी है।
  2. छात्रावास की समस्त व्यवस्थाओं का निरीक्षण व नियन्त्रण करना।
  3. छात्रालयाध्यक्ष माता-पिता की भाँति पथ-प्रदर्शन सहायता एवं परामर्श प्रदान करता है।
  4. छात्रावास में रहने वाले छात्रों का उपस्थिति रजिस्टर उपलब्ध कराना।
  5. छात्रावास में प्रवेश लेने वाले समस्त छात्रों की उपस्थिति की रिपोर्ट रखना।

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