परामर्शदाता के गुण
परामर्शदाता के गुण- शिक्षा की प्रक्रिया में परामर्शदाता का पद बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। शिक्षा के क्षेत्र में दिन प्रतिदिन परिवर्तन हो रहा है और उसमें नवीनता लाने का प्रयास जारी है ऐसी स्थिति में परामर्शदाता को अपने अन्दर निपुणता लाना आवश्यक होता है क्यों कि वह विद्यालय में अहम भूमिका का निर्वाह करता है। परामर्शदाता की नियुक्ति करते समय उसके निम्नलिखित गुणों पर ध्यान देना आवश्यक है जो इस प्रकार है-
अध्यापक के गुणों को हम तीनों भागों में विभक्त कर सकते हैं-
(i) वैयक्तिक गुण-
1. आकर्षक व्यक्तित्व- आकर्षक व्यक्तित्व सभी पर अपना प्रभाव छोड़ता है। व्यक्तित्व का तात्पर्य शारीरिक सुन्दरता से नहीं है वरन् इसका तात्पर्य है अध्यापक का आत्मविश्वास, उसकी वेश-भूषा, उस की चाल-ढाल एवं बातचीत करने का ढंग उचित तथा उसकी गरिमा के अनुकूल होना चाहिए।
2. उत्तम स्वास्थ्य- प्लेटो के अनुसार स्वस्थ मस्तिष्क के लिए शरीर का स्वस्थ होना आवश्यक है। यदि परामर्शदाता स्वस्थ नहीं होगा तो वह अपने उत्तरदायित्व को भली प्रकार से सम्पन्न नहीं कर सकेगा। अत: परामर्शदाता का अपने स्वास्थ्य का पूरा-पूरा ध्यान रखना चाहिए।
3. चरित्रवान होना- प्रायः बच्चों के लिए उनके परामर्शदाता ही आदर्श होते हैं और वो अपने को परामर्शदाता के अनुसार ही ढालने का प्रयास करते हैं। अतः परामर्शदाता को अपने विद्यार्थियों के समक्ष अच्छे चरित्र का उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए।
4. नेतृत्व की क्षमता- एक आदर्श अध्यापक में लोकतन्त्रीय नेतृत्व की क्षमता होना भी आवश्यक है। नेतृत्व का अर्थ केवल राजनीतिक क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है। उसका तात्पर्य है कि परामर्शदाता में वह क्षमता होनी चाहिए जिससे कि वह विभिन्न शैक्षिक तथा पाठ्य सहगामी क्रियाओं का ठीक सेसंचालन कर सकें। अपने विद्यार्थियों का मार्ग-दर्शन कर सकें तथा उनको सही रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित कर सके।
5. संवेगात्मक संतुलन- परामर्शदाता में संवेगात्मक स्थिरता एवं संतुलन का होना भी बहुत आवश्यक है तभी वह अपने विद्यार्थियों को भावात्मक विकास कर सकेगा तथा उनके संवेगों को सुन्दर और कलात्मक ढंग से विकसित कर सकेगा।
6. सहानुभूति की भावना- परामर्शदाता में प्रेम और सहानुभूति की भावना होना भी परम् आवश्यक है। विद्यार्थियों के प्रति प्रेम और मित्रता पूर्ण व्यवहार से वह उनके आंदर और विश्वास को जीत सकता है और उनका नेतृत्व करने में सफल हो सकता है।
7. निष्पक्षता- अध्यापक को जाति, धर्म, लिंग आदि के आधार पर किसी प्रकार का भेद-भाव न करके सभी विद्यार्थियों के प्रति समान व्यवहार रखना चाहिए। कभी-कभी परामर्शदाता कुछ बालकों को अधिक चाहने लगते हैं, फल यह होता है कि कक्षा के अन्य बालक अपने को उपेक्षित समझने लगते हैं और उनमें शिक्षा के प्रति अरुचि उत्पन्न हो जाती है।
(ii) व्यावसायिक गुण-
1. विषय में पारंगत- परामर्शदाता का अपने विषय पर पूर्ण अधिकार होना चाहिए विषय का गम्भीर अध्ययन होने पर ही वह विषय से सम्बन्धिता विद्यार्थियों की शंकाओं का, उनकी समस्याओं का निराकरण करने में सफल हो सकेगा तथा उनका विश्वास प्राप्त कर सकेगा। विषय के ज्ञान के अभाव में कोई भी व्यक्ति एक सफल परामर्शदाता नहीं बन सकता।
2. शिक्षण-कला का ज्ञान- केवल विषय में पारंगत होने से ही कोई व्यक्ति एक अच्छा परामर्शदाता नहीं बन जाता वरन इसके लिए यह आवश्यक है कि परामर्शदाता में अपने ज्ञान को रुचिकर और प्रभावशली ढंग से विद्यार्थियों तक पहुँचाने की कला हो।
3. व्यावसायिक प्रशिक्षण- एक कुशल परामर्शदाता के लिए यह भी आवश्यक है कि उसको शिक्षा के क्षेत्र में होने वाले नवीनतम् प्रयोगों और तकनीकों की जानकारी हो। आज का युग विज्ञान का युग है। शिक्षा के क्षेत्र में भी निरन्तर परिवर्तन होते रहते हैं। परामर्शदाता को शिक्षा के क्षेत्र में होने वाले परिवर्तनों की जानकारी होना चाहिए। परामर्शदाता को नवीनतम् शिक्षण-विधियों का ज्ञान होना भी आवश्यक है जिससे कि वह विद्यार्थियों की रुचि और योग्यता के अनुरूप शिक्षण-विधि का प्रयोग करके उनका अधिक विकास कर सके।
4. बाल मनोविज्ञान का ज्ञाता- परामर्शदाता के लिए केवल अपने विषय का पर्याप्त ज्ञान होना ही आवश्यक नहीं है वरन् साथ ही साथ उसे शिक्षा मनोविज्ञान तथा बाल-मनोविज्ञान के सिद्धान्तों का भी ज्ञान होना आवश्यक है जिससे कि वह बालकों की रुचियों, उनकी योग्यताओं और क्षमताओं के अनुसार ही उन्हें शिक्षित करके उनका अधिक से अधिक विकास कर सके।
5. प्रयोग एवं अनुसंधान में रुचि- आज शिक्षा में प्रयोग और अनुसंधान का महत्व दिन प्रतिदिनि बढ़ता ही जा रहा है। विदेशों में तो अनुसंधान ने शिक्षा की काया ही पलट दी है। हमारे देश में भी तेजी से अनुसंधान हो रहे हैं। यदि परामर्शदाता को अपने अपने शिक्षण में सुधार लाना है तो उसे नित्य-प्रति नए एवं अनुसंधान करते रहना चाहिए तभी वह अपने शिक्षण को प्रभावशाली बनाने में सफल हो सकेगा।
6. पाठ्यसहगामी क्रियाओं में रुचि- आज की शिक्षा केवल कक्षा की चहारदीवारी तक ही सीमित नहीं है वरन् उसमें पाठ्य सहगामी क्रियाओं का भी महत्वपूर्ण स्थान है। विद्यार्थियों के सर्वागीण एवं बहुमुखी विकास के लिए यह आवश्यक है कि पढ़ाई के साथ-साथ पाठ्य सहगामी क्रियाओ जैसे- खेल-कूद स्काउटिंग/गाइडिंग एन.सी.सी., एन.एस.एस., वाद-विवाद प्रतियोगिताओं तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों आदि में भी हिस्सा ले। अत: परामर्शदाता को इन क्रियाओं में भी रूचिय लेना चाहिए तथा उनके संगठन एवं संचालन में अपना पूरा योगदान देना चाहिए।
(ii) सामाजिक गुण-
1. मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में जन्म लेता है तथा समाज में ही अपना जीवन व्यतीत करता है। अत: परामर्शदाता में सामाजिक गुण जैसे- प्रेम, दया, सहयोग, सहानुभूति, सहनशीलता, धैर्य आदि का होना आवश्यक है। इससे उसमें सामाजिक समझदारी का विकास होगा तथा कक्षा और समाज दोनों में सामंजस्य स्थापित करने में सफल हो सकेगा।
2. समाज की संस्कृति तथा मूल्यों में आस्था- परामर्शदाता समाज की संस्कृति, उसके मूल्यों और आदर्शों में आस्था रखने वाला व्यक्ति होना चाहिए तभी वह विद्यार्थियों को भी समाज की सांस्कृतिक परम्पराओं और मूल्यों से परिचित कर सकेगा साथ ही उन्हें संस्कृति के संरक्षण तथा उसमें विकास एवं प्रसार के लिए प्रेरित कर सकेगा।
3. दूसरों के साथ अच्छे सम्बन्ध- परामर्शदाता को विद्यार्थियों, सहयोगी परामर्शदाता, प्रधानाध्यापक, अभिभावक तथा अन्य कर्मचारी वर्ग के अच्छे सम्बन्ध बनाए रखने के लिए प्रयत्नशील होना चाहिए। विद्यार्थियों के प्रति उसका व्यवहार एक तानाशाह का नहीं वरन् एक मित्र, सुधारक, निर्देशक एवं मार्ग-दर्शक का होना चाहिए। अपने सहयोगी परामर्शदाता के प्रति उसका व्यवहार संतुलित एवं प्रेम और सहयोगपूर्ण होना चाहिए। प्रधानाध्यापक विद्यालय का मुखिया होता है अतः परामर्शदाता को उसे पूरा आदर और सम्मान देना चाहिए तथा किसी भी दलबन्दी से अपने को अलग रखना चाहिए।
(iv) अन्य गुण-
1. सुनने की क्षमता (Capacity of listening)- परामर्शदाता को एक अच्छा श्रोता होना चाहिये। छात्रों की बात धैर्य पूर्वक सुनने की क्षमता परामर्शदाता में होनी चाहिये। वास्तव में बुद्धिमता पूर्ण सुनने की कला का होना परामर्श दाता में अति आवश्यक है। सिर्फ निष्क्रिय होकर सुनना उचित नहीं वरन् सक्रियता और बुद्धिमत्तापूर्ण ढंग से सुनना आवश्यक है। उसमें उन बातों को भी समझने की क्षमता होनी चाहिये जो कहीं नहीं गई हो उसे सुनना समझना अत्यन्त बुद्धिमत्तापूर्ण कार्य है।
2. जानकार (Informative)- कभी-कभी छात्र ऐसे प्रश्न पूछता है जिसे अनेक उत्तर होते हैं। परामर्शदाता के रूप में विभिन्न सम्भावित उत्तर देते हुए छात्र विशेष के लिये उपयुक्त रास्ता बताना आवश्यक है। अक्सर छात्र विभिन्न जानकारियाँ चाहते हैं अतः संस्थान या विश्वविद्यालय से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार की जानकारियाँ रखना आवश्यक है। प्रत्येक छात्र की आवश्यकतायें अलग-अलग होती है। परामर्शदाता को यह सोचना है कि विशिष्ट छात्र की आवश्यकतायें क्या हैं। इस प्रकार सलाह देना पूर्ण रूप से छात्र पर निर्भर करता है। उसकी समस्याओं को समझना परामर्शदाता के लिये जरूरी है। समस्याएँ शैक्षणिक तथा गैर शैक्षणिक दोनों प्रकार की होती हैं।
3. सलाह देने की योग्यता (Ability of advising)- छात्र को कई प्रकार की समस्याएं होती है जबकि सलाह देना छात्र की विशिष्ट आवश्यकता के अनुसार होता है। विभिन्न स्थितियों में क्या किया जाये’ और ‘क्या न किया जाये’ सम्बन्धी निर्णय लेते समय छात्र के सहयोग की आवश्यकता पड़ती है ऐसे समय में उसे अनुभवी सहायता देने वाले परामर्शदाता की जरूरत होती है। वास्तव में यह एक छात्र के सहयोग हेतु एक सेवा है जिससे उनकी समस्याओं आदि का निदान किया जा सके। इस सहायता के विभिन्न रूप हैं जैसे जानकारी देना, सहयोग देना, सलाह देना, आदि। जानकारी देने और सलाह देने में अन्तर यह है कि इसमें विशिष्ट दक्षता की आवश्यकता होती है। सूचना देना जानकारी है।
4. अच्छा स्वभाव (Good Nature)- यह परामर्शदाता की योग्यता और कुशलता पर निर्भर करता है। सम्प्रेषण के अतिरिक्त धैर्य, स्नेह, अपनत्व आदि भी परामर्शदाता के आवश्यक गुण हैं। इनके अभाव में परामर्शदाता अच्छा नहीं कहा जा सकता है। क्रोधी, अधैर्यवान व्यक्ति अच्छा परामर्शदाता नहीं बन सकता। छात्र को यह एहसास होना चाहिये कि एक महत्वपूर्ण व्यक्ति परामर्शदाता है। परामर्शदाता को छात्र की बातों में रुचि लेनी चाहिये। व्यक्ति कभी-कभी थकान, अधिक कार्य के कारण बहुत अच्छा नहीं महसूस करता तथापि उसे छात्र का स्वागत करने की आदत बना लेनी चाहिये। शैक्षिक परामर्शदाता को यह नहीं प्रदर्शित करना चाहिये कि वह बोर हो रहा है। छात्र की भावनाओं को समझना और ईमानदारी और मन से उत्तर देना कुशल परामर्शदाता की विशेषता होती है।
एक आदर्श परामर्शदाता के गुणों का उल्लेख करने के पश्चात् हम इसी निष्कर्ष पर आते हैं कि शिक्षा की प्रक्रिया में परामर्शदाता का स्थान बहुत ही महत्वपूर्ण है। उसके कन्धों पर बहुत बड़ा उत्तरदायित्व होता है। बालकों के चरित्र को बनाने या बिगड़ने में परामर्शदाता की अहम् भूमिका होती है।
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