अभिवृत्ति मापन की प्रविधियाँ
अभिवृत्ति मापन की प्रविधियाँ (Techniques of Attitude Measurement)- यदि किसी निश्चित उद्देश्य हेतु विशाल समूह की किसी तथ्य पर अभिवृत्ति ज्ञात करनी हो, तो आवश्यकतानुसार उद्देश्य पूर्ति से सम्बन्धित अभिवृत्ति मापनी का निर्माण किया जाता है।
यद्यपि समय-समय पर मनोवैज्ञानिक अपनी आवश्यकतानुसार अनेक अभिवृत्ति मापनियों की रचना करते हैं तथापि इस क्षेत्र में पर्याप्त कार्य का सर्वथा अभाव-सा है।
वर्तमान में अभिवृत्ति मापन की मुख्यतः दो प्रविधियाँ प्रचलित हैं-
(I) व्यावहारिक विधियाँ (Behavioral Techniques)
(1) व्यवहार का प्रत्यक्षावलोकन विधि (Method of Direct Observation of
(2) प्रत्यक्ष प्रश्न विधि (Method of Direct Questions)
(II) मनोवैज्ञानिक प्रविधियाँ (Psychological Techniques) का संबंध मनोविज्ञान से है।
(1) थर्स्टन ‘युग्म तुलनात्मक विधि’ (Method of Paired Comparison)
(2) थर्स्टन एवं चैव ‘समदृष्टि अन्तर विधि’ (Method of Equal Appearing Internal)
(3) लिकर्ट ‘योग निर्धारण विधि’ (Method of Summated Railings)
(4) गटमैन ‘स्केलोग्राम विधि’ (Scalogram Method)
(5) सफीर ‘क्रमबद्ध अन्तर विधि’ (Method of Successine Internal)
(6) एडवर्ड्स एवं किलपैट्रिक्स मापनी ‘भेद बोधक विधि’ (Discrimination Technique)
(7) बोगार्डस-सामाजिक दूरी मापनी (Social Distance Scale)
(8) ओसगुड ‘शाब्दिक भेदक-मापनी’ (Semantic Differential Method)
(9) रेमर्स ‘मास्टर प्रारूप मापनी’ (Master Type Scale)
व्यावहारिक प्रविधि (Behavioral Techniques)-
व्यावहारिक प्रविधियों के अन्तर्गत सामान्य व्यवहार के माध्यम से ही अभिवृत्तियों का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। इस प्रकार की प्रविधियों का प्रयोग सामान्य जीवन में प्रतिदिन सर्व साधारण द्वारा किया जाता है। इस प्रविधि के प्रयोग हेतु किसी भी प्रकार के प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती है। व्यावहारिक प्रविधियों के अन्तर्गत दो प्रकार की विधियों का प्रयोग किया जाता है जो कि निम्नवत् है-
व्यवहार का प्रत्यक्ष अवलोकन-विधि (Method of Direct Observation of Behaviour-इस विधि के अन्तर्गत व्यवहार का निरीक्षण करके किसी व्यक्ति की अभिवृत्ति का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। अर्थात् किसी मनावैज्ञानिक पदार्थ के प्रति व्यक्ति जैसा व्यवहार करता है। यह उसकी अभिवृत्ति को इंगित करता है। प्रतिदिन के व्यवहार में व्यक्ति के भाषिक अथवा अभाषिक व्यवहार अवलोकन के माध्यम से मनोवैज्ञानिक पदार्थ विशेष के प्रति उसकी अभिवृत्ति का ज्ञान प्राप्त करना सम्भव होता है। इस विधि को व्यावहारिक विधियों में उत्तम विधि के रूप में स्वीकारा जाता है। क्योंकि इस प्रविधि के अन्तर्गन जिस व्यक्ति की अभिवृत्ति का मापन किया जाता है। उस व्यक्ति को इस तथ्य का ज्ञान नहीं होता अतः अभिवृत्ति का सही मापन सम्भव होता है। यथा- यदि कोई मुस्लिम हिन्दू मन्दिर के समक्ष नतमस्तक होता है, तो उसका यह व्यवहार हिन्दुओं के प्रति अनुकूल अभिवृत्ति को इंगित करता है।
प्रत्यक्ष अवलोकन प्रविधि की अपनी कुछ सीमाएँ हैं। यथा-
(1) प्रत्येक व्यक्ति के व्यवहार का प्रत्यक्ष अवलोकन करना कदापि सम्भव नहीं है। यदि प्रतिदर्श बड़ा है, तो पद्धति द्वारा व्यवहार का प्रत्यक्ष अवलोकन करना सर्वथा असम्भव है यथा किसी संस्था अथवा राजनैतिक पार्टी के प्रति अभिवृत्ति ज्ञात करनी हो, तो प्रत्यक्ष अवलोकन पद्धति द्वारा अभिव्यक्ति ज्ञात करना कदापि सम्भव नहीं हो सकता।
(2) कभी-कभी व्यक्ति वास्तविक भावनाओं एवं अभिवृत्तियों को छिपाकर, कृत्रिम व्यवहारप्रदर्शित करते हैं। प्रायः सामाजिक परिस्थितियों में तो व्यक्ति अपनी वास्तविक अभिवृत्ति को प्रकट न करके सामाजिकता के अनुकूल व्यवहार प्रदर्शित करता है। अतः प्रत्यक्ष अवलोकन द्वारा वास्तविकता अभिवृत्ति का मापन नहीं हो पाता। यथा-बॉस के प्रति अभिवृत्ति ज्ञात करने हेतु बॉस की उपस्थिति में कर्मचारियों के व्यवहार का प्रत्यक्ष अवलोकन कर सही निर्णय नहीं लिया जा सकता है। क्योंकि बॉस की उपस्थिति में कर्मचारी का व्यवहार प्रायः कृत्रिम होता है स्वाभाविक नहीं।
(3) प्रत्यक्ष अवलोकन विधि द्वारा केवल एक व्यक्ति की अभिवृत्ति का मापन न होकर उस व्यक्ति से सम्बन्धित अन्य व्यक्तियों की अभिवृत्ति का भी मापन होता है जिससे प्रदत्त विश्लेषण
क्लिष्ट हो जाता है।
(2) प्रत्यक्ष प्रश्न विधि (Method Direct Questioning)- इस विधि के अन्तर्गत व्यक्ति के किसी मनोवैज्ञानिक पदार्थ के प्रति विचार ज्ञात करने हेतु प्रत्यक्ष प्रश्न पूछा जाता है। किसी व्यक्ति के विचार भाव या अनुभवों को ज्ञात करने की यह अत्यन्त सरल एवं सन्तोषजनक विधि है। इस विधि से अभिवृत्ति ज्ञात करने में समय भी अधिक व्यय नहीं होता है। इस विधि द्वारा अभिवृत्ति ज्ञात करने हेतु प्रशिक्षित व्यक्ति की भी आवश्यकता नहीं होती। अतः इसका प्रयोग सुविधाजनक एवं प्रत्येक परिस्थिति में सम्भव होता है। यथा-‘अन्तर्जातीय विवाह’ के सम्बन्ध में अभिवृत्ति ज्ञात करने हेतु प्रत्यक्ष प्रश्न द्वारा पूछा जा सकता है कि आप अन्तर्जातीय विवाह करना पसन्द करेंगे? इस विधि द्वारा प्राप्त तथ्यों अथवा अभिवृत्तियों को अग्र प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है-
1. अनुकूल- व्यक्ति जिनकी व्यक्ति, वस्तु या तथ्य के प्रति अनुकूल/सकारात्मक अभिवृत्ति है।
2. प्रतिकूल- वे व्यक्ति जिनकी ऐसी व्यक्ति, वस्तु या तथ्य के प्रति प्रतिकूल या नकारात्मक
3. अनिश्चित- वे व्यक्ति जिनकी अभिवृत्ति किसी व्यक्ति, वस्तु या विचार के प्रति अनिश्चित है। यह वैज्ञानिक विधि नहीं है। अतः इससे प्राप्त तथ्य पूर्णतः विश्वसनीय नहीं होते। साथ ही इस विधि प्रयोग प्रत्येक परिस्थिति में करना भी सम्भव नहीं होता है।
सीमाएँ-
1. इस विधि द्वारा प्रश्नों के वास्तविक उत्तर प्राप्त नहीं होते। प्रायः व्यक्ति इस तरह क प्रश्नों के प्रति अनिच्छा व्यक्त करते हैं।
2. विचारों के परिवर्तनशीलता के कारण यह विधि कम विश्वसनीय है।
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