पल्लवन का अर्थ, विशेषताएँ एंव नियम
पल्लवन किसे कहते हैं? समझाइये। पल्लवन के नियमों का उल्लेख कीजिए।
पल्लवन का अर्थ- ‘पल्लवन’ शब्द पल्लव से रचित है। पल्लव का अर्थ है ‘पत्ता’। पत्ता जिस रूप में दिखता है वस्तुतः वह उसका मूल रूप नहीं है। उसका मूल रूप तो वह बीज है जो, मिट्टी में दबा था। उसी बीज का विस्तृत रूप है ‘पल्लव’ या पत्ता। ‘बीज से अंकुर’ अंकुर से ‘तना’ फिर तना से ‘पल्लव’। इस प्रकार बीज का विस्तारण या पल्लवन है। वह प्रक्रिया भाषा के सन्दर्भ में पल्लवन की है। किसी सूत्र, विचार, भाव, वाक्य आदि के विस्तार से व्याख्या प्रस्तुत करना पल्लवन है।
पल्लवन की विशेषताएँ
1. गद्य कृति 2. रचनात्मक विधा 3. मूल विषय बद्धता 4. स्वाभाविकता 5. मौलिकता 6. कल्पनाशीलता 7. स्वच्छन्दता 8. गत्यात्मकता 9. शब्द चयन10. भाषा
गद्य तथा पद्य, दोनों का संक्षेपण तो होता है, पर पल्लवन का रूप गद्यात्मक ही होता है। पल्लवन कर्ताओं को सृजनशील होना चाहिए। सृजनशीलता के लिए प्रतिभा और अभ्यास दोनों की आवश्यकता होती है। जिसमें सृजनात्मक क्षमता नहीं होती, पल्लवन उसके सामर्थ्य के बाहर की विधा है। पल्लवन की तीसरी विशेषता केन्द्रोमुन्खता है। पल्लवन-कर्ता को अप विषय की सीमा पर रहना चाहिए। उससे यहाँ निर्द्वन्द्व भाव विस्तार की अपेक्षा नहीं होती। उसका ध्यान सदैव अपने विषय पर ही केन्द्रित रहना चाहिए। ऐसा न करने से पल्लवन बिखरा लगेगा। किसी लेखक में सर्जनात्मकता अपनी मौलिकता के आधार पर आती है। मौलिकता नवीनता की अपेक्षा करती है। पल्लवन करते समय यदि समसामयिकता करने वाले विचारों को सहारा लिया जाये तो इसमें मौलिकता स्वयं आ जायेगी। सृजनशील गद्य होने के कारण पल्लवन में लेखक में कल्पनाशीलता भी होनी चाहिए, पर एक सीमा में। कल्पना की लम्बी, चौड़ी उड़ाने न भरकर लेखक को अपनी कल्पनाशक्ति के आधार पर वस्तु प्रतिपादन को सरस और, रुचिकर बनाना चाहिए। उन्मुक्तता लेखक की सृजनशीलता को बढ़ाती है। उन्मुक्तता का अर्थ है सहजता और स्वाभाविकता किसी शास्त्र या परम्परा की लीक पकड़कर न चलना। पल्लवन के माध्यम से लेखक समाज को कुछ दे यही उन्मुक्तता है। प्रभावमयता की भाषा सरल एवं सहज तथा शैली प्रभावमय होनी चाहिए। भाषा ऐसी हो जो केन्द्रीय भाव को सहज ढंग से अभिव्यक्ति दे सके, इसमें बनावटीपन न हो, वह कहावतों और मुहावरों के बोझ तले दबी न हो।
पल्लवन की विधि या नियम-
1. दिये गये सूत्र वाक्य सुभाषित अथवा कथन को ध्यान से पढ़िये और उस पर भली-भाँति चिन्तन, मनन कर उसका आशय समझने की चेष्टा कीजिए।
2. मूल कथन को अच्छी तरह समझ लेने के बाद, इसको लेकर आपके मन में जो भाव या विचार उठ रहे हों उन्हें और इससे सम्बन्धित यदि कोई दृष्टान्त समझ में आ रहा है, तो उसे कही नोट कर लें।
3. भाव पल्लवन हेतु दिये ये वाक्य या सूक्ति का विस्तार उसके मूलभाव से ही सम्बद्ध होना चाहिए, यदि कुछ जोड़ा गया तो वह भी मूल भाव से सम्बद्ध हो।
4. उक्ति के विचारक्रम और सन्दर्भ को जानने की चेष्टा कीजिए, उक्तियाँ निश्चित है। किसी विस्तृत बात का निष्कर्ष होती हैं।
5. पल्लवन की भाषा के सम्बन्ध में मैं और हम का प्रयोग न करें अन्य पुरुष का प्रयोग करें।
6. पल्लवन के बीच यदि कोई उद्धरण आवश्यक हो तभी दें, अप्रासंगिक बातें- उठाये। किसी विरोधात्मक तथ्य का उल्लेख भी न करें।
पल्लवन की प्रक्रिया-
1. विषय का चुनाव
2. वैचारिक कथन
3. पठन
4. सामग्री चयन
5. सामग्री संयोजन
6. लेखन
7. प्रारूप लेख
8. प्रारूप का निरीक्षण
9. अन्तिम लेखन।
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