कवि-लेखक

डॉ. जयभगवान गोयल का जीवन परिचय, रचनाएँ, साहित्यिक परिचय, तथा भाषा-शैली

डॉ. जयभगवान गोयल का जीवन परिचय, रचनाएँ, साहित्यिक परिचय, तथा भाषा-शैली
डॉ. जयभगवान गोयल का जीवन परिचय, रचनाएँ, साहित्यिक परिचय, तथा भाषा-शैली

डॉ. जयभगवान गोयल का जीवन परिचय

साहित्यिक परिचय

डॉ. जयभगवान गोयल का जन्म 30 सितम्बर, 1931 को यमुनानगर ज़िले छछरौली नामक ग्राम में लाला मंसाराम के घर हुआ था। आपने एम. ए. हिन्दी की परीक्षा पंजाब विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी उतीर्ण की और वहीं से ‘गुरु प्रतापसूरज के काव्य-पक्ष का अध्ययन विषय पर शोध-कार्य पी एच. डी. की उपाधि प्राप्त की। आप कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के आचार्य एवं अध्यक्ष, कला संकाय के अधिष्ठाता, प्रोफैसर एमरेटस रहने के पश्चात् हरियाणा शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष भी रहे हैं।

रचनाएं:

डॉ. गोयल ने हिन्दी जगत की बहुमूल्य सेवा की हैं उन्होंने गुरुमुखी लिपि में उपलब्ध हिन्दी साहित्य के अनुसंधान द्वारा हिन्दी जगत् को एक नई दिशा दी है। मध्ययुगीन साहित्य का पुनर्मूल्यांकन करके हिन्दी साहित्य को एक नया आयाम दिया है। अब तक आपके मौलिक एवं सम्पादित सोलह ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं, जिनमें निम्नलिखित प्रमुख हैं-‘गुरुमुखी लिपि में हिन्दी साहित्य’, ‘वीर कवि दशमेश’, गुरुगोबिन्द सिंह विचार और दर्शन’, ‘मध्ययुगीन काव्यः नया मूल्याकन’, ‘रीतिकाल का पुनर्मूल्यांकन’, ‘प्रसाद और उनका काव्य’, ‘गुरुशोभा’, ‘जगनामा गुरु गोबिन्द सिंह, संक्षिप्त गुरु प्रतापसूरज’, गुरु विलास’, ‘गुरु नानक प्रकाश’, ‘वीर अमकर सिंह’, गुरु गोबिन्द सिंह का वीर काव्य’, संक्षिप्त गुरु प्रताप सूरज’, खट्ठा, मिट्ठा, कड़वा’, ‘गुरु प्रताप सूरज के काव्य पक्ष का अध्ययन’ आदि । इन रचनाओं के अतिरिक्त आपके अब तक लगभग अस्सी निबंध प्रकाशित हो चुके हैं। आप अपनी साहित्यिक रचनाओं के कारण शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्ध कर्मटी, अमृतसर तथा हरियाणा प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा दो बार पुरस्कृत एवं सम्मानित हो चुके हैं। इन्हें भूतपूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने भी इनकी साहित्यिक उपलब्धियों के लिए सम्मानित किया था।

साहित्यिक विशिष्टताएं:

निबंधकार एवं रिपोर्ताज लेखक के रूप में डॉ. गोयल का हिन्दी जगत् में महत्त्वपूर्ण स्थान है। आपके निबंध चिन्तन प्रधान, विचारोत्तेजक तथा नवीन भाव-बोध से सम्पन्न हैं। कबीर, गुरुनानक , गुरु गोबिन्द सिंह, शेख फरीद, गुरु तेग लिखे गए निबंधों में पर्याप्त मौलिकता है। भाव-गाम्भीर्य एवं विषय-प्रतिपादन की मौलिकता आपके निबंधों की महत्त्वपूर्ण विशेषताएं है। विषय-अनुरूपण में ज्ञान-गरिमा, अनुभव तथा नया दृष्टिकोण पद-पद पर झलकता है।

डॉ. गोयल के निबंधों में वैयक्तिकता भी झलकती है। लेखक के निजी दृष्टिकोण, उसकी अभिरुचि तथा प्रवृतियों का लेखा-जोखा उनके निबंधों मे मिल जाता है । रोचकता, सरसता एवं हृदय-स्पर्शिता भी उनके निबंधों में मिलती है । कहीं-कहीं उनके निबंधों में व्यंग्यात्मकता का पुट भी रहता है। रिपोर्ताज – लेखक के रूप में डॉ. गोयल का नाम अग्रगण्य है। उन्होंने अपनी रिपोर्ताजों में समसामयिक घटनाओं को वास्तवकि रूप में प्रस्तुत किया है।

डॉ. जयभगवान गोयल प्रबुद्ध-चिन्तक हैं। उनकी रचनाएं चिन्तन-प्रधान, विचारोत्तेजक तथा नवीन भाव-बोध से सम्पृक्त होती हैं। उनकी भाषा, सहज, सरल एवं भानुकूल है। उनकी भाषा ‘टक्साली’ है जिसमें प्रत्येक शब्द नगीने की भान्ति जड़ा गया है।

डॉ. गोयल की भाषा सशक्त एवं प्रांजल है। भाषा भावों के अनुसार चलती है तथा भाव भाषा के साथ कदमों से कदम मिलाकर चलते हैं। भाषा में प्रवाह भी पद-पद पर झलकता है।

लेखक शब्दों के पारखी हैं। उन्होंने चुन-चुन कर शब्दों का चयन किया है। उनकी भाषा में संस्कृत, अंग्रेज़ी, अरबी-फारसी व देशज शब्दों का सहज प्रयोग मिल जाता है। उनकी शब्द योजना द्रष्टव्य है– सूर्य ग्रहण, कायाकल्प, गौरवशाली, दीपमाला, देदीप्यमान, जीर्णोद्वार, भव्यमूर्ति, शीर्षासन, सुकृत्य, उल्लास आदि संस्कृतनिष्ठ हैं तथा किलोमीटर, टैण्ट, लाइट, लाउडस्पीकर आदि अंग्रेज़ी के , महक बरामदा, जूलूस आदि उर्दू के हैं।

डॉ. गोयल का वाक्य-विन्यास सुगठित एवं व्याकरण सम्मत है। उनके वाक्य छोटे-छोटे होते हैं किन्तु अर्थ-गांभीर्य से पूर्ण होते हैं। यथा-“और लीजिए सूर्य का संकटमोचन हो रहा है । धीरे-धीरे ग्रहण के बाद छंटने लगे हैं। जल पर से काली छाया सिमटने लगी है और धूप गरमाने लगी है।”

डॉ. गोयल की भाषा में मुहावरों का भी सटीक प्रयोग हुआ है। कुरुक्षेत्र में सूर्य ग्रहण मेला’ शीर्षक रिपोर्ताज में मुहावरों का सटीक प्रयोग द्रष्टव्य है–आंखें बिछाना, गहमा-गहमी होना, संकट मोचन होना, नीड़ों की ओर लौटाना आदि। ‘कुरुक्षेत्र में सूर्य-ग्रहण मेला’ शीर्षक रचना एक रिपोर्ताज है। रिपोर्ताज में समसामयिक समस्याओं का यथातथ्य चित्रण किया जाता है प्रस्तुत रिपोर्ताज के आधार पर डॉ. गोयल की शैली वर्णनात्मक है । लेखक न रोचक शैली में कुरुक्षेत्र में सूर्य-ग्रहण का वर्णन किया है। यथा— “सूर्य-ग्रहण प्रारम्भ होने वाला है। ब्रह्मसरोवर एवं सन्निहित सरोवर पर स्नान करने के लिए लाखों की भीड़ जमा है।” डॉ. गोयल ने प्रस्तुत रिपोर्ताज में सूर्यग्रहण के अनेक चित्र प्रस्तुत किये हैं–“सरोवर के चारों ओर बिजली के हजारों बल्बों की बन्दनवारी टंगी है। लाल पत्थर के घाटों पर स्थिति खम्भे पर लगी श्वेत मर्करी लाइट सर्वेश्वर महादेव मन्दिर की जगमग दीप-सज्जा अत्यन्त मोहक दृश्य ।” डॉ. गोयल की शैली प्रवाहमयी है । इस शैली को सपाट-बयानी शैली भी कहा जा सकता है। प्रस्तुत रिपोर्ताज की निम्नलिखित पंक्तियों में प्रवाह द्रष्टव्य है-“विशाल जन-समूह । जन सागर । गाड़ियों, बसों, ट्रैक्टर, ट्रालियों, कारों, ठेलों से तथा पैदल बड़ी संख्या में यात्री सरोवर की ओर एक दिशा में, एक विश्वास लिए।”

संक्षेप में कहा जा सकता है कि डॉ. गोयल प्रबुद्ध समीक्षक होने के साथ-साथ उत्कृष्ट निबंधकार एवं रिपोर्ताज लेखक हैं।

जयभगवान गोयल की भाषा-शैली

1. भाषा –

डॉ. जयभगवान गोयल प्रबुद्ध चिन्तक हैं। उनकी रचनाएं चिन्तन-प्रधान, विचारोत्जक तथा नवीन भाव- बोध से सम्पृक्त होती हैं। उनकी भाषा सहज, सरल एवं भावानुकूल हैं उनकी भाषा टक्साली है जिसमें प्रत्येक शब्द नगीने की भांति जड़ा गया है। उनकी भाषा में निम्नलिखित विशेषताएं दृष्टिगोचर होती हैं–

(क) सशक्त एवं प्रांजल भाषा-डॉ. गोयल की भाषा सशक्त एवं प्रांजल है । भाषा भावों के अनुसार चलती है तथा भाव भाषा के साथ कदमों से कदम मिलाकर चलते हैं। भाषा में प्रवाह भी पद-पद पर झलकता है।

(ख) शब्द चयन – लेखक शब्दों के पारखी हैं। उन्होंने चुन-चुनकर शब्दों का चयन किया है। उनकी भाषा में संस्कृत, अंग्रेजी, अरबी-फारसी व देशज शब्दों का सहज प्रयोग मिल जाता है। उनकी शब्द योजना द्रष्टव्य है- संस्कृत – सूर्यग्रहण, कायाकल्प, गौरवशाली, दीपमाला, देदीप्यमान, भव्य-मूर्ति, शीर्षासन, सुकृत्य, उल्लास आदि। अंग्रेजी-किलोमीटर, टैण्ट, लाइट, लाउडस्पीकर आदि। उर्दू – महक, बरामदा, जलूस आदि।

(ग) वाक्य-विन्यास- डॉ. गोयल का वाक्य-विन्यास सुसंगठित एवं व्याकरण सम्मत है। उनके वाक्य छोटे-छोटेहोते हैं, किन्तु अर्थ-गांभीर्य से पूर्ण होते हैं । यथा- “और लीजिए सूर्य का संकटमोचन हो रहा है। धीरे-धीरे ग्रहण के बादल छंटने लगे हैं। जल पर से काली छाया सिमटने लगी है और धूप गरमाने लगी है।”

(घ) मुहावरों का प्रयोग- डॉ. गोयल की भाषा में मुहावरों का भी सर्टीक प्रयोग हुआ है । कुरुक्षेत्र में सूर्य ग्रहण मेला’ शीर्षक रिपोर्ताज में मुहावरों का सटीक प्रयोग द्रष्टव्य है—आँखें बिछाना, गहमा-गहमी होना , नीड़ों कीओर लौटाना आदि।

शैली –

‘कुरुक्षेत्र में सूर्य-ग्रहण मेला’ शीर्षक रचना एक रिपोर्ताज है। रिपोर्ताज में समसामयिक समस्याओं का यथातथ्य चित्रण किया गया है। रिपोर्ताज की शैली आकर्षक एवं मन को झरझोरने वाली होती है। रिपोर्ताज में शैली लालित्यपूर्ण होना अत्यन्त आवश्यक है। प्रस्तुत रिपोर्ताज के आधार डॉ. गोयल की शैली की निम्नलिखित विशेषताएं दृष्टिगोचर होती हैं-

(क) वर्णन की रोचकता- रिपोर्ताज की शैली वर्णनात्मक होती है। लेखक ने रोचक शैली में कुरुक्षेत्र में सूर्यग्रहण का वर्णन किया है। यथा-“सूर्य ग्रहण प्रारम्भ होने वाला है। ब्रह्मसरोवर एवं सन्निहित सरोवर पर स्नान करने के लिए लाखों की भीड़ जमा है।”

(ख) चित्रात्मकता- चित्रात्मकता भी डॉ. गोयल की शैली की एक प्रमुख विशेषता है। उन्होंने प्रस्तुत रिपोर्ताज में सूर्यग्रहण के अनेक चित्र प्रस्तुत किये हैं-“सरोवर के चारो ओर बिजली के हज़ारों बल्बों की वन्दनवारी टंगी है। लाल पत्थर के घाटों पर स्थित खम्भों पर लगी श्वेत मर्करी लाइट, सर्वेश्वर महादेव मन्दिर की जगमग दीप सज्जा,अत्यन्त मोहक दृश्य।”

(ग) व्यक्तित्व की छाप– डॉ. गोयल सूक्ष्म पर्यवेक्षक हैं। उन्होंने प्रत्येक वस्तु का सूक्ष्मता से चित्रण किया है। सूर्यग्रहण का मेला देखते हुए लेखक कल्पना करता है-“फिर मैं कल्पना करता हूँ उस समय की, जब स्थानेश्वर वधन वंश के प्रताती राजा हर्षवर्धन की राजधानी थी। अनेक मतों,धर्मों का केन्द्र । अत्यन्त वैभवशाली”

(घ) प्रवाहमयी शैली-डॉ. गोयल की शैली प्रवाहमयी है । इस शैली को सपाट-बयानी शैली भी कहा जा सकता है। प्रस्तुत रिपोर्ताज की निम्नलिखित पंक्तियों में प्रवाह द्रष्टव्य है- “विशाल जन समूह। लहराता जन-सागर । गाड़ियों, बसों. ट्रैक्टर-ट्रालियों, कारों, ठेलों से तथा पैदल बड़ी संख्या में यात्री सरोवर की ओर एक दिशा में एक विश्वास लिए।”

निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि डॉ. गोयल की भाषा-शैली रोचक, भावपूर्ण एवं प्रवाहमयी है।

Important Links

Disclaimer

Disclaimer: Sarkariguider does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment