कवि-लेखक

मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय, रचनाएँ, तथा भाषा-शैली

मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय

मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय

मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय

मैथिलीशरण गुप्त राष्ट्रकवि हिंदी के महत्वपूर्ण कवि हैं। श्री पं० महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की प्रेरणा से आपने खड़ीबोली को अपनी रचनाओं का माध्यम बनाया और अपनी कविता के द्वारा खड़ीबोली को एक काव्य-भाषा के रूप  निर्मित करने में अथक प्रयास किया। गुप्त जी खड़ीबोली के उन्नायकों में प्रधान है। इस तरह ब्रजभाषा जैसी समृद्ध काव्य-भाषा को छोड़कर समय और संदर्भो के अनुकल होने के कारण नए कवियों ने इसे ही अपनी काव्य-अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। हिंदी कविता के इतिहास में गुप्त जी का यह सबसे बड़ा योगदान है। पवित्रता, नैतिकता और परंपरागत मानवीय संबंधों की रक्षा गुप्त जी के काव्य के प्रथम गुण हैं, जो ‘पंचवटी’ से लेकर जयद्रथ वध’, ‘यशोधरा’ और ‘साकेत’ तक में प्रतिष्ठित एवं प्रतिफलित हुए हैं। साकेत उनकी रचना का सर्वोच्च शिखर है। अपनी लेखनी के माध्यम से वे सदा अमर रहेंगे और आने वाली सदियों में नए कवियों के लिए प्रेरणा का स्रोत होंगे।

जीवन परिचय-

हिंदी साहित्य के प्रखर नक्षत्र, माँ भारती के वरद पुत्र मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 3 अगस्त सन् 1886 ई. में पिता सेठ रामचरण गुप्त और माता कौशल्या बाई की तीसरी संतान के रूप में उत्तर प्रदेश में झाँसी के पास चिरगाँव में हुआ। माता और पिता दोनों ही परम वैष्णव थे। वे कनकलताद्ध’ नाम से कविता करते थे। विद्यालय में खेलकूद में अधिक ध्यान देने के कारण पढ़ाई अधूरी ही रह गई। घर में ही हिंदी, बंगला, संस्कृत साहित्य का अध्ययन किया। मुंशी प्रेमचंद्र जी ने उनका मार्गदर्शन किया। 12 वर्ष की अवस्था में ब्रजभाषा में कविता रचना आरंभ की। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के संपर्क में भी आए। उनकी कविताएँ खड़ीबोली में मासिक ‘सरस्वती’ में प्रकाशित होना प्रारंभ हो गई। प्रथम काव्य संग्रह ‘रंग में भंग’ तथा बाद में जयद्रथ वध’ प्रकाशित हई। उन्होंने बंगाली के काव्य ग्रंथ ‘मेघनाद वध’,’ब्रजांगना’ का अनुवाद भी किया। सन् 1914 ई. में राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत ‘भारत भारती’ का प्रकाशन किया। उनकी लोकप्रियता सर्वत्र फैल गई। संस्कृत के प्रसिद्ध ग्रंथ ‘स्वप्नवासवदत्ता’ का अनुवाद प्रकाशित कराया। सन् 1916-17 ई.में महाकाव्य ‘साकेत’ का लेखन प्रारंभ किया। उर्मिला के प्रति उपेक्षा भाव इस ग्रंथ में दूर किए गए। स्वत: प्रेस की स्थापना कर अपनी पुस्तकें छापना शुरू किया। ‘साकेत’ तथा अन्य ग्रंथ ‘पंचवटी’ आदि सन् 1931 में पूर्ण किए।

12 दिसंबर 1964 ई.को दिल का दौरा पड़ा और साहित्य का यह जगमगाता तारा अस्त हो गया। उन्होंने 78 वर्ष की आयु में दो महाकाव्य, 19 खंडकाव्य, काव्यगीत, नाटिकाएँ आदि लिखीं। उनके काव्य में राष्ट्रीय चेतना, धार्मिक भावना और मानवीय उत्थान प्रतिबिंबित हैं। ‘भारत भारती’ के तीन खंड में देश का अतीत, वर्तमान और भविष्य चित्रित है। वे मानववादी, नैतिक और सांस्कृतिक काव्यधारा के विशिष्ट कवि थे। डा. नागेंद्र के अनुसार वे सच्चे राष्ट्रकवि थे। दिनकर जी के अनुसार उनके काव्य के भीतर भारत की प्राचीन संस्कृति एक बार फिर तरुणावस्था को प्राप्त हुई थी।

रचनाएँ-

(अ) भारत भारती – इसमें देश के प्रति गर्व और गौरव की भावनाओं पर आधारित कविताएँ लिखी हुई है। इसी से वे राष्ट्रकवि के रूप में विख्यात हुए।

(ब) साकेत – ‘मानस’ के पश्चात हिंदी में राम काव्य का दूसरा अनुपम ग्रंथ ‘साकेत’ ही है।

(स) यशोधरा – इसमें उपेक्षित यशोधरा के चरित्र को काव्य का आधार बनाया गया है।

(द) द्वापर, जयभारत, विष्णुप्रिया – इनमें हिडिंबा, नहुष, दुर्योधन आदि के चरित्रों को नवीन रूपों में प्रस्तुत किया गया है।

(य) गुप्त जी की अन्य पुस्तकें – पंचवटी, चंद्रहास, कुणालगीत, सिद्धराज, मंगल घट, अनघ तथा मेघनाद वध।

भाषा-शैली-

गुप्त जी ने अपनी कविताओं में ब्रजभाषा तथा परिष्कृत, सरल तथा शुद्ध खड़ीबोली को अपनाया, उन्होंने यह सिद्ध किया कि ब्रजभाषा काव्य सृजन के लिए समर्थ भाषा है। सभी अलंकारी का इन्होंने स्वाभाविक प्रयोग किया है। लेकिन सादृश्यमूलक अलंकार गुप्त जी को अधिक प्रिय है। घनाक्षरी, मालिनी, वसंततिलका, हरिगीतिका व द्रुतविलंबित आदि छंदों में उन्होंने काव्य रचना की है। गुप्त जी ने विविध शैलियों में काव्य की रचना की। इसके द्वारा प्रयुक्त शैलियाँ है – प्रबंधात्मक शैली, अलंकृत उपदेशात्मक शैली, विवरणात्मक शैली, गीति शैली तथा नाट्यशैली। मैथिलीशरण गुप्त जी की रचनाएँ राष्ट्रीय भावनाओं से परिपूर्ण है। काव्य के क्षेत्र में उन्होंने अपनी लेखनी से संपूर्ण देश में राष्ट्रभक्ति की भावना भर दी थी। राष्ट्रप्रेम की इस अजस्त्र धारा का प्रवाह बुंदेलखंड क्षेत्र से कविता के माध्यम से हो रहा था। बाद में राष्ट्र प्रेम को इस धारा को देशभर में प्रवाहित किया था, राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने।

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