हिन्दी / Hindi

राम काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियाँ | रामकाव्य की प्रमुख विशेषताएँ

रामकाव्य की प्रमुख विशेषताएँ
रामकाव्य की प्रमुख विशेषताएँ

राम काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियाँ | रामकाव्य की प्रमुख विशेषताएँ

रामकाव्य की प्रमुख विशेषताएँ | राम काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियाँ-  भक्तिकाल की सगुण काव्यधारा में रामकाव्य धारा का अपूर्व महत्त्व है। रामभक्ति धारा में अनेक कवि हुए, किन्तु राम भक्ति धारा का साहित्यिक महत्त्व अकेले तुलसीदास के कारण है। इस धारा के अन्य कवियों और तुलसीदास में अंतर तारागण और चंद्रमा का नहीं, बल्कि तारागण और सूर्य का है। तुलसी की आभा के सामने वे साहित्याकाश में रहते हुए भी चमक न सके। इसलिए इस धारा का अध्ययन मुख्यत: तुलसीदास में ही केन्द्रित करना होगा।

रामकाव्य की प्रमुख विशेषताएँ

  1. रामचरित प्रमुख विषय
  2. सेवक-सेव्य भाव की भक्ति
  3. स्वान्तः सुखाय रचना
  4. समन्वय की भावना
  5. शिवम की भावना
  6. मर्यादा की प्रधानता
  7. आदर्शवादिता
  8. रस योजना
  9. चरित्रांकन
  10. जीबन के अनेक रूपता का वर्णन
  11. अवतारवादी भावना
  12. दार्शनिकता
  13. प्रकृति चित्रण
  14. अवधी एवं ब्रजभाषा का प्रयोग
  15. छंद योजना
  16. अलंकार योजना
  17. विविध काव्य शैलियों का प्रयोग

इस काव्य धारा की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

1.रामचरित प्रमुख विषय-

राम काव्यधारा की प्रमुख विशेषता यह है कि इसके सभी कवियों ने विष्णु के अवतार भगवान राम को ही अपनी कविता का विषय बनाया है। इसके राम शील, शक्ति और सौन्दर्य की साकार प्रतिमा हैं।

2. सेवक-सेव्य भाव की भक्ति-

इस धारा के कवियों ने ज्ञान की अपेक्षा भक्ति को अधिक महत्त्व दिया है। इसलिए कहा गया है। “ज्ञान कठिन है, भक्ति सरल।” इस काव्यधारा के कवियों की भक्ति दास्य भाव की है। उन्होंने स्वयं को भगवान राम का सेवक माना है तथा राम को अपना स्वामी माना है। इस प्रकार की भक्ति के कारण ही इस काव्य में लघुता, दैन्य, उदारता, आदर्शवादिता, नम्रता आदि भावों की प्रधानता दृष्टिगोचर होती है।

3. स्वान्तः सुखाय रचना-

रामभक्ति धारा की एक प्रमुख प्रवृत्ति यह भी है कि इसमें अधिकांश शतः कवियों ने स्वांत: सुखाय काव्यों की रचनाएँ की हैं। उन्होंने किसी राजा-महाराज या विशिष्ट व्यक्ति का गुणगान नहीं किया है।

4. समन्वय की भावना-

राम काव्यधारा में समन्वय की भावना के दर्शन होते हैं। इस काव्यधारा के कवियों ने अपने समय के प्रचलित विभिन्न मतों एवं विचार धारा का समन्वय स्थापित करके लोक-कल्याण के मार्ग को आगे बढ़ाया। रामभक्त कवियों ने मुख्यत: सगुण एवं निर्गुण भक्ति के भेदभाव को “अगुनहिं सगुनहिं नहिं कछु भेदा” के आधार पर दूर करने का प्रयत्न किया । रामभक्त कवियों ने ज्ञान, भक्ति और कर्म में सुंदर समन्वय स्थापित किया । भाव यह है कि इस काव्य धारा के कवियों ने समन्वय की भावना को विशिष्ट रूप में प्रस्तुत किया है।

5. शिवम की भावना-

राम काव्यधारा में शिवम् को भावनाअर्थात् लोक-मंगल की भावना के दर्शन होते हैं। इस काव्य की यह प्रवृत्ति हिन्दी साहित्य को अपूर्व देन है। इस काव्यधारा के कवियों ने समाज को निवृत्ति की ओर अग्रसर नहीं किया, वरन् सामाजिक कर्तव्यों की पूर्ति करते हुए उच्च भूमि को प्राप्त करने की प्रेरणा प्रदान की है।

6. मर्यादा की प्रधानता-

इस शाखा की एक प्रधान विशेषता यह है कि इसमें लोक-मर्यादा को विशेष महत्व दिया गया है। उसी का परिणाम है कि इस काव्यधारा में भारतीय जीवन का मर्यादित और संयत रूप देखने को मिलता है। इसमें जिन पात्रों  का चित्रांकन किया गया है, वे सदैव ही मर्यादा का ध्यान रखते हैं। जैसे राम माता के सामने सीता को समझाने कोच करते हैं, राजा दशरथ वचनों की मर्यादा में बंधे होने के कारण रामको न चाहते हुए भी वन जाने की आज्ञा देते हैं, सीताजी कोई भी बात मर्यादा के कारण ही अपनी सासों के समक्ष स्पष्ट नहीं कह पाती हैं। इस काव्यधारा के कवियों ने शृंगार चित्रण के निरूपण में भी मर्यादा का ध्यान रखा है।

7. आदर्शवादिता-

राम काव्यधारा में मर्यादावाद के साथ-साथ जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आदर्शवादी सिद्धान्तों का निरूपण किया गया है। इसी का परिणाम है कि इस काव्यधारा में आदर्श स्वामी, सेवक, माता-पिता, भाई, राजा, गुरु, पूजा आदि के दर्शन होते हैं। आदर्श सम्राट हैं, अयोध्यावासी आदर्श प्रजा हैं, भरत आदर्श भाई हैं तथा हनुमान आदर्श सेवक हैं । आदर्श पुत्र के गुण देखिए-

“सुन जननी सोई सुत बड़भागी, जो पितु चरन अनुरागी।”

8. रस योजना-

विष्णु के अवतार पुरुषोत्तम राम के जीवन का समग्र वर्णन करने के लिए इस काव्य में शृंगार, वीर, करुण, रौद्र, हास्य, वात्सल्य, अद्भुत आदि रसों का सुंदर परिपाक हुआ है। इस काव्यधारा के शृंगार रस में उच्छंखलता और अश्लीलता के दर्शन नहीं होते हैं।

9. चरित्रांकन-

राम काव्य में जिन कवियों ने समावेश किया है, उनका अत्यन्त सजीव और स्वाभाविक रूप में चरित्रांकन किया है। रामकाव्यधारा के कवियो अपने काव्य में सद् और असद्दोनों प्रकार के पात्रों का प्रयोग किया है। सद् पात्रों के अंतर्गत राम, लक्ष्मण, भरत, दशरथ, सीता, कौशल्या आदि आते हैं और असद्पात्रों की श्रेणी में रावण, बाली, खरदूषण आदि आते हैं।

10. जीवन के अनेक रूपता का वर्णन-

राम काव्यधारा के कवियों ने मानव जीवन के प्रत्येक पक्ष पर कुछ प्रकाश अवश्य डालाहै। यदि राम काव्य के महत्त्वपूर्ण ग्रंथ रामचरितमानस’ का अवलोकन करें तो उसमें जीवन की विविध समस्याओं और कर्तव्यों के समझने में बड़ी सहायता मिलती है। भाव यह है कि जीवन का ऐसा कोई भी पक्ष नहीं है, जिसका स्पर्श इस काव्यधारा के कवियों ने नहीं किया है।

11. अवतारवादी भावना-

राम काव्यधारा में अवतारवादी भावना के भीदर्शन होते हैं। इसकाव्यधारा के कवियों ने अपने आराध्य रामचंद्रजी को सच्चिदानन्द ब्रह्म माना है। उनका विश्वास है कि भगवान राम ने अधर्म का विनाश करने के लिए तथा भक्तों पर करने के लिए नर रूप धारण किया है।

12. दार्शनिकता-

राम काव्यधारा में दार्शनिकता की विशेषता भी दृष्टिगत होती है। इसी का फल है कि काव्यधारा के कवियों ने जीव, ब्रह्म और संसार के विषय में अपने विचार प्रकट किए हैं। इन्होंने जीव को ब्रह्म का अंशमाना है, परन्तु जीव माया के प्रभाव में आकर ब्रह्म से पृथक् हो जाता है। राम भक्त की दार्शनिकता का आधार रामानुजाचार्य का विशिष्टाद्वैतवाद है।वैसे कहीं- कहीं पर अद्वैतवाद की भावना के भी दर्शन होते हैं।

13. प्रकृति चित्रण-

राम काव्यधारा में प्रकृति चित्रण की छटा भी देखने को मिलती है। इस काव्यधारा के कवियों ने उद्दीपन, आलंकारिक, उपदेशात्मक और मानवीकरण के रूप में प्रकृति का चित्रण किया है।

14. अवधी एवं ब्रजभाषा का प्रयोग-

इस काव्यधारा की प्रमुख विशेषता यह भी है कि इसमें अवधी और ब्रज दोनों ही भाषाओं का प्रयोग किया गया है। तुलसीदास ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ रामचरितमानस की रचना अबधी भाषा में की है। इसके अतिरिक्त इन्होंने विनय-पत्रिका, कवितावली, गीतावली आदि कीरचना के लिए ब्रजभाषा को अपनाया है। इस काव्यधारा के कवियों का अवधी और ब्रजभाषा पर पूर्ण अधिकार था।

15. छंद योजना-

राम काव्यधारा के कवियों ने आदिकाल के छप्पय, संत काव्य के दोहा, सूफ़ी काव्य के चौपाईछंदों को अपने काव्य में स्थान दिया है। इसके अतिरिक्त इन कवियों ने सोरठा, सवैया, घनाक्षरी, कुण्डलिया, तोमर, त्रिभंगी जैसे छंदों का भी प्रयोग किया है। केशव की ‘रामचंद्रिका’ तो छंदों का अजायबघर ही माना जाता है।

16. अलंकार योजना-

जिस प्रकार इस काव्यधारा के कवियों ने छंदों के प्रयोग में विविधता का परिचय दिया है उसी प्रकार आचार्य केशव ने अलंकारों की रामचंद्रिका’ में भरमार कर दी है, वैसे तुलसीदास के काव्य में प्राय: सभी अलंकार उपलब्ध हो जाते हैं परन्तु उन्होंने अलंकारों का प्रयोग स्वाप्भारयोग विक और सजीव रूप में किया है। इस काव्यधारा के कवियों ने अधिकांश रूप में उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, प्रतीप, व्यतिरेक, अतिशयोक्ति आदि अलंकारों का प्रयोग किया है|

17. विविध काव्य शैलियों का प्रयोग-

राम काव्यधारा में विविध शैलियों का प्रयोग दृष्टिगोचर होता है। इसमें वीरगाथाओं की पद्धति की गीता पद्धति और रीतिपद्धति के दर्शन होते हैं। वैसे राम काव्यधारा प्रबन्ध और मुक्तक शैली का प्रयोग उपलब्ध होता है। तुलसी द्वारा रचित रामचरितमानस’ महाकाव्य है, गीतावली और कवितावली मुक्तक रचनाएँ हैं और रामचंद्रिका प्रबन्ध और मुक्तक के मध्य की वस्तु है।

हिन्दी साहित्य में राम काव्यधारा का अद्वितीय महत्व है। इस काव्यधारा को रामानुजाचार्य के परम शिष्यरामानन्द ने जनता के सामने रखा । इसमें तुलसी, अग्रदास, नाभादास, केशवदास, सेनापति प्रानचंद चौहान आदि कवि हुए हैं। इस काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि ‘तुलसीदास’ हैं।

Important Links

Disclaimer

Disclaimer: Sarkariguider does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment