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हिंदी भाषा के विविध रूप – राष्ट्रभाषा और लोकभाषा में अन्तर

हिंदी भाषा के विविध रूप
हिंदी भाषा के विविध रूप

हिंदी भाषा के विविध रूपों का परिचय देते हुए राष्ट्रभाषा और लोकभाषा में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

हिंदी भाषा के विविध रूप – राष्ट्रभाषा और लोकभाषा में अन्तर – भाषा एक ऐसी ही माध्यम है जो विचार विनिमय हेतु मनुष्य की सामाजिक आवश्यकता की पूर्ति करता है। भाषा का विकास सामाजिक परिवर्तन एवं संरचना के अनुरूप होता है। मानव सभयता विकास क्रम के साथ ही भाषा भी अपने स्वरूप और दिशाओं को निर्दिष्ट करती रही है सामान्यतः भाषा को ध्वनि समूह कहा जा सकता है। किन्तु सभी ध्वनियाँ भाषा नहीं होती। ध्वनि प्रयोग तथा ध्वनि सामंजस्य हेतु कुछ विशिष्ट नियम एवं व्यवस्थायें होती हैं जो अपनी अर्भवेदन्ता को प्रभावित करती हैं।

हिन्दी शब्द का उद्भव मूलतः संस्कृत के ‘सिन्धु’ शब्द से बना है। सिन्धु का आशय सिन्धु नदी से है और उसके आस-पास के निवासियों को सिन्धी कहा जाने लगा। आवेशता भाषा में ‘स’ का उच्चारण ‘ह’ लेने के कारण सिन्धु को हिन्दु और सिन्धी को हिन्दी। आधुनिक भाषा वैज्ञानिकों ने खोज के आधार पर सिद्ध किया कि दो भाषा परिवार, पहला द्रविड़ भाषा परिवार और दूसरा आर्यभाषा परिवारों की भाषाओं में भारतीय भाषा पर प्रभाव डाला।

भाषा के अर्थ में हिन्दी का प्रयोग

फारसी साहित्य में 6वीं शताब्दी में हिन्दी शब्द का प्रयोग भाषा के अर्थ में प्राप्त होता है। 16वीं शताब्दी में शरफुद्दीन यज्दी के संग जफरनामा में हिन्दी का प्रयोग भाषा के अर्थ में हुआ। ऐसा माना जाता है कि हिन्दी शब्द का प्रयोग भाषा के रूप में सर्वप्रथम मुसलमानों द्वारा ही हुआ। अमीर खुसरो ने अपनी कृति ‘खालिकवारि’ में हिन्दी को हिन्दी की और हिन्दवीं को हिन्दुओं की भाषा कहा है। इस प्रकार स्पष्ट है कि हिन्दी सम्पूर्ण देश में सर्वमान्य की भाषा का द्योतक ही मुसलमानों के सम्पर्क में अरबी, फारसी का समावेश स्वाभाविक थी हिन्दी और उर्दू में कुछ खास भिन्नता नहीं थी। ऐतिहासिक विकासक्रम की दृष्टि से खड़ी बोली उर्दू का प्रयोग हिन्दी की अपेक्षा पहले हुआ। स्थानीय मिलकर हिन्दी को जन्म दिया। जनसम्पर्क हेतु भाषा में परिवतर्तन होते गये। फारसी, तुर्की, अरबी, अंग्रेजी कई भाषाओं ने मिलकर हिंदी को जनम दिया ।

रेखता

रेखता उर्दू की वह विशिष्ट काव्य भाषा है जिसमें अरबी-फारसी भाषाओं पर आधारित है। भाषा के अर्थ में रेखता का प्रयोग अधिक प्राचीन है। रेखता उर्दू से सर्वथा भिन्न है। हिन्दी व्याकरण के अनुसार 1300 से 1800 के मध्य कविता में प्रयुक्त होने वाली उस भाषा को रखता कहा गया है जो अरबी-फारसी शब्दों के मिश्रण से निर्मित है। इसमें पुरुषों की भाषा रेखता और स्त्रियों की भाषा को रखेती कहा गया।

दक्खिनी, दखनी या दकनी

दक्खिनी मुसलमानों द्वारा भाषा दक्खिनी कहलायी। यह भाषा स्वाभाविक रूप को धारण करती है और इसमें भारतीय शब्दों का प्रयोग अत्यल्प है हिन्दी की प्रकृति के अधिक निकट होने के कारण इसे मूल्यतः हिन्दी का ही रूप माना जाता है।

यूरोपीय लोगों द्वारा मुसलमानों की भाषा के लिए दिया गया नाम हिन्दुस्तानी है। प्रारम्भ में इसका प्रयोग उर्दू के लिए है पर आगे चलकर इसमें सामान्य बोलचाल की भाषा को जो मुक्त है जिसमें न तो अरबी-फारसी शब्दों की भरमार है और न संस्कृत शब्दावली का प्रयोग, साधारण बोलचाल की भाषा में प्रयुक्त होती है। इसकी लिपि फारसी तथा नागरी दोनों है।

हिन्दी

वर्तमान में – सामान्यतः हिन्दी भाषा को मध्य देश की भाषा कहा जाता है। इसकी सीमायें सामान्यतः बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और हिमांचल प्रदेश के कुछ भागों तक है। भारतवर्ष कई भाषाओं का केन्द्र है। फिर भी इसमें अनेकता में एकता सर्वत्र स्पष्ट होती दिखती है। हिन्दी तथा अन्य भाषाओं की एकता के लक्ष्य को ध्यान में रखकर विरोधी मनोवृत्ति को समाप्त करने की स्तुत्य है किन्तु भाषा दृष्टि से हिन्दी भाषा को उसकी उपभाषाओं की बोलियों से समाविष्ट करके देखना सरस कार्य होगा।

‘भाषा’ संस्कृत भाषा का शब्द है। इसकी व्युत्पत्ति ‘भाष’ धातु से हुई है जिसका सामान्य अर्थ है बोलना, कहना या व्यक्त करना। भाषा मनुष्य के भावों एवं विचारों की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। सही मायनों में उन संकेतों, ध्वनियों और चिह्नों को भाषा कहा जाता है जो भाव व विचार प्रकट करने में सहायक हों। भाषा व्यक्ति की सामाजिक प्रक्रिया का आधार है। सम्प्रेषण की सफलता भाषा पर ही आधारित है। भाषा विचारों का मूल स्रोत है। विचारों के बिना भाषा का कोई अस्तित्व नहीं और भाषा के बिना विचारों की उत्पत्ति एवं अभिव्यक्ति सम्भव नहीं है। भाषा हमें परम्परा से प्राप्त होती है। भाषा एवं संस्कृति का बहुत गहरा सम्बन्ध है। किसी भी मानव समुदाय को परखने के लिए हमें उसकी भाषा समझना आवश्यक है यदि हम किसी समुदाय की जीवन पद्धति और उसके ऐतिहासिक उद्भव की गहराई से अध्ययन करते हैं तो उसकी भाषा का अध्ययन आवश्यक होता है। भाषा के प्रकार निम्न हैं-

मातृभाषा

वह भाषा जिसे बालक अपने परिवार में रहते हुए माता, परिवार के अन्य सदस्यों, पड़ोस व सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों के अनुकरण द्वारा सीखता है वह मातृभाषा कहलाती है।

मूलभाषा

भाषा से अभिप्राय उस भाषा से है जो किसी भाषा परिवार की आदि भाषा होती है और बाद में अनेक भाषाओं को जन्म देती है। उदाहरण के तौर पर उत्तर भारत की आर्य भाषाओं की मूल भाषा संस्कृत है।

प्रादेशिक भाषा

देश के किसी प्रदेश या राज्य में प्रयुक्त होने वाली भाषा प्रादेशिक भाषा कहलाती है। जैसे- पंजाबी, असमिया, कन्नड़ तथा तमिल आदि।

राष्ट्रभाषा

जिस प्रकार प्रत्येक राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करने वाला उसका राष्ट्रीय ध्वज, गीत, चिह्न, पशु, पक्षी, फूल आदि होते हैं। उसी प्रकार देश की संस्कृति और भाव-विचारों को प्रकट करने के लिए भाषा को वाहक बनाया जाता है वह राष्ट्रभाषा कहलाती है।

राजभाषा

राष्ट्रीय तथा राज्य स्तर पर जिस भाषा का प्रयोग शासन अपने काम- काज के लिए करता है वह राजभाषा कहलाती है। संविधान के अनुच्छेद 343 के तहत 14 सितम्बर 1949 को हिन्दी को भारत की राजभाषा स्वीकार किया गया है।

मानक भाषा

मानक भाषा वह भाषा होती है जो अपने क्षेत्र विशेष में प्रचलित अनेक बोलियों में एक होते हुए भी अपनी लोकप्रियता और बहुप्रचलन के कारण एक मानक स्थापित करने में समर्थ होती है। उदाहरण के तौर पर भारत में हिन्दी के अन्तर्गत 18 बोलियाँ या भाषाओं की गणना होती है परन्तु पश्चिमी हिन्दी की एक बोली खड़ी बोली अपनी विशेषताओं के कारण मानक भाषा है।

संचार भाषा

वह भाषा जिसका प्रयोग संचार के साधनों में किया जाता है वह संचार भाषा कहलाती है। इस भाषा का प्रयोग संचार के साधनों में किया जाता है वह संचार भाषा कहलाती है। इस भाषा का प्रयोग रेडियो, दूरदर्शन, पत्र-पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में किया जाता है।

सम्पर्क भाषा

वह भाषा जो किसी क्षेत्र, राष्ट्र और वर्ग में परस्पर औपचारिक वैचारिक आदान-प्रदान के माध्यम के रूप में कार्य करती है वह सम्पर्क भाषा कहलाती है।

अन्तर्राष्ट्रीय भाषा

वह भाषा जो संसार के सभी राष्ट्रों के विचारों का आदान-प्रदान करने में सहायक हो वह अन्तर्राष्ट्रीय भाषा कहलाती है। अंग्रेजी एक अन्तर्राष्ट्रीय भाषा है।

विदेशी भाषा

किसी देश के लिए वह भाषा जो न तो उसके लिए राष्ट्रभाषा,राजभाषा, मातृभाषा, क्षेत्रीय भाषा है वह भाषा विदेशी भाषा कहलाती है।

इसी प्रकार हिन्दी भाषा भी अनेक रूपों में सामने आयी। प्रारम्भ में मात्र साहित्यिक भाषा के रूप में प्रतिष्ठित हिन्दी राष्ट्र भाषा के रूप में घोषित हुई; तब भाषा ने दो रूप ले लिए एक राष्ट्रभाषा का तथा दूसरा लोकभाषा का। वह भाषा जो जन साधारण के विचारों की अभिव्यक्ति करती है वह लोकभाषा होती है। इनमें परस्पर अन्तर निम्नलिखित प्रकार से है-

राष्ट्रभाषा तथा लोकभाषा में अन्तर

(1) राष्ट्र भाषा का सम्बन्ध किसी देश की संस्कृति और चेतना के साथ होती है, जबकि लोकभाषा किसी अचंल विशेष से सम्बन्धित होती है एवं सीमिति होती है एवं सीमित क्षेत्र वाली होती है।

(2) राष्ट्रभाषा में मानक शब्दों को स्थान दिया जाता है जबकि लोकभाषा में तद्भव और पूर्व प्रचलित शब्दों का प्रयोग होता है।

(3) राष्ट्रभाषा देश के बहुसंख्यक लोगों द्वारा प्रयोग में लायी जाती है। लोकभाषा का क्षेत्र अपेक्षाकृत सीमित होता है एवं अल्पमत द्वारा प्रयुक्त होता है।

(4) राष्ट्रभाषा की संख्या उस भाषा को दी जाती है जिसको देश का संविधान स्वीकृत करता है जबकि लोकभाषा का सम्बन्ध व्यक्ति समूह से होता है।

(5) राष्ट्रभाषा अपने देश की अखण्डता एवं एकता की प्रतीक होती है और लोकभाषा अपने समुदाय की।

(6) राष्ट्रभाषा किसी भी देश की केवल एक ही हो सकती है जबकि किसी देश में कई लोकभाषायें हो सकती है। लोकभाषाएँ जनाकांक्षाएँ प्रदर्शित करती हैं।

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