शैक्षिक निर्देशन के स्तर (Different Levels of Educational Guidance)
व्यक्ति का सर्वांगीण विकास उसकी शिक्षा व्यवस्था द्वारा होता है। मानव जीवन में शिक्षा की उपादेयता है। शैक्षिक निर्देशन मानव जीवन की समस्याओं के समाधान में सहायक बनता है। शैक्षिक निर्देशन (Educational Guidance) का सम्बन्ध व्यक्ति के व्यावसायिक निर्देशन (Vocational Guidance) से भी बहुत गहरा व करीबी है। शैक्षिक निर्देशन का कुछ भाग व्यक्ति के व्यक्तिगत निर्देशन (Personal Guidance) से भी सम्बन्ध रखता है। अतः व्यक्ति को शैक्षिक निर्देशन देते समय उसके व्यक्तिगत निर्देशन तथा व्यावसायिक निर्देशन के पक्षों को भी ध्यान में रखना होता है।
विद्यार्थी के विभिन्न आयु स्तरों की विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए उन्हें शैक्षिक निर्देशन दिया गया उनके भावी जीवन को सम्भव बनाने में अपनी भूमिका का निर्वहन करने में सहायक होता है अतः शैक्षिक निर्देशन प्राथमिक स्तर, माध्यमिक स्तर तथा महाविद्यालय स्तरों पर विशेषताओं तथा आवश्यकताओं के आधार पर निर्देशन को निर्धारित करना अति आवश्यक होगा।
शैक्षिक निर्देशन के विषय क्षेत्रों से तात्पर्य है कि शैक्षिक निर्देशन की मुख्य रूप से आवश्यकता किन-किन अवसरों पर पड़ती है? शैक्षिक निर्देशन के कार्यक्षेत्र के अन्तर्गत निम्नलिखित बिन्दु समाहित हैं-
1. माध्यमिक स्तर तक शिक्षर प्राप्त करने के पश्चात् विद्यार्थियों की एक मुख्य समस्या होती है और वह होती है कि वे आगे उच्च शिक्षा को बढ़ायें या फिर व्यावसायिक पाठ्यक्रम में प्रवेश में लें अथवा कोई रोजगार शिक्षण-प्रशिक्षण प्राप्त करें। उच्च शिक्षा के अध्ययन-विषय का चयन करना विद्यार्थी-वर्ग की एक मुख्य समस्या होती है। इसमें शैक्षिक निर्देशन महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। विद्यार्थी को निर्देशन द्वारा इसमें काफी सहयोग मिलता है कि वह कृषि वर्ग, विज्ञान वर्ग, वाणिज्य अथवा कला वर्ग के अध्ययन-विषयों का चयन करे जिससे उसकी भविष्य की सुखद जीवन-प्रक्रिया बन सके। अध्ययन-विषयों के चयन में शैक्षिक निर्देशन सेवा विद्यार्थियों की क्षमताओं, उपलब्ध साधनों तथा उनकी अभिरुचियों को ध्यान में रखते हुए दी जानी चाहिए, तभी वह अपने जीवन की लक्ष्यित सफलता प्राप्त कर सकेंगे।
2. जब विद्यार्थी अपनी शैक्षिक उपलब्धियों को अपेक्षित स्तर पर प्राप्त नहीं कर पाता या फिर उसे असफलता ही मिले तब ऐसी स्थिति में उसे शैक्षिक निर्देशन के द्वारा काफी सहयोग प्रदान किया जा सकता है। इस स्थिति में शैक्षिक निर्देशन के अन्तर्गत निर्देशनकर्ता को सर्वप्रथम असफलता के कारणों से विदित होना आवश्यक हो जाता है कि आखिर किन कारणों से विद्यार्थी अपेक्षित उपलब्धि प्राप्त नहीं कर पा रहा है। उन कारणों (बाधक तत्वों) को दूर करके उसकी प्रगति में सुधार किया जा सकता है। स्मरण रहे कि बाधक कारणों के होने पर कठिन परिश्रम भी पर्याप्त परिणाम नहीं दे पाता है।
3. शिक्षा प्राप्त करते समय अर्थात् शैक्षिक जीवन में कभी-कभी विद्यार्थियों में कई कारणों से अवांछनीय आदतें पड़ जाती हैं जिनसे उनके सामने समायोजनात्मक समस्यायें आने लगती हैं। उनसे सहपाठी, मित्र, शिक्षक व परिजन भी असंतुष्ट रहने लगते हैं। अतः उनके सामने समायोजनात्मक समस्याएँ (Adjustment Problems).उत्पन्न हो जाती है। इस अवांछनीय व्यवहार को दूर करने के लिए व्यक्तिगत निर्देशन (Personal Guidance) के साथ-साथ शैक्षिक निर्देशन का उपयोग करना विशेष लाभकारी होता है। क्योंकि विद्यार्थी के इस अवांछनीय व्यवहार के कुछ कारण तो व्यक्तिगत व सामाजिक होंगे लेकिन कुछ कारक ऐसे भी होंगे जो शैक्षिक कारणों में आएंगे यथा- पढ़ाई में मन न लगना, पाठ्यक्रम में रुचि न होना इत्यादि। शैक्षिक निर्देशन के द्वारा विद्यार्थी की इन समस्याओं के समाधान के सन्दर्भ में उचित व लाभकारी निर्देशन प्रदान कर उसकी स्थिति को काफी सुधारा जा सकता है जिससे वह अपने शैक्षिक लक्ष्य को सुगमता से प्राप्त कर सकता है।
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