व्यावसायिक निर्देशन की आवश्कता पर प्रकाश डालिए।
व्यावसायिक निर्देशन की आवश्यकता निम्नलिखित तथ्यों के कारण होती है-
(1) समाज की परिवर्तित दशाओं की दृष्टि से- आज पारिवारिक, धार्मिक एवं आर्थिक दृष्टि से समाज की दशाओं में काफी अन्तर आ गया है। पुराने समय में व्यक्ति की योग्यता, व्यक्ति का अस्तित्व एवं परोपकार आदि की किये जाने वाले कार्यों को बड़ा महत्व दिया जाता था। परन्तु आज के समाज की स्थिति बिल्कुल इससे भिन्न है। आज व्यक्ति के स्तर, धन, भौतिक साधनों आदि को काफी महत्व दिया जाता । आज यह जरूरी हो गया है कि कोई व्यक्ति अगर अपने पड़ोसियों, सम्बन्धियों, मित्रों, परिचितगणों से सम्मान पाना चाहता है तो उसे रहन-सहन का स्तर ऊपर उठाना होगा। यही आज व्यक्ति के सम्मान और समानता तथा सामाजिकमान्यता पाने का आधार है।
जनसंख्या वृद्धि और सीमित अवसरों के कारण प्रतिस्पर्धा का माहौल उत्पन्न हो गया है। इस माहौल में वही आज सफल माने जाते हैं जो भौतिक दृष्टि से आगे हैं। ऐसा मौका या माहौल में व्यक्ति का मानसिक और भौतिक सन्तुलन बना रहे इसके लिए यह जरूरी हो जाता है कि उसे उपयुक्तत व्यवसाय का चुनाव करके उसमें प्रगति करें। इस दिशा में व्यावसायिक निर्देशन विशेष रूप से सहायक सिद्ध हो सकता है।
(2) व्यवसायिक भिन्नता की दृष्टि से- प्राचीन समय में जनसंख्या का घनत्व सीमित था या कम था। उस समय समाज की आवश्यकतायें भी सीमित होती थी तथा देश की अधिकांश जनसंख्या कृषि कार्य करके अपनी जीविका की समस्या का समाधान कर लेती थी। क्योंकि उस समय संयुक्त पारिवारिक व्यवस्था अधिक होती थी। अतः परिवार के सदस्यों का एक कारण आवश्यकताओं में वृद्धि हुई, औद्योगिकरण तथा नगरीकरण तेजी से हुआ जिसके कारण नये-नये उद्योग-धन्धों की आवश्यकता का अनुभव किया जाने लगा। अतः तेजी से विभिन्न प्रकाश वाले उद्योग धन्धों का विकास होने लगा। आजादी के बाद बहुत कम समय में ही अनेक व्यवसाय संचालित किये जाने लगे। यह सभी व्यवसाय कुशलतापूर्वक चलते रहें इसके लिए अनुकूल व्यक्तियों के चयन की समस्या उत्पन्न होने लगी। इसके लिए विद्यालयों के स्तर पर भी यह महसूस किया जाने लगा कि विद्यार्थियों को उनकी अभिरूचि के अनुसार विषयों के चयन में सहायता प्रदान की जाय जिससे शिक्षा और व्यवसाय से सम्बन्धित अपेक्षाओं का समन्वय हो सके। इसी कारण विद्यार्थियों को व्यावसायिक निर्देशन देकर उनकी रुचियों, अभिरुचियों, योग्यताओं आदि से छात्रों को परिचित कराया जाता है। ताकि इसी के कारण पर विद्यार्थी भावी व्यवसाय का चयन कर कसे और अपनी योग्यतओं, रुचियों, अभिरुचियों आदि का विकास कर सके। इसी के द्वारा वह किसी व्यवसाय में लगकर संतोषजनक स्थिति प्राप्त कर सकते हैं।
(3) व्यक्तिगत भिन्नताओं की दृष्टि से- व्यक्तिगत भिन्नता का सिद्धान्त यह बताता है कि प्रत्येक व्यक्ति ने निहित योग्यताओं, क्षमतायें, रुचियाँ, अभिरुचियाँ आदि भिन्न-भिन्न होती है। हर व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से किसी न किसी रूप में भिन्न होता है। जब तक इस व्यक्तिगत भिन्नता की जानकारी न कर ली जाये तब तक यह सम्भव नहीं कि किसी व्यवसाय के सम्बन्ध में तथा व्यक्ति की प्रगति के लिए और व्यवसाय की अनुकूलता के लिये निश्चित कथन किया जा सके। किसी भी व्यवसाय में अनूकूल व्यक्तियों का चुनाव करने के लिए वैयक्तिक भिन्नताओं के स्तर एवं स्वरूप की जानकारी आवश्यक होती है क्योंकि प्रत्येक व्यवसाय के लिए किसी विशेष योग्यता वाले व्यक्ति की आवश्यकता होती है। निर्देशन की सफलता के लिए इस सम्बन्ध में विभिन्न स्रोतों से पर्याप्त सूचनायें एकत्रित की जा सकती है। इसी कारण व्यवसाय में व्यक्तिगत भिन्नता को अत्यधिक ध्यान में रखा जाता है।
(4) मानवीय क्षमताओं का वांछित उपयोग करने के लिए- यह एक सिद्ध तथ्य है कि कोई भी समाज या राष्ट्र यदि वांछित प्रगति चाहता है तो उसे अपनी मानवीय क्षमताओं का समुचित प्रयोग करना होगा। आज प्रगति की दौड़ में जितने भी राष्ट्र अग्रणी गिने जाते उन सब ने अपनी मानवीय क्षमताओं का समुचित उपयोग किया है। हमारे देश में व्यक्तियों को केवल क्लर्क के तौर पर कार्य करना चाहिए वह अफसर बना दिये जाते हैं। इस प्रकार की दूषित व्यवस्था के लिए रिश्वत, सिफारिश, जातिवाद, वर्गवाद, मूल्यांकन की अनुचित कसौटियाँ आदि तमाम कारण उत्तरदायी हैं। भ्रष्टाचार उळपर से नीचे तक फैला हुआ है। इस व्यवस्था के लिए सभी समाज रूप से दोषी है। यह भी एक दुखद बात है कि व्यक्तियों को उनके व्यवसाय में या अध्ययन काल के बाद भी यह नहीं मालूम हो पाता है कि उनकी रुचि किस प्रकार के व्यवसाय में है तथा किस प्रकार की रुचि के अनुकूल व्यवसाय में लगकर प्रगति की जा सकती है। इस दृष्टि से विद्यार्थियों और शिक्षा प्राप्त कर चुके व्यक्तियों के लिए व्यावसायकि निर्देशन विशेष रूप से सहायक सिद्ध हो सकता है।
(5) व्यावसायिक प्रगति के लिए- व्यावसायिक निर्देशन केवल इसलिए आवश्यक नहीं कि किसी व्यवसाय में इसकी आवश्यकता है जिससे निर्देशन के द्वारा व्यावसायिक प्रगति और इस प्रगति से प्राप्त आजीविका, संतोष और उपलब्धि, क्षमताओं और कौशलों में निरन्तर विकास भी होता रहे। व्यवसायिक निर्देशन यह जानकारी देता है कि अपनी कार्य क्षमता का लगातार कैसे विस्तार किया जाय तथा किसी व्यवसाय में सफल होने के लिए किस प्रकार के व्यक्तित्व की आवश्यकता है और ऐसे व्यक्तित्व का निर्माण किस प्रकार किया जा सकता है। इसी प्रकार व्यावसायिक निर्देशन किसी व्यवसाय से सम्बन्धित जानकारी और कौशलों के विकास में सहायक व्यावसायिक प्रशिक्षण केन्द्रों आदि के सम्बन्ध में सूचनायें दी जा सकती है।
(6) आर्थिक दृष्टिकोण से आवश्यकता- ज्यादातर यह देखने में आता है कि हमारे देश में बेंकारी की समस्या अत्यन्त विकराल रूप धारण किये हुए है। ज्यादातर युवक विद्यालय छोड़ने के बाद जिस व्यवसाय में उनको मौका मिलता है उसे करने लगते हैं चाहे वह व्यवसाय उनके मन का हो या न हो। चूँकि व्यवसाय रुचि का नहीं होता इसलिए वह उतने लगन और उत्साह से उसे नहीं करते जिनते लगन और उत्साह से उनको करना चाहिए। इससे देश की अर्थव्यवस्था तथा नवयुवक-समाज पर बुरा असर पड़ता है। इस हानिपूर्ण स्थिति से देश, समाज तथा नवयुवकों को बचाने के लिए निर्देशन की आवश्यकता पड़ती है। एक बात और कि बिना इच्छा के जिस व्यवसाय में युवक प्रवेश ले हैं उनका मालिकों को भी इससे हानि उठानी पड़ती है क्योंकि पहले जैसा उनकी कम्पनी का उत्पादन नहीं रहता। यही कारण है कि व्यवसयी को भी व्यावसायिक निर्देशन की आवश्यकता पड़ती है। निर्देशन के माध्यम से एक व्यवसायी उचित व्यक्तियों का चुनाव अपने व्यवसाय के लिए कर सकता है। श्रम का विभाजन करने में भी व्यावसायिक निर्देशन अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
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