शैक्षिक निर्देशन के उद्देश्य एवं आवश्यकता का वर्णन कीजिए।
शैक्षिक निर्देशन का उद्देश्य-
शैक्षिक निर्देशन शिक्षा के बहुआयामी आयामों को पूरा करता है। विद्यालयों में प्रचलित पाठ्यक्रम और पाठ्य सहगामी क्रियाओं की विविधता तथा भिन्न-भिन्न परिवेश से आने वाले छात्रों के कारण शैक्षिक निर्देशन के महत्त्व में और अधिक अभिवृद्धि हुई है। शैक्षिक निर्देशन के उद्देश्यों पर यहाँ चर्चा करना उपयुक्त होगा।
1. अन्तः शक्तियों को समझना (Understanding Potentials of the Students)-शैक्षिक निर्देशन का एक उद्देश्य छात्रों में निहित शक्तियों एवं गुणों की पहचान करना है क्योंकि बिना उनकी शक्तियों के ज्ञान के शैक्षिक निर्देशन का कार्य सम्भव नहीं है।
2. क्षमताओं का ज्ञान कराना (To aware Students of their Potentialities)- शैक्षिक निर्देशन का उद्देश्य छात्रों को उनकी क्षमताओं से अवगत कराना है ताकि वे अवसरों के चयन में सक्षम बन सकें।
3. पाठ्यक्रम चयन में सहायता (Helping in Selecting Curriculum)-विद्यालय में प्रचलित विविध पाठ्यक्रम में से छात्र को अपने उपयुक्त पाठ्यक्रम का चयन करने में सहायता करना।
4. आत्म-निर्देशन (Self-Guidance)- शैक्षिक निर्देशन का उद्देश्य छात्र में आत्मविश्वास पैदा कर उसमें आत्मनिर्देशन के गुण का विकास करना है।
5. उत्तम अभिरुचि का विकास करना (Develop of Best Aptitude)-शैक्षिक निर्देशन छात्र को विद्यालय में संचालित विविध क्रियाओं में भाग लेने के लिये प्रोत्साहित कर उनमें उत्तम अभिरुचि को विकसित करता है।
6. अध्ययन की आदतों का विकास (To Develop Good Study Habits)- शैक्षिक निर्देशन का उद्देश्य छात्रों में अध्ययन की अच्छी आदतों का निर्माण करना है।
7. पुस्तकालय प्रोत्साहन- पुस्तकालय ज्ञान के भण्डार होते हैं। शैक्षिक निर्देशन छात्रों के पुस्तकालय के महत्त्व का ज्ञान करवाकर उसके उत्तम उपयोग के लिये प्रेरित करता है।
8. स्वस्थ्य समायोजन शैली (Healthy Adjustment)- शैक्षिक निर्देशन छात्र की विद्यालय परिवेश और कक्षा परिवेश में स्वस्थ समायोजन स्थापित करने में सहायता करता
9. आत्मानुशासन का विकास (Development of Self-discipline)-विद्यालय में अनेक प्रकार के छात्र होते हैं। कुछ असन्तुष्ट तथा कुसमायोजित छात्र विद्यालय व्यवस्था में विघ्न पैदा करते हैं। ऐसी स्थिति के लिये छात्रों के आत्म-अनुशासन का विकास करना।
10.शैक्षिक एवं व्यावसायिक अवसरों की जानकारी (Awareness About Educational and Vocational Opportunities)- शैक्षिक निर्देशन का यह भी उद्देश्य है कि आगे की शिक्षा और व्यावसायिक अवसरों के बारे में छात्रों को जानकारी दी जाये।
11. समाज कल्याण की भावना (Social Welfare)- शैक्षिक निर्देशन छात्रों को सामाजिक कल्याण के कार्य करने का प्रोत्साहन देता है।
12. निर्णयन क्षमता का विकास- शैक्षिक निर्देशन छात्र को इस योग्य बनने में सहायता करता है कि वह अपने निर्णय स्वयं ले सके।
शैक्षिक निर्देशन की आवश्यकता
20वीं सदी के उत्तरार्द्ध में शैक्षिक निर्देशन के क्षेत्र में महान परिवर्तन हुए। इन परिवर्तनों ने शैक्षिक निर्देशन की आवश्यकताओं को बढ़ा दिया। इसके प्रमुख बिन्दुओं का वर्णन निम्नलिखित है
(1) वैविध्य विषय- इसकी जरूरत वहाँ अनुभव होती है जब हमें चुनने के लिए बहुत सारे विषय मिलते हैं। जहाँ सभी बच्चों को एक जैसा पाठ्यक्रम पढ़ाया जाता है, वहाँ इसकी जरूरत नहीं होती, क्योंकि उनका मार्ग पहले से ही निश्चित होता है।
(2) प्रगतिशीलता का अभाव- इस प्रकार के निर्देशन की आवश्यकता वहाँ होती है जब विद्यार्थी किसी विषय में प्रगति नहीं करते तथा फेल हो जाते हैं। जब हम इन बच्चों को विनाश से बचाना चाहते हैं तो हमें शैक्षिक निर्देशन की जरूरत होती है। इससे यह सुनिश्चित किया जाता है कि बच्चा सही शैक्षिक मार्ग अपनाए।
(3) व्यक्तिगत अन्तर- एक कक्षा में बहुत सारे विद्यार्थी होते हैं। हर एक बच्चों की रुचि और योग्यता भित्र-भिन्न होती है। बच्चों को योग्यता और रुचि के अनुसार विषयों को चुनने में शैक्षिक निर्देशन की आवश्यकता होती है।
(4) असफल विद्यार्थियों की मदद- फेल हो जाने पर विद्यार्थियों को मानसिक धक्का लगता है। कई बार इस प्रकार के बच्चे अपराधी बन जाते हैं। इन बच्चों को दूसरा अवसर प्रदान किया जाए ताकि वह सफल हो सके। उनको सही तरीके से प्रेरणा दी जानी चाहिए, ताकि उनका मन दुबारा पढ़ाई में लग सके।
(5) प्रतिभाशाली बच्चों के लिए- प्रतिभाशाली बच्चों के लिए निर्देशन की बहुत ज्यादा जरूरत होती है। प्रतिभाशाली बच्चों पर बहुत अधिक ध्यान देने की आवश्यकता पड़ती है ताकि उनकी प्रतिभा का सही प्रयोग हो सके। दूसरी ओर पिछड़े हुए बच्चों के लिए भी निर्देशन जरूरी है ताकि वह फेल न हों और स्कूल न छोड़ें।
(6) भविष्य में शिक्षा के सम्बन्ध में सूचना- विद्यार्थी सदा ही उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते हैं। वह कशमकश में ही रहते हैं कि कौन-सा कोर्स किया जाए, कौन-सी संस्था में दाखिला लिया जाए, आदि प्रश्न उनके मन में छाए रहते हैं। बच्चों के साथ-साथ उनके माता-पिता के लिए भी एक समस्या होती है। अलग-अलग प्रकार के प्रशिक्षण तथा शिक्षा की अलग-अलग योजनाओं के बारे में जानकारी प्रदान करना शैक्षिक निर्देशन का कार्य है।
(7) पाठ्यक्रम से सम्बन्धित विषयों का चुनाव- विषयों के चयन की परिस्थितियों में निर्देशन का विशेष महत्व है। अगर प्रारम्भ से ही असंगत विषयों का चयन, विद्यार्थी में समस्त भविष्य को किसी न किसी रूप में अवश्य प्रभावित करता है क्योंकि प्रत्येक विद्यार्थियों का बौद्धिक स्तर, रुचि, अभिरुचि एक-दूसरे में अलग-अलग होती है। उचित अधिगम की दिशा में सफलता प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि प्रत्येक विद्यार्थी को उसके अनुरूप विषयों में अध्ययन का अवसर प्राप्त हो।
(8) समायोजन की दृष्टि से- जब विद्यार्थी नवीन विद्यालयों में प्रवेश लेता है तो उसका वातावरण दूसरे शैक्षिक वातावरण से अलग होता है और विद्यार्थियों को नवीन वातावरण से सम्बन्धित ज्ञान नहीं होता। इसके कारण विद्यालयी आवश्यकताओं एवं योजनाओं में समायोजन कर पाना कुछ कठिन होता है इसलिये उचित निर्देशन द्वारा समायोजित करते हुये उचित उपलब्धि स्तर बनाए रखता है।
(9) अधिगम के सम्बन्ध में जानकारी- हाईस्कूल स्तर की परीक्षा उत्तीर्ण करने के उपरान्त प्रत्येक अभिभावक एवं विद्यार्थी के समक्ष पद समस्या होती है। वह भावी शिक्षा के सम्बन्ध में किन आधारों पर निर्णय ले क्योंकि उचित निर्देशन न मिलने के कारण उनकी मानसिक स्थिति असन्तुलित होती है। अतः यह आवश्यक है कि हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के उपरान्त भी प्रत्येक विद्यार्थी को समुचित निर्देशन उपलब्ध कराया जाये।
(10) अधिगम को सतत् बनाए रखने हेतु- अनेक विद्यार्थी सीखने की समुचित विधियों के ज्ञान में अभाव के कारण अन्य छात्रों की अपेक्षा पीछे रह जाते हैं और सही मार्गदर्शन प्राप्त होते ही अन्य छात्रों की तुलना में अधिक उत्तम उपलब्धि कर लेते हैं।
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