व्यक्तित्व की विशेषताएँ-Characteristics of Personality in Hindi
व्यक्तित्व की विशेषताएँ– ‘व्यक्तित्व’ की विभिन्न परिभाषाओं का विश्लेषण एवं अध्ययन के फलस्वरूप ‘व्यक्तित्व’ की कुछ विशेषताएँ स्पष्ट होती है, जो निम्नलिखित हैं-
1. व्यक्तित्व ‘गतिशील’ है
व्यक्तित्व को ‘गतिशील माना गया है। जन्म से लेकर मृत्यु तक व्यक्ति के व्यक्तित्व सम्बन्धी गुणों में परिवर्तन आते रहते हैं। समायोजन में सफलता प्राप्ति को लिये ये परिवर्तन आवश्यक भी होते हैं। इस दृष्टि से व्यक्तित्त्व गतिशील कहलाता है।
2. व्यक्तित्व आत्म चेतना
हर व्यक्ति में आत्म-चेतना अवश्य होती है। यह आत्म-चेतना उसके व्यक्तित्व की विशेषता होती है। वास्तविकता तो यह है कि जब व्यक्ति में आत्म-चेतना जैसी वस्तु घर करने लगती है तभी उसके व्यक्तित्व का अस्तित्त्व दिखाई देता है। आत्म-चेतना से अभिप्राय है स्वयं का ज्ञान। बच्चे में आत्म-चेतना का अभाव होता है। जब वह बड़ा होता है तो वह अपनी ओर वस्तुपरक दृष्टिकोण से देखना शुरू करता है।
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3. अपूर्वता या अनुपमता
व्यक्तित्व अपूर्व या अनुपम या विशिष्ट होते हैं। हर व्यक्ति अपने ही ढंग का होता है। कोई भी दो व्यक्ति, चाहे वे समरूप ही क्यों न हों, एक समान व्यवहार नहीं करते। हर व्यक्ति के व्यक्तित्व में कुछ न कुछ विशिष्ट या अनुपम अवश्य होता है। हर व्यक्ति अपने-अपने ढंग से स्वयं को समायोजित करते हैं अर्थात हर व्यक्ति के समायोजन की अपनी ही विशेषताएँ होती हैं।
4. लक्ष्य निर्देशित
हर व्यक्ति के व्यवहार में लक्ष्यों की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। हर व्यक्ति का व्यक्तित्व किसी न किसी लक्ष्य द्वारा निर्देशित रहता है। प्रत्येक व्यक्ति को किसी न किसी लक्ष्य को अर्जित करना होता है। वह इन लक्ष्यों को अर्जित करने के लिये प्रयास करता है। व्यक्तित्व को ये लक्ष्य दिशा प्रदान करते हैं।
5. सामाजिकता
सामाजिकता भी व्यक्ति के व्यक्तित्व का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष है। व्यक्तित्व के निर्माण में समाज का योगदान नकारा नहीं जा सकता। सामाजिकता के अन्तर्गत व्यक्ति का समाज के हर सदस्य के साथ सम्पर्क होता है, जो उस व्यक्ति में आत्म-चेतना के साथ-साथ सामाजिक चेतना भी पैदा करता है। इस सामाजिक सम्पर्को से व्यक्ति को कई प्रकार के अनुभव प्राप्त होते हैं, जो व्यक्तित्व के विकास में महत्त्वपूर्ण साबित होते हैं। अतः सामाजिकता की प्रक्रिया में से व्यक्तित्व का गुजरना अति आवश्यक है। ताकि व्यक्ति में सामाजिक परिपक्वता आ सके।
6. समायोजन की योग्यता
व्यक्तित्व और समायोजन आपस में गहरा सम्बन्ध होता है। पर्यावरण के अनुसार स्वयं को ढाल लेना ही व्यक्तित्व कहलाता है। हर व्यक्ति को हर प्रकार के वातावरण के साथ समायोजित करना पड़ता है चाहे वह वातावरण बाहरी हो या आन्तरिक हो। मरफी के अनुसार, “अच्छे व्यक्तित्व का अर्थ है वातारण में समायोजन की शक्ति का होना।”
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7. निरन्तरता
वुडवर्थ के अनुसार, ‘निरन्तरता व्यक्तित्व की महत्त्वपूर्ण विशेषता है। अपनी ही बात का यदि कोई व्यक्ति विरोध करने लगता है तो व्यक्तित्व एक अच्छा व्यक्तित्व नहीं माना जाता। वातावरण के साथ निरन्तर समायोजन को ही अच्छ व्यक्तित्व कहा जाता है। व्यक्ति के व्यवहार में निरन्तरता का होना ही अच्छे व्यक्ति का संकेत है। यदि उसके व्यवहार में निरन्तरता का अभाव हो तो उसे दोषपूर्ण व्यक्तित्व के वर्ग में रखा जाता है।
8. दृढ़ता
अच्छे व्यक्तित्व की एक और विशेषता है— दृढ़ता। समाज में सफलता अर्जित करने के लिये दृढ़ता का होना अति आवश्यक है। बिना दृढ़ता के कोई भी व्यक्ति सफल नहीं हो सकता। असाधारण बुद्धि वाले व्यक्ति दृढ़ता की कमी के कारण समाज में असफल रहते हैं तथा समायोजित नहीं हो पाते। सफलता के शिखर को छूने के लिये दृढ़ता और निरन्तरता का होना अति आवश्यक है।
9. लचीलापन
डैशीयल के अनुसार लचीलापन तथा समायोजन ‘व्यक्तित्व’ के महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं।’ व्यक्ति को अपने वातावरण तथा अपनी अन्तः शक्तियों के साथ संघर्ष करना पड़ता है। इस संघर्ष के परिणाम स्वरूप व्यक्तित्व में कई बदलाव आते रहते हैं, जिसके कारण व्यक्तित्व की प्रकृति गतिशील बनती है। व्यक्तित्व में हमेशा परिवर्तन और सुधार होते रहते हैं।
10. एकीकरण
व्यक्तित्व में ज्ञान, भावनाओं और क्रिया तीनों ही आपस में एकीकृत होते हैं। इन्हें एक दूसरे से जुदा नहीं किया जा सकता। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि व्यक्तित्त्व सम्पूर्ण इकाई के रूप में कार्य करता है। वास्तव में व्यक्तित्व व्यक्ति की सभी शक्तियों और गुणों का एकीकरण है।
11. सुदृढ़ इच्छा शक्ति
हर व्यक्ति में इच्छा शक्ति होती है, जिसे व्यक्तित्व का एक आवश्यक ढंग माना गया है। जीवन की कठिन परिस्थितियों का सामना करने में यह इच्छा शक्ति महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है तथा व्यक्तित्व को आकर्षण प्रदान करती है। यदि किसी व्यक्ति में इच्छा शक्ति का अभाव है तो उसका व्यक्तित्व भी प्रभावित होता है।
12. मनोदैहिक
व्यक्तित्व में मन और शरीर घनिष्ट रूप से संगठित होते हैं। व्यक्ति की प्रत्येक क्रिया मनोदैहिक होती है। मन शरीर से अलग रहकर स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं कर सकता और न ही शरीर मन के बिना कोई क्रिया करने में समर्थ है।
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