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श्रवण बाधित बच्चों की पहचान, समस्या, लक्षण तथा दूर करने के उपाय

श्रवण बाधित बच्चों की पहचान, समस्या, लक्षण तथा शैक्षिक विधि द्वारा उसे दूर करने के उपाय बताइये।
श्रवण बाधित बच्चों की पहचान, समस्या, लक्षण तथा शैक्षिक विधि द्वारा उसे दूर करने के उपाय बताइये।

श्रवण बाधित बच्चों की पहचान, समस्या, लक्षण तथा शैक्षिक विधि द्वारा उसे दूर करने के उपाय बताइये।

श्रवण बाधित बच्चों की पहचान (Identification of hearing Impaired Children)– श्रवण बाधित की पहचान और श्रवण बाधित बच्चों की देखभाल दोनोंही शिक्षा में तथा इन बच्चों के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। माता-पिता व परिवार के अन्य लोग इस कार्य में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। माता-पिता व अन्य सदस्यों द्वारा बच्चे का क्रमिक अवलोकन किया जा सकता है जो इनकी पहचान में बहुत सहायक होता है।

यदि इन बच्चों की समय रहते पहचान अर्थात् शुरुआती अवस्था में ही पहचान हो जाती है तो इनकी रोकथाम के लिए समय से कार्यक्रम शुरू किये जा सकते हैं। आवाज के प्रति यदि बच्चा प्रतिक्रिया न करे तो माता-पिता को बच्चे का श्रवण बाधित होने का शक हो जाता है। ऐसी में माता-पिता को श्रवण विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए। श्रवण बाधित बच्चों की पहचान के लिए कुछ टेस्ट तकनीकों का प्रयोग किया जाता है, जो इस प्रकार है-

1.मनोनाड़ी परीक्षण (Neuropsychological Test)-

इन परीक्षणों की सहायता से श्रवण बाधिता से सम्बन्धित नाड़ी की क्रियाओं का आकलन किया जाता है। इसका कारण मानसिक दोष होता है। यह योग्य चिकित्सक इसकी पहचान करके इनका उपचार कर देता है। अधिकांश श्रवण बाधितों में इसी प्रकार का दोष पाया जाता है।

2. बालक का एकल अध्ययन (Case-study of the Child)-

यह विधि श्रवण बाधिता की पहचान की सबसे उत्तम विधि मानी जाती है, क्योंकि इसके अन्तर्गत जन्म से लेकर वर्तमान स्थिति तक के सभी प्रकार के बालक सम्बन्धी सूचनाओं को संकलित किया जाता है। अन्य सभी मापनियों से केवल पहचान की जाती है, लेकिन एकल अध्ययन विधि से निदान भी होता है। बालक सम्बन्धी सूचनाओं के अध्ययन से श्रवण बाधिता के सही कारणों का बोध होता है। इन सूचनाओं में स्वास्थ्य सम्बन्धी सूचनाओं को विशेष महत्त्व दिया जाता है। स्वास्थ्य सम्बन्धी इतिहास से यह ज्ञात होता है कि बालक कब-कब बीमार हुआ, किन बीमारियों से पीड़ित रहता है तथा शल्य चिकित्सा आदि। इसमें बालक के इतिहास के साथ-साथ परिवार के इतिहास को भी सम्मिलित किया होता है।

3. विकासात्मक मापनी (Development Scale)-

बालक के विकास की अवस्थाओं का सीधा सम्बन्ध उसकी इन्द्रियों से होता है। इसलिए श्रवण बाधित बच्चों की पहचान के लिए उनकी विकासत्मक अवस्थाओं को ध्यान में रखा जाता है। वायले ने छोटे बच्चों के लिए एक मापनी विकसित की, जिसकी सहायता से ऐसे बच्चों का आरम्भिक अवस्था में ही निदान हो जाता है।

श्रवण बाधित बच्चों की समस्या-

श्रवण बाधित बच्चों की सबसे बड़ी समस्या सम्प्रेषण की समस्या है। वे उस स्थान पर अपने आपको छोटा महसूस करते हैं जहाँ पर शाब्दिक सम्प्रेषण की आवश्यकता होती है। वह अध्यापक जिनके द्वारा इन बच्चों को शिक्षित किया जाता है उन्हें भी सम्प्रेषण सम्बन्धी समस्या का सामना करना पड़ता है और ये अध्यापक ही इन बच्चों को सिखाते हैं कि अपने साथी समूह व समाज के दूसरे लोगों के साथ किस प्रकार सम्प्रेषण किया जाता है। अध्यापक द्वारा इनको सम्प्रेषण कौशल सिखाने के लिए निम्न प्रविधियों का प्रयोग किया जाता है-

मौखिक सम्प्रेषण प्रविधि (Oral/Aural Communication Approach)-

इस प्रविधि द्वारा इस बात पर जोर दिया जाता है कि श्रवण बाधिताग्रस्त बच्चों के सम्प्रेषण कौशल को विकसित करने के लिए मौखिक भाषा का प्रयोग किया जाना चाहिए। यह इस विश्वास पर आधारित है कि हाथों द्वारा सम्प्रेषण के लिए मौखिक सम्प्रेषण आवश्यक है, क्योंकि हाथों द्वारा किया जाना वाला सम्प्रेषण समाज में समायोजन सम्बन्धी बाधा पैदा करता है। मौखिक सम्प्रेषण विधि की सभी तकनीकों में श्रवण बाधित बच्चों को यह सिखाया जाता है कि वे अपनी बची हुई श्रवण क्षमता को किस प्रकार प्रयोग कर सकते हैं। सभी तकनीकों को इसलिए प्रयोग किया जाता है ताकि बची हुई श्रवण क्षमता का विकास हो सके और बोलने की योग्यता का भी जितना हो सके उतना विकास करना। ये तकनीकें इस प्रकार हैं-

(a) ध्वनि प्रशिक्षण (Auditory Training)
(b) ओष्ठ पठन (Speech Reading)

(a) ध्वनि प्रशिक्षण (Auditory Training)-

इसके अन्तर्गत बच्चे को उसी श्रवण क्षमता के साथ प्रशिक्षित करना है जितनी उनके पास है। इस तकनीकी द्वारा बच्चों को ध्वनिं जागरूकता के बारे में सिखाया जाता है।

श्रवण बाधितों के व्यवहारात्मक लक्षण (Behavioural Inkdicators for Indentification of Hearing Impaired Children-

श्रवण बाधित बच्चो की पहचान के  लिए व्यवहार निरीक्षण अधिक उपयोगी माना जाता है, क्योंकि बच्चों के निरीक्षण से ही उसकी श्रवण बाधिता का बोध होता है। कुछ मुख्य व्यवहारात्मक लक्षणों का वर्णन इस प्रकार है-

1. वाणी दोष का होना।

2. अनुदेशनों का अनुसरण करने में असमर्थ होते हैं।

3. इनमें अवधान का अभाव होता है।

4. अपने सिर को एक तरफ मुड़कर बात को सुनने का प्रयत्न करते हैं।

5. कक्षा के अन्तर्गत अक्सर शिक्षक से पाठ्यवस्तु की पुनरावृत्ति या दोहराने को कहते हैं।

6. अक्सर कान में दर्द रहता है।

7. शाब्दिक सम्प्रेषण में कठिनाई का अनुभव करते हैं।

8. ऐसे बच्चों की दृष्टि बोलने वाले के होंठों की तरफ अधिक रहती है।

9. ये सीमित शब्दावली का प्रयोग करते हैं।

10. इनकी भाषा का सही विकल्प नहीं होता है।

11. ये वाद-विवाद कार्यक्रम में हमेशा संकोच करते हैं।

12, अक्सर इनका कान बहता रहता है।

13. कक्षा में बालक कान में आवाज सुनने के यन्त्र का प्रयोग करते हैं।

इस प्रकार के व्यवहार से अध्यापक श्रवण बाधित बालक की पहचान आसानी से कर सकता है। अतः अध्यापक को ऐसे बच्चों पर पूरा ध्यान देना चाहिए।

श्रवण बाधिता दूर को करने के शैक्षिक उपाय-

श्रवण बाधित बच्चों के लिए चार प्रकार की स्थानापन्न सुविधाएँ प्रदान की जाती है। श्रवण बाधित बालकों की दिन-प्रतिदिन की क्रियाओं को सुचारु रूप से करने के लिए कुछ सुविधाएँ दी जानी चाहिए। चार प्रकार की स्थानापन्न सुविधाएँ इस प्रकार हैं-

1. समन्वित कक्षाकक्ष (Integrated Classrooms)
2. नियमित विद्यालयों में विशेष कक्षा (Special Class in Regular School)
3. fasta fasta (Special Schools)
4. आवासीय विद्यालय (Residential Schools)

1. समन्वित कक्षाकक्ष (Integrated Classrooms)-

इस प्रकार की शिक्षा व्यवस्था में श्रवण बाधित बच्चों को सामान्य बच्चों के साथ सामान्य विद्यालयों में शिक्षित किया जा सकता है। कम श्रवण बाधित बच्चों को समन्वित शिक्षा व्यवस्था के द्वारा शिक्षित किया जाता है। उसकी आवश्यकताओं और समस्याओं को एक नियमित अध्यापक, विशेषज्ञों और संसाधन कक्ष सुविधाओं की सहायता से हल कर सकता है।

2. नियमित विद्यालयों में विशेष कक्षा (Special Class in Regular School)-

कम व मन्द गति के श्रवण बाधित बच्चों के लिए नियमित विद्यालयों में विशेष कक्षाओं की व्यवस्था की जाती है। इन बच्चों को सामान्य बच्चों से अलग कक्षाओं में शिक्षण प्रदान किया जाता है। इन बालकों की अधिगम कमियों को पृथक् कक्षाएँ आयोजित करके दूर किया जा सकता है। इन पृथक् कक्षाओं में प्रशिक्षित अध्यापक अन्य अध्यापकों के सहयोग से अपना कार्य करते हैं।

3. विशेष विद्यालय (Special Schools)-

जो बालक गम्भीर श्रवण बाधिता से पीड़ित होते हैं उनके लिए विशेष विद्यालयों की व्यवस्था की जाती है। इन बच्चों को सामान्य विद्यालयों में सामान्य बच्चों के साथ शिक्षित नहीं किया जा सकता। यहाँ पर बच्चों को एक विशेष पाठ्यक्रम पढ़ाया जाता है तथा ये सामान्य बच्चों का श्रवण बाधिता के कारण मुकाबला नहीं कर सकते।

4. आवासीय विद्यालय (Residential Schools)-

पूर्ण रूप से बधिक या पूर्णतया श्रवण बाधित बच्चों के लिए आवासीय विद्यालयों की व्यवस्था की जाती है। इन बच्चों को विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। यहाँ बधिरों को शिक्षित करने सम्बन्धी सभी उपकरण, सामग्री, सुविधाएँ और प्रशिक्षित अध्यापकों की व्यवस्था होती है।

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