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समावेशी शिक्षा के कार्यक्षेत्र

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समावेशी शिक्षा के कार्यक्षेत्र

समावेशी शिक्षा के कार्यक्षेत्र सामाजिक एवं आर्थिक भेदभाव खत्म करता रहा है” कथन स्पष्ट कीजिए।

समावेशी शिक्षा के कार्यक्षेत्र (Domains of Inclusive Education)- प्राचीन समय में हमारे देश में धर्म, जाति, लिंग एवं सम्प्रदा आदि के आधार पर परस्पर भेदभाव किया जाता था। उस समय भारतीय समाज छुआछूत, ऊँच-नीच की भावना जैसी कुरीतियों से ग्रसित था।

उच्च वर्ग के लोग निम्न वर्ग के लोगों की सामाजिक, धार्मिक उपेक्षा, अपमान एवं अवहेलना करते थे। हिन्दू धार्मिक स्थल पर यदि कोई निम्न जाति का व्यक्ति पहुँच जाता था, तो उसके लिए दण्ड का भी प्रावधान था। इस प्रकार निम्न जाति के लोग अपने ही देश में बहुत-सी आवश्यक सुविधाओं से वंचित रह जाते थे। स्वतन्त्रता के पश्चात् आज यह भेदभाव धीरे-धीरे समाप्त होता जा रहा है और सभी धर्मों के लोग अपने-अपने विशिष्ट क्षेत्रों में समान अवसर प्राप्त कर रहे हैं।

अतः भेदभाव से अभिप्राय किसी व्यक्ति या समूह के साथ ऐसा व्यवहार करना जो उसे सामान्य जीवन जीने के अधिकारों का उपयोग करने से वंचित रखता हो।

भेदभाव के आधार, जैसे- जाति, रंग, धर्म, भाषा, लिंग, जन्म आर्थिक व सामाजिक स्तर आदि कुछ भी हो सकते हैं। भेदभाव के कारण समाज में अपवर्जन जैसे प्रक्रियाएँ तेजी से गति पकड़ रही हैं जिसके कारण समावेशन की प्रक्रिया अपूर्ण रह गयी है। समाज में बढ़ती हुई भेदभाव की इस प्रक्रिया को शिक्षा के द्वारा ही समाप्त किया जा सकता है।

सामाजिक भेदभाव एवं दूर करने के उपाय-

समाज की संरचना एवं उसको व्यवस्थित स्वरूप प्रदान करने के लिए समाज में अनेक प्रकार की विषमताएँ व्याप्त हैं। भारतीय समाज में विभिन्न धर्मों एवं रीति-रिवाजों को मानने वाले लोग रहते हैं। सामाजिक विकास में ये विषमताएँ बाधा उत्पन्न करती हैं। समाज में व्याप्त विभिन्न प्रकार की विषमताएँ सामाजिक विकास के मार्ग को अवरुद्ध करती हैं। सामाजिक विषमताओं को दूर करने के लिए सरकार द्वारा विभिन्न प्रकार के उपाय किये जा रहे हैं-

1. भारतीय संविधान द्वारा सभी धर्मों, जातियों एवं संस्कृतियों के लोगों को शिक्षा ग्रहण करने की स्वतंत्रता प्रदान कर दी गयी है लेकिन निम्न जाति के लोगों को शिक्षा के प्रति अधिक प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।

2. छुआछूत एवं भेदभाव जैसी भावना को फैलाने वाले लोगों के लिए सरकार को कठोर कानून बनाने चाहिए तथा सभी व्यक्ति एक ईश्वर की ही संतानें हैं इस प्रकार की भावना का अधिक से अधिक समाज में प्रचार किया जाना चाहिए।

3. प्रत्येक जनजाति के लोगों को सभी धर्मों, रीति-रिवाजों तथा संस्कृतियों का सम्मान करना चाहिए तथा स्वस्थ परम्पराओं के विकास पर बल देना चाहिए।

4. भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, धार्मिक विषमताओं को समाप्त करने के लिए सर्वधर्म प्रचार सम्बन्धी कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना चाहिए।

5. भारतीय समाज में स्त्रियों की तुलना में पुरुषों को अधिक अधिकार प्राप्त हैं। अतः समाज में स्त्री तथा पुरुषों को समान अधिकार प्रदान किये जाएं।

6. शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में भौतिक संसाधनों का अभाव है। अतः ग्रामीण क्षेत्रों को भी भौतिक संसाधनों से सम्पन्न बनाया जाये ताकि लोगों में शहरीकरण की बहती हुई भावना को समाप्त किया जा सके।

7. समाज में जाति तथा धर्म के नाम पर अराजकता फैलाने वाले लोगों का दमन किया जाए जिससे समाज में एकता बनी रहे।

8. समाज में नैतिक मूल्य; जैसे- सत्य, अहिंसा, मानवता तथा परोपकार आदि का अधिक से अधिक विकास किया जाए जिससे समाज की उन्नति हो सके

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि भारतीय समाज अनेक विषमताओं से लिप्त है जिनको दूर करने का सरकार द्वारा निरन्तर प्रयास किया जा रहा है। सामाजिक विषमताओं को समाप्त
करने का उत्तरदायित्व प्रत्येक नागरिक का होता है क्योंकि समाज की संरचना मानवों द्वारा ही की जाती है। यदि सभी नागरिकों द्वारा मिलकर प्रयास किया जाए तो सामाजिक विषमता को काफी कुछ हद तक समाप्त किया जा सकता है।

आर्थिक भेदभाव (Economic Discrimination)-

वर्तमान में भी भारतीय समाज में विभिन्न आर्थिक विषमताएँ विद्यमान हैं। समाज में भौतिक संसाधनों का वितरण समान रूप से नहीं है। आर्थिक विषमताओं के परिणामस्वरूप भारतीय समाज दो वर्गों में विभाजित हो गया है। पूँजीपति वर्ग एवं श्रमिक वर्ग। पूँजीपति अधिक अमीर होते जा रहे हैं तथा भौतिक संसाधनों से परिपूर्ण, विलासतापूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे हैं जबकि दूसरी तरफ श्रमिक वर्ग निरन्तर निर्धन होता जा रहा है जिसका प्रमुख कारण भारतीय समाज में व्याप्त आर्थिक विषमता है।

आर्थिक भेदभाव को दूर करने के उपाय (Measures of Removal of Economic)-

आर्थिक विषमताओं को दूर करना सरकार तथा समाज के समक्ष बहुत महत्वपूर्ण चुनौती है। आर्थिक विषमताओं को दूर करने के लिए निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं-

1. मानवीय विकास पर अत्यधिक बल दिया जाना चाहिए इस प्रकार के कार्य द्वारा आर्थिक विषमताओं को आसानी से समाप्त किया जा सकता है।

2. जिन क्षेत्रों में भौतिक संसाधनों का अभाव है, उन क्षेत्रों में सरकार की संसाधनों की पूर्ति करनी चाहिए जिससे वहाँ आर्थिक विकास हो सके।

3. जिन लोगों के पास भूमि का अभाव है, उन लोगों को सरकार द्वारा भूमि प्रदान की जानी चाहिए जिससे वे अपने आर्थिक स्तर में सुधार कर सकें।

4. श्रमिकों को उनके श्रम का उचित धन प्रदान किया जाना चाहिए जिससे कि पूँजीपति वर्ग उनका आर्थिक शोषण नहीं कर सके जिससे उनके आर्थिक स्तर का सुधार किया जा सके।

5. भारत में जनसंख्या तीव्रगति से बढ़ रही है आर्थिक विषमताओं को समाप्त करने के लिए अति आवश्यक है कि जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण किया जाए।

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि आर्थिक विषमताओं को दूर करने के लिए सरकार द्वारा निरन्तर प्रयास किये जा रहे हैं लेकिन फिर भी भारतीय समाज में आर्थिक विषमता.व्याप्त है। अतः सरकार तथा अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनियों को अविकसित क्षेत्रों में अधिक से अधिक धन लगाना चाहिए, तभी भारतीय समाज से विषमताओं को समाप्त किया जा सकता है।

समावेशी शिक्षा का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएँ और महत्व

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