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दृष्टि बाधित बच्चों की पहचान कैसे होती है। उनकी समस्याओं पर प्रकाश डालिए।

दृष्टि बाधित बच्चों की पहचान
दृष्टि बाधित बच्चों की पहचान

दृष्टि बाधित बच्चों की पहचान कैसे होती है। उनकी समस्याओं पर प्रकाश डालिए।

 दृष्टि बाधित बच्चों की पहचान (Identification of Visually Impairment Children)- दृष्टि दोष बच्चों की पहचान के मानक निम्न हैं-

1. व्यवहार द्वारा-

दृष्टि दोष बच्चों की पहचान उनके व्यवहार, शारीरिक बनावट व उन पर लगातार निगरानी रखकर भी की जा सकती है। व्यवहार के अन्तर्गत-

(1) अक्सर सिरदर्द बतलाते हैं व दर्द के बाद आँखें बन्द कर लेते हैं।

(2) बच्चा आँखों को अत्यधिक मलता है।

(3) पुस्तकों को आँखों के निकट रखकर पढ़ना।

(4) बार-बार पलकें झपकना आदि।

2. निरीक्षण द्वारा-

लगातार कक्षा निरीक्षण द्वारा अध्यापक दृष्टि बाधित बच्चों की पहचान कर सकता है। कुछ बच्चे ब्लैकबोर्ड पर देखने या चार्टों को पढ़ने आदि में कठिनाई पाते हैं तो उसमें दृष्टि दोष पाया जाता है।

3. शारीरिक चिन्ह द्वारा-

यदि बच्चों की आँखें सूजी हुई, लाल, पानी बहती हुई दिखें तो बच्चे का समय से इलाज करवाना चाहिए क्योंकि ये दृष्टि दोष के लक्षण होते हैं।

4. आँखों के जाँच द्वारा-

वर्ष में कम से कम दो बार बच्चों की आँखों का निरीक्षण करवाना चाहिए। हरबर्ट के स्नैलन चार्ट द्वारा भी हम दृष्टि बाधितों की पहचान कर सकते हैं। स्नैलन शर्त के अतिरिक्त दूसरे भी बहुत से टैस्ट हैं जिनकी सहायता से दृष्टि बाधितों की पहचान की जा सकती है। इशियाना टैस्ट भी इसी प्रकार का टैस्ट है।

दृष्टि बाधितों की समस्याएँ (Problems of Visually Impaired)-

दृष्टि बाधित बच्चों की अधिगम, व्यावहारिक व समायोजन सम्बन्धी विभिन्न समस्याएँ होती हैं। दृष्टि बाधितों की कुछ समस्याएँ इस प्रकार हैं-

1. शैक्षिक समस्या-

दृष्टि बाधित बच्चों की शैक्षिक उपलब्धि सामान्य बच्चों की अपेक्षा कम होती है। दृष्टि बाधित बच्चे अवलोकन नहीं कर सकते। उनके ज्ञान के स्रोत श्रव्य व स्पर्श इन्द्रियों तक सीमित रहते हैं। ये बालक मन्द गति से तथ्यों तथा सूचनाओं को बोधगम्य कर पाते हैं।

2. बुद्धिलब्धि का स्तर-

दृष्टि बाधित बच्चों की बुद्धिलब्धि भी सामान्य बच्चों से कम होती है। अधिकांश बुद्धि परीक्षणों से ज्ञान, अनुभव तथा सूचनाओं पर आधारित प्रश्न होते हैं इसलिए इनका बुद्धिलब्धि स्तर कम होता है।

3. समायोजन सम्बन्धी समस्या-

दृष्टि बाधित बच्चों को समाज में हीन दृष्टि से देखा जाता है। इन्हें बहुत-सी व्यक्तिगत व सामाजिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसलिए इन्हें समाज में समायोजन करने में कठिनाई आती है।

4. निम्न वाणी विकास-

पूर्ण रूप से दृष्टि बाधित बालक वाणी की कला और कौशल का अनुकरण नहीं कर सकते हैं। ये बच्चे शब्दों के उच्चारणण व उपयोग में कठिनाई का अनुभव करते हैं

5. दृष्टि बाधित बच्चों का व्यक्तित्व सामान्य बच्चों के व्यक्तित्व से भिन्न होता है। इन बच्चों में असुरक्षा व विक्षिप्तता अधिक रहती है जो व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करती है। व्यक्तित्व के विकास में वंशानुक्रम व वातावरण दोनों का विशेष महत्त्व होता है। दृष्टि बाधित बालकों का समुचित वातावरण और जीवन के अनुभवों से उनके व्यक्तित्व का विकास अपने ही प्रकार से होता है।

6. देखने में असुविधा होने के कारण इन्हें चलने-फिरने, उठने-बैठने, अपनी दिनचर्या सम्बन्धी कार्यों को करने, विद्यालय आने-जाने और उसकी गतिविधियों में भाग लेने में असुविधा होती है।

7. उन्हें अपने दृष्टिकोणों के कारण कुछ विशेष उपकरणों, सामग्री व सहायकों की आवश्यकता होती है जिससे वे अपने प्राकृतिक एवं सामाजिक परिवेश तथा शिक्षा व्यवस्था साथ उचित समायोजन कर सकें।

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