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विकलांग बालक किसे कहते हैं? विकलांगता के प्रकार, विशेषताएँ एवं कारण बताइए।

विकलांग बालक किसे कहते हैं?
विकलांग बालक किसे कहते हैं?

विकलांग बालक किसे कहते हैं? विकलांगता के प्रकार, विशेषताएँ एवं कारण बताइए।

विकलांग बालक – जो बालक स्वयं की शारीरिक अक्षमताओं के कारण औसत बालकों के समान अपने क्रिया-कलाप सम्पन्न नहीं कर पाता उसे विकलांग बालक कहतें हैं।

विकलांग बालक से तात्पर्य ऐसे बालक से है जिनके शरीर का कोई अंग या तो है नहीं या है तो विकृत अथवा दोषपूर्ण है। क्रो एवं क्रो के शब्दों में, “वे बालक जिनके शारीरिक दोष उन्हें सामान्य क्रियाओं को करने से रोकते हैं, अथवा सीमित करते हैं, उन्हें शारीरिक अक्षमता से युक्त बालक कहा जाता है।”

उक्त परिभाषा में क्रो व क्रो ने शारीरिक अक्षमता पर जोर दिया है। वस्तुत: यह शारीरिक अक्षमता ही है जो व्यक्ति को विकलांग बनाती है।

विकलांग बालकों के प्रकार

विकलांगता के आधार पर बालकों को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जा सकता हैं-

1. अपंग बालक,

2. दृष्टिदोष (अंधे या अर्द्ध अन्ध) वाले बालक,

3. श्रवण दोष (बहरे या अर्द्ध बहरे) वाले बालक,

4. वाणी दोष (गूंगे, तोतले या हकलाने वाले) वाले बालक,

5. नाजुक बालक।

अपंग बालक वे होते हैं जिनके शरीर का कोई क्रियाशील अंग जैसे हाथ, पैर, अंगुलियाँ, हड्डियाँ, मांसपेशियाँ, आँख, कान , नाक आदि जन्मजात रूप में बीमारी अथवा दुर्घटनावश या तो भंग हो जाते हैं या क्षतिग्रस्त होकर कमजोर हो जाते हैं। ऐसे बालक असहाय अवस्था में होते हैं, इसलिए उन्हें असहाय बालक भी कहा जाता है।

दृष्टिदोष बालक वे होते हैं जिन्हें या तो बिल्कुल दिखायी नहीं देता है या एक आँख से दिखायी देता है अथवा कम दिखायी पड़ता है।

श्रवण दोष के अन्तर्गत बहरापन आता है। ऐसे बालकों को या तो बिल्कुल सुनायी नहीं देता या कम सुनायी पड़ता है।

वाणी दोष उन बालकों में होता है जो या तो कुछ भी बोल नहीं सकते या तुतला कर अथवा हकलाकर बोलते हैं। प्रायः ऐसा देखा जाता है कि जो लोग जन्म से गूंगे होते हैं वे बहरे भी होते हैं।

नाजुक अथवा कोमल बालक वे होते हैं जिनका स्वास्थ्य प्राय: ठीक नहीं रहता है। ऐसे बालक अक्सर पेट खराबी, पाचन सम्बन्धी गड़बड़ियों, रक्त-विकार, प्रतिरोधिनी शक्ति की कमी अथवा अन्तःस्रावी ग्रन्थियों में विकार आदि से ग्रस्त रहते हैं।

विकलांग बालकों की विशेषताएं

विकलांग बालकों के लक्षण तथा विशेषताएँ उनकी विकलांगता के प्रकार के अनुसार होती है। किन्तु कुछ ऐसी विशेषताएँ भी होती हैं, जो प्राय: सभी प्रकार के विकलांगों में सामान्य रूप से पायी जाती हैं। ऐसी ही कुछ विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

1. शारीरिक रूप से विकलांग बालकों की शिक्षा सामान्य बालकों के साथ चलाने में प्रायः कठिनाई आती है।

2. इनका कोई न कोई शारीरिक अंग या तो भंग होता है, अथवा क्षतिग्रस्त होकर

3. ये बालक अपने दैनिक आवश्यक कार्य सामान्य बालकों की भांति नहीं कर पाते हैं। इन्हें इन कार्यों में अधिक समय लगता है तथा कभी-कभी कुछ विशेष उपकरणों का सहारा भी लेना पड़ता है। जैसे बैशाखी तथा श्रवण मशीन आदि।

4. एक बालक में कभी-कभी एक से अधिक दोष भी देखे जा सकते हैं

5. इन बालकों की कोई एक शक्ति यदि कमजोर पड़ जाती है, तो ये अपनी अन्य शक्तियों की सहायता से अपना जीवन सफलतापूर्वक जीने में सक्षम होते हैं। एक लड़की के हाथ नहीं थे, तो उसने पैरों से लिखना सीख लिया था। कमजोर हो जाता है।

6. इन बालकों के शारीरिक अंग शक्तिहीन हो जाने पर भी प्राय: ये हतोत्साहित नहीं होते हैं। समाज की उपेक्षा और तिरस्कार से आहत होकर ये हीन भावना के शिकार हो जाते हैं।

7. इन्हें सही मार्गदर्शन, सहायता, यंत्रों के उपयोग, समुचित शिक्षा तथा मानसिक सहयोग देकर समाज की मुख्य धारा के साथ जोड़ा जा सकता है।

विकलांगता के कारण

मनुष्य में विकलांगता के दो कारण होते हैं-1. आनुवांशिकता, 2. वातावरण या पर्यावरण।

आनुवांशिक कारण-

मनुष्य की शारीरिक रचना, आकार, प्रकार और बनावट बहुत कुछ आनुवांशिकता पर आधारित होती है। प्राय: यह देखा जाता है कि सन्तानों की चेहरे की शकल हाथ व पैरों की बनावट आदि उनके माता-पिता, परिवारिक सदस्यों अथवा पूर्वजों से मिलती जुलती होती है। इसी प्रकार कुछ बीमारियाँ विकलांगता और दोष भी वंशानुगत द्वारा सन्तानों में आ जाते हैं। दोष बालकों को पैदा होते ही प्राप्त होते हैं। यही कारण है कि कुछ लोग जन्म से ही अंधे, बहरे, लूले, लंगड़े अथवा बीमार पैदा होते हैं। किसी की आँख कमजोर होती है तो कोई हड्डियों, मांसपेशियों तथा अन्य प्रकार की स्नायुविक कमजोरियों का शिकार होता है। किन इन कमियों और अक्षमताओं के बावजूद वे समाज के सम्मानित सदस्य होते हैं, अत: उनके जीवन को सामान्य बनाने का यथासंभव अधिक से अधिक प्रयास किया जाना चाहिए जिससे वे निराशा के अन्धकार में डूबने बचाये जा सकें और समाज को आगे बढ़ाने में अपना योगदान कर सकें।

वातावरण के कारण-

वातावरण के प्रभाव के कारण बालकों में आने वाली विकलांगता का वर्णन निम्न प्रकार से किया जा सकता है-

1. सर्वप्रथम गर्भावस्था में माँ की देखभाल, खान-पान, चिकित्सा आदि समुचित रूप में न हो पाने के कारण गर्भस्थ शिशु में अनेक प्रकार की बीमारियाँ अथवा दोष उत्पन्न हो सकते हैं। ऐसी विकलांगता बालकों को जन्म के साथ ही प्राप्त होती है।

2. जन्म लेने के बाद यदि बालक का लालन-पालन तथा भरण-पोषण आदि भली-भांति नहीं किया जाता है। उससे भी हड्डियों, मांसपेशियों, हाथ-पैरों आदि से सम्बन्धित अनेक दोष उत्पन्न हो सकते हैं। पोलियो की बीमारी इसका ज्वलन्त उदाहरण है।

3. कभी-कभी दुर्घटना अथवा कोई घातक चोट लग जाने से भी विकलांगता आ जाती है। आजकल ऐसी विकलांगता को दूर करने में चिकित्सा विज्ञान को पर्याप्त सफलता मिलने लगी है। उसके लिए अंगों के प्रत्यारोपण का उदाहरण दिया जा सकता है।

4. बीमारी अथवा मानसिक आघात आदि से भी विकलांगता आ सकती है। जैसे चेचक टाइफाइड, कैंसर, पोलियो व पक्षाघात आदि में शरीर का कोई भाग बेकार हो सकता है।

5. नशीली दवाओं के सेवन से भी अनेक प्रकार की विकलांगता आ सकती है।

6. आँधी, तूफान, भूचाल आदि प्राकृतिक आपदाओं के कारण शरीर का कोई भी भाग विकलांग हो सकता है। अभी हाल में सुनामी लहरों से आयी आपदा ने हजारों व्यक्तियों को अपनी चपेट में ले लिया है।

7. औद्योगिक प्रदूषण तथा अन्य प्रकार के प्रदूषणों से भी कभी-कभी व्यक्ति में विकलांगता आ सकती है जैसे भोपाल गैस काण्ड में लाखों लोग इसके शिकार हो गये थे।

8. कभी-कभी शिक्षकों द्वारा बालकों की निर्मम पिटाई से भी बालकों में विकलांगताम आ जाती है।

विकलांग बालकों में शिक्षा व्यवस्था

शारीरिक रूप से विकलांग बालकों के लिए निम्न प्रकार की शिक्षा व्यवस्था होने के आवश्यकता है-

1. प्रशिक्षण प्राप्त शिक्षक-

शारीरिक रूप से विकलांग बालकों के लिए इस प्रकार का प्रशिक्षण प्राप्त शिक्षक नियुक्त किये जाने चाहिए। क्योंकि शारीरिक रूप से विकलांग बालकों का औसत बालकों के समकक्ष अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

2. विकलांग विद्यालयों की स्थापना-

मनोवैज्ञानिकों के दृष्टिकोण के अनुसार शारीरिक रूप से विकलांग बालकों के लिए अलग स्कूलों की स्थापना की जानी चाहिए। विद्यालय में सभी बच्चों द्वारा प्रयुक्त किये जाने वाले उपकरणों, फर्नीचरों का निर्माण इस प्रकार से किया जाना चाहिए, जिनका उपयोग विकलांग बालक सरलता से कर सकें।

3. गम्भीर विकलांग एवं सामान्य विकलांग में अन्तर-

गम्भीर रूप से विकलांग एवं सामान्य रूप से विकलांग बच्चों के बीच अन्तर रखकर उनकी आवश्यकता के अनुसार विद्यालय खोले जाने चाहिए। जैसे दृष्टिहीन बालकों के लिए दृष्टिहीन विद्यालय, मूक एवं बधिर छात्रों के लिए मूक एवं बधिर विद्यालय। उपरोक्त विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति भी उनकी आवश्यकताओं को देखते हुए की जानी चाहिए।

जबकि सामान्य रूप से विकलांग छात्रों को औसत छात्रों के साथ शिक्षा देना सामाजिकता के दृष्टिकोण से उचित होगा। इसके लिए शिक्षकों को कक्षा में उनके अनुकूल वातावरण बनाने की आवश्यकता होगी।

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