आधुनिक भारतीय शिक्षा के विकास में मैकॉले का योगदान
आधुनिक भारतीय शिक्षा के विकास में मैकॉले का योगदान (Macaulay’s Contribution in the Development of Indian Education) – ब्रिटिश पार्लियामेंट ने सन् 1813 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी को एक नया आज्ञापत्र जारी किया। लेकिन इस आज्ञापत्र में न तो साहित्य और न ही भारतीय विद्वानों के बारे में कोई चर्चा की गयी थी, जिससे विवाद उत्पन्न हो गया तथा कम्पनी और ब्रिटिश पार्लियामेंट दो दलों में बँट गयी- (i) प्राच्यवादी (ii) पाश्चात्यवादी ।
इस विवाद को सुलझाने के लिये सन् 1834 में लार्ड मैकॉले की नियुक्ति गवर्नर जनरल की काउन्सिल के कानूनी सलाहकार के रूप में की गयी। मैकॉले ने सन् 1813 के आज्ञापत्र की तत्सम्बन्धी धारा 43 तथा प्राच्य एवं पाश्चात्यवादियों की लिखित दलीलों का अध्ययन कर सन् 1835 में विवरणपत्र गवर्नर जनरल को पेश किया। इस विवरणपत्र को मैकाले का विवरणपत्र कहते हैं।
लार्ड मैकॉले के सुझाव –
लार्ड मैकॉले ने भारतीयों की शिक्षा के सम्बन्ध में कुछ सुझाव दिये, जो निम्नलिखित हैं-
(i) प्राच्य साहित्य एवं ज्ञान की शिक्षा निरर्थक- लार्ड मैकॉले ने भारतीय साहित्य (संस्कृत और अरबी) को व्यर्थ का बताते हुये कहा कि भारतीय धर्म ग्रन्थ अन्धविश्वासों एवं मूर्खतापूर्ण तथ्यों से भरे हैं। भारतीयों के इतिहास, भूगोल, चिकित्साशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र, आदि को भी अनुपयोगी एवं निरर्थक बताया। मैकॉले ने सुझाव दिया कि संस्कृत एवं अरबी स्कूल तथा कॉलेजों पर सरकारी धन व्यय नहीं करना चाहिए। साथ ही यह सुझाव भी दिया कि प्राच्य साहित्य के मुद्रण एवं प्रकाशन पर सरकारी धन को व्यय नहीं करना चाहिये।
(ii) पाश्चात्य साहित्य एवं ज्ञान की शिक्षा महत्वपूर्ण – मैकॉले अंग्रेजी साहित्य को संसार का सर्वोत्तम साहित्य मानता था। मैकॉले ने भारतीय साहित्य को व्यर्थ का बताते हुये अपने विवरण पत्र में कहा है कि एक अच्छे यूरोपीय पुस्तकालय की एक अलमारी की पुस्तकें भारत और अरब के सम्पूर्ण साहित्य के बराबर है। उन्होंने सुझाव दिया कि भारतीयों को अंग्रेजी भाषा और साहित्य का ज्ञान अनिवार्य रूप से कराना चाहिये।
(iii) अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाना चाहिये- मैकॉले ने भारत की देशी भाषाओं को अविकसित बताते हुये कहा कि भारतीयों को अंग्रेजी भाषा के द्वारा ही पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान का ज्ञान कराया जा सकता है क्योंकि अंग्रेजी भाषा में संसार का सर्वश्रेष्ठ ज्ञान भण्डार है।
(iv) उच्च वर्ग के लिये उच्च शिक्षा संस्थाओं की व्यवस्था – मैकॉले ने सुझाव दिया कि सरकार उच्च शिक्षा की व्यवस्था सिर्फ उच्च वर्ग के लिये करे जिससे कम्पनी को कनिष्ठ पदों पर कार्य करने के लिये भारतीय आसानी से उपलब्ध हो सकेंगे। उच्च वर्ग को शिक्षित करने पर निम्न वर्ग के लोगों तक शिक्षा आसानी से पहुँच जायेगी।
(v) शिक्षा के क्षेत्र में धार्मिक तटस्थता की नीति आवश्यक- मैकॉले भारत में पाश्चात्य धर्म, संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान का प्रसार कर भारतीयों को पाश्चात्य संस्कृति में ढालना चाहता था। अत: मैकॉले ने सुझाव दिया कि विद्यालयों में किसी भी धर्म की शिक्षा न दी जाये।
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