प्राचीन भारतीय शिक्षा में प्रचलित समावर्तन और उपनयन संस्कारों का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
समावर्तन और उपनयन संस्कार में अन्तर | समावर्तन संस्कार | उपनयन संस्कार – ‘उपनयन’ तथा ‘समावर्तन वैदिककालीन शिक्षा के संस्कार थे। उपनयन संस्कार विद्यारम्भ के समय होता था। समावर्तन संस्कार एक निश्चित अवधि की शिक्षा पूरी करने के उपरान्त बालक ग्रहस्थ वापस आना चाहते थे उनका संस्कार समारोह किया जाता था। उपनयन संस्कार तथा समावर्तन संस्कार के अन्तर को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
समावर्तन और उपनयन संस्कार में अन्तर
क्र. सं. | उपनयन संस्कार | समावर्तन संस्कार |
1. | उपनयन संस्कार इसे मौजी बन्धन संस्कार भी कहा जाता है। | समावर्तन संस्कार को ग्रहस्थ जीवन में पुन: लौटने का संस्कार कहा जाता है। |
2. | उपनयन का शाब्दिक अर्थ है छात्र को के समीप ले जाना। | समावर्तन का अर्थ है घर लौटना अर्थात् प्रारम्भिक शिक्षा समाप्ति के उपरान्त गृहस्थ में प्रवेश करना। |
3. | उपनयन संस्कार बालक की 8-12 वर्ष की आयु होने पर किया जाता था। | समावर्तन संस्कार लगभग 24 वर्ष की आयु पर होता था। |
4. | उपनयन संस्कार के समय बालक कोपीन, मेखला तथा दण्ड धारण करता था। | समावर्तन संस्कार के समय गुरु शिष्य को नए वस्त्र आभूषण, जूता, पगड़ी, अंजन, छाता आदि से सुसज्जित करता था। |
5. | उपनयन संस्कार के बाद बालक द्विज कहलाता था। | समावर्तन संस्कार के उपरान्त बालक स्नातक कहलाता था। |
6. | इस संस्कार के अवसर पर आचार्य शिष्य से पूछता था कस्य ब्रह्मचारी असि बालक भवतः अर्थात आपका कहकर गुरु के प्रति समर्पित होता था। आचार्य बालक को व्रतोपदेश देता था। | समावर्तन संस्कार के अवसर पर आचार्य शिष्य को मधुपर्क देते थे तथा स्नातक छात्र विद्यादान देने का व्रत लेता था। गुरु विद्यार्थी को समावर्तन उपदेश देते थे। |
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