सार्जेन्ट योजना 1944 (Sargent Commission in Hindi) – सार्जेण्ट रिपोर्ट की प्रमुख सिफारिशें – यह निम्न प्रकार हैं
1. पूर्व प्राथमिक शिक्षा से सम्बन्धित सिफारिशें –
(अ) नर्सरी विद्यालय – सार्जेण्ट रिपोर्ट में बताया गया है कि यदि राष्ट्रीय शिक्षा को सफल बनाना है तो विभिन्न नर्सरी स्कूलों की स्थापना करनी चाहिए जिसमें 3 से 6 वर्ष तक की उम्र के बच्चों को दाखिला मिलना चाहिए।
(ब) निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था – समिति ने यह भी कहा है कि इन बच्चों की शिक्षा निःशुल्क होनी चाहिए, जिससे कि गरीब बच्चे भी शिक्षा ग्रहण कर सकें।
(स) शिक्षा के उद्देश्य – समिति द्वारा रिपोर्ट में यह स्पष्ट निर्देश दिया गया है कि छोटे बच्चों पर शिक्षा का भार नहीं डालना चाहिए। उन्हें सामाजिक अनुभव तथा व्यवहार की शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए।
2. प्राथमिक शिक्षा से सम्बन्धित सिफारिशें
(अ) सार्वभौमिक, अनिवार्य और निःशुल्क शिक्षा – समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि भारत में प्राथमिक शिक्षा की सफलता के लिये 6-14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों के लिये सार्वभौमिक, अनिवार्य तथा निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए।
(ब) शिल्पकला पर आधारित शिक्षा – इस रिपोर्ट के अनुसार प्राथमिक शिक्षा किसी मौलिक शिल्प पर आधारित होनी चाहिए और यह सिखाई गई शिल्पकला स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल होनी चाहिए किन्तु समिति विद्यार्थियों द्वारा बनाई गई वस्तुओं से शिक्षा का खर्च उठाने के बिल्कुल पक्ष में नहीं थी।
(स) बुनियादी विद्यालयों के प्रकार – समिति के अनुसार प्राथमिक विद्यालय मुख्यत: दो प्रकार के होने चाहिए –
(i) कनिष्ठ बुनियादी विद्यालय – इस प्रकार के विद्यालयों में 6-11 वर्ष के बच्चे अनिवार्य रूप से शिक्षा ग्रहण कर सकेंगे।
(ii) वरिष्ठ बुनियादी विद्यालय – इस प्रकार के विद्यालयों में 11-14 वर्ष की उम्र के बच्चे दाखिला ले सकेंगे। भावी नागरिकों को बड़ी संख्या में तैयार करने में इन वरिष्ठ बुनियादी विद्यालयों का बहुत अधिक महत्व है। इन विद्यालयों को पर्याप्त मात्रा में अध्यापकों और उपकरणों से युक्त होना चाहिए।
(द) शिक्षा का माध्यम – शिक्षा का माध्यम मातृभाषा में होना चाहिए तथा अंग्रेजी को द्वितीय अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाना चाहिए।
3. माध्यमिक शिक्षा से सम्बन्धित सिफारिशें –
(अ) शिक्षा की अवधि- माध्यमिक शिक्षा की अवधि 6 वर्ष की होनी चाहिए और 11-17 वर्ष के मध्य की उम्र के बच्चों का दाखिला लिया जाए।
(ब) विद्यार्थियों का उचित चयन – माध्यमिक शिक्षा में प्रवेश के लिये केवल उन्हीं छात्रों को लेना चाहिए, जिनके अन्दर उच्च अध्ययन के लिये असाधारण योग्यता, अभिवृत्तियों, रुचि तथा अन्य योग्यताएँ हैं।
(स) विद्यालय छोड़ने की शर्त – समिति के अनुसार विद्यार्थियों को कम से कम 14 वर्ष तक माध्यमिक शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए और इससे पहले उसे स्कूल छोड़ने की आज्ञा नहीं दी जानी चाहिए।
(द) हाईस्कूल के लक्ष्य – हाईस्कूल छोड़ने वाले विद्यार्थियों को ऐसी शिक्षा प्राप्त होनी चाहिए जो उन्हें सीधे व्यवसायों तथा रोजगार में लाने के अनुकूल बना दें ताकि वे आत्मनिर्भर हो सकें तथा अपने पैरों पर स्वयं खड़े होने के योग्य बनें।
4. विश्वविद्यालय शिक्षा से सम्बन्धित सिफारिशें
(अ) तीन वर्षीय डिग्री कोर्स – शिक्षा की सार्जेण्ट योजना ने एक तीन वर्षीय डिग्री कोर्स का सुझाव दिया है। इण्टरमीडिएट कक्षा को समाप्त कर देना चाहिए। ग्यारहवीं कक्षा को हाईस्कूल से जोड़ देना चाहिए जबकि बारहवीं कक्षा विश्वविद्यालय शिक्षा से जोड़नी चाहिए।
(ब) प्रवेश के नियम – प्रवेश के नियम सख्त होने चाहिए ताकि सिर्फ योग्य बच्चे ही उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकें। माध्यमिक शिक्षा पूर्ण करने वाले 15 विद्यार्थियों में से केवल एक विद्यार्थी को विश्वविद्यालय शिक्षा प्राप्त करने की अनुमति देनी चाहिए जो शिक्षा प्राप्त करने के योग्य हो।
(स) योग्य शिक्षक – सार्जेण्ट रिपोर्ट में विश्वविद्यालयों में शिक्षा का स्तर बढ़ाने के लिये योग्य शिक्षकों के चुनाव पर बल दिया है।
(द) शिक्षक-शिक्षार्थी सम्बन्ध – शिक्षकों और विद्यार्थियों के मध्य पारस्परिक सम्बन्ध मधुर होने चाहिए और उनका आपस से सम्पर्क होते रहना चाहिए।
(च) विश्वविद्यालय अनुदान आयोग – सार्जेण्ट रिपोर्ट ने देश में एक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना का निर्देश भी दिया था। इसकी स्थापना 1945 में की गई थी। इसका काम अलीगढ़, बनारस और दिल्ली तीनों केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के कार्यों की निगरानी करना था।
5. तकनीकी, औद्योगिक तथा व्यावसायिक शिक्षा से सम्बन्धित सिफारिशें कारीगरों की श्रेणियाँ –
सार्जेण्ट रिपोर्ट में तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा पर बहुत बल दिया है। समिति ने कारीगरों की चार श्रेणियाँ बताई हैं जो निम्नलिखित हैं –
(i) कारीगरों की उच्च श्रेणी – इस श्रेणी में मुख्य अधिकारी और शोध कार्यकर्ता जैसे उच्च श्रेणी के कारीगर आते हैं। इस प्रकार समिति ने सुझाव दिया कि इन कारीगरों को विश्वविद्यालय शिक्षा से जोड़ देना चाहिए। इस उच्च शिक्षा में प्रवेश पाने के नियम कठोर हों ताकि योग्य छात्र ही इसमें प्रवेश पा सकें।
(i) कारीगरों की निम्न श्रेणी- इसमें फोरमैन, प्रभारी, प्रमुख तथा अन्य साधारण कार्यकारी तथा प्रशासनिक अधिकारी शामिल होते हैं। इन व्यक्तियों को तकनीकी हाईस्कूलों में प्रशिक्षण देना चाहिए।
(iii) कुशल कारीगर – औद्योगिक तथा व्यवसायिक योजनाओं के सफल कार्यान्वयन के लिये कर्मियों की इस श्रेणी को प्रशिक्षण प्रदान करने के लिये विद्यार्थियों को किसी तकनीकी हाईस्कूल के पाठ्यक्रम में उत्तीर्ण होना चाहिए।
(iv) अर्द्धकुशल एवं अकुशल कारीगर – इस श्रेणी में उन व्यक्तियों को शामिल किया जा सकता है जो किसी मूल शिल्प के साथ वरिष्ठ प्रारम्भिक विद्यालयों से परीक्षा उत्तीर्ण कर चुके हैं।
भारतीय शिक्षा आयोग द्वारा प्राथमिक शिक्षा के सम्बन्ध में दिये गये सुझावों का वर्णन कीजिये।
भारतीय शिक्षा आयोग द्वारा माध्यमिक शिक्षा के सम्बन्ध में दिये गये सुझावों का वर्णन कीजिये।
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