व्यक्तित्व का अर्थ और परिभाषा-Meaning and Definitions of Personality in Hindi
व्यक्तित्व का अर्थ और परिभाषा – ‘व्यक्तित्व’ क्या है? इसके बारे में अलग-अलग मनोवैज्ञानियों का अलग-अलग मत है। ‘व्यक्तित्व’ शब्द अंग्रेज़ी भाषा के ‘पर्सनेल्टी’ शब्द का ही हिन्दी अनुवाद है। ‘पर्सनेल्टी’ शब्द लैटिन भाषा के ‘परसोना’ से विकसित हुआ है, जिसका अर्थ होता है ‘मुखौटा’ या ‘नकली चेहरा’। प्राचीन काल में तथा एक आम अशिक्षित व्यक्ति के लिये ‘व्यक्तित्व’ से अभिप्राय शरीरिक रचना, रंगरूप, वेशभूषा इत्यादि से था। बाहरी गुणों द्वारा प्रभावित करने वाला व्यक्ति ही सबसे अधिक प्रभावशाली माना जाता था। लेकिन व्यक्तित्व का अर्थ समझने के लिये या व्यक्तित्त्व का निर्धारण करने के लिये अनेक कारक या पक्ष अपना-अपना योगदान देते हैं।
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गिलफोर्ड के अनुसार, निम्नलिखित चार प्रतिकारकों के कारण ही व्यक्तित्व का निर्माण होता है –
(i) सामाजिक अनुक्रिया-व्यक्ति को सामाजिक अनुक्रिया का प्रभाव माना गया है। एक व्यक्ति पर दूसरे व्यक्ति का जो प्रभाव पड़ता है, उसे ही व्यक्तित्व कहा गया है। इस दृष्टि से सबसे अधिक प्रभावशाली व्यक्ति ही ‘व्यक्तित्वपूर्ण’ माना जायेगा।
(ii) सर्वव्यापी तत्त्व – इस विचार के अनुसार व्यक्तित्व विभिन्न शारीरिक तथा मानसिक क्रियाओं का योग माना जाता है।
(iii) संगठन पर बल – इस मत के अनुसार व्यक्तित्व किसी एक तत्त्व या शक्ति की उपज या – परिणाम नहीं है। यह मत अनेक तत्त्वों के संगठन पर बल देता है।
(iv) सम्पूर्ण मत – इस मत के अनुसार व्यक्तित्व सम्पूर्ण व्यक्तित्व है। समाजशास्त्रियों के अनुसार- ‘व्यक्तित्व उन समस्त गुणों का संगठन है, जोकि समाज में व्यक्ति का – कार्य तथा पद निश्चित करता है।’
कुछ व्यक्तियों के अनुसार व्यक्तित्व वे जन्मजात शक्तियाँ है जिनको लेकर एक व्यक्ति पैदा होता है तथा जो वातावरण के प्रभावों से मुक्त रहती है। ‘व्यक्तित्व’ के अर्थ के बारे में लोगों के विचारों में इतनी भिन्नता है कि इसकी कोई एक परिभाषा बताना बहुत कठिन है। व्यक्तित्व को परिभाषित करने के बहुत प्रयास किये गये हैं, लेकिन आज तक कोई एक सर्वमान्य परिभाषा सामने नहीं आ सकी।
आलपोर्ट के अनुसार, ‘व्यक्तित्व, व्यक्ति में उन मनोदैहिक व्यवस्थाओं का संगठन है, जो वातावरण के साथ उसका अपूर्व समायोजन निर्धारित करती हैं।’
आलपोर्ट द्वारा बताई गई परिभाषा में निम्न शब्दों की व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है—
(i) संगठन- व्यक्तित्व अनेक संस्थानों या प्रणालीयों का संगठन है।
(ii) गतिशील- व्यक्तित्व गतिशील है। बालक की वृद्धि के साथ-साथ उसके शारीरिक और मनोवैज्ञानिक पक्ष भी बदलते रहते हैं।
(iii) मनो-दैहिक- व्यक्तित्व में मन और शरीर दोनों ही शामिल हैं। प्रत्येक क्रिया मनोदैहिक होती है। तन, मन और शरीर को अलग नहीं किया जा सकता तथा मन शरीर से अलग रहकर कार्य नहीं कर सकता। दोनों में से कोई भी स्वतंत्र नहीं रह सकता।
(iv) संस्थान या व्यवस्था – इसके अन्तर्गत उन प्रवृत्तियों का समूह होता है, जो मन में निष्क्रय या क्रियाशील रहती है।
(v) निर्धारित करना- व्यक्तित्व द्वारा व्यक्ति के व्यवहारों को निर्धारित करना।
(vi) अपूर्व- प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तित्व में एक विशिष्टता या अपूर्वता होती है। प्रत्येक व्यक्ति विशिष्ट प्रकार का व्यवहार करता है।
(vii) वातावरण में समायोजन- वातावरण में समायोजन करना व्यक्ति के व्यक्तित्व के क्रियात्मक पक्ष का प्रतिनिधित्व करता है।
इस प्रकार आलपोर्ट ने व्यक्तित्व को गतिशील माना है तथा इसे शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा संवेगात्मक विशेषताओं का मिश्रण माना है। व्यवहार द्वारा व्यक्तित्व का निर्धारण किया जा सकता है। व्यक्ति का व्यक्तित्व गतिशील इसलिये है कि वह समय-समय पर वातावरण की अन्तः क्रियाओं द्वारा स्वयं को समायोजित करने का प्रयास करता है।
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वैलेनटीन के अनुसार, ‘व्यक्तित्व जन्मजात और अर्जित प्रवृत्तियों का योग है। ‘ मन के अनुसार, ‘व्यक्तित्व एक व्यक्ति के गठन, व्यवहार के तरीकों, रुचियों, दृष्टिकोणों, क्षमताओं और तरीकों का सबसे विशिष्ट संगठन है।’
बोरिंग के अनुसार, ‘व्यक्तित्व, व्यक्ति का अपने वातावरण के साथ अपूर्ण और स्थाई समायोजन है।’ कैटल के अनुसार, ‘व्यक्तित्व जो किसी विशेष परिस्थिति में जो भी कार्य करता है, उसका प्रतिरूप ही व्यक्तित्व है।’
वारैन के अनुसार, ‘व्यक्तित्व व्यक्ति का विकास की किसी भी अवस्था में सम्पूर्ण मानसिक संगठन है।’
रैक्सरोड ने व्यक्तित्व को समाज द्वारा स्वीकृत विशेषताओं में एक सामंजस्य कहा है।
मार्टन प्रिंस के अनुसार, “व्यक्तित्व, व्यक्ति के समस्त जन्मजात संस्थानों, आवेगों, प्रवृत्तियों, झुकावों एवं मूल प्रवृत्तियों और अनुभवों के द्वारा अर्जित संस्कारों एवं प्रवृत्ति योग है। ” का
आईजैक के अनुसार, “व्यक्तित्व व्यक्ति के चरित्र, स्वभाव, बुद्धि और शारीरिक संरचना का स्थाई और स्थिर संगठन है, जो वातावरण के साथ उसके अपूर्व समायोजन का निर्धारण करता है।” इस परिभाषा में वंशानुक्रम और वातावरण के संतुलित महत्त्व को मान्यता दी गई है। इस परिभाषा के अनुसार व्यक्तित्व का मापन और मूल्यांकन संभव है। इस परिभाषा में व्यक्ति के व्यवहार पर अधिक बल न देकर उसके शारीरिक संगठन और उसके शरीर की संरचना पर अधिक बल दिया गया है।
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