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वृद्धि का अर्थ एवं प्रकृति – Meaning and Nature of Growth in Hindi

वृद्धि का अर्थ एवं प्रकृति
वृद्धि का अर्थ एवं प्रकृति

वृद्धि का अर्थ एवं प्रकृति स्पष्ट कीजिए।

वृद्धि का अर्थ एवं प्रकृति | Meaning and Nature of Growth in Hindi-‘वृद्धि’ शब्द का प्रयोग व्यक्ति के शरीर, आकार, भार आदि में वृद्धि के सन्दर्भ में किया जाता है। इस वृद्धि में व्यक्ति की मांसपेशियों और शरीर की साधारण वृद्धि भी शामिल होती है। अतः हम कह सकते हैं कि वृद्धि की मुख्य विशेषता यह होती है कि इसे नापा, तोला व देखा जा सकता है। वृद्धि के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए फ्रैंक ने कहा है – “शरीर के किसी विशेष पहलू में जो परिवर्तन होता है, उसे वृद्धि कहते हैं।”

हरबर्ट सोरेन्सन ने तो शारीरिक वृद्धि को ‘बड़ा और भारी होना बताया है, जो वृद्धि और परिवर्तनों की ओर संकेत करते हैं।

एच.वी. मैरीडिथ के अनुसार, “वृद्धि और विकास का पहला प्रमाण मानव के आकार में परिवर्तनों का आना है। दूसरा प्रमाण संख्या है। दो कोशिकाओं के मिलने से कई कोशिकाओं वाला मानव जन्म लेता है। तीसरा प्रमाण है— मानव की हड्डियों में परिवर्तन होना। चौथा प्रमाण है-हृदय, आँतड़ियों और अन्य अंगों के कोणों और स्थिति में परिवर्तन का होना । पाँचवां प्रमाण है- सापेक्षिक आकार में परिवर्तन, अर्थात् सिर टाँगों की अपेक्षा छोटा हो जाता है।” संक्षेप में, वृद्धि और विकास के पाँच प्रमाण हुए-आकार, संख्या, प्रकार, स्थिति तथा सापेक्षिक आकार।

जैसा कि हमें मालूम है कि मानव की वृद्धि निषेचित अंड में विभाजन के परिणामस्वरूप होती है। विभाजित निषेचित अंड ही भ्रूण बनता है तथा उसकी कोशिकाओं में वृद्धि से ही मानव शरीर में वृद्धि होती है। वृद्धि तथा शारीरिक वृद्धि निरन्तर नहीं होती। इसकी गति एक जैसी नहीं होती। वृद्धि की गति में परिवर्तन आते रहते हैं। किसी विशेष समय तक वृद्धि होती रहती है तथा उसके पश्चात् यह रुक जाती है।

वृद्धि एक विशेष पद्धति पर तथा आन्तरिक रूप से होती रहती है। शिशुकाल में वृद्धि की गति बहुत तीव्र होती है, लेकिन बाद में यह धीमी हो जाती है। वृद्धि वंशानुक्रम और वातावरण की अन्तःक्रिया से होती है।

उपरोक्त विवरण से वृद्धि के अर्थ एवं प्रकृति को निम्नलिखित तथ्य स्पष्ट कर देते हैं

1. वृद्धि से व्यक्ति बड़ा और भारी होता है।

2. वृद्धि को मात्रा के रूप में माना जा सकता है।

3. वृद्धि की सामान्य पद्धति होती हैं, न कि अलग-अलग व्यक्तियों में अलग-अलग।

4. वृद्धि निषेचित अंड में विभाजन के परिणामस्वरूप होती है।

5. वृद्धि निरन्तर नहीं होती।

6. वृद्धि की गति एक समान नहीं रहती। इसमें (गति में) परिवर्तन आते रहते हैं।

7. वृद्धि एक विशेष समय तक होती रहती है। फिर उसके बाद रुक जाती है।

8. वृद्धि आन्तरिक रूप से होती है।

9. स्त्रियों में पुरुषों की अपेक्षा वृद्धि तीव्र होती है।

10. वृद्धि वंशानुक्रम और वातावरण की अन्तःक्रिया से होती है।

11. शिशुकाल में वृद्धि तीव्र गति से होती है, लेकिन बाद में धीमी हो जाती है।

12. शारीरिक और मानसिक वृद्धि का आपस में गहरा सम्बन्ध होता है।

13. स्वास्थ्य और भोजन शारीरिक और मानसिक वृद्धि को प्रभावित करते हैं।

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