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बाल विकास के अध्ययन का महत्त्व | Importance of Child Development in Hindi

बाल विकास के अध्ययन का महत्त्व
बाल विकास के अध्ययन का महत्त्व

बाल विकास के अध्ययन के महत्त्व को समझाइये।

बाल विकास के अध्ययन का महत्त्व- बाल विकास के अध्ययन का महत्त्व इसलिए भी है कि यह बालक के विकास में निम्नलिखित प्रकार से उपयोगी है

1. वैधानिक सम्बन्धों का ज्ञान- बालक का जन्म स्त्री एवं पुरुष दो शरीरों के यौन सम्पर्क द्वारा पूर्ण होता है। प्रत्येक देश की अपनी अलग-अलग परम्पराएँ और रीति-रिवाज हैं। इनमें परिस्थितिजन्य देश की और भौगोलिक क्षेत्रानुसार कुछ वैधानिकताएँ होती हैं। उनकी अवहेलना करने पर जन्म लेने वाला बालक समाज से तिरस्कृत हो जाता है अर्थात् वह मान प्रतिष्ठा तथा उचित पद पाने का अधिकारी नहीं होता। अतः प्रत्येक अभिभावक इसके अध्ययन से वैधानिक तथा अवैधानिकता के अन्तर का ज्ञान प्राप्त कर बाल विकास महत्त्वपूर्ण पक्ष को पहचान सकता है।

2. बालक के पोषण का ज्ञान- बालक के गर्भ में आने के उपरान्त बालक की पोषण क्रिया प्रारम्भ हो जाती है। माता के आहार-विहार, विचार आदि का बालक के विकास पर सीधा प्रभाव पड़ता है। अभिमन्यु ने गर्भ में चक्रव्यूह प्रवेश सीख लिया था, लेकिन माँ के सो जाने के कारण वह व्यूह से निकलना नहीं सीख पाया था अर्थात् बालक के पोषण का प्रारम्भ हो जाता है। इसीलिए प्रत्येक जागरुक माता-पिता बाल विकास के अध्ययन के महत्त्व को स्वीकार करते हैं।

3. खेलों के महत्त्व का ज्ञान- बालकों को खेल प्रिय होते हैं, यह सर्वविदित है, किन्तु कुछ अभिभावक इस बात को स्वीकार नहीं करते। इस कारण बालकों में भिन्न-भिन्न जटिलताएँ उत्पन्न हो जाती हैं और बालक असामान्य व्यवहार करने लगते हैं। बाल विकास के अध्ययन द्वारा अभिभावक, शिक्षक तथा विद्यालय इसके महत्व को स्वीकारते हैं।

4. वैयक्तिक भेदों का ज्ञान- बाल विकास के अध्ययन के द्वारा अभिभावक अपने बालकों में उनकी वैयक्तिक भिन्नताओं को पहचान सकते हैं। यदि दो बालकों के मध्य असमानताएँ हैं, तो उन्हें अलग अलग समझकर उनका उचित लालन-पालन तथा शैक्षिक निर्देशन कर सकते हैं। उनकी विभिन्न प्रतिभाओं का विकास तथा कमजोरियों का निदान सोच सकते हैं। बाल विकास का अध्ययन बालकों के वैयक्तिक भेदों पर उचित प्रकाश डालता है। अतः मन्दबुद्धि, प्रतिभाशाली, विकलांग आदि बालकों की अलग-अलग शिक्षा पर शिक्षाशास्त्री अध्ययन के लिये विशेष सहायता पर बल देते हैं।

5. बालक के सामान्य एवं असामान्य व्यवहार का ज्ञान – बाल विकास के अध्ययन द्वारा बालक की व्यवहारगत समस्याओं की जानकारी अभिभावकों को प्राप्त होती है। वे यह जानने का प्रयास करते हैं कि उनका बालक कैसे सामान्य व्यवहार की ओर अग्रसर हो? असामान्यता का निदान कैसे हो सकता है? असामान्यता के कारण क्या हैं और इन व्यवहारों की उत्पत्ति का मुख्य कारण क्या है? इन सभी बातों का अध्ययन बाल विकास के द्वारा प्राप्त करके माता-पिता, शिक्षक एवं विद्यालय उचित प्रकार से उपचार तथा सुधार कर सकते हैं। कुछ बालक माता-पिता से झूठ बोलते हैं, सामान चुराते हैं, विद्यालय जाने से कतराते हैं आदि। ऐसी कठिन परिस्थिति में माता-पिता कोई सुगम रास्ता ढूंढ़ते हैं कि बालक का उचित दिशा में मार्गान्तीकरण हो जाता है और सद्भाव वृत्ति का दुरुपयोग नहीं होता और साथ ही दोनों के मध्य सद्भाव का विकास कायम रहता है।

6. विकास की अवस्थाओं तथा सामाजीकरण का ज्ञान- बाल विकास के अध्ययन के द्वारा – जागरुक माता-पिता इस बात का पूरा ध्यान रखते हैं कि बालक का विभिन्न अवस्थाओं में शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक, सामाजिक तथा नैतिक एवं भाषायी विकास किस प्रकार सम्भव है? इसके अध्ययन द्वारा बालक में सामाजीकरण के भाव तीव्र गति से उत्पन्न किये जा सकते हैं। सम्पर्क, अन्तःक्रिया अनुसन्धान, व्यवहार आदि बालक को सामाजीकरण की ओर अग्रसर होने को प्रेरित करते हैं। इस प्रकार बालक में खोज वृत्ति एवं सृजनात्मकता का विकास होता है।

7. बालक के स्वास्थ्य का ज्ञान- बाल विकास के अध्ययन का महत्त्व इसलिये है कि इसके द्वारा अभिभावकों, शिक्षकों तथा विद्यालयों को बालक के स्वास्थ्य की जानकारी हो जाती है और उसके अनुसार बालक के साथ उपचारात्मक व्यवहार किया जा सकता है। यदि बालक किसी रोग से पीड़ित है, तो उस बालक की शिक्षा का स्वरूप तद्नुसार ही निश्चित किया जाना चाहिए। ऐसे बालकों को उचित देखभाल तथा भोजन एवं पोषण की आवश्यकता होगी, ऐसा ज्ञान बाल विकास के अध्ययन के द्वारा ही होता है।

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