एडम एवं ऑकलैण्ड द्वारा प्रस्तावित शिक्षा योजना
एडम द्वारा प्रस्तावित शिक्षा योजना (1835)
एडम प्राच्यवादी विचारधारा का था। वह भारतीय संस्कृति व भाषाओं की समृद्धता से भी परिचित था। एडम ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि भारतीयों को शिक्षा भारतीय भाषाओं के माध्यम से ही दी जानी चाहिये। उनके अनुसार जन शिक्षा की व्यवस्था निम्नलिखित रूप से करनी चाहिये
(i) भारत में चल रहे देशी स्कूलों की दशा सुधारी जाये तथा उनकी प्रगति के प्रयास किये जायें। इस प्रकार राष्ट्रीय शिक्षा योजना को सफल बनाया जा सकता है।
(ii) भारत में जन शिक्षा के विकास के लिये भारतीयों को उन्हीं की भाषा में शिक्षा दी जाये तथा भारतीय साहित्य तथा ज्ञान-विज्ञान का ज्ञान कराया जाये।
(iii) भारत कृषि प्रधान देश है। अत: कृषि शिक्षा की व्यवस्था प्रारम्भ से ही की जाये।
(iv) निस्यन्दन सिद्धान्त जन शिक्षा विरोधी है अत: इसे लागू न किया जाये।
(v) सरकार द्वारा ग्रामीण स्कूलों को कृषि योग्य भूमि उपलब्ध करा कर छात्रों को लाभ पहुंचाया जाये।
(vi) प्राच्य भाषाओं में पाठ्य-पुस्तकों का निर्माण कराया जाये।
(vii) देशी स्कूलों को सरकार की ओर से आर्थिक मदद प्रदान की जाये।
(viii) छात्रों की परीक्षाएँ निर्धारित समय पर सम्पन्न करायी जाये।
(ix) शिक्षकों को प्रशिक्षण दिया जाये तथा शिक्षकों का वेतन बढ़ाया जाये और उनकी दशा में सुधार किया जाये।
(x) विद्यालयों और शिक्षकों के निरीक्षण के लिये प्रत्येक जिले में निरीक्षक नियुक्त किये जाये।
लार्ड ऑकलैण्ड की शिक्षा नीति (1839)
लॉर्ड ऑकलैण्ड सन् 1835 में भारत का गवर्नर जनरल बनकर आया। उसके सामने शिक्षा से सम्बन्धित दो समस्यायें थी-
(i) प्राच्य-पाश्चात्य विवाद का निस्तारण व (ii) शिक्षा की नई नीति का निर्धारण ।
ऑकलैण्ड ने सबसे पहले प्राच्य-पाश्चात्य विवाद के कारणों का अध्ययन किया और पाया कि प्राच्यवादियों के विरोध का मुख्य कारण प्राच्यवादी शिक्षा के लिये अपेक्षाकृत कम धनराशि दिया जाना था। अतः उसने प्राच्यवादी शिक्षा के लिये 31 हजार रुपये व पाश्चात्यवादी शिक्षा के लिए एक लाख रुपये प्रतिवर्ष देना मंजूर किया। अब दूसरी समस्या थी- शिक्षा की नई नीति के निर्धारण की। ऑकलैण्ड निष्यन्दन सिद्धान्त का समर्थक था, अतः उसने 24 नवम्बर 1839 को अपनी शिक्षा नीति की घोषणा की और उसमें स्पष्ट कहा कि – ‘सरकार के प्रयास समाज के उच्च वर्ग के व्यक्तियों में उच्च शिक्षा का प्रसार करने तक सीमित रहने चाहिए, जिनके पास अध्ययन के लिये अवकाश (समय) है और जिनकी संस्कृति छन-छन कर जन साधारण तक पहुँचेगी।’
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