शिक्षा के वैयक्तिक एवं सामाजिक उद्देश्यों की विवेचना कीजिए तथा इन दोनों उद्देश्यों में समन्वय को समझाइए।
शिक्षा के व्यक्तिगत उद्देश्य (Individual Aims of Education)
प्राचीन समय में शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य को उस समय के विद्वानों का काफी समर्थन प्राप्त रहा है। आधुनिक युग में भी शिक्षा मनोविज्ञान की प्रगति के कारण इस उद्देश्य पर विशेष बल दिया जाने लगा है। आधुनिक समय में इस उद्देश्य के प्रमुख समर्थकों के नाम हैं- रूसो, फ्राबेल पेस्टालाजी, नन् आदि । नन् के अनुसार– “शिक्षा की ऐसी दशायें उत्पन्न होनी चाहिये जिसमें वैयक्तिकता का पूर्ण विकास हो सके और व्यक्ति मानव जीवन का अपना मौलिक योगदान दे सके। “
शिक्षा अपने उद्देश्य को तभी प्राप्त कर सकती है जब राज्य, समाज तथा शिक्षा संस्थायें सभी इस दिशा में प्रयत्न करें।
यूकेन (Eucken) ने वैयक्तिकता का अर्थ आध्यात्मिक वैयक्तिकता से लगाया है। उसके मतानुसार, आध्यात्मिक वैयक्तिकता एवं व्यक्तित्त्व जन्मजात नहीं होते वरन् उन्हें प्राप्त किया जाता है। इस प्रकार, वैयक्तिक उद्देश्य का अर्थ- श्रेष्ठ व्यक्तित्त्व और आध्यात्मिक वैयक्तिकता का विकास रॉस के अनुसार, “शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य का अर्थ जो हमारे स्वीकार करने के योग्य है, वह केवल यह है- महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्त्व और आध्यात्मिक वैयक्तिकता का विकास “
वैयक्तिक उद्देश्यों के रूप
शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य के दो रूप हैं-
(i) आत्माभिव्यक्ति, और (ii) आत्मानुभूति।
आत्माभिव्यक्ति के समर्थक विद्वान आत्म-प्रकाशन का बल देते हैं अर्थात् व्यक्ति को अपने कार्य या व्यवहार करने की पूर्ण स्वतन्त्रता होनी चाहिये, भले ही उससे दूसरों को हानि पहुँचे। लेकिन इस विचार को ठीक मान लेने का अर्थ होगा-व्यक्ति को आदिकाल में पहुँचा देना अथवा व्यक्ति को पशु के समान बना देना।
आत्मानुभूति, आत्माभिव्यक्ति से भिन्न है। आत्माभिव्यक्ति में ‘स्व’ (Self) से अभिप्राय होता है-जैसे मैं उसे जानता हूँ लेकिन आत्मानुभूति में ‘स्व’ से आशय होता है- जैसे मैं उसका होना चाहता हूँ। आत्माभिव्यक्ति में ‘स्व’ व्यक्ति का ‘मूर्त स्व’ है जबकि आत्मानुभूति में ‘स्व’ आदर्श स्व होता है जिसके विषय में हम कल्पना करते हैं। आत्माभिव्यक्ति में समाज के लाभ या हानि के विषय में कोई ध्यान नहीं दिया जाता जबकि एडम्स के शब्दों में – “आत्मानुभूति के आदर्श में ‘स्व’ समाज-विरोधी व्यवहार करके अपनी अनुभूति नहीं कर सकता है। “
व्यक्तिगत उद्देश्य के पक्ष में तर्क
शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति का वैयक्तिक विकास होना चाहिये क्योंकि-
- संसार में सभी श्रेष्ठ रचनायें व्यक्ति के स्वतन्त्र प्रयत्नों के परिणामस्वरूप हुई हैं।
- जनतन्त्रीय व्यवस्था व्यक्ति की स्वतन्त्रता पर बल देती है।
- मनोविज्ञान के अनुसार, व्यक्ति की मूल प्रवृत्तियों को ध्यान में रखकर ऐसी दिशाओं का निर्माण किया जाये जो उसके स्वतन्त्र विकास में सहायक हो।
- प्रत्येक समाज की संस्कृति और सभ्यता को व्यक्ति ही विकसित करके एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को सौंपते हैं, अतः शिक्षा में वैयक्तिक विकास का ही समर्थन किया जाना चाहिये।
- व्यक्ति समाज की इकाई है। यदि व्यक्ति को अपने पूर्ण उत्कर्ष के लिये अवसर प्रदान किये गये तो इससे अन्तोगत्वा समाज की भी उन्नति होगी। इस दृष्टि से भी वैयक्तिक उद्देश्य अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
नन के शब्दों में- “वैयक्तिकता जीवन का आदर्श है। शिक्षा की किसी भी योजना का महत्त्व उसकी उच्चतम वैयक्तिक श्रेष्ठता का विकास करने की सफलता से आँका जाना चाहिये। “
व्यक्तिगत उद्देश्य के विपक्ष में तर्क
- शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य से व्यक्तिवाद को बल मिलता है।
- वैयक्तिक उद्देश्य समाजवादी विचारधारा के विपरीत है।
- यह उद्देश्य आत्म-प्रदर्शन की गलत धारणा पर आधारित है।
- इससे व्यक्ति में पाश्विक प्रवृत्तियों का विकास हो सकता है।
- इस उद्देश्य के अन्तर्गत मनुष्य के सामाजिक स्वरूप की उपेक्षा की गई है।
- व्यक्ति को अत्यधिक स्वतन्त्रता देने से अन्त में सामाजिक विघटन की प्रक्रिया प्रारम्भ हो सकती है।
- व्यक्ति की निरंकुश स्वतन्त्रता का समर्थन करने के कारण इस उद्देश्य से व्यक्ति की तर्कशक्ति का भी होने लगता है। वह भले-बुरे तथा उचित-अनुचित में कोई अन्तर नहीं कर सकता।
- यह उद्देश्य वास्तविक जीवन के लिये अव्यावहारिक है क्योंकि विद्यालयों में प्रत्येक छात्र के वैयक्तिक विकास के लिये विशेष प्रकार के पाठ्यक्रम और विधियों की व्यवस्था नहीं की जा सकती।
वैयक्तिकता के उद्देश्य में जहाँ तक आत्माभिव्यक्ति के रूप का प्रश्न है, उसे तो बिल्कुल भी स्वीकार नहीं किया जा सकता, लेकिन उसके आत्मानुभूति के रूप को स्वीकार किया जा सकता है क्योंकि उसमे व्यक्ति के सामाजिक विकास के पक्ष की उपेक्षा नहीं की गई है। लेकिन वैयक्तिक विकास का उद्देश्य पूर्ण रूप से स्वीकार नहीं किया जा सकता।
शिक्षा का सामाजिक उद्देश्य (Social Aim of Education)
सामाजिक उद्देश्य का अर्थ- सामाजिक उद्देश्य के अनुसार, समाज या राज्य का स्थान व्यक्ति से अधिक महत्त्वपूर्ण है। बैगेल और डीवी ने सामाजिक उद्देश्य का तात्पर्य सामाजिक दक्षता से लगाया है
लेकिन अपने अतिवादी स्वरूप में यह उद्देश्य व्यक्ति को समाज की तुलना में निचली श्रेणी का मानता है तथा व्यक्ति के सारे अधिकारों एवं उत्तरदायित्वों को राज्य के हाथों में सौंप देता है। इस अतिवादी स्वरूप के अन्तर्गत समाज को साध्य और व्यक्ति को साधन माना जाता है, अर्थात् व्यक्ति का अपना अलग कोई अस्तित्त्व नहीं।
लेकिन यदि हम इस उद्देश्य के अतिवादी रूप को ध्यान में न रखें तो सरल रूप में इस उद्देश्य का अर्थ होगा-व्यक्तियों में सहयोग सामाजिक भावना का विकास करना। इसी सामाजिक भावना के आधार पर रेमण्ट ने कहा था कि-“समाजविहीन अकेला व्यक्ति कल्पना की खोज है। “
सामाजिक उद्देश्यों के पक्ष में तर्क
- व्यक्ति को अपने जीवन-यापन की दृष्टि से समाज अनिवार्य है। समाज से अलग उसके जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिये समाज का हित ही व्यक्ति को सर्वोपरि रखना चाहिये।
- समाज ही सभ्यता व संस्कृति को जन्म देता है जिनसे व्यक्ति संस्कारित होता है।
- वंशानुक्रम से व्यक्ति केवल पारिवारिक प्रवृत्तियाँ ही प्राप्त करता है, लेकिन सामाजिक वातावरण उसे वास्तविक मानव बनाता है।
- सामाजिक वातावरण के अन्तर्गत ही नागरिकता के गुणों का विकास किया जा सकता है।
- समाज में ही व्यक्ति की विभिन्न शक्तियों का विकास होता है।
- सामाजिक जीवन ही व्यक्ति को नये आविष्कारों के लिये अवसर प्रदान करता है।
सामाजिक उद्देश्यों के विपक्ष में तर्क
सामाजिक उद्देश्य में निम्नलिखित दोष पाये जाते हैं-
- इतिहास गवाह है कि सर्वाधिकारी राज्य युद्ध की विभीषिकाओं को जन्म देते हैं।
- इस उद्देश्य से व्यक्ति का मानसिक सौन्दर्यात्मक, चारित्रिक और आध्यात्मिक विकास नहीं हो पाता।
- इस उद्देश्य पर आधारित शिक्षा संकुचित राष्ट्रीयता का विकास करती है ।
- इस उद्देश्य के अन्तर्गत व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का कोई महत्त्व नहीं है।
- इस उद्देश्य के अनुसार, समाज को मनुष्य से श्रेष्ठ समझा जाता है जो एक गलत धारणा है।
- राज्य या समाज के आदर्शों के प्रचार के लिये शिक्षा के साधनों का अनुचित प्रयोग किया जाता है।
- यह उद्देश्य अमनोवैज्ञानिक है क्योंकि इसमें बालक की व्यक्तिगत रुचियों, प्रवृत्तियों और योग्यताओं का विकास नहीं हो सकता है।
- इस उद्देश्य में क्योंकि वैयक्तिक स्वतन्त्रता का अभाव है, इसलिये कला और साहित्य में विकास नहीं हो सकता है।
वैयक्तिक व सामाजिक उद्देश्यों में समन्वय (Coordination between Individual and Social Aims)
व्यक्ति और समाज का आपस में घनिष्ठ सम्बन्ध है। एक के बिना हम दूसरे की कल्पना नहीं कर सकते। इसी प्रकार किसी भी व्यक्ति का वैयक्तिक विकास भी आवश्यक है और सामाजिक विकास भी। अतः शिक्षा के वैयक्तिक और सामाजिक उद्देश्य एक-दूसरे के विरोधी नहीं वरन् एक-दूसरे के पूरक हैं। दोनों ही उद्देश्यों में समन्वय की आवश्यकता है।
रॉस का कथन है कि “वैयक्तिकता का विकास केवल सामाजिक वातावरण में होता है, जहाँ सामान्य रुचियों और सामान्य क्रियाओं से उसका पोषण होता है। “
इस प्रकार से स्पष्ट है कि व्यक्ति के लिये समाज और समाज के लिये व्यक्ति आवश्यक है। व्यक्ति से समाज का निर्माण होता है और समाज व्यक्ति का निर्माण करता है। हमें समाज के स्वरूप के दर्शन व्यक्तियों के रूप में होते हैं और सामाजिक विरासत के कारण ही व्यक्ति का विकास सम्भव हो पाता है।
इन दोनों उद्देश्यों के समन्वय के आधार पर ही शिक्षा का स्वरूप निर्मित किया जाना चाहिये अर्थात् ऐसी व्यवस्था की स्थापना में सहायक हो जिसमें न तो समाज व्यक्ति को अपना दास बना सके और न व्यक्ति ही सामाजिक नियमों की अवहेलना कर सके।
Related Link
- शिक्षा के वैयक्तिक एवं सामाजिक उद्देश्य | Personal and Social Objectives of Education
- शिक्षा के उद्देश्य को निर्धारित करना शिक्षक के लिए आवश्यक है, क्यों ?
- भारतीय शिक्षा में आज संकटावस्था की क्या प्रकृति है ? इसके कारणों व समस्याओं के स्रोत
- शिक्षा तथा साक्षरता व अनुदेशन में अन्तर | Difference between education and literacy and instruction
- शिक्षा का शाब्दिक अर्थ इसके संकुचित, व्यापक एवं वास्तविक अर्थ
- शिक्षा की अवधारणा तथा इसकी परिभाषाएँ देते हुए इसकी विशेषताएँ बताइये
- भारत जैसे लोकतन्त्रीय राष्ट्र में शिक्षा के उद्देश्य किस प्रकार के होने चाहिए?
Important Links
- दृष्टि दोष से ग्रस्त बालकों की क्रियात्मक सीमाएँ एंव शिक्षक की भूमिका
- अन्धे बालकों को आप शिक्षित कैसे करेंगे ? How will you educate blind Children?
- दृष्टि दोष बालकों की क्या समस्याएँ हैं ? What is the problem of children with Visual Impairment
- दृष्टि बाधिता या दृष्टि असमर्थता का अर्थ, विशेषताएँ, पहचान तथा इनकी देखभाल एवं प्रशिक्षण
- दृष्टि दोष बालक कौन होते हैं? दृष्टि दोष के क्या कारण है।
- दृष्टि-दोष के मुख्य प्रकार, पहचान तथा विशिष्ट आवश्यकताएँ
- पी.डब्ल्यू. डी. अधिनियम, 1995 क्या हैं ? What is PWD Action, 1995?
- विश्व शांति के सकारात्मक एवं नकारात्मक पहलु और इसके अन्तर
- विश्व शांति के महत्त्व एवं विकास | Importance and development of world peace
- भारत एवं विश्व शान्ति |India and world peace in Hindi
- विश्व शांति का अर्थ एवं परिभाषा तथा इसकी आवश्यकता
- स्वामी विवेकानन्द जी का शान्ति शिक्षा में योगदान | Contribution of Swami Vivekananda in Peace Education
- अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के कार्य एवं दायित्व | objectives and Importance of international organization
- भारतीय संदर्भ में विश्वशान्ति की अवधारणा | concept of world peace in the Indian context
- अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की प्रासंगिकता | Relevance of International Organization
- भारतीय परम्परा के अनुसार ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का स्वरूप
- अन्तर्राष्ट्रीय संगठन के उद्देश्य एवं महत्त्व | Objects & Importance of International Organization
- मानवीय मूल्यों को विकसित करने में शिक्षा की भूमिका
- मूल्यों के विकास के स्त्रोत अथवा साधन क्या हैं? What are the source or means of Development of values?
- मानव मूल्य का अर्थ एंव परिभाषा तथा इसकी प्रकृति | Meaning and Definition of human value and its nature
- व्यावहारिक जीवन में मूल्य की अवधारणा | Concept of value in Practical life
- सभ्यता एवं संस्कृति का मूल्य पद्धति के विकास में योगदान
- संस्कृति एवं शैक्षिक मूल्य का अर्थ, प्रकार एंव इसके कार्य
- संस्कृति का मूल्य शिक्षा पर प्रभाव | Impact of culture on value Education in Hindi
- संस्कृति का अर्थ, परिभाषा तथा मूल्य एवं संस्कृति के संबंध
- मूल्य शिक्षा की विधियाँ और मूल्यांकन | Methods and Evaluation of value Education
- मूल्य शिक्षा की परिभाषा एवं इसके महत्त्व | Definition and Importance of value Education
- मूल्य का अर्थ, आवश्यकता, एंव इसका महत्त्व | Meaning, Needs and Importance of Values
- विद्यालय मध्याह्न भोजन से आप क्या समझते है ?
- विद्यालयी शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर स्वास्थ्य शिक्षा के उद्देश्य
- स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ एंव इसके लक्ष्य और उद्देश्य | Meaning and Objectives of Health Education
- स्कूलों में स्वास्थ्य शिक्षा के उद्देश्य | Objectives of health education in schools
- स्वास्थ्य का अर्थ एंव इसके महत्व | Meaning and Importance of Health in Hindi
- स्वास्थ्य का अर्थ एंव स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक
- स्वास्थ्य विज्ञान का अर्थ एंव इसके सामान्य नियम | Meaning and Health Science and its general rules in Hindi
- समावेशित विद्यालय की क्या विशेषताएँ हैं ? समावेशी विद्यालय विकास के बिन्दु
- समावेशी शिक्षा में विभिन्न शिक्षण कौशलों का विवेचन कीजिए।
- समावेशी शिक्षा एवं परिवार | Role of class Teacher in Inclusive Education
- संसाधन अध्यापक की महत्वपूर्ण भूमिका | Important role of resource teacher
- समावेशी शिक्षा में कक्षा अध्यापक की भूमिका | Role of class teacher in inclusive education
- विद्यालय और समुदाय की अन्योन्याश्रितता | school and community interdependence
- विशिष्ट बालकों की शिक्षा में परिवार के योगदान | Contribution of family in education of special children
- विशिष्ट शिक्षा एवं समावेशी शिक्षा में अन्तर | Difference between specialized education and inclusive education
- विशिष्ट शिक्षा बनाम समावेशी शिक्षा | Special Education Vs Inclusive Education
- समावेशी शिक्षा के लाभ या विवाद | Benefits or controversies of inclusive education
- अधिगम असमर्थी के प्रकार | Types of learning disabilities in Hindi
Disclaimer