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शिक्षा के उद्देश्य को निर्धारित करना शिक्षक के लिए आवश्यक है, क्यों ?

शिक्षा के उद्देश्य को निर्धारित करना शिक्षक के लिए आवश्यक है, क्यों ?
शिक्षा के उद्देश्य को निर्धारित करना शिक्षक के लिए आवश्यक है, क्यों ?

शिक्षा के उद्देश्य को निर्धारित करना शिक्षक के लिए आवश्यक है, क्यों ?

शिक्षा के उद्देश्य की आवश्यकता

किसी भी कार्य को करने से पहले यह आवश्यक है कि उसके उद्देश्य व परिणाम के बारे में पहले से ही सोचा जाएँ व सावधानी रखी जाएँ। बिना सोचे-समझे किसी भी कार्य को करने का परिणाम अच्छा व बुरा दोनों ही प्रकार से होता है। इसीलिए उद्देश्य को निर्धारित करना आवश्यक है; इसी तथ्य को दृष्टिकोण रखते हुए हम यह कह सकते हैं कि शिक्षा को प्रभावी बनाने के लिए यह आवश्यक है कि शिक्षा के कुछ निश्चित उद्देश्य हों तथा शिक्षा प्रदान करने वाली शिक्षक को इन उद्देश्यों का भली-भाँति ज्ञान होना चाहिए जिससे कि वह अपने छात्रों को उन मापदण्डों पर खरा बना सकें जो उन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आवश्यक है। बिना उद्देश्य के किसी कार्य को करने से उसे पूर्ण व विधि सम्मत ढंग से नहीं किया जा सकता है जिससे समाज का, राष्ट्र का तथा स्वयं छात्रों का भविष्य भी अंधकार में होने की आशंका बनी रहती है।

शिक्षा के उद्देश्य के निर्माण के आधार

शिक्षा के उद्देश्य के निर्माण के आधारों को हम दों भागों में विभाजित कर सकते है-

(1) आदर्शवादी आधार, (2) यथार्थवादी आधार।

(1) आदर्शवादी आधार- आदर्शवादी आधार के अन्तर्गत नैतिकता का मूल्य, सार्वभौमिक मूल्य एवं आदर्शों पर अधिक बल दिया जाता है। आदर्शवादी समाज में शिक्षा का उद्देश्य भी नैतिकता व मूल्यों पर आधारित रहता है परन्तु यह उद्देश्य व्यक्तिगत न होकर सार्वभौमिक होते हैं। इस प्रकार के समाज में शिक्षा के उद्देश्य व्यक्ति के मानवीय गुणों को विकसित करने के होते हैं तथा इसके साथ ही वे संस्कृति के संरक्षण व विकास पर बल देते हैं।

(2) यथार्थवादी आधार- आदर्शवादी आधार के विपरीत यथार्थवादी आधार में समाज की विभिन्न परिस्थितियों को ध्यान में रखकर शिक्षा के उद्देश्य को पूर्ण किया जाता है।

इस प्रकार की परिस्थितियाँ निम्न होती हैं-

  1. जीवन दर्शन,
  2. राजनीतिक विचारधारा,
  3. प्रौद्योगिक प्रगति,
  4. सामाजिक व आर्थिक दशाएँ।

1. जीवन दर्शन- समाज में प्रचलित जीवन दर्शन शिक्षा के उद्देश्यों को निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। समाज में जिस प्रकार की भावनायें विद्यमान होती हैं उसी प्रकार का जीवन दर्शन लोगों को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए यदि समाज में युद्ध का माहौल है तो व्यक्तियों का जीवन दर्शन युद्ध, आक्रमण, राष्ट्रहित आदि भावनाओं से ओत-प्रोत होता है। फ्रांस में नेपोलियन के शासनकाल में शिक्षा का उद्देश्य ईसाई धर्म के सिद्धान्तों का पालन करना, जनता में शासन के प्रति स्वामिभक्ति की भावना का विकास करना तथा विश्वविद्यालय के नियमों का पालन करना था। इस प्रकार यह देखने में आता है। कि समाज तथा राष्ट्र में होने वाले घटनाक्रम तथा किसी घटना विशेष का उस समय के जीवन दर्शन पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है।

2. राजनीतिक विचारधारायें- किसी भी समाज तथा राज्य में प्रचलित राजनीतिक विचारधारा का शिक्षा पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। लोकतन्त्रीय विचारधारा के समर्थक राष्ट्रों में शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्यों पर बल दिया जाता है तथा यदि किसी राज्य में स्वेच्छाचारिता की भावना है तो वहाँ पर बालक को राष्ट्र के हित के लिए जुड़ी भावनाओं से प्रशिक्षित किया जाता है। राजनीतिक विचारधारा शिक्षा के उद्देश्यों को अपनी सुविधा के अनुसार निर्धारित करती है।

3. प्रौद्योगिक प्रगति- प्रौद्योगिकी के महत्त्व से आज कोई भी अनजान नहीं है। शिक्षा के उद्देश्य के निर्माण में इसका अपना विशिष्ट स्थान है जो राष्ट्र तथा समाज औद्योगिक रूप से पिछड़ जाते हैं वे शिक्षा के उद्देश्य को इसी भावना से जोड़ लेते हैं कि उन्हें अपनी युवा पीढ़ी को तकनीकि व प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आगे लाना है तथा कुशलतापूर्वक प्रशिक्षित करना है। जिन राष्ट्रों में प्रौद्योगिक का विकास तीव्र ढंग से हुआ है वे भी अपनी पीढ़ी को और अधिक कुशल, निपुण व प्रशिक्षित बनाने को शिक्षा का उद्देश्य बना लेते हैं। आज समय के विकसित राष्ट्र रूस, अमेरिका, जापान, फ्रांस आदि इन्हीं उद्देश्यों को निर्धारित करके ही इस स्थिति तक पहुँच पाये हैं। माध्यमिक शिक्षा आयोग के अनुसार- शिक्षा का उद्देश्य तकनीकि प्रशिक्षण के लिए विस्तृत सुविधाएँ प्रदान करना होना चाहिए।

4. सामाजिक व आर्थिक दशायें- किसी भी देश की सामाजिक व आर्थिक दशा भी शिक्षा के उद्देश्य को निर्धारित करने में सक्षम होती है। हमारे राष्ट्र में भी सामाजिक व आर्थिक दशाएँ शोचनीय अवस्था में हैं, इसी कारण से हमारी सरकार ने इन्हें सुधारने का बीड़ा उठाया हुआ है। सामाजिक व आर्थिक संरचना का पुनरुद्धार करने के कारण प्रमुखतः शिक्षा का उद्देश्य ही है। शिक्षा इस प्रकार की होनी चाहिये कि वह आने वाली पीढ़ी को भावी प्रजातन्त्रात्मक सामाजिक व्यवस्था में तथा आर्थिक व्यवस्था में अपना स्थान सुनिश्चित करने का अवसर प्रदान कर सकें।

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