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विशिष्ट शिक्षा बनाम समावेशी शिक्षा | Special Education Vs Inclusive Education

विशिष्ट शिक्षा बनाम समावेशी शिक्षा | Special Education Vs Inclusive Education
विशिष्ट शिक्षा बनाम समावेशी शिक्षा | Special Education Vs Inclusive Education

विशिष्ट शिक्षा बनाम समावेशी शिक्षा का विवेचन कीजिए।

विशिष्ट शिक्षा उन बालकों की शिक्षा पर केन्द्रित है, जिनकी विशेषताएँ सब के जैसी न होकर अपने जैसी है। प्राचीन काल से निरयोग्य और विकलांग बालको को शिक्षा से दूर ही रखा गया है। यह सोचकर कि यह सामान्य बालक के साथ बैठकर अध्ययन नहीं कर सकते पर अब वर्तमान ने कहीं जाकर शिक्षा के सहारे अपना वर्चस्व स्थापित करने का प्रयाक कर रहे है। विशिष्ट शिक्षा ने निशिष्ट बालकों की शिक्षा में अत्यधिक महत्वपूर्ण योगदान दिया है। विशिष्ट शिक्षा अपना कार्य प्राथमिकता के स्तर पर ही करती है। यह विशिष्ट आवश्यकताओं वाले बालकों की विशिष्टता की पहचान करने में माता पिता अभिभावकों समाज की सहायता करती है। इस प्रकार विशिष्ट शिक्षा द्वारा की गई पहचान इन बालकों की शिक्षा को आसान बनाती है। शुरुआती समय में विशिष्ट मे अन्य और विशिष्टताएँ सम्मिलित कर ली जाती थी कहने का तात्पर्य यह है कि एक ही प्रकार के विशिष्ट बालकों के साथ और दूसरे अन्य प्रकार की विशिष्टता वाले बालकों को साथ बैठाकर शिक्षित करना लेकिन समय के साथ धीरे-धीरे जब विशिष्ट शिक्षा के देश में अलग-अलग स्थानो पर स्कूल खोले या स्थापित किय जाने लगे तो इससे एक यह लाभ और हुआ कि जो विद्यालय विशिष्ट शिक्षा हेतु खोले जा रह थे, उनमे इतनी विविधता थी कि वह विभिन्न विशिष्टताओं वाले बालकों को अपनी कक्षाओं में समा पाये हालांकि कुछ विद्यालय ऐसे थे जो अपनी ही तरह के थे दृष्टिहीन व्यक्तियों की शिक्षा हेतु 1887 मे विध्यालय का स्थापित होना मूक एवं बधिर व्यक्तियों के लिए 1988 में स्कूल की शुरुआत होना विशिष्ट शिक्षा के उदभव में एक बड़ा योगदान माना जा सकता है। धीरे- धीरे सरकार द्वारा भी विशिष्ट आवश्यकताओं को पूर्ण करने हेतु ठोस कदम उठाये जाने लगेछ पुस्तकालय की स्थुना और पुस्तको हेतु ब्रेल प्रेस की व्यवस्था सरकार की ओर से सहायता ही है। इसके अतिरिक्त जागरूकता कार्यक्रम चलाना विशिष्ट होने के कारणों की जल्दी पहचान व उपचार होना कौशलो के विकास पर जोर देना आत्म विश्वास जगाना आदि विशिष्ट शिक्षा के कार्य क्षेत्रों में से है।

हम सभी यह मानते हैं कि शिक्षा किसी भी देश के विकास की आधारशिला होती है। जिस पर समाज व राष्ट्र की उन्नति, एकता व अखण्डता निर्भर करती है। शिक्षा केवल व्यवसाय व जीवनयापन के लिए ही नहीं दी जाती बल्कि यह बच्चों में अनेक प्रकार के ज्ञानात्मक, सृजनात्मक नैतिक सहयोग समानता भावात्मकता आदि गुणों का भी विकास करती है। वर्तमान मे सर्वशिक्षा अभियान व शिक्षा का अधिकार जैसे कार्यक्रमों के अनुसार शिक्षा प्राप्त करना। प्रत्येक बच्चे का अधिकार हो गया है। ये कार्यक्रम तभी सफल हो सकते हैं। जब हम शिक्षा की है। इन भिन्नता वालो बालकों की शिक्षा के लिए आधुनिक विचारधारा यह नहीं है कि बालकों को विशेष शिक्षा प्रदान की जाय। अनेक शिक्षाविद इस प्रकार की शिक्षा के पक्ष में नहीं है। कुछ समय पूर्व तक इन विशिष्ट बालकों की शिक्षा पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जाता था। फिर इन बच्चों की शिक्षा के लिए विशिष्ट विद्यालय खुलने प्रारम्भ हुए। इन विद्यालयों को पृथक दृष्टि से देखा जाता था। तथा इनमें पढ़ने वाले बच्चों को भी पृथक दृष्टि से देखा जाता था इस दृष्टिकोण से ये बच्चे स्वयं को समाज से पृथक समझते हैं तथा उनमे हीनता की भावना आती है। वर्तमान में अनेक शिक्षाशास्त्रियों व वैज्ञानिकों ने यह विचार दिया कि समन्वित शिक्षा विद्यालयों में ही प्रदान की जाय जिससे की सभी को समान रूप से शिक्षा प्रदान की जा सके। एक ऐसे शिक्षा के समान अवसरों की बात कही ती है तो दूसरी ओर विशिष्ट बालकों के लिए पृथक विद्यालय की व्यवस्था करना यह प्रश्न सामने आता है। शिक्षा के समान अवसरों के लिए विशिष्ट बालकों को भी सामान्य विद्यालयों में शिक्षा प्रदान करना समावेशी शिक्षा है। हालाकि सामान्य विद्यालयों में सभी को शिक्षा देना एक कठिन कार्य अवश्य है। लेकिन असम्भव नहीं है।

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