B.Ed. / BTC/ D.EL.ED / M.Ed.

दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन | South Asian Association of Regional Co-operation, SAARC

दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन | South Asian Association of Regional Co-operation, SAARC
दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन | South Asian Association of Regional Co-operation, SAARC

दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन की विस्तृत विवेचना कीजिए।

दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (South Asian Association of Regional Co-operation, SAARC ) – दक्षिण एशियाई सहयोग संगठन की स्थापना 7-8 दिसम्बर 1985 को ढाका (बंग्ला देश) में एशिया के सात देशों के राष्ट्राध्यक्षों के एक सम्मेलन में सम्पन्न हुआ। बाद में अफगानिस्तान के जुड़ जाने से अब इस संगठन में निम्न आठ देश हैं- भारत, पाकिस्तान, बंग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, मालदीव एवं अफगानिस्तान हैं। यह दक्षिण एशिया के सात पड़ोसी देशों की विश्व राजनीति में क्षेत्रीय सहयोग की पहली शुरुआत है। सार्क (SAARC) की स्थापना के अवसर पर दक्षिण एशिया के इन नेताओं ने जो भाषण दिए इनमें आपसी सहयोग बढ़ाने एवं तनाव समाप्त पर बल दिया गया।

दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ के सदस्य देशों में लगभग 140 करोड़ लोग निवास करते हैं। इस दृष्टि से विश्व का सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला संघ है। यह क्षेत्र प्राकृतिक साधन, जनशक्ति एवं प्रतिभा से समपन्न हैं, परन्तु इन देशों की जनसंख्या गरीबी, अशिक्षा एवं कुपोषण की समस्या से पीड़ित हैं। भारत को छोड़कर इस क्षेत्र के अन्य देशों को खाद्यान्न का आयात करना होता है। मालदीव को छोड़कर संघ के शेष सदस्य (भारत, पाकिस्तान, बंग्लादेश, नेपाल, भूटान एवं श्रीलंका) भारतीय उपमहाद्वीप के हिस्से है। ये सभी देश इतिहास, भूगोल, धर्म एवं संस्कृति के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़े हैं।

सार्क का विकास शनैः शनैः हुआ। एशियाई देशों का क्षेत्रीय संगठन बनाने का विचार बंग्लादेश के पूर्व राष्ट्रपति जिया उर रहमान ने दिया था। उन्होंने 1977 से 1980 के मध्य भारत, पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका की यात्रा की, तत्पश्चात् उन्होंने एक दस्तावेज तैयार करवाया जिसमें नवम्बर, 1980 में आपसी सहयोग के लिए दस मुद्दे तय किए गए। कालान्तर में इसमें पर्यटन एवं संयुक्त उद्योग को निकाल दिया गया एवं इन्हीं में से चयनित मुद्दे आज भी ‘सार्क’ देशों के मध्य सहयोग का आधार हैं। सार्क के विदेश मंत्रियों की पहली बैठक नई दिल्ली में 1983 ई. में हुई जिसमें दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग की पहली औपचारिक घोषणा हुई। तत्पश्चात् ही दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन की स्थापान हुई तथा इसका संवैधानिक स्वरूप निश्चित किया गया।

सहयोग क्षेत्रों का निर्धारण- सार्क का मूल आधार क्षेत्रीय सहयोग पर बल देना है, अगस्त 1983 में ऐसे नौ क्षेत्रों को रेखांकित किया गया जो थे- कृषि, स्वास्थ्य सेवाएँ, मौसम, विज्ञान, डाक तार सेवाएँ, ग्रामीण विकास, विज्ञान तथा तकनीकी, दूर संचार और यातायात, खेलकूद एवं सांस्कृतिक सहयोग। दो वर्ष के बाद ढाका में इस सूची में कुछ और विषय शामिल किए गए। यथा आतंकवाद की समस्या, मादक द्रव्यों की तस्करी एवं क्षेत्रीय विकास में महिलाओं की भूमिका आदि।

सार्क का चार्टर एवं ढाका घोषणा- सार्क के चार्टर में 10 धाराएँ हैं। इसमें सार्क के उद्देश्यों, सिद्धान्तों एवं वित्तीय व्यवस्थाओं को परिभाषित किया गया, जो इस प्रकार हैं-

उद्देश्य- चार्टर के अनुच्छेद (1) के अनुसार सार्क के मुख्य उद्देश्य निम्न वर्णित हैं—

  1. दक्षिण एशियाई क्षेत्र की जनता के कल्याण एवं उनके जीवन स्तर में सुधार करना।
  2. दक्षिण एशिया के देशों की सामूहिक आत्म-निर्भरता में वृद्धि करना।
  3. आपसी विश्वास, सूझ-बूझ एवं एक-दूसरे की समस्याओं का मूल्यांकन करना।
  4. आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक, तकनीकी एवं वैज्ञानिक क्षेत्र में सक्रिय सहयोग एवं पारस्परिक सहायता में वृद्धि करना।
  5. क्षेत्र के आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास में तीव्रता लाना।
  6. अन्य विकासशील देशों के साथ सहयोग में वृद्धि करना।
  7. सामान्य हित के मामलों पर अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर आसानी सहयोग को सुदृढ़ करना ।

सिद्धान्त- चार्टर के अनुच्छेद 2 के अन्तर्गत सार्क के मुख्य सिद्धान्तों का उल्लेख किया गया है ये सिद्धान्त निम्नवत् हैं-

(1) संगठन क ढाँचे के अन्तर्गत सहयोग, समानता, क्षेत्रीय अखण्डता, राजनीतिक स्वतंत्रता, दूसरे देशों के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना आपसी लाभ के सिद्धान्तों का सम्मान करना।

(2) इस प्रकार का सहयोग द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय उत्तरदायित्वों का विरोधी नहीं होगा।

(3) इस प्रकार का सहयोग द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय सहयोग का स्थान नहीं लेगा बल्कि उनका पूरक होगा।

संस्थाएँ- चार्टर में “सार्क” की निम्नलिखित संस्थाओं का उल्लेख है-

(1) शिखर सम्मेलन- चार्टर के अनुच्छेद के अनुसार प्रतिवर्ष सार्क देशों का शिखर सम्मेलन आयोजित किया जाता है। शिखर सम्मेलन में सदस्य देशों के शासनाध्यक्ष भाग लेते हैं। पहला शिखर सम्मेलन बंग्लादेश की राजधानी ढाका में 7-8 दिसम्बर, 1985 दूसरा शिखर सम्मेलन भारत में बंगलौर में 16-17 म्बर 1986, तीसरा शिखर सम्मेलन नेपाल में, 1987 में, चौथा शिखर सम्मेलन पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में, पाँचवां शिखर सम्मेलन 1990 में मालदीव की राजधानी माले में, छठा शिखर सम्मेलन 1991 में श्रीलंका की राजधानी कोलम्बो में सम्पन्न हुआ।

इसी तरह से अभी तक 18 शिखर सम्मेलन आयोजित हो चुके हैं। अट्ठारहवाँ शिखर सम्मेलन वर्ष 2014 को 26-27 नवम्बर नेपाल (काठमांडू) में आयोजित किया गया। 19वाँ सार्क शिखर सम्मेलन पाकिस्तान के इस्लामाबाद शहर में आयोजित होना था किन्तु पाकिस्तान द्वारा उरी (जम्मू काश्मीर) में आतंकी हमले के कारण गुस्साए भारत ने सार्क सम्मेलन में हिस्सा न लेने का फैसला किया। भारत की इस पहल का पड़ोसी बंग्लादेश, भूटान एवं अफगानिस्तान ने भी समर्थन किया और “सम्मेलन का बहिष्कार करने का फैसला किया। ‘काठमांडू पोस्ट’ ने खबर दी कि सार्क सम्मेलन में भारत के हिस्सा न लेने के कारण मौजूदा स्थिति के मद्देनजर यह सार्क सम्मेलन स्थगित किया जाता है।

(2) मंत्रिपरिषद्- अनुच्छेद (4) के अनुसार यह सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों की परिषद् है। इसकी विशेष बैठक आवश्यकतानुसार किसी भी समय हो सकती हैं परन्तु माह में एक बैठक होना जरूरी है। इसके कार्य हैं- संघ की नीतियों को निर्धारित करना, सामान्य हित के मुद्दों के विषय में निर्णय करना, सहयोग के नये क्षेत्र खोजना आदि।

(3) स्थायी समिति- अनुच्छेद (5) के अनुसार यह सदस्य देशों के सचिवों की समिति है। इसकी बैठकें आवश्यकतानुसार किसी भी समय हो सकती हैं। किन्तु वर्ष में एक बैठक अनिवार्य हैं। इसके प्रमुख कार्य हैं- सहयोग के कार्यक्रमों को मॉनिटर करना, अन्तर क्षेत्रीय प्राथमिकताएँ निर्धारित करना, अध्ययन के आधार पर सहयोग के नए क्षेत्रों की पहचान करना आदि।

(4) तकनीकी समितियाँ- इनकी व्यवस्था चार्टर के अनुच्छेद (6) में हुई। इनमें सभी सदस्य देशों के प्रतिनिधि होते हैं। वे अपने-अपने क्षेत्र में कार्यक्रमों को लागू करने, उनमें समन्वय स्थापित करने एवं उन्हें मॉनिटर करने हेतु उत्तरदायी हैं।

(5) कार्यकारी समिति- चार्टर के अनुच्छेद (7) में कार्यकारी समिति के व्यवस्था की गयी हैं। इसकी स्थापना स्थायी समिति द्वारा की जा सकती है।

(6) सचिवालय- चार्टर के अनुच्छेद (8) में सचिवालय का प्रावधान है। इसकी स्थापना दूसरे सार्क सम्मेलन बंगलौर के बाद 16 जनवरी 1987 को की गयी। इसके महासचिव का कार्यकाल दो। वर्ष रखा गया है। महासचिव का पद सदस्यों में बारी-बारी से आता रहता है। सार्क सचिवालय को सात भागों में विभक्त किया गया है तथा प्रत्येक भाग के अध्यक्ष को निर्देशक कहा जाता है काठमाण्डू स्थित सार्क सचिवालय ने 2003 में श्रीलंका में एक सांस्कृतिक केन्द्र तथा मालदीव में तटीय प्रबन्ध केन्द्र की स्थापना की। दक्षिण एशिया के देशों के मध्य विकास और सहयोग की गतिविधियों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से अब तक सार्क के पाँच केन्द्र स्थापित किए जा चुके हैं। ढाका में कृषि एवं मौसम विज्ञान पर शोध के लिए दो अलग-अलग केन्द्रों की स्थापना की है जबकि नई दिल्ली में सार्क का एक शेष केन्द्र है।

(7) वित्तीय प्रावधान- सार्क के कार्यों को सम्पन्न करने के लिए प्रत्येक सदस्य के अंशदान को ऐच्छिक रखा गया है। कार्यक्रमों के व्यय को सदस्य देशों में विभाजित करने हेतु तकनीकी समिति की सिफारिशों का आश्रय लिया जाता है। सचिवालय के व्यय को पूरा करने हेतु सदस्य देशों के अंशदान को इस प्रकार निर्धारित किया गया है- भारत (32%), पाकिस्तान (25%), नेपाल, बंग्लादेश, श्रीलंका प्रत्येक का (11%) एवं मालदीव, भूटान का (5%) भाग सम्मिलित है।

दक्षेस (SAARC) की भूमिका का मूल्यांकन- सात देशों का क्षेत्रीय संगठन में आबद्ध होना जहाँ एक अच्छी बात है वहीं यह कहना एक तथ्य है कि ऐतिहासिक एवं भौगोलिक दृष्टि से म्यांमार (बर्मा) एवं अफगानिस्तान भी इस क्षेत्र के अविभाज्य अंग हैं एवं इसको समाहित किए बिना यह क्षेत्रीय एकात्मकता अधूरी है। सात देशों के मध्य यद्यपि राजनीतिक एवं सुरक्षा के विवादास्पद नये-पुरान उलझाव हैं, परन्तु आर्थिक विकास एवं सहयोग की अमिट सम्भावनाएँ हैं। दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन की स्थापना ऐसे समय में हुई है जबकि इसके कुछ सदस्य देशों के आपसी सम्बन्ध सामान्य नहीं थे लेकिन राजनीतिक विग्रह के बावजूद आर्थिक, व्यापारिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक सहयोग से आगे बढ़ने का संकल्प लिया गया।

आलोचकों के अनुसार दक्षेस के मार्ग में अनेक कठिनाइयाँ एवं बाधाएँ उत्पन्न होंगी जो इस क्षेत्र के राष्ट्रों को एकजुटता के प्रयत्नों की किसी भी समय ध्वस्त कर सकती हैं। आलोचक कहते हैं कि-

(1) दक्षिण एशिया की कोई पृथक पहचान ही नहीं है। अतः क्षेत्रीय सहयोग का यह प्रयत्न मृत शिशु की भाँति है। पाकिस्तान अपने आपको इस्लामिक मध्य पूर्व का अंग समझता है। दक्षिण एशिया का नहीं।

(2) सार्क के सदस्य राष्ट्रों में बहुत ज्यादा विविधता है। नेपाल एवं भूटान राजतंत्र हैं, बंगलादेश जनतंत्र की ओर उन्मुख हो रहा है। सार्क में तीन इस्लामिक देश हैं, दो बौद्ध हैं, एक हिन्दू एवं एक धर्म निरपेक्ष देश है। इन देशों की नीतियाँ एवं दृष्टिकोण भी एक-दूसरे के विपरीत हैं।

(3) सार्क के सदस्यों में भारत आकार, जनसंख्या एवं शक्ति की दृष्टि से “बिग ब्रदर” की स्थिति में है जिससे छोटे देशों में शंका एवं अविश्वास उत्पन्न हो सकता है।

(4) दक्षिण एशिया के राष्ट्र आज भी एक दूसरे से कटे हुए हैं। बंग्लादेश, आस्ट्रेलिया से लौह अयस्क मँगाता है जबकि झारखण्ड एवं उड़ीसा से उसे यह सस्ती दरों पर मिल सकता है।

(5) सार्क के सदस्य देशों में आपसी विवाद एवं संघर्ष के अनेक मुद्दे विद्यमान हैं भारत एवं पाकिस्तान में कश्मीर का मुद्दा क्षेत्रीय सहयोग के मार्ग में रुकावट डाल रहे हैं। पाकिस्तान तथा बंग्लादेश के बीच सम्पदा के बँटवारे पर और पाकिस्तानी बिहारियों के बंग्लादेश में शरणार्थी शिविरों में रहने पर मतभेद है।

आलोचकों के अनुसार पिछले 20-21 वर्षों में सार्क ‘कछुआ चाल’ ही चला है। यह न तो यूरोपीय साझा बाजार या आसियान की भाँति आर्थिक शक्ति ही बन पाया है और न ही अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी कोई राजनीतिक पहचान ही बना पाया है। ‘सार्क’ देश यदि आपसी हितों के आधार पर अपने अनुभवों तथा तकनीकी का आदान-प्रदान कर सकें एवं सदस्य देशों में उत्पादकता बढ़ाने हेतु साज-सामान एवं सेवा का लेन-देन होता रहे तो सामूहिक निर्भरता प्राप्त कर सकेंगे तथा महाशक्तियों के दबाव से बच सकेंगे।

Important Links

Disclaimer

Disclaimer: Sarkariguider.in does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment