यूनेस्को (UNESCO) के गठन, कार्यों एवं उपलब्धियों की स्पष्ट रूप से विवेचना कीजिए।
यूनेस्को (UNESCO) का गठन- संयुक्त राष्ट्र शिक्षा, विज्ञान एवं सांस्कृतिक संस्था जो यूनेस्को (UNESCO) के नाम से प्रसिद्ध है, संयुक्त राष्ट्र संघ का एक विशिष्ट अभिकरण है। यह अन्तर्राष्ट्रीय जगत में सांस्कृतिक गतिविधियों की सर्वप्रमुख और प्रतिनिधि संस्था है। इसकी स्थापना का उद्देश्य शिक्षा, विज्ञान एवं संस्कृति के माध्यम से राष्ट्रों के बीच परस्पर सहयोग के द्वारा शांति एवं सुरक्षा की स्थापना को प्रोत्साहन देना है। इस संस्था की स्थापना 4 नवम्बर 1946 ई. को हुई थी। परन्तु इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि इसके पूर्व इस क्षेत्र में अन्तर्राष्ट्रीय रंगमंच बिल्कुल खाली था। वैसे राष्ट्र संघ की संविदा में बौद्धिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों में सहयोग स्थापित करने हेतु कोई स्पष्ट विधान नहीं था, परन्तु सन् 1922 ई. में असम्बेली तथा कौंसिल के प्रस्ताव पर बौद्धिक सहयोग समिति की स्थापना की गयी। इस समिति के मुख्य तीन उद्देश्य थे-
- बुद्धिजीवियों की भौतिक स्थिति में सुधार
- विश्व भर के शिक्षकों, कलाकारों, वैज्ञानिकों, लेखकों एवं अन्य बुद्धिजीवियों के मध्य अन्तर्राष्ट्रीय संबंध एवं सम्पर्क स्थापित करना।
- बुद्धिजीवियों के सहयोग एवं संपर्क से विश्व शांति का पक्ष मजबूत करना।
कहना नहीं होगा कि ये तीनों उद्देश्य सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण थे। कतिपय यूरोपीय देशों में इनकी कुछ परम्परा भी थी। फ्रांस में फ्रांसीसी बुद्धिजीवी संघ प्रभावी एवं शक्तिशाली संस्था थी।
UNESCO के तीन प्रमुख अंग हैं-
(1) सामान्य सभा (2) कार्यकारिणी मण्डल (3) सचिवालय।
(1) सामान्य सभा- यह एक प्रमुख संस्था है, जिसमें इसके सभी सदस्य प्रतिनिधि होते हैं। इन सदस्यों का चुनाव शैक्षणिक वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संस्थाओं के परामर्श से किया जाता है। इस संस्था में प्रत्येक सदस्य देश अपना पाँच प्रतिनिधि रख सकता है।
(2) कार्यकारिणी मण्डल- इसे UNESCO का हृदय कहा जाता है। यह मण्डल यूनेस्को तथा सामान्य सभा में सम्मिलित सभी राज्य शासकों को प्रतिनिधित्व प्रदान करता है। कार्यकारी मण्डल, यूनेस्को की सर्वोच्च सत्ता (सामान्य सभा) एवं महानिदेशक के मार्गदर्शन का कार्य करता है एवं साथ ही सचिवालय के मध्य कड़ी का कार्य करता है। कार्यकारी मण्डल का निर्वाचन सामान्य सभा द्वारा होता है। इसकी वर्ष में कम से कम दो बार बैठकें अवश्य होती है। इसका कार्य सामान्य सभा द्वारा निर्धारित नीतियों एवं कार्यक्रमों को क्रियान्वित करना है।
(3) सचिवालय- इसको ‘विशेषज्ञों का आगार माना जाता है। सचिवालय में एक महानिदेशक तथा अन्य अधिकारी होते हैं। सचिवालय का प्रधान कार्यालय पेरिस में है एवं यह छः प्रमुख विभागों में विभाजित है- शिक्षा, प्राकृतिक विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, सांस्कृतिक कार्य, सामूहिक शिक्षा एवं प्रचार-साधन तथा प्राविधिक सहायता विभाग महानिदेशक की नियुक्ति कार्यकारी मण्डल द्वारा की जाती है।
यूनेस्को के उद्देश्य-
उच्च आदर्शों का महान् सिद्धान्तों की स्थापना हेतु UNESCO का प्रादुर्भाव हुआ। यूनेस्को के प्रस्ताव में उसका उद्देश्य निहित है। “युद्ध मनुष्यों के मस्तिष्कों में प्रारंभ होते हैं, अतः मनुष्यों के मस्तिष्कों में ही शांति की सुरक्षा हेतु व्यवस्था की जानी चाहिए।” सान्ति स्थापना हेतु एक नयाँ मार्ग एवं नया संदेश है। शांति स्थापना जो अभी तक राजनीतिज्ञों का विषय माना जाता था, UNESCO की स्थापना से यह शिक्षाशास्त्रियों एवं बुद्धिजीवियों के विचार का विषय बन गय है। यदि मनुष्य एक-दूसरे को ज्यादा से ज्यादा जानने का अवसर प्राप्त करते हैं तो संघर्ष की संभावनाएँ। कम होती जाती हैं। UNESCO के प्रस्ताव में स्पष्ट उल्लेख है कि, “मानव जाति के समस्त इतिहास में एक-दूसरे के जीवन एवं ढ़ंग के संबंध में अज्ञान सामान्यतः मानव-मानव के बीच संदेह एवं अविश्वास को उत्पन्न करता है और इन मतभेदों के परिणामस्वरूप ही युद्ध होते हैं।” शासकों के द्वारा लिए गए राजीतिक एवं आर्थिक समझौते ही शांति स्थापना के लिए पर्याप्त नहीं है बल्कि स्थायी शांति की स्थापना के लिए जरूरी यह है कि कि मानव जाति की बौद्धिक तथा नैतिक भावना को दृढ़ता के आधार पर निर्मित किया जाय। यूनेस्को द्वारा प्राप्त की जाने वाली शांति सेनाओं एवं आर्थिक समझौतों की शान्ति नहीं हैं, वरन वह मस्तिष्क एवं हृदय की शांति है। अन्तर्राष्ट्रीय शांति तथा मानव जाति के कल्याण हेतु UNESCO का निर्माण हुआ है। मानव जाति के सामान्य कल्याण का विकास करना उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना कि अन्तर्राष्ट्रीय शांति की स्थापना करना है। सत्य यह है कि मानव जाति के कल्याण से ही अन्तर्राष्ट्रीय शांति के लिए मार्ग प्रशस्त होता है।
यूनेस्को का उद्देश्य शांति एवं सुरक्षा हेतु योगदान करना है जिसकी पूर्ति हेतु शिक्षा विज्ञान तथा संस्कृति के द्वारा राष्ट्रों के मध्य निकटता की भावना का निर्माण करना जरूरी है। यह संस्था विभिन्न समुदायों में परस्पर ज्ञान एवं सद्भावना उत्पन्न करने में सहायक होती है। इसके द्वारा जन शिक्षा, संस्कृति, ज्ञान एवं मैत्री को प्रबल समर्थन मिलता है। यथार्थ में UNESCO का कार्य प्रेरणा एवं प्रोत्साहन देने का है न कि प्रत्यक्ष हस्तक्षेप का यूनेस्को किसी भी राष्ट्र के अन्तिम क्षेत्र में आने वाले विषयों पर हस्तक्षेप नहीं करता।
यूनेस्को के कार्य एवं उपलब्धियाँ
यूनेस्को के निम्नवत् कार्य एवं उपलब्धियाँ हैं-
(1) शिक्षा संबंधी कार्य- शिक्षा इस संस्था के सभी कार्यों का केन्द्रबिन्दु हैं। इस संस्था ने निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा के विकास हेतु अनेक उपाय प्रस्तुत किए हैं। नवस्वतंत्र राष्ट्रों को यूनेस्को से अत्यधिक सहयोग प्राप्त हो रहा है। UNESCO ने अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के विकास के दृष्टि से इतिहास, भूगोल एवं विदेशी भाषाओं के शिक्षण में सुधार करने के प्रयत्न किये हैं। अविकसित राष्ट्रों को UNESCO ने उच्च तकनीकी संस्थानों को स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण सहयोग प्रदान किया है। यूनेस्को ने बुनियादी शिक्षा कार्यक्रम पर भी ध्यान दिया है जिससे अज्ञान, निर्धनता एवं अव्यवस्था की सीमा को तोड़कर सर्वसाधारण व्यक्तियों को शिक्षत किया जा सके। बुनियादी शिक्षा के कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करने हेतु बुनियादी शिक्षा केन्द्र स्थापित किए गए हैं। राष्ट्रीय तथा क्षेत्र स्तर पर विचार गोष्ठियाँ आयोजित करके तथा विशेषज्ञों को भेजकर यूनेस्को में अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों को वयस्क शिक्षा सम्बन्धी कार्यक्रम विकसित करने में सहायता पहुँचाई है। बच्चों को विश्व समाज में रहने हेतु तैयार करना यूनेस्को ने अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना का विकास करने का प्रयास किया है। यूनेस्को का प्रयास है कि बच्चों के मस्तिष्क को मिथ्या राष्ट्रीय अभिमान, घृणा एवं पक्षपात की मनोवृत्तियों से दूर रखा जाए।
(2) साहित्य एवं कला संबंधी कार्य- UNESCO ने साहित्य, कला, संगीत, नाटक एवं लोक परम्पराओं को यथा उचित स्थान दिलाने का हर संभव प्रयास किया है। उसने मानव जाति की सांस्कृतिक धरोहर का उचित मूल्यांकन किया है। UNESCO द्वारा सदस्य राज्यों में विशेषज्ञों के दल भेजे गए हैं। एवं संग्रहालयों की लोकप्रियता बनाने हेतु अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा की गई है। सम्पत्ति की सुरक्षा तथा पुनर्निर्माण हेतु अन्तर्राष्ट्रीय अभियान चलाया गया है। UNESCO ने भारत, कोलम्बिया एवं नाइजीरिया में सार्वजनिक पुस्तकालयों की योजनाओं को सफल बनाकर पुस्तकालयों के विकास की प्रेरणा प्रदान की है। महाग्रंथों के अनुवाद, कलाकृतियों के प्रकाशन, संगीत की ध्वनिबद्धता, सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं का विनियम यूनेस्को की अभूतपूर्व उपलब्धि है। यूनेस्को ने विश्व में सद्भावना विकसित करके विश्व के सभी राष्ट्रों को निकट लाने का कार्य किया है। राष्ट्रों तथा संस्कृतियों की परस्पर निर्भरता को प्रमाणित करने के लिए मानव जाति के वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक इतिहास को 6 खण्डों में प्रकाशित किया जा रहा है।
(3) संस्कृति रक्षा सम्बन्धी कार्य- जैसे एक तथ्य है कि विभिन्न राष्ट्रों को समानता के आधार पर अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक दर्जा प्राप्त है, उसी तरह से यह भी वास्तविक है कि उनकी संस्कृतियों को भी समान रूप में सम्मान दिया गया है। एक बार उनकी स्वतंत्रता की मान्यता दिये जाने के बाद सभी देशों ने अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय के सहयोग की अपील करके अपनी संस्कृतिक विरासत को फिर से प्राप्त करने एवं उसके बचाव के उपाय करने शुरू कर दिए हैं।
मानव जाति की सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण करने के उद्देश्य से इस समय यूनेस्को के बीस से ज्यादा अन्तर्राष्ट्रीय अभियान आयोजन एवं क्रियान्वयन के विभिन्न चरणों में हैं। ये परियोजनाएँ विभिन्न महाद्वीपों में चल रही हैं एवं इनमें वेनिस, एक्रोपालिश ऑफ एथेंस, पाकिस्तान में स्थित 4500वर्ष पुराना भूमि के नीचे दबा हुआ मोहनजोदड़ो नगर, हायती स्थित दुर्ग एवं सेन्स सासी का महल, मोरक्को में फेज और सेनेगल में गोरीद्वीप शामिल हैं। सारी मानव जाति की धरोहर माने जाने वाले उत्कृष्ट स्मारकों का संरक्षण करने की विचारधारा सन् 1950 के दशक में शुरू हुई जबकि न्यूबिया के प्राचीन मन्दिरों को डूबने का खतरा बनने पर नील नदी पर आस्वान हाई बाँध बनाया गया था।
(4) ज्ञान एवं सद्भावना अभिवृद्धि संबंधी कार्य- यूनेस्को ने ज्ञान की अभिवृद्धि तथा अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के विकास के लिए विदेशों में अध्ययन, शैक्षिक यात्राएँ तथा अन्तर्राष्ट्रीय प्रशिक्षण जैसी प्रत्यक्ष पद्धतियों को अपनाया है। विदेशियों से व्यक्तिगत सम्बन्ध स्थापित करने से, विदेशों में जाकर रहने से, वहाँ के जीवन के व्यक्तिगत अनुभव से अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना एवं मानवीय एकता की भावना प्रबल होती है। यूनेस्को ने सदस्य राज्यों, संयुक्त राष्ट्र की विशिष्ट संस्थाओं तथा अशासकीय संस्थाओं के सहयोग से अनेक छात्रवृत्तियाँ एवं भ्रमण हेतु अनुदान प्रदान करने की व्यवस्था की गई है। नवोदित राष्ट्रों के औद्योगीकरण तथा उच्च तकनीकी प्रशिक्षण में यूनेस्को का योगदान अमूल्य माना जाता है। यूनेस्को के माध्यम से श्रमिकों, शिक्षकों एवं रूग्णों के अन्तर्राष्ट्रीय विनिमय को बहुत प्रोत्साहन मिला है।
(5) अनुसंधान सम्बन्धी कार्य- समुद्री, महासागरीय एवं तटीय क्षेत्रों में अनुसंधान कार्य विश्वभर में चल रहा है एवं समुद्री प्रदूषण का क्षेत्र भी शामिल हैं जिसमें भूकम्प के बारे में पूर्व चेतावनी देने से लेकर इंजीनियरी विज्ञानों का विकास करना, कम्प्यूटर विज्ञान से लेकर ऊर्जा के नये और बार बार काम में लाए जा सकने वाले साधनों के बारे में अध्ययन करने तथा जल विज्ञान से लेकर विभिन्न भू-विज्ञान तक के विषय शामिल हैं। इस प्रकार के अध्ययनों से प्राप्त होने वाले निष्कर्षों को सैकड़ों विशेष प्रकाशनों के माध्यम से विश्व के विज्ञान समुदाय तक या अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाया जाता है। ‘इम्पैक्ट ऑफ साइन्स ऑन सोसाइटी’ या ‘नेचर एण्ड रिसोर्सेज’ तथा इन्टरनेशनल सोशल साइन्स जर्नल ऐसे ही विशिष्ट प्रकाशनों में से हैं जो यूनेस्को की विभिन्न गतिविधियों में विभिन्न विज्ञानों के महत्त्व को दर्शाते हैं।
(6) प्राकृतिक एवं सामाजिक विज्ञानों संबंधी कार्य- यूनेस्को ने प्राकृतिक विज्ञानों तथा सामाजिक विज्ञानों के विकास पर बहुत अधिक ध्यान दिया है। यूनेस्को के माध्यम से वैज्ञानिक सहयोग की पृष्ठभूमि का उचित निर्माण हुआ है। यूनेस्को ने अणु केन्द्रीय शोध की यूरोपीय परिषद की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है। क्योंकि अणुशक्ति के क्षेत्र में कोई देश अकेला शोध के व्यय भार नहीं उठा सकता। यूनेस्को ने अन्तर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक संघ परिषद् को आर्थिक सहायता दी जिससे कि अन्तर्राष्ट्रीय भू-भौतिक वर्ष आयोजना के अन्तर्गत समस्त विश्व में वैज्ञानिक शोध के कार्यक्रमों को आरम्भ किया जा सके।
(7) मानवाधिकार तथा शान्ति सम्बन्धी कार्य- मानव अधिकार एवं शांति को प्रोत्साहन देने से सम्बन्धित कार्यक्रम UNESCO के सबसे महत्त्वपूर्ण कार्यक्रमों में से है एवं उसे समाज-विज्ञान कार्यक्रमों में महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है। गन्दी बस्ती में रहने वाले लोगों बाहर से आकर बसने वाले एवं शरणार्थियों जैसे अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों द्वारा जिन्हें आमतौर पर विभिन्न सुविधाएँ एवं अधिकार मुहैया नहीं है, मानव अधिकारों को इस्तेमाल करने में आने वाली रुकावटों का भी अध्ययन किया जा रहा हैं। मानव अधिकारों के क्षेत्र में यूनेस्को शुरू से ही जातिवाद एवं जातिवाद से सम्बन्धित सिद्धान्तों की भर्त्सना करता रहा है। सन् 1950 के दशक में युनेस्को के विभिन्न प्रकाशनों में इस सम्बन्ध में प्रकाशित की गई सामग्री से क्षुब्ध हो कर दक्षिणी अफ्रीका ने यह संगठन छोड़ दिया था। इस कार्यक्रम में युवकों एवं उनकी गतिविधियों के विभिन्न पहलुओं के बारे में सूचना का संकल्प करने, उनका प्रचार करने तथा विश्लेषण करने, विकास कार्यों में युवकों के योगदान को बढ़ावा देने, अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग एवं शान्ति व निःशस्त्रीकरण को बढ़ावा देना भी है।
(8) औद्योगिक एवं तकनीकी ज्ञान के सम्बन्ध में कार्य- UNESCO ने औद्योगीकरण तथा तकनीकी परिवर्तन के सामाजिक प्रभावों पर शोध को प्रोत्साहित किया है। विश्व के जिन क्षेत्रों का औद्योगीकरण हो रहा है, उनके सामाजिक परिवर्तन के ऊपर शोध कार्य हुआ है जिससे अफगानिस्तान, बर्मा, कम्बोडिया, श्रीलंका, भारत, इण्डोनेशिया, लाओस, मलाया, संघ, नेपाल, पाकिस्तान, फिलीपीन्स, सिंगापुर, ब्रिटिश बोर्नियो, थाईलैण्ड एवं वियतनाम आदि को लाभ मिला है।
(9) प्रचार सम्बन्धी कार्य- यूनेस्को ने प्रेस, रेडियो, फिल्म एवं टेलीविजन के विस्तार पर भी बल दिया है, जिससे समझौते की भावनाओं को विकसित किया जा सके। यूनेस्को ने सदस्य राष्ट्रों को आर्थिक सहायता दी है एवं विशेषज्ञ भेजे हैं ताकि वे अपने संचार साधनों को सुधार सकें। पत्रकारिता की उच्च शिक्षा हेतु यूनेस्को द्वारा अनेक साधन जुटाए गए हैं। सूचनाओं तथा विचारों के स्वतंत्रता पूर्वक आदान-प्रदान हेतु सब साधन उपलब्ध कराए जा रहे हैं। शीत युद्ध के प्रभाव के कारण जनसंचारण के क्षेत्र में यूनेस्को को उचित सफलता नहीं मिल सकी। असत्य प्रचार को रोकना कठिन हो रहा है। संयुक्त राष्ट्र के द्वारा कुछ ऐसे प्रभावशाली उपाय किए जाएँ जिससे विश्व में कटुता का वातावरण समाप्त हो जाए तथा विश्व के सभी क्षेत्र अपनी बौद्धिक उन्नति कर सकें एवं यूनेस्को के उद्देश्यों को सफलता से पूरा किया जा सके।
यूनेस्को की कमियाँ
यद्यपि यूनेस्को ने अनेक उपलब्धियाँ हासिल की हैं तथापि यह इसकी अनेक कमियाँ भी रही हैं। ये निम्नवत् हैं-
(1) प्रस्तावना में अत्यधिक महत्त्वाकांक्षाएँ व्यक्त की गई हैं जिनके पूर्व न होने से निराश एवं निरुत्साह का वातावरण उत्पन्न होता है।
(2) यूनेस्को का प्रशासकीय व्यय बढ़ता ही जा रही है। संस्था को इस क्षेत्र में मितव्ययिता से कार्य करना चाहिए। यूनेस्को की यह कह कर आलोचना की जाती है कि यह संस्था अधिकतर उपदेशात्मक कार्य करती है, उसका यह समस्त कार्य कागज पर ही सुशोभित होता है तथा उसके सब कार्यों में यथार्थ की जगह दिखावा ज्यादा है। आलोचकों का यह भी मत है कि यूनेस्को का कोई भी कार्य ठोस भूमिका पर आधारित नहीं रहता। आवश्यकता से ज्यादा यूनेस्को का कोई भी कार्य ठोस भूमिका पर आधारित नहीं रहता। आवश्यकता से ज्यादा सम्मेलन एवं विचार गोष्ठियाँ कोई परिणाम प्रस्तुत नहीं कर पाते। UNESCO के इतने ज्यादा प्रकाशन हो रहे हैं कि सर्वसाधारण को उन्हें पढ़ने का समय नहीं मिलता है।
(3) यूनेस्को को उसके विशाल कार्यक्षेत्र के अनुरूप पर्याप्त आर्थिक स्रोत प्रदान किए गए हैं। यह खेद की बात है कि सदस्य राज्य शस्त्र एवं सैन्य बल पर अरबों डॉलर प्रतिवर्ष व्यय करते हैं लेकिन उसका एक अंश भी शिक्षा, विज्ञान एवं संस्कृति के विकास के लिए खर्च नहीं करना चाहते।
(4) अन्तर्राष्ट्रीय गतिविधियों का भी कुप्रभाव यूनेस्को पर बिना पड़े नहीं रह सकता बड़ी शक्तियों के मध्य शीत युद्ध तथा तनाव का प्रभाव निश्चित रूप से यूनेस्को पर पड़ता है। यूनेस्को की सामान्य सभा में वाद-विवाद, शाब्दिक आक्रमण, दोषारोपण, प्रत्यादोषारोपण सदस्य राष्ट्रों के मध्य कटुता के वातावरण प्रकट करता है। यूनेस्को सम्मेलन में ऐसा प्रतीत होता है मानों शिक्षाविदों तथा वैज्ञानिकों की धारणा निर्माण की ओर से न होकर विघटन की ओर जा रही है।
(5) सदस्यों की ओर से संस्था को यथेष्ठ सहयोग न मिलना है। अनेक सदस्य राज्यों ने यूनेस्को के कार्यों में उत्तरदायित्वपूर्ण ढंग से भाग नहीं लिया एवं ऐसे राज्यों की संख्या और भी कम है जिन्होंने यूनेस्को द्वारा तय किए गए अन्तर्राष्ट्रीय समझौतों का अनुसमर्थन किया है। ऐसे राज्यों की जनसंख्या भी काफी है जो अपने आर्थिक अनुदान समय पर नहीं चुकाते।
(6) यूनेस्को के सचिवालय में एशिया तथा अफ्रीका को उचित मात्रा में प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया है। पश्चिमी यूरोप एवं अमेरिका को उनकी जनसंख्या के अनुपात से ज्यादा प्रतिनिधित्व दिया गया हैं। सचिवालय के स्थानों का भौगोलिक वितरण राज्यों द्वारा संस्था को दिये जाने वाले आर्थिक अनुदान से सम्बद्ध रखा जाता है जो एक अस्वस्थ परम्परा है।
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