संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्यों एवं सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्य- संयुक्त राष्ट्र चार्टर का अनुच्छेद-1 इसके उद्देश्यों की विस्तृत व्याख्या करता है। इस अनुच्छेद के अनुसार संयुक्त राष्ट्र संघ के अनेक उद्देश्य हैं, जिन्हें अनेक कार्यक्रमों द्वारा पूर्ण किया जाता है ये निम्न हैं-
(1) अन्तर्राष्ट्रीय शांति तथा सुरक्षा की रक्षा करना और इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए शांति विरोधी तत्त्वों के निवारण के लिए तथा आक्रमण सूचक कार्यों एवं शांति के अन्य अतिक्रमणों के दमन हेतु प्रभाव पूर्ण सामूहिक उपाय करना, और शांतिपूर्ण उपायों से अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों का निर्णय या समझौता करना, जिसमें शांति के भंग होने की आशंका हो ।
(2) सभी राष्ट्रों के बीच सब लोगों के बीच समान अधिकार और स्वाधीनता के सिद्धान्त पर आधारित मैत्रीपूर्ण संबंधों का विकास करना और विश्व शांति को सुदृढ़ बनाने के लिए उचित उपाय करना।
(3) अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा मानवतावादी समस्याओं के समाधान के लिए अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करना तथा जाति, भाषा, लिंग, धर्म का भेद किये बिना सबके लिए मानव अधिकारों एवं मौलिक स्वतंत्रताओं के सम्मान को बढ़ाना तथा उसे प्रोत्साहन देना ।।
(4) इन सामान्य उद्देश्यों की प्राप्ति के निमित्त विभिन्न राष्ट्रों के कार्यों में सामंजस्य उत्पन्न करने हेतु एक केन्द्रक का कार्य करना।
चार्टर की धारा 1 में संयुक्त राष्ट्र संघ के जिन उद्देश्यों का वर्णन किया गया है, उन्हें निम्नवत् शीर्षकों के अन्तर्गत रखा जा सकता है-
(1) शांति एवं सुरक्षा को कायम रखना-
संयुक्त राष्ट्रसंघ का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य विश्व शांति तथा सुरक्षा को बनाये रखना है। गुड्सपीड के मतानुसार, “यह संयुक्त राष्ट्रसंघ का प्रथम उद्देश्य है।” ऐसा यह सोचकर किया गया है कि कोई भी अन्तर्राष्ट्रीय संगठन अपने उद्देश्यों की प्राप्ति तब तक नहीं कर सकता जब तक विश्व में शांति एवं सुरक्षा का वातावरण न हो। अन्तर्राष्ट्रीय शांति सुरक्षा के वातावरण में ही वह अपने कार्यों का सफलतापूर्वक सम्पादन कर सकता है। इसलिए संयुक्त राष्ट्रसंघ के निर्माताओं ने संघ के उद्देश्यों की सूची में सर्वप्रथम स्थान शांति एवं सुरक्षा को प्रदान किया है। इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु कहा गया कि संघ शांति को भंग करने वाले भय को दूर करने का प्रयत्न करेगा। वह आक्रमण-सूचक कार्यों एवं शांति के अन्य अतिक्रमणों के दमन के लिए प्रभावपूर्ण सामूहिक कार्यवाही करेगा।
(2) मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों का विकास-
संयुक्त राष्ट्रसंघ का दूसरा उद्देश्य आत्मनिर्णय एवं समान अधिकारों के सिद्धान्तों के आधार पर सदस्य राज्यों के बीच मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध विकसित करना है। “शांति और सुव्यवस्था को कायम रखने के लिए राष्ट्र के बीच मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध होना बहुत ही आवश्यक है।” भय अनिश्चितता, संदेह तथा ईर्ष्या के वातावरण में किसी प्रकार की शांति संभव नहीं हो सकती है। वास्तविक शांति एवं सुरक्षा तभी स्थिर हो सकती है जबकि राष्ट्रों के बीच भय, आशंका और ईर्ष्या का अभाव हो।
किन्तु ‘सभी के समान अधिकार तथा आत्मनिर्णय’ के प्रसंग का अभिप्राय यह नहीं है कि संयुक्त राष्ट्रसंघ यथास्थिति में इन सिद्धान्तों के अनुरूप परिवर्तन लाने की गारंटी देता है। इसका अभिप्राय तो सिर्फ यह है कि इन सिद्धान्तों के प्रति सम्मान प्रस्तावित मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध के विकास का आधार होगा।
(3) अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग-
अन्तर्राष्ट्रीय शांति तथा सुरक्षा को स्थिर रखना संयुक्त राष्ट्रसंघ का राजनीतिक उद्देश्य कहा जा सकता है। कारण यह है कि इसका प्रत्यक्ष प्रभाव राष्ट्रों के पारस्परिक शक्ति संघर्ष पर पड़ता है। परन्तु इस राजनीतिक उद्देश्य की प्राप्ति सामाजिक अशांति एवं आर्थिक तथा सांस्कृतिक पिछड़ेपन के वातावरण में सम्भव नहीं है।
चार्टर की धारा-1, पैराग्राफ-3 में कहा गया है, “आर्थिक सामाजिक, सांस्कृतिक एवं मानवीय क्षेत्रों से सम्बद्ध अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं को समझाने में और अधिकारों तथा सभी की मौलिक स्वाधीनता के प्रति सम्मान की भावना का विकास करने में संयुक्त राष्ट्रसंघ सहयोग करेगा।”जाति, भाषा, लिंग व धर्म का भेद किये बिना सबके लिए मानव अधिकारों एवं स्वतंत्रता को उपलब्ध कराने के लिए प्रयास करेगा। इन क्षेत्रों में अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग स्थापित करने के उद्देश्य हेतु संघ के प्रमुख अंग के रूप में आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् की स्थापना की गयी है। इसके साथ-साथ अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संघ, विश्व स्वास्थ्य संगठन, विश्व बैंक आदि अनेक विशिष्ट अभिकरणों की स्थापना की गयी है। पुराने राष्ट्र संघ की संविदा में आर्थिक एवं सामाजिक सहयोग पर इतना अधिक जोर नहीं दिया गया था। इन कार्यों का सम्पादन समितियों एवं आयोगों को सौंपा गया था। इसके अलावा संयुक्त राष्ट्रसंघ के चार्टर में मानव अधिकारों का उल्लेख एक नयी बात है।
(4) सामंजस्य-
संयुक्त राष्ट्रसंघ का एक अन्य उद्देश्य उपर्युक्त उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु सदस्य ‘राज्यों के कार्यों में सामंजस्य स्थापित करने के लिए एक केन्द्र के रूप में कार्य करना है। यह संभव नहीं। है कि आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्र से सम्बद्ध सभी अन्तर्राष्ट्रीय कार्यों का सम्पादन संयुक्त राष्ट्रसंघ के द्वारा ही हो। संयुक्त राष्ट्र संघ के बाहर तथा उससे सम्बद्ध अनेक अभिकरण इन क्षेत्रों में कार्य करते हैं। उनके कार्यों में सामंजस्य स्थापित करना संयुक्त राष्ट्रसंघ का प्रमुख दायित्व है। संयुक्त राष्ट्रसंघ जैसे अन्तर्राष्ट्रीय संगठन हेतु यह कार्य काफी महत्व का है। इसके अभाव में संघ का कार्य सुचारु रूप से नहीं चल सकता।
संयुक्त राष्ट्रसंघ महान आदर्शों पर आधारित है। उनके आदर्श काफी आकर्षक तथा लुभावने हैं। उसके विभिन्न अंगों को कोई बंधनकारी शक्ति प्राप्त नहीं है। आम सभा, आर्थिक तथा सामाजिक परिषद, न्यास-परिषद् आदि इसके विभिन्न अंगों को सिर्फ सिफारिश करने का अधिकार प्राप्त है। उनके निर्णय बाध्यकारी नहीं होते। सिर्फ सुरक्षा परिषद् ही एक ऐसा अंग है जिसके निर्णयों को बाध्यकारी शक्ति प्राप्त है। यदि सुरक्षा परिषद् कोई निर्णय लेती है तो उसको मानना सदस्य राज्यों के लिए अनिवार्य है। परन्तु शीतयुद्ध एवं शक्ति राजनीति के कारण सुरक्षा परिषद कोई निर्णय ले ही नहीं पाती है। किन्तु हाल के वर्षों में अमरीकी एवं रूस के बीच नितांत सम्बंधों के विकसित होने से अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में शत्रुतापूर्ण युद्धरत स्थिति का अन्त हुआ है एवं पारस्परिक सहयोग के नूतन युग का सूत्रपात हुआ है।
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि इन आलोचनाओं में बहुत कुछ सच्चाई है परन्तु इसका अर्थ कदापि यह नहीं है कि संयुक्त राष्ट्रसंघ का चार्टर केवल उच्च आदशों की घोषणा मात्र है। व्यवहार में ऐसा देखा गया गया है कि संघ ने अपने आदशों की प्राप्ति में बहुत हद तक सफलता हासिल की है। अपनी कमियों के बावजूद यह एक उपयोगी संस्था साबित हुई हैं। यह ठीक है कि संयुक्त राष्ट्रसंघ पूर्णतया दोषमुक्त नहीं हैं परन्तु उन दोषों के रहते हुए भी संघ अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में सफल हो सकता है। यदि सदस्य राष्ट्र राष्ट्रवाद की संकुचित परिधि से ऊपर उठकर, अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टि से विचार करना शुरू करें। जी.डी.एच. कोल ने ठीक ही लिखा है- “जिस प्रकार प्रजातंत्र की सफलता जागरूक जनमत पर निर्भर हैं उसी प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों की सफलता विकसित अन्तर्राष्ट्रवाद की भावना पर आधारित है।” किन्तु दुर्भाग्यवश अभी भी मानव राष्ट्रवाद से ऊपर नहीं उठ पाया है। आज भी वह अपने राष्ट्रीय नारों तथा राष्ट्रीय प्रतीकों से प्रेरणा ग्रहण करता है। उसके समक्ष सम्पूर्ण मानव जाति का कोई ध्वज नहीं है। सिर्फ राष्ट्रीय ध्वज एवं राष्ट्रीय गीत ही उसे महान त्याग करने हेतु प्रेरित करते हैं। ऐसी स्थिति में किसी भी अन्तर्राष्ट्रीय संगठन से सफलता की आशा करना व्यर्थ है। संयुक्त राष्ट्र संघ की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि हम अपने मानसिक क्षितिज का ही परिवर्द्धन करें और संकुचित राष्ट्रीयता की अपेक्षा मानवता की भलाई के विषय में सोचना सीखें। संयुक्त राष्ट्र संघ अन्ततः विश्वास का प्रतीक है एवं यह तब तक अपने उद्देश्यों की उपलब्धि नहीं प्राप्त कर सकता जब तक यह विश्वास संकुचित राष्ट्रवाद के विचार से ज्यादा शक्तिशाली तथा दृढ़ न हो। डैग हैमर शोल्ड ने ठीक ही कहा है कि- “संयुक्त राष्ट्रसंघ विश्वास का प्रतीक है। यह आशा से अनुप्रमाणित करने का एक यंत्र है तथा विश्व के अनेक कोनों में कल्याणकारी कार्यों के लिए एक ढाँचे का कार्य करता है……. यह एक के द्वारा दूसरे को दिया गया उपहार नहीं है। यह एक सहकारिता (Sharing) है। एकता के नाम में एक सहकारिता जो हमारे मुक्त चयन की कोई वस्तु न होकर विश्व की अनिवार्यता है। “
संयुक्त राष्ट्र संघ के सिद्धान्त
संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणा पत्र को प्रभावित करने वाले आधारभूत 7 सिद्धान्त हैं। जो निम्न वर्णित हैं-
(1) संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना सदस्य राष्ट्रों की प्रभुसत्ता की समानता के आधार पर की गई है।
(2) संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी सदस्य ईमानदारी से घोषणा पत्र के अन्तर्गत निर्धारित दायित्वों कार पालन करेंगे ताकि उसके अन्तर्गत निर्धारित अधिकारों की उपलब्धि सभी को हो सके।
(3) संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी सदस्य देश अपने विवादों का समाधान शांतिपूर्ण ढंग से तथा इस प्रकार करेंगे कि अन्तर्राष्ट्रीय शांति, सुरक्षा एवं न्याय को किसी प्रकार भी खतरा न हो।
(4) सभी सदस्य राष्ट्र अपने अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के क्षेत्र में किसी भी राष्ट्र की राजनैतिक स्वतंत्रता तथा प्रभुसत्ता को आघात पहुँचाने वाला कार्य नहीं करेंगे। इसके साथ ही वे कोई ऐसा कार्य भी नहीं करेंगे जो संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणा-पत्र एवं उद्देश्यों के विपरीत या उससे असंगत हो।
(5) संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी सदस्य संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणा पत्र के अन्तर्गत लिए गये किसी कार्य के संदर्भ में सभी प्रकार की सहायता देंगे अर्थात् उस राष्ट्र की मदद नहीं करेंगे जिसके विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र संघ कोई विरोधात्मक या प्रतिरोधात्मक कार्यवाही कर रहा है।
(6) विश्वशांति या अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा हेतु अपेक्षित उद्देश्य से, संयुक्त राष्ट्र संघ इस बात का प्रयास करेगा कि वे सभी राष्ट्र जो संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य नहीं है, घोषणा पत्र के आधार पर आधारभूत सिद्धान्तों के अनुरूप कार्य कर रहे हैं।
(7) संयुक्त राष्ट्र संघ किसी भी राज्य के ऐसे मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा जो उसके आन्तरिक मामले हैं, न वह कोई भी ऐसा कार्य करेगा जिसको धमकी या दबाव कहा जा सके।
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