धार्मिक असामंजस्य/विभिन्नता | Religious Diversity in Hindi
धार्मिक असामंजस्य/विभिन्नता से आशय-धार्मिक असामंजस्य से आशय धार्मिक विभिन्नता से है। वस्तुतः समाज में धर्म से सामाजिक नियंत्रण स्थापित होता है तथा समाजिक एकता, एवं सामंजस्य भी स्थापित होता है। लेकिन एक से अधिक धर्मों के अनुयायियों का एक साथ रहने से उनमें कभी-कभी साम्प्रदायिक विवाद भी उत्पन्न हो जाता है। जिसके कारण विविध धर्म वाले समाज में धार्मिक असामंजस्य उत्पन्न हो जाता है तथा समाज की एकता खण्डित हो जाती है।
भारत प्राचीनकाल से ही विभिन्न धर्मों की भूमि रहा है। भारत के अतिरिक्त संसार में कोई भी देश ऐसा नहीं है, जहाँ धर्मों की विविधता एवं बहुलता के दर्शन होते हैं। भारत में एकाधिक धर्म और अनेक अनुयायी आज भी साथ-साथ रह रहे हैं। हिन्दू धर्म के अगणित रूपों एवं सम्प्रदायों के अतिरिक्त भारत में बौद्ध, जैन, मुस्लिम, ईसाई, सिख, पारसी, आदि धर्मों का भी प्रचलन है। इनमें से केवल हिन्दू धर्म के ही विविध सम्प्रदाय एवं मत सम्पूर्ण देश भर में फैले हैं। यथा- वैदिक धर्म, पौराणिक धर्म, सनातन धर्म, शैव धर्म, शाक्त धर्म, वैष्णव धर्म, नानकपंथ, आर्य समाज इत्यादि। इनमें से कुछ धर्म साकार ईश्वर की और कुछ निराकर ईश्वर की पूजा-आराधना करते हैं। कोई धर्म यज्ञ एवं बलि पर जोर देता है तो कोई धर्म अहिंसा का पुजारी है, किसी धर्म में शक्ति-मार्ग की तो किसी में भक्ति-मार्ग की और किसी में ज्ञान-मार्ग की प्रधानता देखी जाती है। भारत में मुख्यतः छ: धर्मों की प्रधानता पायी जाती है। यथा-हिन्दू, इस्लाम, ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन धर्म। इनके साथ-साथ पारसी, यहूदी और जनजातीय धर्मों को मानने वाले लोग भी पाये जाते हैं। भारत के प्रमुख धर्मों में भी विभिन्न मतमातान्तर विद्यमान हैं। यथा- हिन्दू धर्म में शैव, वैष्णव, शाक्त; मुसलमानों में शिया एवं सुन्नी; ईसाइयों में कैथोलिक एवं प्रोटेस्टेण्ट; सिखों में अकाली और निरंकारी; बौद्धों में हीनयान व महायान; जैनियों में श्वेताम्बर एवं दिगम्बर सम्प्रदाय। इनमें से प्रत्येक सम्प्रदाय की अनेक शाखायें एवं उपशाखायें हैं। हिन्दू, बौद्ध, जैन एवं सिख धर्म की जन्मस्थली भारत-भूमि है, जबकि इस्लाम, ईसाई पारसी एवं यहूदी धर्म विदेशों से आये हैं। इस प्रकार धार्मिक विभिन्नता के कारण भारत में धार्मिक असामंजस्यता का हाना स्वाभाविक बात हैं।
धार्मिक असामंजस्यता के कारण-
धार्मिक असामंजस्य के प्रमुख कारण हैं-
(1) ऐतिहासिक कारण- भारत का इतिहास गवाह है कि यहां शक, हूण, कुषाण, मुसलमान आदि के समय में भी साम्प्रदायिक तनाव रहा है। ब्रिटिश शासकों ने ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति अपना कर देश में 200 वर्षों तक शासन की तथा हिन्दुस्तान व पाकिस्तान का विभाजन भी इसी धार्मिक असामंजस्यता का ही परिणाम माना जाता है।
(2) धार्मिक कारण- हमारे देश में धार्मिक संगठन विभिन्न स्तरों पर पाये जाते हैं। ये धार्मिक संगठन अपने-अपने धर्मावलम्बियों की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के साथ-साथ उनकी भावनायें भड़काकर धार्मिक असामंजस्य की दशा उत्पन्न करते हैं। धार्मिक संगठनों द्वारा साम्प्रदायिक दंगों व संघर्षों को बढ़ावा देकर असामंजस्यता पैदा की जाती है।
(3) राजनीतिक कारण- हमारे देश में चुनावों में धार्मिक व जाति सम्बन्धी भावनाओं को भड़काकर मत प्राप्त किये जाते हैं। भारत में अनेक राजनैतिक दल साम्प्रदायिकता के आधार पर ही बने हैं। चुनावों में धार्मिक भावनायें भड़काये जाने से वर्ग-संघर्ष तथा असामंजस्यता की दशा उत्पन्न होती है।
(4) भौगोलिक कारण- धार्मिक भौगोलिक संकीर्ण विचारधारा के कारण असामंजस्यता व विवाद उत्पन्न होता है।
(5) असामाजिक तत्व- असामाजिक तत्वों द्वारा बसवों आदि पर आसमंजस्यता फैलायी जाती है।
(6) मनोवैज्ञानिक कारण- भारत में मुसलमान यह सोचते हैं कि हिन्दू उनका शोषण किया करते हैं। वे हिन्दुओं से डरते हैं, जिससे धार्मिक असामंजस्यता उत्पन्न होती है। असामंजस्यता का यह प्रमुख कारण है। हिन्दुओं द्वारा मुसलमानों की राष्ट्रीय निष्ठा पर संदेह किया जाता है जबकि बहुत से मुसलमान पाकिस्तान के विरुद्ध युद्ध में शहीद हो चुके हैं।
धार्मिक असामंजस्यता के दुष्परिणाम-
इसके प्रमुख दुष्परिणाम निम्नवत् हैं-
1. आर्थिक विकास में बाधक-धार्मिक असामंजस्यता के दुष्परिणाम स्वरूप धार्मिक गुटों में संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होती है, जिसके कारण मिलें, उद्योग आदि बन्द हो जाते हैं। पूँजीपतियों व श्रमिकों में विवाद उत्पन्न होता है। कुटीर उद्योग-धन्धे नष्ट हो जाते हैं जिससे देश को आर्थिक क्षति होती है जो आर्थिक विकास के लिए बाधक का कार्य करते हैं।
2. राष्ट्रीय स्तर पर विवाद- धार्मिक असामंजस्यता का दुष्परिणाम यह होता है कि राष्ट्रीय स्तर पर विवाद उत्पन्न होते हैं, जो देश के विकास तें बाधा उत्पन्न करती है। विनोबा भावे के अनुसार, “हिन्दू और मुसलमान आपस में लड़ कर यह सोचते हैं कि वे अपने धर्म को लाभ पहुँचा रहे हैं। परन्तु वास्तव में दोनों ही अपने धर्म को नष्ट कर रहे हैं। मैं यह भी मानता हूँ कि यह संघर्ष और हत्यायें धर्म की रक्षा नही करर्ती।”
3. राष्ट्रीय एकता में बाधक-धार्मिक अनुयायियों की राष्ट्रीय अलगाव की भावना से राष्ट्रीय एकता को खतरा पैदा होता है।
4. जान-माल की हानि- धार्मिक विवाद उत्पन्न होने की दशा में दंगें, आगजनी आदि की घटनायें होती हैं, जिससे धन-जन की हानि होती है, स्त्रियाँ विधवा व बच्चे अनाथ हो जाते हैं। महिलाओं के सम्मान को चोट पहुँचती है।
5. अन्य हानियाँ- उपरोक्त के अतिरिक्त धार्मिक असामंजस्यता के कुछ अन्य दुष्परिणाम भी प्राप्त होते हैं, जिनका वर्णन निम्नवत् है-
(1) देश में राजनैतिक अस्थिरता उत्पन्न हो जाती है,
(2) एकीकरण समाप्त हो जाता है,
(3) राष्ट्रीय जीवन असुरक्षित हो जाता है,
(4) देश में अराजकता वाली घटनायें तोड़-फोड़, आगजनी, लूट, मार-काट आदि की घटनायें बढ़ जाती हैं, आदि।
धार्मिक असामंजस्यता के निवारण हेतु सुझाव-
धार्मिक असामंजस्यता के दुष्परिणामों को देखते हुए इसके निवारण हेतु निम्नलिखित प्रयास किये जाने चाहिए, जैसे-
1.सुरक्षा व्यवस्था- सुरक्षा की व्यवस्था न होने के कारण लोग विभिन्न प्रकार के संगठन या दबाव गुट बनाते हैं जिनसे दंगे भड़कते हैं। यदि सुरक्षा की उचित व्यवस्था की जाय तो संगठनों तथा दंगों पर नियंत्रण किया जा सकता है।
2. चुनावों में धार्मिक मुद्दे न उठाना- चुनावों में धार्मिक बातों तथा धार्मिक मुद्दों को उठाने पर, प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिए। धार्मिक भावनाओं को भड़काने वाली भाषणबाजी बन्द होनी चाहिए।
3. साम्प्रदायिक संगठनों पर प्रतिबन्ध- धर्म, राजनीति, शिक्षा आदि आधारों पर भेदभाव करने वाले संगठनों पर रोक लगायी जानी चाहिए ताकि धार्मिक असामंजस्य को कम किया जा सके। ऐसे शब्दों का प्रयोग वर्जित होना चाहिए जिससे धार्मिक असामंजस्य फैल सकता है।
4. राष्ट्रीय एकता का प्रचार-प्रसार- देश में राष्ट्रीय भावना, राष्ट्रीय एकीकरण व राष्ट्रीय चरित्र-निर्माण का प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए। धार्मिक विवादों से होने वाले नुकसान लोगों को बताए जाने चाहिए।
5.शिक्षा-शिक्षा का अभाव अनेकों सामाजिक समस्याओं को जन्म देती है। अशिक्षित लोग, अन्धविश्वास व धार्मिकता का शिकार हो जाते हैं। प्रायः देखा जाता है कि शिक्षित समाज में साम्प्रदायिकता की भावना नहीं होती है वैसे यह अनिवार्य नियम नहीं है। राष्ट्रीय शिक्षा के माध्यम से साम्प्रदायिकता को रोका जा सकता है।
6. धार्मिक व साम्प्रदायिक साहित्य पर नियन्त्रण- धार्मिकता तथा साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देने वाले साहित्य पर रोक लगाना चाहिए परन्तु वास्तविक धार्मिक व साम्प्रदायिक साहित्य पर बंदिश नहीं होना चाहिए। इसके लिए मानसिक परिपक्वता की आवश्यकता है। वास्तव में समस्या उथले व सस्ते साहित्य से ही होती है।
7. राजनीतिक सुधार- साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देने में राजनीतिज्ञों का बहुत बड़ा हाथ है। कांग्रेस (आई) द्वारा “रामायण’ (दूरदर्शन सीरियल) के कलाकार अरुण गोविल को इलाहाबाद उपसंसदीय चुनाव में प्रचार के लिए ले आना, हिन्दू जनमानस की साम्प्रदायिक भावना को उत्तेजित करना था, इस प्रकार की गतिविधियों को त्यागना होगा। आज देश के समस्त राजनीतिक दल प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से सम्प्रदायवाद का सहारा लेते हैं, इसको त्यागना चाहिए।
8. नैतिक शिक्षा का प्रचार-प्रसार करना- बच्चों को स्कूली शिक्षा के अतिरिक्त नैतिक शिक्षा भी दी जानी चाहिए। नैतिक शिक्षा का प्रचार-प्रसार करना- बच्चों को स्कूली शिक्षा के अतिरिक्त नैतिक शिक्षा भी दी जानी चाहिए। नैतिक शिक्षा संकीर्णता, घृणा, पृथक्करण, द्वेष आदि को दूर करती है। बच्चों के आचार-व्यवहार में भी नैतिक शिक्षा से उदारता एवं खुलापन आता है।
9. दण्ड की व्यवस्था- धार्मिक भावनाओं को भड़काने वाले लोगों को कठोर दण्ड दिया जाना चाहिए। दोषी व्यक्तियों पर कार्यवाही की जानी चाहिए।
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