प्रजाति का अर्थ एवं परिभाषा लिखिए
प्रजाति का अर्थ एवं परिभाषाएँ – प्रजाति एक जैविक अवधारणा है। यह मानवों के उस समूह को प्रकट करती है जिनमें शारीरिक व मानसिक लक्षण समान होते हैं तथा वे लक्षण उन्हें पैतृकता के आधार पर प्राप्त होते हैं। शरीर के रंग, खोपड़ी और नासिका की बनावट व अन्य अंगों की बनावट के आधार पर विभिन्न प्रजाति समूहों को देखते ही पहचाना जा सकता है। प्रजातीय दृष्टि से भी भारतीय समाज अनेक वर्गों में विभक्त हो गया है। भारतवर्ष में संसार की सभी प्रमुख प्रजातियों की विशेषताओं वाले लोग पाए जाते हैं। रिजले के अनुसार भारतीय प्रायद्वीप में वर्तमान में सात प्रमुख प्रजातियाँ निवास करती है जिनमें शारीरिक दृष्टि से अन्तर पाया जाता है। ये प्रजातियाँ हैं- द्रावेडियन, इण्डो-आर्यन, मंगोलॉयड, इण्डो-द्रावेडियन, मंगाल-द्रावेडियन, सीरियन एवं टर्की-ईरानियन। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि आदिकाल से ही भारत विभिन्न प्रजातियों का निवास स्थल रहा है। तभी से सभी का अपना अलग-अलग अस्तित्व भी रहा है। शारीरिक दृष्टि से विभिन्न प्रजातियाँ परस्पर एक-दूसरे से अमेरिका आदि अलग-अलग रही हैं, परन्तु सभी लोग एक-दूसरे का अस्तित्व मानते रहे हैं। परन्तु की तरह यहाँ कभी भी रंगभेद पर आधारित प्रजातीय संघर्ष देखने को नहीं मिलता है।
यद्यपि यह सच है कि आज प्रजातिवाद की समस्या भारत के सामने नहीं हैं परन्तु प्राचीन समय से लेकर आज तक मनुष्य का रंग अर्थात् वर्ण एक सामाजिक महत्व का विषय रहा है। वैदिक काल में दास, दस्यु, असुर, राक्षस सभी काले वर्ण के थे जबकि देवता, आर्य, श्रेष्ठजन सभी गौर वर्ण के थे। आज भी वैवाहिक विज्ञापनों में गौर वर्ण वधु की माँग की जाती है। गोरा रंग सौन्दर्य, शान्ति एवं पवित्रता का प्रतीक है।
प्रजाति का अर्थ एवं परिभाषाएँ
प्रजाति जैविक अवधारणा है जिसका प्रयोग सामान्यत: उस वर्ग के लिए किया जाता है। जिसके अन्दर सामान्य गुण हैं अथवा कुछ गुणों द्वारा शारीरिक लक्षणों से समानता पाई जाती है।
प्रमुख विद्वानों ने प्रजाति की परिभाषा इस प्रकार से की है-
(1) हॉबेल के अनुसार- “प्रजाति एक प्राणिशास्त्रीय अवधारणा है। यह वह समूह है जो कि शारीरिक विशेषताओं का विशिष्ट योग धारण करता है।
(2) रेमण्ड फिर्थ के अनुसार- “प्रजाति व्यक्तियों का वह समूह है जिसके कुछ वंशानुक्रमण द्वारा निर्धारित सामान्य लक्षण हैं।”
(3) क्रोबर के अनुसार- “प्रजाति एक प्रमाणित प्राणिशास्त्रीय अवधारणा है। यह वह समूह है जो कि वंशानुक्रमण, नस्ल या प्रजातीय गुणों या उपजातियों के द्वारा जुड़ा है।
(4) बेनेडिक्ट के अनुसार- “प्रजाति पैतृकता द्वारा प्राप्त लक्षणों पर आधारित एक वर्गीकरण है।”
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट हो जाता है कि प्रजाति व्यक्तियों का एक ऐसा समूह है जिसे आनुवांशिक शारीरिक लक्षणों के आधार पर पहचाना जा सकता है।
प्रजाति की विशेषताएँ
विभिन्न परिभाषाओं के आधार पर प्रजाति की निम्नलिखित विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं-
(1) प्रजाति का अर्थ जन-समूह से होता है। अत: इसमें पशुओं की नस्लों को सम्मिलित नहीं किया जाता है।
(2) इस मानव समूह से तात्पर्य कुछ व्यक्तियों से नहीं है वरन् प्रजाति में मनुष्यों का वृहत् संख्या में होना अनिवार्य है।
(3) इस मानव समूह में एक-समान शारीरिक लक्षणों का होना अनिवार्य है। ये लक्षण वंशानुक्रमण के द्वारा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होते रहते हैं। शारीरिक लक्षणों के आधार पर इन्हें दूसरी प्रजातियों से पृथक् किया जाता है।
(4) प्रजातीय विशेषताएँ प्रजातीय शुद्धता की स्थिति में अपेक्षाकृत स्थायी होती हैं अर्थात् भौगोलिक पर्यावरण के बदलने से भी किसी प्रजाति के मूल शारीरिक लक्षण नहीं बदलते हैं।
प्रजाति के तत्व
प्रजाति कुछ विशेष तत्वों से मिलकर बनती है। यह विशेष तत्व उसके अस्तित्व को दूसरी प्रजातियों से भिन्न करते हैं। इन विशेष तत्वों के आधार पर ही प्रजाति का वर्गीकरण होता है। सामान्य रूप से प्रजातियों में भी तीन प्रकार के तत्व पाए जाते हैं-
(1) अन्तर्नस्ल के तत्व।
(2) विशेष शारीरिक लक्षणों के तत्व,तथा
(3) वंशानुक्रमण के लक्षणों के तत्व।
(1) अन्तर्नस्ल के तत्व- एक प्रजाति के लोग दूसरी प्रजाति के लोगों से विवाह नहीं करते हैं। इसका कारण पहले काफी सीमा पर भौगोलिक स्थिति रहा है। भौगोलिक स्थितियों के कारण एक प्रजाति के लोग दूसरों से कम मिल पाते हैं। दूसरे प्रत्येक प्रजाति स्थायित्व रखने का प्रयत्न करती है। गतिशीलता के अभाव में अन्तर्नस्ल का तत्व उग्र रूप से पाया जाता है, जैसे टुण्ड्रा प्रदेश के लैप, सेमीयड और एस्कीमों मानव। इनमें अन्तर्ग्रजातीय विवाह होता है। यही कारण है कि अन्तर्नस्ल के तत्व उग्र रूप से मिलते हैं। इस प्रकार के विवाह से रक्त की शुद्धता, संस्कृति की रक्षा तथा समान प्रजातीय लक्षणों का स्थायित्व होता है। ऊँची प्रजातियाँ भी अपनी रक्त की पवित्रता को बनाए रखने के लिए अन्तर्प्रजातीय विवाह करती है।
(2) विशेष शारीरिक लक्षणों के तत्व- प्रजातियों का वर्गीकरण शारीरिक लक्षणों के आधार पर भी किया जाता है। प्रत्येक प्रजाति में कुछ विशेष शारीरिक लक्षण पाए जाते हैं, जैसे शरीर का रंग, बाल, आँख, खोपड़ी, नासिका, कद जबड़ों की बनावट आदि। वर्तमान समय में यातायात के साधनों में वृद्धि होने से शारीरिक लक्षण धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं।
(3) वंशानुक्रमण के लक्षणों के तत्व- मैण्डल के सिद्धान्त से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि सहवास से रक्त में उन्हीं कीटाणुओं का अस्तित्व होता है जो पैतृक होते हैं या वंश परम्परा से चले आ रहे हैं। शारीरिक लक्षण एक श्रृंखला के समान होते है जो वंश परम्परा के कारण अनेक पीढ़ियों तक चलते हैं, जैसा कि नीग्रो का पुत्र नीग्रो होता है। वह कभी भी श्वेत प्रजाति के लक्षणों से युक्त नहीं होता है। प्रजाति की पवित्रता और संस्कृति की रक्षा पैतृक गुणों के द्वारा ही होती है।
- परामर्शदाता के शिक्षा सम्बन्धी उत्तरदायित्व | Educational Responsibilities of the Counselor in Hindi
- परामर्शदाता की विशेषताएँ | Characteristics of the Consultant in Hindi
- माता-पिता की परामर्श कार्यक्रम में भूमिका | The Role of Parents as a Counsellor in Hindi
- प्रधानाचार्य की परामर्शदाता के रूप में भूमिका | Role of the Principal as a Counselor in Hindi
- विद्यालय छात्रालयाध्यक्ष अर्थ एवं उसके गुण
- छात्रालयाध्यक्ष के कर्तव्य (Duties of Hostel warden)
- अभिवृत्ति का अर्थ और परिभाषा | Meaning and Definition of Attitude in Hindi
- अभिवृत्ति मापन की प्रविधियाँ | Techniques of Attitude Measurement in Hindi
- अभिक्षमता परीक्षण क्या है? | Aptitude Test in Hindi
- बुद्धि का अर्थ और परिभाषा | Meaning and Definition of Intelligence in Hindi
- बुद्धि के प्रमुख सिद्धान्त|Theories of Intelligence in Hindi
- बुद्धि परीक्षण – बुद्धि परीक्षणों के प्रकार, गुण, दोष, उपयोगिता – Buddhi Parikshan
- बुद्धि-लब्धि – बुद्धि लब्धि एवं बुद्धि का मापन – Buddhi Labdhi
इसे भी पढ़े ….
- निर्देशात्मक परामर्श- मूलभूत अवधारणाएँ, सोपान, विशेषताएं, गुण व दोष
- परामर्श के विविध तरीकों पर प्रकाश डालिए | Various methods of counseling in Hindi
- परामर्श के विविध स्तर | Different Levels of Counseling in Hindi
- परामर्श के लक्ष्य या उद्देश्य का विस्तार में वर्णन कीजिए।
- परामर्श का अर्थ, परिभाषा और प्रकृति | Meaning, Definition and Nature of Counselling in Hindi
- विद्यालय निर्देशन सेवा संगठन सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
- विद्यालय निर्देशन सेवा संगठन के क्षेत्र का विस्तार में वर्णन कीजिए।
- विद्यालय में निर्देशन प्रक्रिया एवं कार्यक्रम संगठन का विश्लेषण कीजिए।
- परामर्श और निर्देशन में अंतर
- विद्यालय निर्देशन सेवाओं के संगठन के आधार अथवा मूल तत्त्व
- निर्देशन प्रोग्राम | निर्देशन कार्य-विधि या विद्यालय निर्देशन सेवा का संगठन
- विद्यालय निर्देशन सेवा संगठन का अर्थ, परिभाषा, आवश्यकता एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
- निर्देशन का अर्थ, परिभाषा, तथा प्रकृति
- विद्यालय में निर्देशन सेवाओं के लिए सूचनाओं के प्रकार बताइए|
- वर्तमान भारत में निर्देशन सेवाओं की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
- निर्देशन का क्षेत्र और आवश्यकता
- शैक्षिक दृष्टिकोण से निर्देशन का महत्व
- व्यक्तिगत निर्देशन (Personal Guidance) क्या हैं?
- व्यावसायिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? व्यावसायिक निर्देशन की परिभाषा दीजिए।
- वृत्तिक सम्मेलन का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसकी क्रिया विधि का वर्णन कीजिए।
- व्यावसायिक निर्देशन की आवश्कता | Needs of Vocational Guidance in Education
- शैक्षिक निर्देशन के स्तर | Different Levels of Educational Guidance in Hindi
- शैक्षिक निर्देशन के उद्देश्य एवं आवश्यकता |
- शैक्षिक निर्देशन का अर्थ एवं परिभाषा | क्षेत्र के आधार पर निर्देशन के प्रकार
- शिक्षण की विधियाँ – Methods of Teaching in Hindi
- शिक्षण प्रतिमान क्या है ? What is The Teaching Model in Hindi ?