व्यक्तिगत निर्देशन की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
व्यक्तिगत निर्देशन की आवश्यकता-
1. पारस्परिक तनावों को कम करने के लिये- आज के समय में व्यक्तियों की आवश्यकताओं, अपेक्षाओं और प्रतिस्पर्धाओं में जो तीव्रता से विकास हुआ है उसे सरलता से देखा जा सकता है। इस सारे बदलाव के कारण आपसी रिश्तों को सौहार्दपूर्ण बनाये रखना बहुत कठिन होता जा रहा है और व्यक्ति खुद को लाभ पहुंचाने के लिए दूसरों का अहित करता चला जाता है। इस प्रकार की स्थिति और कार्यों से व्यक्ति को अलग करने के लिए व्यक्तिगत निर्देशन का प्रभावशाली उपयोग किया जा सकता है।
2. व्यक्तिगत कौशलों का विकास करने के लिये- जिस प्रकार से शैक्षिक और व्यावसायिक जीवन में अनेक प्रकार के कौशलों की जरूरत होती है। उसी तरह से व्यक्तिगत जीवन में भी तमाम कौशलों की जरूरत पड़ती है। इस व्यक्तिगत कौशलों का विकास करके शैक्षिक तथा व्यावसायिक उपलब्धियों की गति में भी वृद्धि की जा सकती है।कैसे हम अपने स्वास्थ्य को अच्छा रखे। कैसे अपने लक्ष्यों और रोज की दिनचर्या का निर्धारण करें, और अपने मित्रों, अभिभावकों,बालकों, गुरुजनों, पड़ोसियों के साथ कैसे व्यवहार करें तथा यह सब कैसे करें आदि से सम्बन्ध रखने वाले कौशलों का विकास होने की स्थिति में हमारी जीवन धारा अधिक सहज गति से प्रभावित होने लगती है। व्यक्तिगत निर्देशन के द्वारा इस उद्देश्य को प्राप्त करने में सहायता दी जा सकती है।
3. व्यक्तिगत समस्याओं के सम्बन्ध में सही निर्णय लेने के लिये- हर व्यक्ति के जीवन में निर्णय लेने की क्षमता का बहुत महत्व होता है। वह व्यक्ति जो अपने व्यक्तिगत जीवन से सम्बन्धित समस्याओं के विषय में निर्णय लेने में दक्ष होता है। वह अपने जीवन में अधिक प्रगति और सफलता पा सकता है। इसी कारण इस क्षमता का विकास तो बचपन से ही किया जाना चाहिए। इसके लिये व्यक्ति को यह बताया जा सकता है कि उससे किस तरह की क्षमता, योग्यता, समय और साधनों के विषय में निर्णय लेना चाहिए और ऐसा निर्णय लेते समय किस मानसिक प्रक्रिया का प्रयोग करना चाहिए।
4. व्यक्तिगत जीवन में सुख, शान्ति और सन्तोष का विकास करने के लिये- हर व्यक्ति की यह इच्छा होती है कि उसके जीवन में अधिक से अधिक सुख, शान्ति और सन्तोष हो। यह प्रायः देखा जाता है कि जीवन में बहुत कुछ पा लेने के बाद भी व्यक्तियों में सन्तोष नहीं आता है और व्यक्ति जीवन भर कुछ न कुछ अधिक पाने के लिए तनावग्रस्त बना रहता है। इस स्थिति के कारण जो है उसका सुख भी वह भोग नहीं पाता है और अशान्त रहता है।
ऐसा नहीं है कि सुख, शान्ति या संतोष को पाना असम्भव है। यह सम्भव है लेकिन इसके लिये आत्मबोध का विकास आवश्यक है। हम प्रायः इस आत्मबोध से वंचित रहते हैं। व्यक्तिगत निर्देशन की सहायता से व्यक्ति में इसी आत्मबोध का विकास किया जाता है।
5. व्यक्तिगत समायोजन की क्षमता का विकास करना- आज के सामाजिक परिवेश में व्यक्तिगत समायोजन क्षमता अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह क्षमता उन सम्बन्धों को प्रभावित करती है जो परिवार, समाज और समुदायों के द्वारा बनाये जाते हैं। व्यक्ति के निजी और भावी जीवन को ध्यान में रखते हुए भी यह क्षमता अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
अपने और दूसरे व्यक्तियों के बीच मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाये रखना और ऐसे सम्बन्धों की स्थापना करना इस योग्यता की कसौटी होती है। अतः यह जरूरी हो जाता है कि अपना और समाज का तथा समाज के सदस्यों का सही अध्ययन और मूल्यांकन किया जाय।
इस योग्यता का व्यक्ति की शैक्षिक और व्यावसायिक उपलब्धियों से भी गहरा सम्बन्ध होता है। ऐसे व्यक्ति जो अपने परिवार, समाज, या समुदाय में समायोजित नहीं हो पाते हैं। वह अपने विद्यालयी जीवन और व्यावसायिक क्षेत्र में भी किसी न किसी प्रकार से असमायोजि रहते हैं।
6. पारिवारिक और व्यावसायिक जीवन में सामंजस्य स्थापित करने के लिये- व्यावसायिक जीवन पर व्यक्ति पारिवारिक परिस्थितियों का स्पष्ट प्रभाव पड़ता है। जो व्यक्ति अपने परिवार में समायोजन नहीं कर पाता और परिवार के सदस्यों से असन्तुष्ट है तो यह निश्चित है कि व्यावसायिक क्षेत्र मकामकरते हुए भी वह अपनी पारिवारिक स्थितियों या परिस्थितियों के बारे में सोचता रहेगा। इस स्थिति से जो चिन्ता, निराशा, असन्तोष, खिन्नता और विरक्ति का प्रभाव उत्पन्न होता है। इसका दूषित प्रभाव उसके साथियों के साथ बनाये गये सम्बन्धों पर भी पड़ेगा। इसी प्रकार व्यावसायिक जीवन पर भी निराशा, असन्तोष, उग्रता का जो प्रभाव पड़ा है यह पारिवारिक जीवन में भी पड़ेगा। इसीलिये व्यक्तिगत निर्देशन की सहायता से व्यावसायिक और पारिवारिक जीवन में समन्वय स्थापित करने के लिये सहायता की जा सकती है।
पूर्व प्राथमिक स्तर –
व्यक्ति के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण अवस्था शैशावस्था होती है। इस अवस्था में जो भी आदतें डाली जाती हैं वह तब तक बनी रहती हैं जब तक व्यक्ति जीवित रहता है। बालक जो भी इस अवस्था में अपने परिवार और स्कूल में सीखता है उसी में बालक के भविष्य का अध्ययन करके व्यक्तिगत बातों का निर्देशन दिया जा सकता है।
अपने मित्रों के साथ मिलकर सहयोग पूर्वक खेलने तथा पने संवेगों पर नियन्त्रण रखने का निर्देशन भी पूर्व प्राथमिक स्तर पर प्रदान किया जा सकता है-
इसलिये इस स्तर पर व्यक्तिगत निर्देशन का उद्देश्य बालकों को निम्नलिखित बातों को सीखने में सहायता देता है-
1. कविता तथा कहानी सुनाकर बालकों को उनकी अभिव्यक्ति के लिए अवसर की व्यवस्था या उपलब्धता कराने में योगदान देना।
2. उत्तरदायित्व निभाने की भावना का बालकों में विकास करना, जैसे-खिलौनों को उचित जगह पर रखना। अपने चारों ओर के वातावरण का सही मूल्यांकन करने के लिये निर्देशन द्वारा सहायता दी जानी चाहिए।
3. बालकों को अपना स्वयं का मूल्यांकन करने के लिये भी निर्देशन द्वारा सहायता दी जानी चाहिए।
4. मनावैज्ञानिक आधार पर बालकों के लिये खेल-खिलौनों की व्यवस्था करना बहुत महत्वपूर्ण है। क्योंकि खेल के माध्यम से बच्चों में सहयोग की भावना का विकास करने, नेतृत्व की भावना विकसित करने और भावात्मक नियन्त्रण का प्रशिक्षण देने के लिए अवसर उपलब्ध होते हैं।
5. अपने स्वास्थ्य की देख-रेख करने में बच्चों को सहायता देना।
6. अच्छी आदतों का विकास करने में बच्चों की मदद करना।
7. समय से खाना खाने, समय से सोने, साफ सुथरा रहने तथा सरल स्वभाव को विकसित करने में सहायता देना।
8.क्रोध को रोकने की आदत बनाना, अपने हाथ काम करना, गीतों का अनुकरण करना आदि की आवश्यकता में निर्देश सहयोग दे सकता है।
9. दूसरों की बातों को ध्यानपूर्वक सुनना, पालतू जानवर की देखभाल करना, जाने कपड़ों की देखभाल करना आदि के लिए निर्देशन देना जरूरी हो जाता है।
10. एक दूसरे से मिलना, अपने अनुभवों का आदान-प्रदान करना, अनुयायी के रूप में समूह में उत्तरदायित्व की भावना को निभाना तथा ईमानदारी की भावना का प्रदर्शन करना।
प्राथमिक स्तर –
व्यक्तिगत निर्देशन का स्वरूप प्राथमिक स्तर पर बच्चों की जरूरतों को ध्यान में रखकर किया जा सकता है।
इस स्तर में ज्यादातर बच्चे 6 से 11 वर्ग की उम्र के बीच के होते हैं। अतः बालकों की जो विशिष्टता होती है। उसका ध्यान इस स्तर पर जरूर रखा जाना चाहिए।
निम्न प्रकार से प्राथमिक स्तर पर निर्देशन का प्रयोजन हो सकता है-
1. व्यावसायिक कौशल- विश्व के कामों की सामान्य जानकारी।
2. अवकाश के समय के क्रियाकलाप – ये व्यक्तिगत रुचियों तथा मनोरंजन से सम्बन्धित होते हैं।
3. अनुशासन- प्रेमपूर्ण तथा सुदृढ़ आत्म-अनुशासन की ओर उन्नति।
4. मित्रों और समाज की स्वीकृति की इच्छा- यह बालकों एवं प्रौढ़ों के बीच अधिगम और अवबोध की योग्यता के अनुसार होता है।
5.उत्तम स्वास्थ्य- पर्याप्त तथा सन्तुलित भोजन, आपेक्षित नींद और आराम।
6. आधारभूत कौशलों की जानकारी- अधिगत तथा अवबोध की योग्यता के अनुसार।
बच्चों की उपर्युक्त आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर ही इस स्तर पर व्यक्तिगत निर्देशन की व्यवस्था होनी चाहिए। इसके अलावा भी निर्देशन के प्रयोजन इस स्तर पर हो सकते हैं।
- निर्देशन का अर्थ, परिभाषा, तथा प्रकृति
- निर्देशन का क्षेत्र और आवश्यकता
- शैक्षिक दृष्टिकोण से निर्देशन का महत्व
- व्यक्तिगत निर्देशन (Personal Guidance) क्या हैं?
- व्यावसायिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? व्यावसायिक निर्देशन की परिभाषा दीजिए।
- वृत्तिक सम्मेलन का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसकी क्रिया विधि का वर्णन कीजिए।
- व्यावसायिक निर्देशन की आवश्कता | Needs of Vocational Guidance in Education
- शैक्षिक निर्देशन के स्तर | Different Levels of Educational Guidance in Hindi
- शैक्षिक निर्देशन के उद्देश्य एवं आवश्यकता |
- शैक्षिक निर्देशन का अर्थ एवं परिभाषा | क्षेत्र के आधार पर निर्देशन के प्रकार
- शिक्षण की विधियाँ – Methods of Teaching in Hindi
- शिक्षण प्रतिमान क्या है ? What is The Teaching Model in Hindi ?
- निरीक्षित अध्ययन विधि | Supervised Study Method in Hindi
- स्रोत विधि क्या है ? स्रोत विधि के गुण तथा दोष अथवा सीमाएँ
- समाजीकृत अभिव्यक्ति विधि /समाजमिति विधि | Socialized Recitation Method in Hindi
- योजना विधि अथवा प्रोजेक्ट विधि | Project Method in Hindi
- व्याख्यान विधि अथवा भाषण विधि | Lecture Method of Teaching
इसे भी पढ़े ….
- सर्व शिक्षा अभियान के लक्ष्य, उद्देश्य एवं महत्व
- प्राथमिक शिक्षा की समस्यायें | Problems of Primary Education in Hindi
- प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण की समस्या के स्वरूप व कारण
- प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण की समस्या के समाधान
- अपव्यय एवं अवरोधन अर्थ क्या है ?
- शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2010 क्या है?
- प्राथमिक शिक्षा का अर्थ, उद्देश्य , महत्व एवं आवश्यकता
- आर्थिक विकास का अर्थ, परिभाषाएँ, प्रकृति और विशेषताएँ
- शिक्षा के व्यवसायीकरण से आप क्या समझते हैं। शिक्षा के व्यवसायीकरण की आवश्यकता एवं महत्व
- बुनियादी शिक्षा के पाठ्यक्रम, विशेषतायें तथा शिक्षक प्रशिक्षण व शिक्षण विधि
- कलकत्ता विश्वविद्यालय आयोग के गुण एवं दोष
- सार्जेन्ट योजना 1944 (Sargent Commission in Hindi)
- भारतीय शिक्षा आयोग द्वारा प्राथमिक शिक्षा के सम्बन्ध में दिये गये सुझावों का वर्णन कीजिये।
- भारतीय शिक्षा आयोग द्वारा माध्यमिक शिक्षा के सम्बन्ध में दिये गये सुझावों का वर्णन कीजिये।
- मुस्लिम काल में स्त्री शिक्षा की स्थिति
- मुस्लिम शिक्षा के प्रमुख गुण और दोष
- मुस्लिम काल की शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य
- मुस्लिम काल की शिक्षा की प्रमुख विशेषतायें
- प्राचीन शिक्षा प्रणाली के गुण और दोष
- बौद्ध शिक्षा प्रणाली के गुण और दोष
- वैदिक व बौद्ध शिक्षा में समानताएँ एवं असमानताएँ
- बौद्ध कालीन शिक्षा की विशेषताएँ