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व्यक्तिगत निर्देशन (Personal Guidance) क्या हैं? शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर वैयक्तिक निर्देशन के स्वरूप की विवेचना कीजिए।

व्यक्तिगत निर्देशन (Personal Guidance)
व्यक्तिगत निर्देशन (Personal Guidance)

व्यक्तिगत निर्देशन (Personal Guidance in Hindi)

जीवन की विभिन्न प्रकार की समस्याओं का समाधान करने के लिए व्यक्तिगत निर्देशन अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। यह निर्देशन व्यक्ति की संवेगात्मक एवं मनोवैज्ञानिक समस्याओं का समाधान खोजने में सहायता करता है तथा व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास में सहयोग भी करता है।

क्रो तथा क्रो के शब्दों में- “वास्तव में व्यक्तिगत निर्देशन वह सहायता है जो किसी व्यक्ति को जीवन के समस्त क्षेत्रों में रवैयों और व्यवहार के विकास में श्रेष्ठ तालमेल बैठाने के लिए दी जाती है।”

व्यक्तिगत निर्देशन का स्वरूप-

विभिन्न निर्देशनों का मूल्य व्यक्तिगत निर्देशन है। यह एक गतिशील तथा विकासात्मक प्रक्रिया है। अन्य निर्देशनों के साथ व्यक्तिगत निर्देशनों का बहुत घनिष्ठ सम्बन्ध है। उदाहरण के लिए एक बहुत बुद्धिमान छात्र है। कक्षा में पढ़ने में ठीक है, पिता की मृत्यु हो जाने से उसका मन पढ़ायी में नहीं लगता है। वह पढ़ायी के प्रति उदासीन है। उस छात्र की समस्या शैक्षिक न होकर व्यक्तिगत है। इस स्थिति में व्यक्तिगत निर्देशन की आवश्यकता पड़ती है।

शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर वैयक्तिक निर्देशन का स्वरूप-

वैयक्तिक निर्देशन शिक्षा के प्रत्येक प्रणाली स्तर पर कार्य करता है। प्रत्येक स्तर पर इसका स्वरूप भिन्न-भिन्न होता है। प्रत्येक स्तर का वर्णन निम्नलिखित है-

(I) पूर्व-प्राथमिक स्तर – पूर्व प्राथमिक स्तर पर बच्चों को स्वास्थ्य सम्बन्धी बातों का निर्देशन दिया जाता है। अपने दाँतों को स्वच्छ रखना, हाथ-मुँह की स्वच्छता एवं अपने रहने के स्थान को स्वच्छ रखने की आदतें इसी स्तर से डाली जा सकती हैं। क्रो एवं क्रो ने अपनी पुस्तक ‘एन इन्ट्रोडक्शन टु गाइडेन्स’ में पूर्व-प्राथमिक स्तर पर वैयक्तिक निर्देशन का प्रयोजन निम्नलिखित बातों को सीखने में सहायता देना बताया है-

1. आपस में एक-दूसरे से मिलना एवं अनुभवों का आदान-प्रदान करना, खिलौनों का आदान-प्रदान करना, नम्रता सीखना, क्रोध को रोकने की आदत बनाना, नतृत्व करना, सीखना एवं अनुयायी के रूप में समूह में उत्तरदायित्व की भावना प्रदर्शित करना तथा खेल ईमानदारी की भावना प्रदर्शित करना।

2. अपने हाथ से कार्य करके, गीतों का अनुकरण करके, कहानियों का अनुभव करके अपने को अभिव्यक्त करना तथा दूसरों की बात को ध्यान से सुनना।

3. पालतू पशुओं की देखभाल करके खेल की वस्तुओं को यथास्थान रखकर अपने वस्त्रों की देखभाल करके उत्तरदायी व्यवहार करना सीखना।

(II) प्राथमिक स्तर- प्राथमिक स्तर पर वैयक्तिक निर्देशन बालकों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर दिया जा सकता है। निम्नलिखित इस स्तर पर आधारभूत आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रयत्न किया जाता है-

(1) अच्छा स्वास्थ्य- सन्तुलित एवं पर्याप्त भोजन, अपेक्षित निद्रा एवं विराम।

(2) आधारभूत कौशलों का ज्ञान- सीखने एवं समझने की योग्यता के अनुरूप

(3) सुरक्षा एवं भरोसे की भावना- घर, विद्यालय एवं विद्यालय की सम्पूर्ण क्रियाओं में।

(4) मित्रों एवं सामाजिक स्वीकृति की इच्छा- बालकों के बीच में तथा प्रौढ़ के मध्य।

(5) अनुशासन- स्नेहपूर्ण एवं दृढ़, आत्मानुशासन की ओर प्रगति।

(6) अवकाश के समय के क्रिया-कलाप- वैयक्तिक रुचियों एवं मनोरंजन के संदर्भ में।

(7) व्यावसायिक कौशल-संसार के कार्यों का सामान्य ज्ञान।

प्राथमिक स्तर पर बालकों की इन आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर वैयक्तिक निर्देशन की व्यवस्था की जानी चाहिये। बालकों में उचित-अनुचित समझने की आदत एवं आत्मानुशासन का विकास इस स्तर से प्रारम्भ किया जाना चाहिये। आत्मानुशासन का विकास तभी किया जा सकता है। जब बालक अनुशासन का वास्तविक उद्देश्य समझेंगे।

(III) जूनियर हाई-स्कूल स्तर- जूनियर हाई स्कूलों में आने वाले छात्र किशोरावस्था से पूर्व की आयु के होते हैं। उनमें उत्साह एवं शारीरिक विकास की गति तीव्र होती है। इस स्तर पर उनके सामने अनेक समस्याएँ उपस्थित हो जाती हैं जिनके समाधान हेतु वैयक्तिक निर्देशन की आवश्यकता पड़ती है।

क्रो एवं क्रो के अनुसार जूनियर हाई स्कूल पर वैयक्तिक निर्देशन की व्यवस्था करते समय निम्न बातों का ध्यान रखा जाये-

1. बालकों को अपने एवं दूसरों के हित के लिये उत्तरोत्तर अधिक जिम्मेदारी के निर्वाह की प्रेरणा प्रदान करना।

2. छात्रों को इस तथ्य से अवगत कराना कि वैयक्तिक सामंजस्य की कुछ समस्याएँ विकास के प्रक्रम में सामान्य रूप में आती हैं।

3. भविष्य की शिक्षा के प्रति उन्हें उत्साहित करना एवं क्रियाशील बनाना।

4. श्रम के महत्व और जीविकोपार्जन के विभिन्न प्रकारों से अवगत कराना।

5. छात्रों के व्यवसायों के प्रारम्भिक अध्ययन में उन्हें निर्देशन देना। अपनी योग्यता एवं रुचि के अनुरूप व्यवसाय की धारा विकसित करना।

6. उन्हें कतिपय व्यावसायिक समस्याओं से अवगत कराना जिनका कि साक्षात्कार उन्हें बाद में हो सकता है।

7. उन गुणों का विकास करने की प्रेरणा देना जो रचनात्मक जीवन के लिये आवश्यक है।

8. जीवन की वर्तमान एवं भावी योजनाओं के विषय में अपने माता-पिता, अध्यापक एवं परामर्शदाता इत्यादि के बीच सह-चिन्तन की आवश्यकता पर बल देना।

(IV) हाई-स्कूल स्तर (High-Shool)- इस स्तर पर आने वाले छात्र या तो किशोरावस्था की दहलीज पर होते हैं या उसमें प्रवेश कर चुके होते हैं। उनकी आवश्यकताओं एवं रुचियों को दृष्टि में रखते हुए इस स्तर पर वैयक्तिक निर्देशन का स्वरूप निर्धारित किया जा सकता है। इस स्तर पर सामंजस्य की समस्याएँ अपेक्षाकृत जटिल होती हैं। वैयक्तिक निर्देशन छात्रों को परिवेश में समुचित सामंजस्य प्राप्त करने में सहायता कर सकता है।

हाई स्कूल स्तर पर छात्रों में इस भावना का विकास किया जाना चाहिये कि समस्याएं सभी के सम्मुख आती हैं, समस्याओं की प्रकृति का समझना एवं उनका समाधान खोजने की प्रवृत्ति छात्रों में विकसित करने में वैयक्तिक निर्देशन छात्रों की मदद कर सकता है।

छात्रों के नैतिक एवं सामाजिक विकास की दृष्टि से हाई-स्कूल स्तर पर वैयक्तिक निर्देशन की आवश्यकता पड़ती है। सामुदायिक सेवा-कार्यों एवं सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना के विकास के लिये उन्हें जन-सेवा के कार्यों में लगाया जाना चाहिये। इस स्तर पर छात्रों की समस्याएँ बहुमुखी होती हैं। अतः व्यापक निर्देशन सेवाएँ भी उन्हें सुलभ करायी जायें।

(V) कॉलेज तथा विश्वविद्यालय स्तर (College and University Stage)- सामान्यतः कॉलेज एवं विश्वविद्यालय स्तर तक आते-आते युवक प्रौढ़ता की ओर उन्मुख होने लगते हैं। माध्यमिक स्तर पर वैयक्तिक निर्देशन का प्रक्रम यदि सन्तोषजनक रहा होता है तो इस स्तर पर आते-आते सामंजस्य की समस्या का सुविधाजनक हल प्राप्त हो जाता है। कॉलेज स्तर के छात्रों को वैयक्तिक एवं सामाजिक सामंजस्य हेतु वैयक्तिक निर्देशन की आवश्यकता पड़ती है। इस स्तर पर विवाह की समस्या भी छात्रों के सम्मुख होती है।

कॉलेज स्तर पर छात्रों के सम्मुख आर्थिक प्रश्न भी होते हैं। भारत जैसे देश के निर्धन छात्र इस क्षेत्र में निर्देशन की अपेक्षा करते हैं। अंशकालिक कार्यों को सम्पन्न करके वे अपनी शिक्षा पूरी करने के लिये आर्थिक साधन जुटा सकते हैं। सरकार द्वारा प्रदत्त आर्थिक सुविधाओं के सम्बन्ध में निर्देशन द्वारा जानकारी प्रदान की जा सकती है। समाज और निर्देशन कर्मचारियों के सहयोग से छात्रों की आर्थिक समस्या का समाधान खोजने में सहायता मिल सकती है। अवकाश के समय का सदुपयोग भी उचित निर्देशन द्वारा उन्हें सिखाया जा सकता है।

कॉलेज एवं विश्वविद्यालय स्तर पर निर्देशन, एक अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्र में विद्यार्थियों की सहायता करता है और वह है उनका नैतिक एवं चारित्रिक विकास। विज्ञान एवं कला के नवीन आलोक में परम्परागत धार्मिक मूल्य एवं विश्वास परिवर्तित हो रहे हैं। धार्मिक संकीर्णता युवक को मानवता आज के धर्म-निरपेक्ष युग में अस्वीकृत हो रही है। उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले और धर्म के शाश्वत मूल्यों को पहचानने के कार्य में निर्देशन उसकी सहायता करता है। दूसरे शब्दों में, उच्च शिक्षा के क्षेत्र में प्रवेश करने वाले छात्र-समुदाय को स्वस्थ सामाजिक, धार्मिक एवं राजनैतिक दृष्टिकोण विकसित करने में सहायता देना वैयक्तिक निर्देशन का कार्य हैं।

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