पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं पर निबंध
प्रस्तावना- पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं”-यह सूक्ति भक्त शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा कही गयी है, जिसका अर्थ है पराधीन (परतन्त्र) व्यक्ति सपने में भी सुखी नहीं रह सकता है।” परतंत्रता सदा दुखदायी होती है।
पराधीनता का शाब्दिक अर्थ- पराधीनता पर + अधीनता शब्दों के मेल से बनी है अर्थात् दूसरों के अधीन या वश में रहना ही पराधीनता है। कोई भी प्राणी चाहे वह मनुष्य हो या पशु-पक्षी, किसी के वश में नहीं रहना चाहता। स्वतन्त्र व्यक्ति ही सच्चे सुख की अनुभूति कर सकता है। स्वतन्त्र व्यक्ति ही भली-भाँति सोच-विचार सकता है क्योंकि उसके विचारों पर किसी का अंकुश नहीं होता।
पराधीनता के दुख- हम भारतवासियों से अधिक इस बात को कौन समझ सकता है कि परतन्त्रता का दुख कितना भयंकर व असहनीय होता है। पहले मुगल शासकों ने एवं उसके बाद अंग्रेजों ने हम पर बरसों शासन किया। हमारे देश को अपनी निरंकुशता से पंगु बना दिया। हमारा देश जो पहले ‘सोने की चिड़िया’ कहलाता था, अपनी वह शान-बान खो बैठा है। आज जो हमारे देश में बेकारी, भूखमरी जैसी समस्याएँ हैं, वे सभी अंग्रेजी शासन की ही देन है। उन्होंने हम भारतीयों को अपनी इच्छानुसार शिक्षा दी, जिससे हमारे देशवासी उच्च नौकरी न कर सके। वे तो हमें सदा ही अपना गुलाम बनाकर रखना चाहते थे, परन्तु परतन्त्रता कि बेडियों में जकड़ा हमारा देश छटपटा रहा था और इस बात को समझते हुए हमारे महापुरुषों जैसे महात्मा गाँधी, गोखले, लाला लाजपत राय, भगत सिंह तथा और भी न जाने जितने लोगों ने हमारे देश को स्वतन्त्र करा कर ही चैन की साँस ली थी। परन्तु आज भी हमारा देश आर्थिक तथा सामाजिक रूप से उतनी प्रगति नहीं कर पाया है। इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है पराधीन देश की दशा सुधरने में बरसों लग जाते हैं। लम्बे समय तक पराधीन रहने के कारण हम मानसिक रूप से गुलामी के रंग में रंग चुके हैं।
इसके अतिरिक्त पराधीन व्यक्ति बौद्धिक रूप से भी अविकसित ही रहता है। कितनी ही बड़ी कम्पनियों के मालिक अधिक शिक्षित न होने पर भी आत्मविश्वासी होते हैं क्योंकि वे अपनी इच्छा के स्वामी होते हैं, उन पर किसी का अंकुश नहीं होता इसलिए उनका बौद्धिक विकास निरन्तर होता रहता है, वही एक मजदूर या निम्न वर्गीय कर्मचारी दबा-दबा सा रहता है क्योंकि वह अपनी मर्जी से कोई भी निर्णय नहीं ले सकता। वह अपने मालिक के इशारों पर चलता है इसीलिए ऐसे व्यक्ति का बौद्धिक विकास नहीं हो पाता। स्वाधीन व्यक्ति सदैव सुन्दर स्वप्न सजाता है और उन्हें पूरा करने की क्षमता रखता है, वही पराधीन व्यक्ति के स्वप्न ही नहीं होते क्योंकि उसे उन स्वप्नों के पूरा होने की कोई उम्मीद नहीं होती है।
पराधीनता का दुख मनुष्य के अतिरिक्त पशु-पक्षियों को भी होता है। स्वच्छन्द नृत्य करता मोर कैद होते ही छटपटाने लगता है। पिंजरे में कैद कोयल मीठे स्वर में नहीं गा पाती, तोता पिंजरा तोड़कर खुले आकाश में विचरण करना चाहता है। पालतू कुत्ता, बिल्ली अच्छा खाते-पीते तो हैं, परन्तु जंजीर तोड़कर भागने को आतुर रहते हैं क्योंकि उन्हें भी स्वतन्त्रता अच्छी लगती है। वे भी खुली सड़क पर घूमना चाहते हैं, इसीलिए मालिक की जरा सी आँख बचते ही भाग निकलते हैं। स्वतन्त्रता की महत्ता को कवि ‘भारत भूषण’ ने इस प्रकार व्यक्त किया है-
हँसी फूल में नहीं
गंध बौर में नहीं,
गीत कंठ में नहीं
हँसी, गंध, गीत सब मुक्ति में है।
निःसन्देह पराधीनता समस्त दुखों की जननी है एवं स्वतन्त्रता सुखों का सागर है।
स्वाधीनता : सच्चा सुख- आज हम भारतीय स्वतन्त्र हैं। आज हमारे देश का अपना संविधान है, हमारे अपने राष्ट्रीय चिह्न है और हम धर्मनिरपेक्ष प्रजातान्त्रिक राष्ट्र के निवासी है। आज हम सच्चे सुख की अनुभूति कर रहे हैं। व्यक्ति को सच्चा सुख अच्छा खान-पान, रहन-सहन नहीं दे सकते। सच्चा सुख तो स्वाधीनता में है, अपनी पसन्द का कार्य करने में है। किन्तु स्वाधीनता
का अर्थ यह कदापि नहीं है कि हम अपनी स्वतन्त्रता के सामने दूसरों के हित को भूल जाए । हमें संयम में रहते हुए अपनी स्वतन्त्रता का आनन्द लेना चाहिए, अपने देश तथा राष्ट्र को सहयोग देना चाहिए जिससे हमारी स्वतन्त्रता अमर तथा चिरस्थायी रहे।
उपसंहार- निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि ‘स्वतन्त्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और इसे प्राप्त करने के लिए हमें हर सम्भव प्रयास करने चाहिए।’ यदि कोई हमें अपने पराधीन करना चाहे, तो हमें अपनी स्वतन्त्रता के लिए उठ खड़े होना चाहिए। किसी कवि ने ठीक ही कहा है-
“जिसने मरना सीख लिया, जीने का अधिकार उसी को।
जो काँटो के पथ पर आया, फूलो का उपहार उसी को।
इसलिए स्वाधीनता का महत्त्व समझते हुए हमें ये पंक्तियाँ सदा स्मरण रखनी चाहिए-
“पराधीन सपनेहुँ सुख नाही।
सोच विचार देखि मन माहीं।”
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