निबंध / Essay

गोस्वामी तुलसीदास पर निबंध | Essay on Goswami Tulsidas in Hindi

गोस्वामी तुलसीदास पर निबंध
गोस्वामी तुलसीदास पर निबंध

गोस्वामी तुलसीदास पर निबंध

प्रस्तावना

अपने कृति-पुष्पों से माँ भारती के श्री चरणों की पूजा करते अनेक कवियों ने हिन्दी काव्य को सुसमृद्ध किया है। गोस्वामी तुलसीदास हिन्दी साहित्याकार में चमकते हुए सूर्य की भाँति हैं जिन्होंने भारतीय जन-मानस को सर्वाधिक प्रभावित किया है। तुलसीदास हिन्दी के लोकनायक कवि एवं भारतीय-संस्कृति के कर्णधार हैं। केवल भारतीय ही नहीं, अपितु अंग्रेजी साहित्यकारों ने भी तुलसीदास जी को विश्व के महानतम कवियों में से एक माना है। इस सूक्ति को किसी कवि ने बड़े ही सुन्दर रूप में प्रस्तुत किया है-

“सूर-सूर, तुलसी शशि, उड्डगन केशवदास।
अब के कवि खघोत सम, जहं तह करत प्रकाश ॥”

जीवन-परिचय

महाकवि तुलसीदास जी के जन्म के विषय में विद्वान एक मत नहीं हैं। कुछ लोग ‘सूकर’ क्षेत्र (सोरो) को आपका जन्म स्थान मानते हैं किन्तु अधिकतर लोगों का मत है कि आपका जन्म यमुना तट पर स्थित बाँदा जिले के राजापुर ग्राम में संवत् 1554 में श्रावण शुक्ला सप्तमी को हुआ था। इस पक्ष के समर्थक अपना पक्ष इस प्रकार प्रस्तुत करते हैं-

“पन्द्रह सौ चौवन दिखे कालिन्दी के तीर।
श्रावण शुक्ला सप्तमी तुलसी धर्यो शरीर ॥”

आपकी माता का नाम हुलसी तथा पिता का नाम आत्माराज दूबे था। आपका जन्म ब्राह्मण जाति में हुआ था तथा आपके घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। दुर्भाग्यवश बाल्यावस्था में ही आपके माता-पिता का वात्सल्य पूर्ण हाथ आपके सिर से उठ गया, जैसा कि उन्होंने स्वयं ही लिखा है-

“मातु पिता जग ज्याइ तज्यो, विधि हूँ न लिखी कहु भाल भलाई ॥”

सामाजिक परिस्थितियाँ

तुलसीदास जी के जन्म के समय भारतवर्ष विदेशी शासकों से आक्रान्त था। देश की सामाजिक, राजनीतिक तथा धार्मिक स्थिति डॉवाडोल हो रही थी। उचित नेतृत्व के अभाव में जनता आदर्शहीन तथा उद्देश्यहीन होकर भटक रही थी। विदेशियों के प्रभाव से देश में विलासिता भर चुकी थी। निम्नवर्गीय लोगों में अशिक्षा तथा अज्ञानता का साम्राज्य था तथा विद्वानों का भी उचित आदर-सम्मान नहीं होता था।

तुलसीदास के गुरु जी स्वामी नरहरिदास थे। आपका आरम्भिक जीवन बेहद दुखों से भरा हुआ था। अभुक्त मूल नक्षत्र में पैदा होने से माता-पिता ने आपका परित्याग कर दिया था और आपको दर-दर की ठोकरे खानी पड़ी थी। आपका विवाह दीनबन्धु पाठक की विदुषी कन्या रत्नावली से हुआ और आप अपनी पत्नी से बेहद प्यार करते थे। ऐसा माना जाता है कि एक बार आप वासना के वशीभूत होकर रस्सी के सहारे नदी पार कर अपनी धर्मपत्नी के पास रात्रि में ही पहुँच गए तो आपकी पली ने आपको फटकार दिया था कि हमारे शरीर में ऐसा क्या है जो आप इतने कष्ट उठाकर आए हैं। जितना प्रेम आप हमारे शरीर से करते हैं, वैसा अगर राम नाम से करोगे तो तुम्हें मुक्ति मिल जाएगी। तभी से तुलसीदास गृहस्थ जीवन का परित्याग कर ईश्वर भक्ति में लीन हो गए तथा भारत के प्रसिद्ध तीर्थ स्थानों, विशेषकर काशी, चित्रकूट तथा अयोध्या आदि की यात्रा करते रहे। पत्नी प्रेम ने आपके जीवन को एक नया मोड़ दिया, एक नवीन चेतना प्रदान की, जिससे आप कवि शिरोमणि बन पाए। संवत् 1680 में आपका देहावसान हो गया, जैसा कि इस दोहे से प्रमाणित होता है-

“संवत सोलह सौ असी, असी गंग के तीर।
श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी तज्यौ शरीर ॥”

व्यक्तित्व की विशेषताएँ

कवि शिरोमणि तुलसीदास जी महान समाजसुधारक, लोकनायक, भविष्यदृष्टा, कवि तथा सभ्यता एवं संस्कृति के कर्णधार थे। आपके विषय में विद्वानों ने अपने अलग-अलग मत व्यक्त किए हैं-नाभादास ने आपको ‘कलिकाल का वाल्मीकि’ कहा था, स्मिथ ने आपको मुगलकाल का सबसे बड़ा व्यक्ति तथा निर्यसन ने बुद्धदेव के बाद सबसे बड़ा लोकनायक माना है। वास्तव में तुलसीदास असाधारण व्यक्तित्व के धनी लोकनायक महात्मा थे।

साहित्यिक विशेषताएँ

तुलसीदास जी ने अपने जीवन काल में सैंतीस ग्रन्थों की रचना की थी परन्तु नागरी प्रचारिणी सभा काशी द्वारा प्रकाशित ग्रन्थावली के अनुसार उनके बारह ग्रन्थ ही प्रामाणिक माने जाते हैं। रामचरित मानस, गीतावली, कवितावली, विनयपत्रिका, दोहावली, जानकी मंगल, कृष्ण गीतावली, रामलला, नदहू, बरवै रामायण, पार्वती मंगल, वैरागी, सन्दीपिनी, रामाज्ञा प्रश्न आदि है। इनमें से ‘विनय पत्रिका’, ‘गीतावली’ आदि गीति रचनाएँ हैं तो ‘कवितावली’ तथा ‘दोहावली’ मुक्तक काव्य है। इनमें से ‘रामचरितमानस’ सबसे प्रसिद्ध महाकाव्य है, जो न केवल भारतवर्ष का सर्वोत्कृष्ट काव्य-ग्रन्थ है, अपितु विश्व के अन्य महाकाव्य ग्रन्थों में भी एक महान काव्य है। इसमें तत्कालीन सामाजिक, राष्ट्रीय तथा मानव जीवन सम्बन्धित परिस्थितियों पर बड़ी ही गम्भीरतापूर्वक प्रकाश डाला गया है। रामचरितमानस का महत्त्व प्रतिपादित करते हुए कवि ने इसके अनुसार जीवन धारण करने वालों का जीवन ही सार्थक माना है। कवि शिरोमणि तुलसीदास जी ने इसमें प्रभु राम का सम्पूर्ण जीवन चरित्र बड़े सुन्दर ढंग में वर्णित किया है।

साहित्यिक विशेषताएँ

आपकी काव्य रचनाओं में पांणित्य दर्शन न होने के कारण भावपक्ष एवं कलापक्ष अत्यन्त सशक्त है तथा इसमें सभी रसों की धाराएँ बहती हैं। आपने अवधी तथा ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। भाषा शुद्ध, परिष्कृत, परिमार्जित एवं साहित्यिक है। तुलसीदास ने भाषा प्रयोग में सस्कृत के तत्सम एवं तद्भव शब्दों का अधिक प्रयोग किया है। कही-कही तो आपने संस्कृत के विभक्ति रूपों एवं क्रिया रूपों को भी अपनाया है। आपने अलंकारों का प्रयोग जान-बूझकर नहीं किया है, किन्तु अर्थ की सफल अभिव्यक्ति के लिए, भावों के सौन्दर्य की अतिवृद्धि के लिए तथा रूपचित्रण प्रस्तुत करने के लिए स्वतः ही अलंकारों का प्रयोग हो गया है। आपके काव्य में चौपाई, दोहा, सोरण पद, तोद्री, सारंग, मल्हार, चंचरी, भैरव, वसन्त तथा रामकली आदि विभिन्न छन्दों तथा रागों का प्रयोग हुआ हैं। तुलसीदास जी ने अपने समय में प्रचलित सभी शैलियों का प्रयोग किया है। आपने शक्ति और शैव मत का, वैष्णोपासना में राम तथा कृष्ण की उपासना का, वेदान्त में निर्गुण और सगुण पक्ष का तथा चारों आश्रमों का व्यापक समन्वय प्रस्तुत किया है।

उपसंहार

निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि गोस्वामी तुलसीदास हिन्दी साहित्य के सर्वोच्च कवि हैं। उन जैसा कवि सदियों में एक बार ही पैदा होता है। ‘रामकाव्य’ के तो वे सम्राट थे। जैसा भाव सौन्दर्य, गांभीर्य, भाषा शैली का उत्कर्ष उनके काव्य में दिखाई देता है, वैसा अन्यत्र नहीं । तुलसीदास लोकदृष्टा, जागरुक विचारक तथा सामाजिक मनोविज्ञान के सच्चे पारखी थे। हिन्दी साहित्य तथा हिन्दू समाज सदा आपका ऋणी रहेगा। आपके दिव्य सन्देश ने मृतप्राय हिन्दू जाति के लिए संजीवनी का कार्य किया है। आपके साहित्य के विषय में साहित्यिक विद्वानों की यह उक्ति अक्षरक्षः सत्य है-

“कविता करके तुलसी न लसे, कविता लसी पा तुलसी की कला ॥”

Important Links

Disclaimer

Disclaimer: Sarkariguider does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment