निबंध / Essay

शिक्षक-दिवस पर निबंध | Essay on Teacher’s Day in Hindi

शिक्षक-दिवस पर निबंध
शिक्षक-दिवस पर निबंध

अनुक्रम (Contents)

शिक्षक-दिवस

 
प्रस्तावना- मनुष्य को एक अच्छा इन्सान, जागरुक नागरिक तथा जिम्मेदारी मानव बनाने का कार्य शिक्षा ही करती हैं। शिक्षा के अभाव में मनुष्य जानवर के समान मूढ़ होता है। वह न तो स्वयं को उन्नत कर सकता है, न ही जाति, परिवार या राष्ट्रका ही उत्थान कर सकता है। शिक्षा द्वारा हा मनुष्य को अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों का बोध होता है। आज संसार में जितने भी राष्ट्र उन्नति के शिखर पर पहुंचे हैं, वे सभी उच्च शिक्षा के बल पर ही वहाँ तक पहुंच पाए हैं। शिक्षा देने का कार्य शिक्षक ही करता है। वह देश के भावी नागरिकों अर्थात् बच्चों के व्यक्तित्व को संवारता है तथा उसे अच्छे-बुरे का ज्ञान कराता है। शिक्षक दिवस मनाने की तिथि-शिक्षक दिवस प्रतिवर्ष 5 सितम्बर को महामहिम सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन के जन्म दिवस के उपलक्ष में मनाया जाता है। डॉ. राधाकृष्णन ने 1962 से 1967 तक भारत के राष्ट्रपति का पद भार सँभाला। वे संस्कृतज्ञ, दार्शनिक होने के साथ-साथ शिक्षाशास्त्री भी थे। राष्ट्रपति बनने से पूर्व वे शिक्षा क्षेत्र से ही सम्बद्ध थे। राधाकृष्णन ने सन् 1908 में मद्रास विश्वविद्यालय से एम.ए. (दर्शन शास्त्र) में उत्तीर्ण किया। उस समय वे मात्र 20 वर्ष के थे। 1920 में आपकी नियुक्ति मद्रास प्रेजीडेन्सी कॉलेज में दर्शन विभाग के प्रवक्ता पद पर हुई। आप अपना खाली समय भारतीय दर्शन एवं धर्म का अध्ययन करने में व्यतीत करते थे। 1920 से 1921 तक आपको कलकत्ता विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के किंग जार्ज पंचम पद को सुशोभित किया गया। 1939 से 1948 तक आप काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के उपकुलपति पद पर आसीन रहे। इसके बाद आप मैसूर विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर नियुक्त हुए। राष्ट्रपति बनने के पश्चात् जब आपका जन्म दिवस आयोजित करने का कार्यक्रम बना तो आपने जीवन का अधिकतर समय शिक्षक रहने के नाते इस दिवस को शिक्षकों का सम्मान करने हेतु शिक्षक दिवस मनाने की बात कही। उस समय से प्रतिवर्ष यह दिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।
 
शिक्षक का महत्त्व- भारतवर्ष सदा से ही गुरुओं, आचार्यों व शिक्षकों का देश रहा है। हमारे देश में प्राचीनकाल से ही विद्यार्थी व ब्रह्माचारी गुरुकुलों तथा आश्रमों में गुरुओं व आचार्यों के आश्रम में शिक्षा प्राप्त करते आए हैं। शिक्षक तो वह व्यक्ति होता है जो पाषाण से कठोर मानव को भी मोम की भाँति मुलायम बना सकता है। शिक्षक बालकों में सुसंस्कार तो डालते ही हैं, साथ ही शिक्षक बालकों के हृदय से अज्ञान रूपी अन्धकार को दूर कर उन्हें देश का श्रेष्ठ नागरिक बनाने का दायित्व भी वहन करते हैं। शिक्षक तो ज्ञान द्वारा बालकों का तीसरा चक्षु भी खोल देने की क्षमता रखते हैं। शिक्षक उस दीपक के समान हैं जो अपनी ज्ञान ज्योति से बालकों को प्रकाशमान करते हैं। महर्षि अरविन्द ने अपनी पुस्तक ‘महर्षि अरविन्द के विचार’ नामक पुस्तक में शिक्षक के सम्बन्ध में लिखा है-“अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के माली होते हैं। वे संस्कार की जड़ों में खाद देते हैं तथा अपने श्रम से उन्हें सींच सींचकर महाप्राण शक्तियाँ बनाते हैं।”
 
इटली के एक उपन्यासकार ने शिक्षक की महत्ता इस प्रकार वर्णित की है, “शिक्षक उस मोमबत्ती के समान हैं जो स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाशवान करते हैं।” सन्त कबीरदास ने तो गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊँचा माना है-
 
“गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागू पाय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो मिलाय॥”
 
शिक्षक दिवस मनाने का महत्त्व- शिक्षकों द्वारा किए गए श्रेष्ठ कार्यों का मूल्यांकन कर उन्हें सम्मानित करने का दिन ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। इस दिन देश के सभी विद्यालयों एवं अन्य शिक्षण संस्थाओं में सभाएँ व गोष्ठियाँ होती हैं। बच्चों को अध्यापकों के मान-सम्मान से सम्बन्धित प्रेरणा दी जाती है तथा उन्हें यह आभास कराया जाता है कि हमारे जीवन में का स्थान कितना ऊँचा है। अनेक विद्यालयों में इस दिन विद्यार्थी ही अध्यापन कार्य करते हैं। इससे उनके मन में यह भावना जागृत होती है कि शिक्षण कार्य कोई व्यवसाय नहीं है, अपितु यह तो मानव सेवा है इसलिए अधिक से अधिक युवाओं को इस क्षेत्र में आगे आना चाहिए। अध्यापकों के संघ-संगठन भी इस दिन शिक्षकों के गौरव के अनुरूप उसे स्थायी बनाए रखने के लिए विभिन्न विचारों का आदान-प्रदान करते हैं। इस दिन राज्य सरकारों द्वारा अपने स्तर पर शिक्षण के प्रति समर्पित तथा विद्यार्थियों के प्रति स्नेह रखने वाले शिक्षकों को सम्मानित किया जाता है। राष्ट्रीय स्तर पर ये पुरस्कार महामहिम राष्ट्रपति द्वारा दिल्ली में प्रदान किए जाते हैं
 
उपसंहार- गुरु से आशीर्वाद लेने की परम्परा भारत में प्राचीनकाल से चली आ रही है। आषाढ़ माह में पड़ने वाली पूर्णिमा को ‘व्यास पूर्णिमा’ अथवा ‘गुरु पूर्णिमा’ नाम इसी के निमित्त दिया गया है। आज यह एक चिन्ता का विषय बन गुरु चुका है कि शिक्षक अपने कार्यक्षेत्र से विमुख होकर राजनीति में प्रवेश करने लगे हैं तथा विद्यार्थी भी पहले जितने निष्ठावान नहीं रहे हैं। हमारा ‘शिक्षक दिवस’ को मनाने का मूल उद्देश्य है कि राष्ट्र के निर्माता कहे व माने जाने वाले शिक्षक को उचित सम्मान मिले तथा वह भी अपने शिष्यों का सही मार्गदर्शन करे। यदि हम सच्चे मन से अपने आदर्श अध्यापक डॉ. राधाकृष्णन के आदर्शों पर चलते हुए शिक्षक दिवस को मनाए तो प्राचीन काल से चली आ रही गुरु-शिष्य परम्परा को पुनर्जीवित किया जा सकता है।
 

Important Links

Disclaimer

Disclaimer: Sarkariguider does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment