निबंध / Essay

स्वतंत्रता दिवस पर निबंध | Independence Day Essay In Hindi

स्वतंत्रता दिवस पर निबंध | Independence Day Essay In Hindi
स्वतंत्रता दिवस पर निबंध | Independence Day Essay In Hindi

स्वतंत्रता दिवस पर निबंध

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प्रस्तावना-

पराधीनता का दुख कितना कष्टप्रद होता है यह बात हम भारतीयों से बेहतर और कौन समझ सकता है? हम भारतीयों ने बरसों अंग्रेजों की की गुलामी की कड़वाहट सहन की है। परन्तु स्वतन्त्रता प्रत्येक मनुष्य स्वभाविक प्रवृत्ति होती है। पराधीन व्यक्ति या देश यदि कुछ विवशताओं के कारण परतन्त्रता की जंजीरों में जकड़ा हुआ भी भीतर ही भीतर अपने शासक के विरुद्ध संघर्ष का आह्वान अवश्य करता है। वह स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए भरसक प्रयास करता है क्योंकि-“पराधीन सपनेहुँ सुख नाही।” पराधीन व्यक्ति तो स्वप्न में भी सुखी नहीं रह सकता।

स्वतन्त्रता दिवस-

15 अगस्त, 1947 ई. को भारतवर्ष ने सदियों की परतन्त्रता के पश्चात् अंग्रेजी शासन से स्वतन्त्रता प्राप्त की थी। अंग्रेजों से पूर्व करीब बारह सौ वर्षों तक मुगलों ने भी हम पर शासन किया था। यह दिन हमें बहुत कष्ट सहकर प्राप्त हुआ था। अतः 15 अगस्त का दिन प्रत्येक भारतवासी के लिए गौरव का दिन है तथा प्रत्येक भारतीय इसे पूर्ण सम्मान व श्रद्धा के साथ मनाता है।

स्वतन्त्रता दिवस का महत्त्व-

हमारा भारतवर्ष सदियों तक दासता की बेड़ियों में जकड़ा रहा परन्तु हम भारतीय भी सदा इन बेड़ियों को काटने का प्रयास करते रहे। यह तो सर्वविदित है की देश की आजादी के लिए हमारे देश के अनेक अनमोल रत्नों ने अपने प्राणों की बलि दे दी। स्वतन्त्रता संग्राम की नींव झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई के कर-कमलों द्वारा सन् 1857 में रखी गई थी। लक्ष्मी बाई तथा अग्रेजों के बीच घमासान युद्ध हुआ। उन्होंने बहादुर देशभक्त सहयोगियों नाना साहब, तात्या टोपे, बहादुरशाह आदि के साथ मिलकर अंग्रेजों को नाको चने चबवा दिए थे। इस संग्राम में लड़ते-लड़ते रानी ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। इस प्रकार आजादी की जो चिंगारी 1857 में सुलगी थी, थोड़ी देर के लिए भस्म के नीचे ढक तो गई थी, परन्तु बुझी नहीं थी। समय पाकर वह फिर से भड़क उठी। सन् 1885 में ‘इंडियन नेशनल कांग्रेस’ का जन्म इसी उद्देश्य से हुआ था। इसके अन्तर्गत लोकमान्य तिलक, गोपालकृष्ण गोखले, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, सुभाष चन्द्र बोस, लाला लालपत राय जैसे नेताओं ने कांग्रेस का नेतृत्व किया। अंग्रेजों के दमन-चक्र इस के विरुद्ध क्रान्तिकारियों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। स्वतन्त्रता की लड़ाई में राजगुरु, चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, ऊधमसिंह, खुदीराम बोस, मन्मथनाथ गुप्त जैसे नवयुवकों ने भी बढ़कर हिस्सा लिया। महात्मा गाँधी तथा अन्य नेताओं के नेतृत्व में भारतीयों ने ‘सत्याग्रह’ तथा ‘असहयोग आन्दोलनों परन्तु में भाग लेकर जेल की यातनाएँ सही, लाठियों तथा गालियों की मार सही, पूर्ण-स्वराज्य की माँग से पीछे नहीं हटे।

स्वाधीनता के इस संघर्ष में अनेक बुद्धिजीवियों, चिन्तकों तथा समाज-सेवियों ने भी हिस्सा लिया। हिन्दी कवियों एवं लेखकों के योगदान भी अभूतपूर्व रहे। इनमें भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, मैथिलीशरण गुप्त, रामनरेश त्रिपाठी, सुभद्राकुमारी चौहान, माखनलाल चतुर्वेदी आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। इन कवियों ने अपने काव्य के माध्यम से लोगों में राष्ट्रीयता की भावना पैदा की। इस दिशा में मुंशी प्रेमचन्द्र का योगदान भी सराहनीय रहा। इस प्रकार शहीदों, क्रान्तिकारियों, लेखकों, कवियों सभी के पारस्परिक सहयोग से 15 अगस्त, 1947 ई. को हमारा देश स्वतन्त्र हुआ तथा सारे देश में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई। भक्तों ने मन्दिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों में जाकर प्रार्थनाएँ की तथा मिठाईयाँ बाँटी। स्वतन्त्रता दिवस महोत्सव-प्रत्येक वर्ष यह पर्व सभी शहरों, नगरों, गाँवों, विद्यालयों आदि में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। सभी सरकारी, स्वयं सेवी कार्यालयों व अन्य राजकीय स्थानों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है। शिक्षा संस्थाओं में ध्वजारोहण तथा ध्वजाभिवाहन की रस्म एक दिन पहले अर्थात् 14 अगस्त को पूरी की जाती है। विद्यार्थी ‘भारत माता की जय’, ‘हिन्दुस्तान की जय’, ‘जय हिन्द’ जैसे नारे लगाते हैं। बच्चों के बीच मिष्ठान वितरित की जाती है। भारतवर्ष की राजधानी दिल्ली में स्वाधीनता दिवस विशेष रूप से मनाया जाता है।

इस दिन ऐतिहासिक स्थल लाल किले के प्राचीर पर भारत के तत्कालीन प्रधानमन्त्री राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं। तत्पश्चात् वहाँ उपस्थित विशाल जन-समूह बड़े सम्मान से राष्ट्रगान गाता है। राष्ट्रीय ध्वज को 21 तोपो की सलामी इस शुभ अवसर पर विदेशी राजदूत व अतिथिगण भी उपस्थित होते हैं। विदेशों से अनेक बधाई सन्देश आते हैं। ‘जन-गण-मन’ के राष्ट्रगान के साथ इस कार्यक्रम की समाप्ति होती है।

लालकिले पर एकत्रित अपार भीड़ में आनन्द, उत्साह तथा प्रसन्नता का भाव अवर्णनीय होता है। सभी के हृदय गर्व से फूले नहीं समाते। रात्रि के समय सभी सरकारी इमारतों, जैसे राष्ट्रपति भवन, संसद भवन आदि पर विशेष रोशनी की जाती है। कई स्थानों पर आतिशबाजी भी की जाती है। उपसंहार-इस स्वतन्त्रता को प्राप्त करने के लिए हमने बहुत कुछ खोया है। मुस्लिम लीग के नेताओं के हठ तथा अंग्रेजों की कूटनीति के कारण भारत को दो भागों में विभाजित होना पड़ा-हिन्दुस्तान तथा पाकिस्तान के रूप में। परिणामस्वरूप कितने ही लोगों को बेघर होना पड़ा, साम्प्रदाय विद्वेष के कारण अनेकों वीरों की जाने चली गई तथा देश के सामने अनेक समस्याएँ ऐसी भी खड़ी हो गई जिनका हल आजतक भी नहीं निकल पाया है। परन्तु इतनी कुर्बानियाँ देने के बाद भी आज हम प्रसन्न है क्योंकि अब हम स्वतन्त्र हैं। हमारा अपना स्वतन्त्र संविधान है, राष्ट्रीय चिह्न है, जो हमें गार्वित महसूस कराते हैं। हमें भी अपनी इस स्वतन्त्रता को सदैव जीवित रखने की शपथ लेनी चाहिए। हमे इस पावन राष्ट्रीय पर्व के शुभ अवसर पर अपने अमर शहीदों के प्रति हार्दिक श्रद्धा भावना प्रकट करते हुए उनके आदर्शों पर चलना चाहिए। इससे हमारी स्वाधीनता निरन्तर सुदृढ़ रूप में लौह स्तम्भ की भाँति अडिग तथा अमर रहेगी।

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