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शैक्षिक निर्देशन का अर्थ एवं परिभाषा | क्षेत्र के आधार पर निर्देशन के प्रकार

शैक्षिक निर्देशन का अर्थ एवं परिभाषा
शैक्षिक निर्देशन का अर्थ एवं परिभाषा

शैक्षिक निर्देशन का अर्थ एवं परिभाषा

तत्काल समय में प्रत्येक माता-पिता अपने बच्चों को दी जाने वाली शिक्षा के महत्त्व को जानते हैं इसके लिए वह बच्चों को अच्छे स्कूलों, अच्छी शिक्षा, अच्छे परिवेश के लिए सतर्क रहते हैं। शैक्षिक निर्देशन से आशय यह है कि छात्रों को पाठ्यक्रमों के चयन एवं शैक्षिक कठिनाइयों के हल के लिए प्रदान की जाने वाली सलाह ही शैक्षिक निर्देशन कहलाती है। शैक्षिक निर्देशन को विभिन्न विद्वानों ने निम्न प्रकार से परिभाषित किया है-

“शैक्षिक निर्देशन विद्यालयों, पाठ्यक्रमों, पाठ्य-विषयों और विद्यालय-जीवन से सम्बन्धित उनके चुनावों एवं समायोजकों छात्रों के लिए प्रदत्त सहायता से सम्बन्धित है।”

“शैक्षिक निर्देशन व्यक्ति के विकास अथवा शिक्षा के लिए एक और उसकी विशिष्ट विशेषताओं से एक व्यक्तिगत छात्र और दूसरी ओर अवसरों और आवश्कताओं के विविधता वाले समूहों के मध्य स्पष्ट रूप से सम्बनित प्रक्रिया है।”- जी0ई० मार्क्स

“शैक्षिक निर्देशन एक निर्देशन है जो नवीन शैक्षिक व्यवसायिक अवसरों से उसकी रुचियों, अभिरुचियों और योग्यताओं को सम्बन्धित करने में छात्रों और उनके अभिभावकों की सहायता करता है।- शिक्षा शब्द कोश

क्रो एवं क्रो (Crow and Crow)– के अनुसार- “व्यापक अर्थों में निर्देशनं को शिक्षा का एक रूप समझा जा सकता है।”

आर्थर ई. ट्रैक्सलर– निर्देशन प्रत्येक व्यक्ति में स्वयं की योग्यताएँ रुचियाँ और व्यक्ति सम्बन्धी गुणों को समझने, उनका सम्भावित विकास करने, उनको जीवन के उद्देश्यों का सम्बन्धित करने तथा अन्त में प्रजातान्त्रिक सामाजिक व्यवस्था में योग्य नागरिक की भाँति पूर्ण तथा परिपक्व स्व-निर्देशन की स्थिति तक पहुँचने में योग्य बनाता है। अतः निर्देशन, विद्यालय के प्रत्येक अंग तथा पाठ्यक्रम, शिक्षण विधि, निरीक्षण, अनुशासन, उपस्थिति की समस्याएँ, पाठ्यक्रम में अतिरिक्त क्रियाएँ, स्वास्थ्य सम्बन्धी कार्यक्रम, गृह तथा समाज में सम्बन्धों से सम्बन्धित हैं।

शैक्षिक निर्देशन का सम्बन्ध विद्यार्थी की उन सभी समस्याओं के समाधान में सहयोग होता है जो उसके शैक्षिक जीवन में तथा शैक्षिक परिवेश में स्वयं को समायोजित (Adjust) करने में अनुभव करता है। अब हम कुछ शैक्षिक निर्देशन गई परिभाषाओं का उल्लेख करते हैं। शैक्षिक निर्देशन को मुख्य रूप से तीन मनीषियों ने निम्नवत् परिभाषित किया है-

मायर्स (GE. Meyers) का कथन है, “शौक्षिक निर्देशन छात्र के विकास या शिक्षा के हेतु अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न करने के लिए छात्र के विभिन्न गुणों एवं विकास के अवसरों के विभिन्न समूहों के बीच सम्बन्ध स्थापित करने वाली प्रक्रिया है।’

स्ट्रैग (Ruth Strang) के अनुसार, “शैक्षिक निर्देशन का उद्देश्य व्यक्ति को उचित कार्यक्रमों के वरण एवं उसमें प्रगति करने में सहायता देना है।”

रूथ स्टैंग के अनुसार शैक्षिक निर्देशन (Educational Guidance) मुख्यतः तीन कार्य करता है-

(i) पाठ्यक्रम सम्बन्धी चयन करना।

(ii) आगे की शिक्षा के बारे में निर्णय लेने में सहयोग करना।

(iii) श्रेणी सुधार के लिए आवश्यक सहयोग प्रदान करना।

शैक्षिक निर्देशन की प्रारम्भिक अवस्थाओं (Primary Stage of Education Guidance) में तो विद्यार्थियों के लिए उनके शिक्षक भी अच्छी भूमिका निभा सकते हैं। लेकिन आगे की उच्च माध्यमिक स्तर या व्यावसायिक शिक्षण के सन्दर्भ में विकल्प चुनने तथा समुचित समायोजन की दृष्टि से शैक्षिक निर्देशन की भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है जिसे एक कुशल निर्देशनकर्ता ही पूर्णता के साथ निभा सकता है।

क्षेत्र के आधार पर निर्देशन के प्रकार (Types of Guidance Based on Fields)

क्षेत्र के आधार पर निर्देशन के निम्नलिखित तीन प्रकार हैं-

(i) शैक्षिक निर्देशन (Educational Guidance)

(ii) व्यावसायिक निर्देशन (Vocational Guidance)

(iii) व्यक्तिगत निर्देशन (Personal Guidance)

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