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पाठ्यक्रम और शिक्षण विधि | Curriculum and Teaching Method in Hindi

पाठ्यक्रम और शिक्षण विधि | Curriculum and Teaching Method in Hindi
पाठ्यक्रम और शिक्षण विधि | Curriculum and Teaching Method in Hindi
पाठ्यक्रम और शिक्षा विधि की समीक्षा कीजिए।

पाठ्यक्रम और शिक्षण विधि

उपर्युक्त शिक्षा सिद्धान्त के आधार पर हमारा लक्ष्य अन्तर्राष्ट्रीयता का विकास करके सह-अस्तित्व को बढ़ावा देना है। इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए हमें एक विशिष्ट पाठ्यक्रम निर्धारित करना होगा और सम्बन्धित उपयोगी शिक्षण विधि का चुनाव भी करना होगा।

पाठ्यक्रम के अन्तर्गत विभिन्न देशों (राष्ट्रों) के भौगोलिक अध्ययन, निवासियों के मनुष्य-जीवन और भौगोलिक नियंत्रण, संसार के इतिहास, वैज्ञानिक नियमों और उपलब्धियों, साहित्यों और कलात्मक अभिव्यक्तियों को सम्मिलित करना आवश्यक है। इस प्रकार विश्व इतिहास, भूगोल, विज्ञान, साहित्य, कला आदि विषयों के माध्यम से बालकों में अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना को विकसित करना चाहिए।

अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना का विकास अध्यापक के व्यक्तित्व, उसके व्यवहार विश्वास, कुशलता आदि पर विशेष रूप से निर्भर करता है। अध्यापक अपने व्यवहार से बच्चों के समक्ष विश्व बन्धुत्व की भावना को प्रस्तुत करें। वह विविध सत्य बातों की खोज करके बच्चों के सम्मुख प्रस्तुत करे कि वे उन पर विश्वास कर सकें और अपना सकें।

छोटी कक्षाओं में विशेषकर प्राथमिक कक्षाओं में विश्व के निवासियों के मानव जीवन का परिचय कहानी-विधि द्वारा देना अधिक फायदेमन्द होगा। इस सम्बन्ध में मानव-भूगोल (Human-Geography) का शिक्षण उपयोगी होगा। शिक्षक भौगोलिक अध्ययन की सहायता से बच्चों को समझायें कि अमुक देश (राष्ट्र) की भौगोलिक दशाएँ क्या हैं, उनके कारण वहाँ के लोगों का रहन-सहन, खान-पान, वेश-भूषा, व्यवसाय आदि क्या हैं। यह भी इससे स्पष्ट किया जाये कि अमुक भौगोलिक दशाओं को कारण वहाँ की नीतियाँ और क्रियाएँ विशिष्ट प्रकार की हैं। भूगोल की शिक्षा से अच्छी प्रकार स्पष्ट किया जाये कि विश्व के अन्य राष्ट्रों के नागरिकों के प्रति हमारा क्या कर्त्तव्य है और उनके साथ मैत्रीपूर्ण व्यवहार कैसे स्थापित किया जा सकता है।

इतिहास का शिक्षण जहाँ राष्ट्रीय भावना के विकास का साधन है वहाँ यह अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना को भी उत्पन्न कर सकता है। बच्चों को संसार का इतिहास समझाते हुए विभिन्न राष्ट्रों के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का परिचय दिया जाये। यह भी बताया जाये कि उनकी संस्कृति उनकी भौगोलिक परिस्थितियों द्वारा प्रदान की गई है। राजाओं की वंशावली और युद्ध-सम्बन्धी वर्णन राष्ट्रीयता की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण नहीं है। महत्त्वपूर्ण तो यह है कि वे अन्तर्राष्ट्रीय सम्पर्क की दृष्टि से कैसे हैं? उनका अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना पर क्या प्रभाव पड़ता है ? आदि बातें बतायी जायें। इतिहास का ज्ञान बाँटते समय बताया जाये कि साहित्य, वैज्ञानिक आविष्कार, कला-अभिव्यक्तियाँ किसी राष्ट्र की सम्पत्ति न होकर विश्व भर की सम्पत्ति है; ये सब अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों को सौम्य और उदार बनाने वाले हैं।

साहित्य मानवता की विरासत है जो विश्व बन्धुत्व, सफलता-विफलता, सुख-दुःख, विजय-पराजय, और जीवन के अनेक संघर्षों की झलक प्रस्तुत करता है। सच्चा और सार्वभौमिक साहित्य की शिक्षा प्राप्त करके बालक अवश्य ही अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना ग्रहण करके विश्व नागरिक बन सकेगा।

कला ‘सत्यं, शिवं, सुन्दरम्’ की अभिव्यक्ति है। वह भी मनुष्य मात्र के कल्याण की प्रेरणा की स्रोत है। इसके अध्ययन से भी अन्तर्राष्ट्रीयता, विश्व बन्धुत्व और मानव कल्याण की भावनाओं का विकास होता है।

विज्ञान, अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र आदि विषय भी अन्तर्राष्ट्रीयता के प्रसार के अच्छे साधन हैं। इनके माध्यम से यह अच्छी प्रकार समझाया जा सकता है कि एक देश की परिस्थिति, अकाल और किसी भी कठिनाई का प्रभाव अन्य राष्ट्रों पर क्या पड़ता है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर खाद्य पदार्थों की समस्या का समाधान कैसे किया जा सकता है, विश्व-कल्याण के उत्पादन का विकास कैसे किया जा सकता है, आदि बातें अर्थशास्त्र के अध्ययन से अच्छी तरह समझायी जा सकती हैं। विज्ञान की खोजों ने कैसे विश्व के लोगों को एक सूत्र में बाँधा है तथा अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना को कैसे प्रोत्साहित करती हैं। ये सब बातें विज्ञान के अध्ययन के माध्यम से स्पष्ट की जा सकता है।

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