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अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध के विकास में शिक्षा की भूमिका | The role of education in the development of international understanding

अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध के विकास में शिक्षा की भूमिका | The role of education in the development of international understanding
अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध के विकास में शिक्षा की भूमिका | The role of education in the development of international understanding

अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध के विकास में शिक्षा की भूमिका को स्पष्ट कीजिये। 

अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध और शिक्षा

शिक्षा द्वारा हम व्यक्ति में विश्व नागरिकता, विश्व बन्धुत्व अन्तर्राष्ट्रीय की भावना, मानव-प्रेम और सहानूभूति की भावना उत्पन्न करने में सफल हो सकते हैं। अभी तक हमारा प्रयास अनेक स्कूलों, विषयों और कार्यक्रमों द्वारा राष्ट्रीयता का निर्माण करना रहा है। हमने अन्तर्राष्ट्रीयता के निर्माण पर बल नहीं दिया है। जब हमारा राष्ट्रीयता सम्बन्धी दायरा संकुचित हो जाता है तो राष्ट्रों के सह-अस्तित्व के नियम को खतरा सताने लगता है। इससे हमारा देश सब देशों से श्रेष्ठ’ वाली प्रवृत्ति उत्पन्न होने लगती है। परिणामस्वरूप उपर्युक्त कारणों से शोषण की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता है और राष्ट्रों के बीच संघर्ष होने लगता है। अतः हमारी शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति का संकीर्ण राष्ट्रीय विकास तक सीमित नहीं होना चाहिए। उसे तो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इस रूप में प्रोत्साहित करना चाहिए कि उसमें उदार अन्तर्राष्ट्रीयता और सह-अस्तित्व की भावन जन्म ले। यहाँ हम अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना के विकास के लिए शिक्षा व्यवस्था की विवेचना करेंगे।

अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध के लिए शिक्षा सिद्धान्त

अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध के लिए शिक्षा सिद्धान्त को उत्पन्न करने की दृष्टि से निम्नलिखित बात पर ध्यान देना आवश्यक है-

अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध, अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना के विकास से सम्भव है। इसके लिए हमें बालकों में स्वतन्त्र चिन्तन और स्वतन्त्र निर्णय लेने की ऊर्जा पैदा करनी चाहिये। हम सभी शिक्षा-साधनों को चाहे वे औपचारिक (Formal) हो या अनौपचारिक (Informal) इस ऊर्जा के विकास के लिए उपयोग में ला सकते हैं। विद्यालय, परिवार, पुस्तक, प्रेस, नाटक, सिनेमा, रेडियो तथा टी०वी० आदि का उपयोग इस दिशा में सफलतापूर्वक किया जा सकता है।

शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति को यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि जो सिद्धान्त एक राष्ट्र और विभिन्न राष्ट्रों के सम्बन्धों के सकारात्मक सम्बन्धों के लिए उपयुक्त है, वही सिद्धान्त विश्व के विभिन्न राष्ट्रों के = सम्बन्धों और मानव वर्ग के सम्बन्धों के आयोजन के लिए महत्त्वपूर्ण है। अतः व्यक्ति को विश्व का बन्धुत्व, सह-अस्तित्व मानव प्रेम, सहकारिता और सहयोग के सिद्धान्त की शिक्षा देना आवश्यक होगा। अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना के विकास के लिए आवश्यक है कि हम शिक्षा द्वारा बालकों को राष्ट्रों की पारस्परिक निर्भरता को स्पष्ट रूप से समक्ष रखें। हम समझाएँ कि कोई भी राष्ट्र अपने में परिपूर्ण नहीं है। वह किसी-न-किसी आवश्यकता के लिए दूसरे राष्ट्रों पर आश्रित है। इन आवश्यकताओं की पूर्ति शोषण के दम पर नहीं, अपितु सदभाव और सह-अस्तित्व के सिद्धान्त पर होनी चाहिए।

सुरक्षा चाहे स्वयं की हो या राष्ट्र की, दोनों ही, अन्तर्राष्ट्रीय सम्पर्क और सहयोग को बढ़ावा देती हैं। प्रायः राष्ट्र को राष्ट्र से और व्यक्ति को व्यक्ति से भय बना रहता है। अतः राष्ट्र अपनी सुरक्षा के लिए शक्ति बढ़ाने के प्रयास में लग जाते हैं या बड़े राष्ट्रों से सुरक्षा का आश्वासन पाकर उनके गुट में मिल जाते हैं। फलत: अनेक प्रकार की सैनिक सन्धियाँ होने लगती हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि असुरक्षा या भय की भावना राष्ट्रीय संघर्षों को प्रोत्साहन देती है। अतः शिक्षा द्वारा व्यक्ति को यह सिखाना चाहिये कि ‘ भय’ दूर करने के लिए व्यक्ति-व्यक्ति पर एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर विश्वास करे।

विश्व में जितनी भी अच्छाइयाँ या बुराइयाँ जन्म लेती हैं उनके लिए संसार के सभी लोग समान रूप से जिम्मेदार होते हैं। यह बात शिक्षा द्वारा स्पष्ट की जानी चाहिए और बच्चों को बताया जाए कि किस तरह सामूहिक उत्तरदायित्व द्वारा विश्व में अच्छाइयाँ लायी जा सकती हैं और संसार की बुराइयाँ दूर करना सम्भव है। हम सब विश्वरूपी, कुटुम्ब के सदस्य हैं। हमें सह-अस्तित्व के सिद्धान्त के अनुसार एक-दूसरे से प्रेम तथा सहयोग करना चाहिए। यदि यह विश्वबन्धुत्व की भावना सभी राष्ट्र के नागरिकों में शिक्षा द्वारा लायी जाए तो इससे विश्वशान्ति के लिए अच्छे वातावरण का निर्माण होगा।

शिक्षा द्वारा हमें यह स्पष्ट करना है कि हमारी ‘मित्रता’ की सीमा केवल अपने राष्ट्र और समाज तक . ही नहीं रखनी है। इसे विश्व के अन्य राष्ट्रों तक पहुँचाना है। सभी राष्ट्रों के साथ हमारा मैत्रीभाव रहना चाहिये और उसके लिए प्रयत्नशील भी होना चाहिए।

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