B.Ed. / BTC/ D.EL.ED / M.Ed.

अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना की आवश्यकता एवं महत्त्व | The need and importance of international goodwill in Hindi

अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना की आवश्यकता एवं महत्त्व
अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना की आवश्यकता एवं महत्त्व

 अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना की आवश्यकता एवं महत्त्व

अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना विकसित करने के पक्ष में निम्न तर्क दिये जा सकते हैं-

1. संसार के प्रत्येक राष्ट्र में रंग-रूप, जाति, धर्म, वेशभूषा, संस्कृति, परम्पराएँ व रूढ़ियों के आधार पर अन्तर है किन्तु यह सार्वभौमिक सत्य है कि प्रत्येक मानव समान है सबमें एक ही मानवीय आत्मा का निवास है परन्तु सीमाओं के द्वारा वे अलग-अलग हैं। इन विभिन्नताओं के होने के बाद भी सम्पूर्ण मानव जाति एक ही है तथा इसी एकता की भावना का विकास करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना का विकास किया जाना अति आवश्यक है।

2. आज का युग विज्ञान व तकनीक का युग है तथा सम्पूर्ण संसार एक छोटे से गाँव में बदल गया है। किसी भी राष्ट्र में किसी भी घटना के घटित होने पर उसका प्रभाव अन्य देशों पर भी होता है। इस स्थिति में सभी राष्ट्रों में एक-दूसरे से भय बना रहता है तथा व एक-दूसरे से युद्ध की तैयारी में अपना समय व धन व्यर्थ व्यय करते रहते हैं। इन सबसे धन का व समय का दुरुपयोग होता है जो समय व धन जनता के कल्याण के लिए व्यय होना चाहिए वह नहीं होता है। अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना का विकास होने से यह धन्न व समय विनाशकारी कार्यों में न लगाकर मानव कल्याण में लगेगा जिससे उसका सद्उपयोग होगा।

3. आज की स्थिति में कोई भी राष्ट्र पूर्ण रूप से आत्म निर्भर नहीं है क्योंकि वह सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक रूप से अन्य राष्ट्रों पर निर्भर रहता है। अनेक विकसित राष्ट्र भी खनिज तेल, चीनी, गेहूँ, मसालों व दवाइयों जैसी मूलभूत चीजों व प्रौद्योगिकी के लिए भी अल्प-विकसित राष्ट्रों या विकासशील राष्ट्रों पर निर्भर हैं। एक राष्ट्र की आर्थिक सफलता या औद्योगिक उन्नति दूसरे राष्ट्र के द्वारा उत्पन्न खनिज पदार्थों या कच्चे माल अथवा श्रम पर निर्भर करती है। इसी प्रकार राजनीतिक आत्म-निर्भरता भी नहीं है, छोटे देशों का या नव-स्वतंत्र देशों का हित इसी में है कि वह किसी शक्तिशाली राजनीतिक गुट के सदस्य बन जाएँ तथा अपना अस्तित्व बनाये रखें। इसी प्रकार सांस्कृतिक आत्म-निर्भरता भी समाप्त हो चली है। पश्चिमी राष्ट्रों में बढ़ते हुए भौतिकवाद से त्रस्त होकर वहाँ के लोग पूर्वी सभ्यता का अनुसरण कर रहे हैं तथा पूर्वी सभ्यता, पश्चिमी चकाचौंध व धन की प्रचुरता से प्रभावित हो रही है। रेडियो, टी० वी०. अखबार, इण्टरनेट, अन्तर्राष्ट्रीय चैनलों के इस युग में एक राष्ट्र की संस्कृति दूसरे राष्ट्र को प्रभावित करती है तथा उसमें मूल परिवर्तन करती है। इस प्रकार आज का युग एक-दूसरे से मिलकर रहने, सहयोग करने व एक-दूसरे से सहायता लेने व देने का है तथा आपस में एक अन्तर्राष्ट्रीय भावना का विकास करने का है ऐसी स्थिति में अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना का विकास करना आवश्यक हो जाता है।

4. संसार में विकसित व विकासशील छोटे व बड़े, धनी व निर्धन राष्ट्र हैं जो इस विश्व रूपी परिवार के सदस्य हैं। जिस प्रकार एक परिवार में सभी सदस्य मिल-जुलकर प्रेम से सहयोग से रहते हैं उसी प्रकार राष्ट्रों को भी आपसी प्रेम व समझदारी से संसार में रहना चाहिए। अनेक अवसरों पर विश्व पटल पर यह देखा जाता है कि बड़े व शक्तिशाली राष्ट्र, छोटे राष्ट्रों को किसी-न-किसी प्रकार से दबाने का प्रयास करते हैं। परिवार में जिस प्रकार बड़ा भाई या कोई बड़ा सदस्य छोटे सदस्य की सहायता करता है। उसी प्रकार विकसित व बड़े राष्ट्रों को भी छोटे, निर्धन व विकासशील राष्ट्रों की सहायता करनी चाहिए। इससे राष्ट्रों के मध्य प्रेम, सहयोग, मित्रता की भावना का तथा अन्तर्राष्ट्रीय भावना का विकास होगा जो विश्व के कल्याण के लिए आवश्यक है। इसी अन्तर्राष्ट्रीय भावना से युद्ध के स्थान पर शांति का वातावरण बनेगा।

5. प्रत्येक मनुष्य में कुछ मानवीय गुण अवश्य होते हैं, जैसे- प्रेम, सहानुभूति, दया, सद्भावना, सहयोग करने की प्रवृत्ति समय व परिस्थितियाँ कुछ समय के लिए इन भावनाओं को दबा तो सकते हैं। परन्तु इन मूल गुणों को मनुष्य के अन्दर से मिटा नहीं सकते। इन मानवीय गुणों को राष्ट्र की भौगोलिक सीमाओं में बाँधा नहीं जा सकता है। एक राष्ट्र की विचारधारा दूसरे राष्ट्र से भिन्न हो सकती है परन्तु उसमें मानवीय गुण वही रहेंगे। इन्हीं गुणों के कारण अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना का विकास होता है।

6. जनतंत्र की सफलता में जनता की इच्छा का महत्वपूर्ण स्थान होता है। जनतंत्र को सफल बनाने के कार्य में शिक्षा परम आवश्यक है। शिक्षा के माध्यम से ही प्रत्येक नागरिक किसी भी समस्या के हल के लिए उस पर पूर्ण स्वतन्त्रता से विचार कर सकता है। इस दृष्टिकोण से भी अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना का विकास आवश्यक है।

7. भारत के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना का विकास होना परम आवश्यक है। सैकड़ों सालों की दासता के बाद हमने अनेक कष्ट व बलिदानों के बाद स्वतंत्रता प्राप्त की है। स्वतन्त्रता के बाद अपने भविष्य का निर्माण, अपने सम्बन्धों का निर्माण हमें ही करना है तथा अन्य राष्ट्रों के प्रति हमारी क्या भावना होगी इस पर हमारे अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध निर्भर करेंगे।

Related Link

Important Links

Disclaimer

Disclaimer: Sarkariguider.in does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment