स्वामी विवेकानन्द के अनुसार अनुशासन का अर्थ बताइए। शिक्षक, शिक्षार्थी तथा विद्यालय के सम्बन्ध में स्वामी जी के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
अनुशासन (Discipline)
स्वामी विवेकानन्द के अनुसार- अनुशासन का अर्थ है अपने व्यवहार को आत्मा द्वारा निर्देशित करना। अनुशासन के सम्बन्ध में उनके विचार प्रकृतिवाद से मिलते-जुलते हैं। उनका कहना था कि बालक को स्वानुशासन सीखना चाहिये। उन्हें किसी प्रकार का शारीरिक दण्ड नहीं देना चाहिये तथा उन पर अनुचित दबाव भी नहीं डालना चाहिये बल्कि उन्हें सीखने के लिये पर्याप्त स्वतन्त्रता दी जानी चाहिये। उन्हें स्व-अनुशासन की शिक्षा दी जानी चाहिये तथा सहानुभूतिपूर्वक सीखने के लिये उत्साहित करना चाहिये ।
शिक्षक का स्थान (Place of Teacher)
- स्वामी जी के अनुसार, बालकों को लौकिक तथा आध्यात्मिक (पारलौकिक) दोनों जीवनों के लिये तैयार करने हेतु दोनों प्रकार का ज्ञान होना चाहिये।
- शिक्षक स्वामी, आत्मज्ञानी परिश्रमी एवं उच्च चरित्र वाला हो जिससे बालक उसका अनुकरण कर आदर्श मानव बन सकें।
- शिक्षक वैयक्तिक भिन्नता के आधार पर बालकों को शिक्षा प्रदान करें।
- शिक्षक को बालक से निकट, घनिष्ठ और व्यक्तिगत सम्बन्ध स्थापित करना चाहिये।
- शिक्षक को बालक को संसार के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण का निर्माण करने में सहायता देनी चाहिये।
- शिक्षक को बालक की ज्ञान प्राप्ति के मार्ग में उपस्थित होने वाली सब बाधाओं को दूर करना चाहिये।
- शिक्षक द्वारा बालक को इस प्रकार के सभी अवसर प्रदान किए जाने चाहिये, जिनसे वह अपने हाथों, पैरों, कानों, आँखों आदि का प्रयोग करके अपनी बुद्धि का विकास कर सके।
- शिक्षक को कभी यह नहीं समझना चाहिये कि वह बालक को शिक्षा दे रहा है, क्योंकि इससे शिक्षा का उद्देश्य नष्ट हो जाता है।
शिक्षार्थी (Student)
स्वामी जी के अनुसार गुरु शिष्य का सम्बन्ध केवल सांसारिक ही नहीं होना चाहिये वरन् उन्हें एक-दूसरे के अन्दर छिपे हुए मानव को भी देखना चाहिये। विवेकानन्द के अनुसार, ज्ञान चाहे भौतिक या आध्यात्मिक, हो उसको प्राप्त करने के लिये शिक्षार्थियों द्वारा ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य है। ब्रह्मचर्य के पालन द्वारा ही वह अपनी इन्द्रियों पर नियन्त्रण रखता है, उसमें सीखने की प्रबल इच्छा उत्पन्न होती है और वह गुरु में श्रद्धा के भाव रखते हुये सत्य को जानने का प्रयत्न करता है तभी वह ज्ञान प्राप्त कर सकता है।
विद्यालय (School)
विवेकानन्द गुरु-गृह प्रणाली के पक्षधर थे । उनका विचार था कि आधुनिक परिस्थितियों में विद्यालय प्रकृति की गोद में, शहर के कोलाहल से दूर नहीं बसाये जा सकते। इसलिए विद्यालय का पर्यावरण शुद्ध होना चाहिये और वहाँ अध्ययन, अध्यापन, खेल-कूद, व्यायाम के अतिरिक्त भजन-कीर्तन एवं ध्यान की क्रियायें भी होनी चाहिये ।
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