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भाषा विकास की विभिन्न अवस्थायें | Different Stages of Language Development in Hindi

भाषा विकास की विभिन्न अवस्थायें
भाषा विकास की विभिन्न अवस्थायें

भाषा विकास की विभिन्न अवस्थायें (Different Stages of Language Development)

भाषा विकास की विभिन्न अवस्थायें-भाषा विकास के प्रक्रम को दो चरणों में स्पष्ट किया जा सकता है। इन्हें प्रारम्भिक एवं उच्च रूप कहते हैं। इनका विवरण निम्नलिखित हैं

भाषा विकास का प्रारम्भिक रूप (Preliminary Form of Language)

बच्चों में शब्दों का स्पष्ट उच्चारण तथा उनके महत्व को समझने की योग्यता प्रदर्शित होने के पहले उनमें कुछ ऐसे व्यवहार देखने को मिलते हैं जिन्हें भाषा विकास का प्रारम्भिक रूप माना जाता है। प्रारम्भ में इन्हीं विशेषताओं का प्रदर्शन होता है एवं उनमें भाषा विकास की नींव पड़ती है। यह विकास निम्नलिखित रूप में होता है –

1. क्रन्दन (Crying )- भाषा विकास की दृष्टि से बच्चों में जन्म के समय तथा उसके बाद भी रोने वाला व्यवहार क्रन्दन, काफी महत्वपूर्ण है। जन्मोपरान्त के प्रारम्भिक महीनों में क्रन्दन अधिक होता है। बच्चों में जन्मोपरान्त तीसरे सप्ताह में प्रदर्शित होने वाला क्रन्दन व्यवहार प्रथम सप्ताह के क्रन्दन व्यवहार से भिन्न मालूम होता है। इसके बाद आयु बढ़ने के साथ-साथ क्रन्दन के स्वरूप में अन्तर आने लगता है और क्रन्दन के साथ हाव-भाव तथा शारीरिक गतियाँ भी प्रदर्शित होने लगती हैं। बच्चों में सम्प्रेषण का यह एक प्रारम्भिक रूप है।

2. विस्फोटक ध्वनियाँ तथा बलबलाना (Explosive Sounds and Babbling)- जन्मोपरान्त प्रथम महीने में ही क्रन्दन के अतिरिक्त बच्चों में अनेक प्रकार की साधारण ध्वनियाँ उत्पन्न होने लगती हैं ब्लैण्ट (1917) ने इस अवधि में उत्पन्न होने वाली ध्वनियों को रिकार्ड किया और वह इस निष्कर्ष पर पहुँची कि प्रारम्भ में बच्चे माँ के साथ आ, दा के साथ आ, चा के आ या च इत्यादि ध्वनियों का प्रदर्शन अधिक करते हैं। बाद में इन्हीं से अनेक शब्दों का निर्माण प्रारम्भ होता है। प्रायः 3-4 माह की आयु में बच्चे आ. अ, अः, अ इ, ई, ऊ इत्यादि ध्वनियाँ उच्चारित करते हैं। यदि ध्यानपूर्वक इन्हें सुना जाये तो ये ध्वनियाँ अत्यन्त रोचक लगती हैं। इन्हें विस्फोटक ध्वनियाँ कहते हैं। इनकी उत्पत्ति स्वर प्रणाली में संयोगवश होने वाली गतियों के कारण होती हैं। बहरे बच्चों में भी इस प्रकार की ध्वनियाँ प्राप्त होती हैं। बच्चे 3-4 माह में इच्छानुसार बोलना प्रारम्भ करते हैं एक छठवें माह तक के स्वर तथा व्यंजनों को मिला कर कुछ कहने की योग्यता प्रदर्शित करने लगते हैं। इसे बलबलाने की अवस्था कहते हैं जिसमें बच्चे स्वर • व्यायाम (vocal exercise) कहते हैं परन्तु वे इनका अर्थ समझ पाने में असमर्थ होते हैं। बलबलाने की अवस्था तीसरे माह से आठवें माह तक मानी जाती है। इसमें बच्चों को स्वयं उच्चारित ध्वनियों को सुनने में बहुत आनन्द आता है। (Lennenberg and Lenneberg, 1975, Zelozo, 1972) जब वे अकेले होते हैं तो ऐसा व्यवहार प्रायः करते हैं लतीफ (Latif, 1934) के अनुसार सामान्य बच्चों में बलबलाने की क्रिया गूंगे बच्चों की अपेक्षा अधिक होती है। इस अवस्था में बच्चे प्रायः ऐसी ध्वनियाँ करते हैं जो उन्हें अधिक प्रिय होती हैं। इस प्रकार वे आत्म-अनुकरण करते हैं। कुछ बच्चों में यह अवस्था द्वितीय वर्ष तक जारी रहती है।

3. हाव-भाव (Gestures) भाषा विकास के प्रारम्भिक रूपों में हाव-भाव का भी विशेष महत्व है। बच्चे शीघ्र ही हाव-भाव प्रकट करना सीख लेते हैं और उनके माध्यम से दूसरों को अपने विचारों से अवगत कराना चाहते हैं। उदाहरणार्थ, यदि वे भूखे नहीं हैं तो वे दूध पिलाते समय सिर टेढ़ा कर लेते हैं और मुँह से चम्मच बाहर निकाल देते हैं। वे प्रायः पिलाया हुआ दूध बाहर कर देते हैं, खिलाते-पिलाते समय मुँह घुमा लेते हैं या मुस्कराकर अपना हाथ ऊपर उठाते हैं ताकि उन्हें उठा लिया जाये। स्नान कराते समय वे भागते हैं, अकड़ते हैं या आगे-पीछे भागते हैं। ऐसा वे प्रतिरोध प्रकट करने के लिए करते हैं। बच्चों के हाव-भाव तथा वयस्कों के हाव-भाव में केवल अन्तर होता है कि बच्चे शब्दों का प्रयोग नहीं कर पाते हैं और वयस्क अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए शब्दों का प्रयोग करते हैं और साथ-साथ पूरक संकेतों के माध्यम से भावों को व्यक्त करते हैं। क्रन्दन की भाँति हाव-भाव का भी सम्प्रेषण में विशेष महत्व होता है।

4. संवेगात्मक अभिव्यक्ति (Emotional Expression ) – बच्चों में सम्प्रेषण की पूर्णवाणी अवस्था में एक और रूप दिखाई देता है। इसमें वे संवेगों को अपने चेहरे एवं परिवर्तनों द्वारा व्यक्त करते हैं। सुखद संवेगों की दशा में विशेष ध्वनि कूजन (cooing) तथा हंसी आदि प्रदर्शित होती है जबकि दुःखद संवेगों की दशा में क्रन्दन एवं पिनपिनाहट (Whimpering) आदि का प्रदर्शन होता है। संवेगात्मक अभिव्यक्ति जो माता-पिता द्वारा की जाती है उससे बच्चों को संवेगात्मक भावों को समझने तथा प्रेषण करने में सहायता मिलती है। बच्चों में वाक्य क्षमता आ जाने के बाद भी संवेगात्मक अभिव्यक्ति सम्प्रेषण एक प्रभावी रूप में जारी रहती है।

भाषा के विकास के उच्च रूप (Advanced Forms of Language Development)

भाषा विकास के उच्च रूप निम्नलिखित हैं

1. बोध या समझ (Comprehension) – बच्चों में अन्य व्यक्तियों के कथन या निर्देशों को

समझने की योग्यता स्वयं के शब्द प्रयोग की क्षमता से पहले ही प्रदर्शित होने लगती है। ऐसे शब्द जिनका बोध बच्चों या किसी अन्य को भी होता है, उनकी क्षमता अधिक तथा अपने शब्दकोष में ज्ञात शब्दों की संख्या कम होती है। इस तरह की विशेषता हर आयु वर्ग के लोगों में पायी जाती है। उदाहरण के लिए अपने देश में अंग्रेजी भाषा कुछ न कुछ सभी शिक्षित व्यक्ति जानते हैं। यदि वार्तालाप होता है हम दूसरे व्यक्ति की बातों को समझ लेते हैं परन्तु उतना नहीं बोल पाते हैं इससे स्पष्ट है कि भाषा या शब्दों की समझ पहले ही विकसित हो जाती है जबकि उच्चारण या विचारों की वाचिक अभिव्यक्ति क्षमता बाद में विकसित और प्रदर्शित होती है। बोध के दृष्टिकोण से विभिन्न शारीरिक अभिव्यक्तियों का विशेष महत्व है टरमन एवं मेरिल के अनुसार बच्चों में दो वर्ष में दो, और 62 वर्ष में तीन निर्देशों की समझ आ जाती है। इस काल में अधिगम विशेष महत्व रखता है।

2. शब्द भण्डार का निर्माण (Building a Vocabulary) – आयु में वृद्धि तथा अधिगम परिस्थितियों का लाभ मिलने के कारण बच्चे धीरे-धीरे शब्दों को सीखना तथा बोलना प्रारम्भ करते हैं। इस ” प्रकार वे अपने लिए शब्द भण्डार का निर्माण करते हैं तथा उसका उपयोग भी करते हैं। शब्द भण्डार दो प्रकार का होता है।

(i) सामान्य शब्द भण्डार (General Vocabulary)- इस अवधि में बच्चे वाणी या कथन के सभी भागों का अधिगम नहीं करते हैं बल्कि अपने उपयोग की दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण शब्दों का ही अर्जन करते हैं। इस प्रकार के शब्द भण्डार में संज्ञा शब्दों (Nouns) की ही अधिकता होती है। सर्वप्रथम बच्चे पापा, मामा आदि संज्ञा पदों का ही अधिगम करते हैं। इस शब्दों के अधिगम पर घर के अन्य सदस्यों के द्वारा बोले जाने वाले कथनों का भी प्रभाव पड़ता है संज्ञा पदों के बाद बच्चों के शब्द-कोष में क्रिया, विशेषण, क्रिया-विशेषण आदि शब्दों का क्रमशः विकास होता है सर्वनाम शब्दों का विकास सबसे बाद में होता है। विशेषणों के रूप में सबसे पहले अच्छा, बुरा, शरारती इत्यादि का अधिगम होता है और क्रिया विशेषण के रूप में यहाँ वहाँ आदि का अर्जन होता है।

(ii) विशेष शब्द भण्डार (Special Vocabulary)- बच्चों की आयु तथा सामाजिक सम्बन्धों में वृद्धि होने के कारण विचारों को संप्रेषित करने की दृष्टि से सामान्य शब्द भण्डार पर्याप्त नहीं होते हैं। अतः वे विशेष शब्द भण्डार का निर्माण करते हैं। प्रारम्भिक दो वर्षों में इस योग्यता का अभाव होता है। परन्तु तीसरे वर्ष से विशिष्ट शब्दकोष का निर्माण आरम्भ हो जाता है। प्रारम्भ में उसे कठिन एवं विस्तृत शब्दों को सीखने में कठिनाई होती है परन्तु मानसिक योग्यता में वृद्धि स्वर यंत्र की परिपक्वता अधिगम के कारण विशिष्ट शब्दों को सीखना सरल होता जाता है। विशिष्ट शब्द भण्डार के निर्माण की प्रक्रिया तथा उसके पक्षों का अध्ययन अनेक मनोवैज्ञानिकों ने किया है। इन अध्ययनों से पता चलता है कि विशिष्ट शब्द भण्डार के निर्माण में सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक व वैयक्तिक कारकों का बहुत प्रभाव पड़ता है।

3. वाक्य निर्माण (Sentence Forming)- भाषा विकास के रूपों में तीसरी महत्वपूर्ण अवस्था वाक्यों के निर्माण की योग्यता का विकास होती है। प्रारम्भ में बच्चे प्रायः एक ही शब्द से अपनी विचारधारा को व्यक्त करते हैं जैसे कोई बच्चा कहता है कि ‘दीजिये’ तो उसका अर्थ यह हुआ कि मुझे वह वस्तु दीजिए। इस प्रकार शब्दों के साथ वह संकेत या हाव-भाव भी व्यक्त करता है। शब्दों को जोड़कर वाक्य बनाने की योग्यता द्वितीय वर्ष में आरम्भ होती है और धीरे-धीरे इसकी क्षमता बढ़ती ही रहती है। बारह से अठारह माह तक उनमें एक ही शब्द के वाक्य प्रदर्शित करने की क्षमता होती है। इसके बाद वे दो या इससे अधिक शब्दों को जोड़कर वाक्य बनाने लगते हैं। इस प्रकार उनमें भाषा विकास की प्रक्रिया पूर्णता की ओर अग्रसर होती है। दूसरे वर्ष के अन्त तक वे छोटे-छोटे वाक्य बनाने लगते हैं और साथ-साथ संकेतों एवं हाव भाव का भी प्रयोग करते हैं। धीरे-धीरे वाक्यों की लम्बाई बढ़ती जाती है और संकेतों एवं हाव-भाव का प्रयोग कम हो जाता है।

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