भाषा विकास को प्रभावित करने वाले कारक | Factors Affecting the Language Development in Hindi
भाषा विकास को प्रभावित करने वाले कारक- यद्यपि बालकों के भाषा विकास का एक क्रम होता है, किन्तु ऐसे बहुत से तत्व है जो इस भाषा विकास को प्रभावित करते है जिनके कारण बालकों के भाषा विकास में व्यक्तिगत विभेद पाया जाता है। नीचे भाषा विकास के तत्वों का विवरण दिया जा रहा है :-
1. शारीरिक रचना
कुछ बालकों की जन्म से शारीरिक रचना ऐसी होती है कि वह जल्दी बलबलाने, शब्द बनाने तथा वाक्य रचना करने लगते है उसके वे अंग जो भाषा विकास से सम्बन्धित होते है वे इस तरह काम करते हैं कि बालक का भाषा विकास जल्दी से हो जाये। उसके विपरीत जिन बालकों को भाषा विकास सम्बन्धी अंग भाषा विकास की दृष्टि से कम उपयुक्त होते हैं उनका भाषा विकास अपेक्षाकृत देर से होता है।
2. शारीरिक स्वास्थ्य
जिन बालकों का स्वास्थ्य अच्छा रहता है, उनका भाषा विकास जल्दी होता है, किन्तु इसके विपरीत जो सदैव रोगी तथा अस्वस्थ रहते है, उनकी भाषा विकास की क्रिया अवरुद्ध होती जाती है। इसके कारण हैं – 1. बालक का अपने मित्रों या साथियों के साथ सम्पर्क न हो पाना। 2. बिना बोले ही उसकी आवश्यकता की पूर्ति हो जाना 3. बीमारी या शारीरिक न्यूनता के कारण बोलने की प्रेरणा तथा रुचि का अभाव आदि।
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3. बौद्धिक स्तर
टरमैन, शलें, गिरीसन एवं मैकार्थी ने अपने परीक्षण से यह निष्कर्ष निकाला कि बालकों के बौद्धिक स्तर तथा भाषा विकास का घनिष्ठ सम्बन्ध है। इस प्रकार स्पाइकर तथा इरविन ने कहा है कि बालक “बुद्धि लब्धि“ तथा उनकी भाषा सम्बन्धी योग्यता में परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है। इन कथनों का अभिप्राय यह है कि कुशाग्र बुद्धि वाले बालकों का भाषा विकास अपेक्षाकृत जल्दी होता है। अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि सामान्य बुद्धि वाले बालकों से चार महीने पूर्व कुशाग्र बुद्धि बालक बोलना प्रारम्भ कर देते हैं जबकि कम बुद्धि वाले बालक कभी कभी ढाई तीन साल तक भाषा की योग्यता का विकास कर पाते है।
टरमन, फिशर, यंग, मेकार्थी तथा थाम्पसन के अनुसार कुशाग्र बुद्धि वाले बालकों का शब्द भण्डार बड़ा होता है। उपर्युक्त मतों के विपरीत कुछ विद्वानों जैसे-जर्सील्ड, सिरकन, लायन्स आदि के अनुसार यह आवश्यक नहीं है कि कम बुद्धि वाले बालकों का भाषा विकास देर से होता है।
4. लिंगगत विभेद
जन्म के उपरान्त द्वितीय वर्ष से बालक तथा बालिकाओं में भाषा विकास में अन्तर आना प्रारम्भ होता है। इस सम्बन्ध में बाल मनोवैज्ञानिकों ने अनेक परीक्षण किये और वे निम्नलिखित निष्कर्ष पर पहुँचे-
1. बालकों की अपेक्षा बालिकायें लम्बे लम्बे वाक्य बोलती हैं।
2. बालकों की अपेक्षा बालिकायें जल्दी बोलने लगती है।
3. बालकों की अपेक्षा बालिकाओं का बोध शब्दावली अधिक विस्तृत होती है।
बालकों की अपेक्षा बालिकाओं का भाषा विकास क्यों पहले होता है। इसका कारण स्पष्ट करते हुए मेकार्थी ने बताया कि हम देखते है कि बाल्यावस्था में बालिकायें माँ के साथ एकरुपता स्थापित करती है। चूँकि माँ घर में रहती है अतः बालिकाओं को माँ के साथ घर में काम काज करने का अधिक अवसर रहता है। इसके विपरीत पिता अपने काम काज के कारण घर से बाहर अधिक समय तक रहता है, जिससे बालकों को पिता के साथ अधिक सम्पर्क स्थापित करने का अवसर नहीं मिलता है। सम्पर्क के अभाव के कारण बालकों में भाषा विकास देर से होता है। किन्तु सम्पर्क की अधिकता के कारण बालिकाओं में भाषा विकास जल्दी हो जाता है। इसके अतिरिक्त मनोवैज्ञानिकों का यह कथन है कि सम्पर्क के अभाव के कारण बालक अपने आपको असुरक्षित अनुभव करते है, जिसके परिणामस्वरूप बालकों में बालिकाओं की अपेक्षा भाषा सम्बन्धी दोष अधिक पाये जाते हैं।
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5. संवेगात्मक तनाव
जिन बालकों के शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक विकास में अनेक अवरोध रहते है और उनकी आवश्यकताओं का दमन होता रहता है उनका भाषा विकास अपेक्षाकृत देर से होता है। प्रायः ऐसे बालक संवेगात्मक अनुभूति के कारण बोलते कम है और दुःखी और चिडचिड़े अधिक रहते है।
6. परिवार का सामाजिक एवं आर्थिक स्तर
विभिन्न अध्ययनों से ज्ञात होता है कि जिन परिवारों का सामाजिक एवं आर्थिक स्तर ऊँचा होता है उन परिवारों में पले हुए बालकों का भाषा विकास अपेक्षाकृत जल्दी और अच्छा होता है। इसका कारण यह है कि ऊँची सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति वाले परिवार के बालकों को सीखने का अच्छा अवसर प्राप्त होता है। गैसेल, जरशील्ड, मेकार्थी, डेविस एवं यंग आदि बाल मनोवैज्ञानिकों के अनुसार निम्न सामाजिक तथा आर्थिक स्तर वाले परिवारों के बालकों की अपेक्षा उच्च स्तर के परिवारों के बालक अधिक बोलते हैं, जल्दी बोलना सीखते हैं और शुद्ध उच्चारण करते हैं। इसके अतिरिक्त उनका शब्द भण्डार भी विस्तृत होता है और बोलने की आधुनिकतम शैली होती है। इसका सबसे प्रमुख कारण उच्च स्तर के परिवारों का भौतिक, सामाजिक तथा नैतिक वातावरण अच्छा होना है।
7. पारिवारिक सम्पर्क
स्पिज लूइस मैकार्थी एवं थाम्पसन आदि बाल मनोवैज्ञानिकों ने अनाथालय के बालकों, जिनमें पारिवारिक सम्पर्क का अभाव रहता है, का अध्ययन किया। अध्ययन के आधार पर वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि ये बालक रोते अधिक, किन्तु बलबलातें कम है और उनके मुख से निकलने वाली ध्वनियों की संख्या भी कम होती है, इसके परिणामस्वरूप उनका भाषा विकास देर से हो पाता है और वे इस सम्बन्ध में पिछड़े रहते हैं। इसके विपरीत जो बालक परिवार में माता पिता के साथ रहते है वे शीघ्र तथा शुद्ध रूप से बोलना सीख जाते है। डेविस तथा मैकार्थी ने परिवार के सदस्यों की संख्या तथा भाषा विकास का घनिष्ठ सम्बन्ध पाया है। उनका विचार है कि जिन परिवारों में बच्चे अधिक होते है उनके बच्चों का भाषा विकास जल्दी हो जाता है। इसके अतिरिक्त उन्होंने यह भी देखा कि अन्य बालकों की अपेक्षा बड़े बालक का उच्चारण अधिक शुद्ध होता है। अध्ययनों में यह भी देखा गया है कि जुड़वाँ बालकों का भाषा विकास देर में हो पाता है क्योंकि सामाजिक सम्पर्क का अपेक्षाकृत कम अवसर प्राप्त हो पाता है।
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