भाषा का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Language)
भाषा का अर्थ एवं परिभाषा- मनुष्य के जीवन में भाषा का विशेष महत्व है। मानव एक सामाजिक प्राणी है और समाज में रहने के कारण हमें अपने विचारों को दूसरों तक पहुँचाने तथा दूसरों के विचारों को स्वयं समझने के लिए एक उपयुक्त माध्यम की आवश्यकता होती है। भाषा इन्हीं विचारों की अभिव्यक्ति एवं अदान-प्रदान का एक सुन्दर एवं सुगम साधन है। भाषा को विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने भिन्न-भिन्न प्रकार से परिभाषित किया है, उनमें से कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-
“भाषा से तात्पर्य विचारों तथा अनुभूतियों का अर्थ व्यक्त करने वाले उन सभी साधनों से है जिसमें संज्ञान या विचारों के आदन-प्रदान के सभी पक्ष, जैसे लिखना, बोलना, संकेत, चेहरे की अभिव्यक्ति हाव भाव मूक अभिनय एवं कला इत्यादि सम्मिलित हैं।”
“Language encompasses every means of communication in which thoughts and feelings are symbolized so as to convey meaning to others. It includes such widely differing forms of communication a writing, speaking, singing, language, facial expression, gesture pantomime and art.” – हरलॉक (Hurlock, 1978, 1984)
“व्यापक अर्थों में भाषा का आशय निःसन्देह ऐसे साधन से हैं जिसके द्वारा अर्थ एवं भाव का लोगों के बीच सम्प्रेषण होता है।”
“Language, in broad sense, of course, in any means, whatsoever of communicating meaning and feeling among individuals.” -एल. एच. स्टॉल्स (L.H. Stolls, 1974)
उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि भाषा शब्द का अर्थ बहुत ही व्यापक तथा जटिल है।
विचारों तथा भावों को व्यक्त करने वाले सभी माध्यम व साधन इसमें सम्मिलित हैं। एक भाषा दूसरी भाषा से अनेक तरह से भिन्न हो सकती है, परन्तु प्रत्येक भाषा के लिए कुछ निश्चित मानदण्ड होते हैं उनका पालन करने पर ही कोई भाषा उपयोगी तथा उत्पादक मानी जाती है।
वाणी का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Speech)
भाषा के विकास में वाणी का महत्वपूर्ण स्थान है। वाणी विकास हेतु ध्वनियों एवं शब्दों का ज्ञान आवश्यक है। शिशु पहले ध्वनियाँ तथा उसके बाद शब्द सीखता है। आगे चलकर उसे भाषा पर नियन्त्रण अनुभव होने लगता है। वाणी को वाक्शक्ति भी कहा जाता है, परन्तु वाणी उसे ही कहा जाता है जिसका
अर्थ अन्य लोग शीघ्रता से समझ सकते हैं। वाणी को परिभाषित करते हुए भिन्न-भिन्न मनोवैज्ञानिकों ने विभिन्न विचार व्यक्त किये हैं, उनमें से कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं “वाणी, भाषा का एक रूप हैं जिसमें स्पष्ट ध्वनियों या शब्दों का उपयोग करके विचारों की अभिव्यक्ति की जाती है।’
“Speech is a form of Language in which articulate sounds or words are used to convey meanings.” • हरलॉक Hurlock, (1978-84)
“वाणी का अर्थ उच्च स्तरीय सुस्पष्ट स्वरों एवं सम्बन्धित ध्वनि प्रणालियों का उपयोग करके सम्प्रेषण करना है।’
“The language of speech, however, is communication through the use of a highly evolved system of articulate vocal and related sounds.” – एल. एच. स्टास (L.S Stotts, 1974)
उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह स्पष्ट है कि किसी ध्वनि को वाणी का रूप प्राप्त करने के लिए उसे स्पष्ट तथा अर्थयुक्त होना चाहिए। इन योग्यताओं में आयु तथा अनुभव के साथ वृद्धि होती रहती है। यह एक क्रियात्मक मानसिक कौशल है।
भाषा एवं वाणी में सम्बन्ध (Relation between Language and Speech)
भाषा एवं वाणी में निम्नलिखित सम्बन्ध हैं-
1. प्रत्येक भाषा सीमित संख्या में वाणी-ध्वनियाँ (Speed sounds) प्रयोग की जाती हैं जिन्हें ध्वनिग्राम (Phonemes) कहा जाता है।
2. वाणी ध्वनियाँ अपने आप में अर्थयुक्त नहीं होती है, परन्तु जब इन्हें परस्पर संयुक्त कर दिया जाता है तो वे अर्थयुक्त हो जाती हैं। जैसे C.A.T. अक्षरों से तीन ध्वनियाँ निकलती हैं परन्तु इनका अलग-अलग कोई अर्थ नहीं निकलता परन्तु यदि इन्हें संयुक्त कर दिया जाये एक अर्थयुक्त शब्द बन जायेगा।
3. सभी भाषाओं में शब्दों को क्रमबद्ध रूप से संयुक्त करके वाक्य निर्माण की व्यवस्था होती है। वाक्यों की संख्या प्रारम्भ में कम हो सकती है परन्तु आगे चल असीमित हो जाती हैं।
मानव जीवन के लिए भाषा का महत्व (Utility of Language for Human Life)
भाषा, विचारों तथा भावों के प्रकटीकरण का सबसे सशक्त माध्यम है। इसके द्वारा प्राणी को, शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा शैक्षिक क्षेत्र में लाभ प्राप्त होता है। भाषा के विकास के महत्व को निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-
1. सामाजिक सम्बन्धों में सहायक (Helpful in Social Relations)- मानव जीवन में भाषा एक ऐसी शक्ति या माध्यम है जिसके द्वारा हम अन्य लोगों के साथ सम्पर्क स्थापित करते हैं।’ विचारों एवं भावनाओं के वे सभी प्रतीक तथा अर्थ देने वाले सभी रूप जिनका प्रयोग सामाजिक सम्पर्क के रूप में किया जाता है, भाषा के ही अंग हैं। इन्हीं प्रतीकों एवं रूपों के आधार पर मानव को अन्य प्राणियों में पृथक समझा जाता है, क्योंकि भाषा के माध्यम से ही व्यक्ति समाज में अन्य व्यक्तियों के साथ सम्बन्ध स्थापित करता है।
2. अन्य लोगों के साथ सम्पर्क स्थापित करने में सहायक (Helpful in contacting Others) – भाषा अन्य लोगों के साथ सम्पर्क स्थापित करने की शक्ति है। जैसे-जैसे बालकों का भाषा विकास होता है, वैसे-वैसे उनमें दूसरों से सम्पर्क स्थापित करने की योग्यता का भी विकास होता जाता है। भाषा के द्वारा बालक अन्य लोगों की बातों को समझता है तथा अपने विचारों को दूसरों के समक्ष व्यक्त करता है। इस सम्बन्ध में मेनार्थी का कथन है कि विद्यालय के पूर्व के वर्षों में बालक द्वारा अभिव्यक्त भाषा में 96 प्रतिशत प्रक्रियाएँ सामाजिक होती हैं। इन सामाजिक प्रतिक्रियाओं के सामान्य उद्देश्य सूचना प्राप्त करना, अपने भावों की अभिव्यक्ति करना, दूसरों को प्रेरणा देना, समाजीकरण की प्रक्रिया में सहायता लेना आदि।
3. मानव विकास में सहायक (Helpful in Human Development ) – भाषा मानव विकास की आधार शिला है। जो बालक अपने विचारों का प्रकटीकरण सीमित सन्तुलित एवं प्रभावशाली भाषा में करते हैं वे जीवन में विकास की ओर अग्रसर होते हैं तथा जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता को प्राप्त करते हैं ।
4. नेतृत्व के विकास में सहायक (Helpful in Development of Leadership) भाषा के माध्यम से कोई भी व्यक्ति समूह का नेता बन सकता है। जो व्यक्ति अपने विचारों को कुशलतापूर्वक व्यक्त कर लेते हैं, उनकी भाषा व्यक्तियों को आसानी से अपनी आकर्षित कर लेती है। अतः स्पष्ट है कि नेतृत्व गुणों के विकास में भाषा सहयोग प्रदान करती है।
5. शैक्षिक उपलब्धि में सहायक (Helpful in Academic Achievement ) – शैक्षिक उपलब्धियों के लिए भाषा का ज्ञान आवश्यक है। जिस बालक का शब्द भण्डार बड़ा होता है, उसका वाक्य विन्यास अच्छा होता है तथा भाषा के प्रस्तुतीकरण में सौन्दर्य एवं मधुरता होती है। ऐसे बालकों की शैक्षणिक उपलब्धियां भी सामान्य बालकों से अधिक होती है।
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