दृष्टि बाधिता या दृष्टि असमर्थता का क्या अर्थ है। दृष्टि बाधिता की मुख्य विशेषताओं, पहचान तथा इनकी देखभाल एवं प्रशिक्षण की विवेचना कीजिए।
दृष्टि बाधिता या दृष्टि असमर्थता का वर्णन करने के दो तरीके हैं-
(a) वैधानिक या कानूनी या मेडिकल परिभाषा:- इस परिभाषा में दृष्टि के क्षेत्र का अनुमान लगाया जाता है। इससे यह निर्धारित किया जाता है कि क्या कोई व्यक्ति वैधानिक या कानूनी लाभ उठा सकता है या नहीं? सन् 1934 में अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन ने यह परिभाषा दी थी। इसे अब अंधों की अमेरिकन संस्था ने तथा अन्य देशों की अन्धों की परिषदों ने इसे अब स्वीकार कर लिया है। कानूनी परिभाषा के अन्तर्गत यह देखा जाता है कि व्यक्ति की आँख कितनी दूरी पर रखी वस्तु को स्पष्ट रूप से देख सकती है। इसे एक Snellen chart द्वारा देखा जाता है। यदि कोई व्यक्ति एक मीटर की दूरी पर अंगुलियों को नहीं गिन सकता तो वह अन्धा माना जाता है। कुछ व्यक्ति आंशिक रूप से तथा कुछ पूर्ण रूप से दृष्टि असमर्थी होते हैं। कुछ लोग आंशिक दृष्टि असमर्थी को निम्न दृष्टि का नाम देते हैं जोकि उचित नहीं है।
(b) शैक्षिक या कार्यक्रम परिभाषा:- कई अध्यापक कानूनी या मेडिकल परिभाषा मे रुचि नहीं रखते हैं तो ऐसा विचार व्यक्त किया जाता है कि कानूनी रूप से अन्धे व्यक्ति की दृष्टि नहीं होती जबकि कानूनी अन्धों का बहुत कम प्रतिशत ही पूर्ण अन्धा होता है। इनमें से अधि कतर लोग देखने योग्य होते है। कानूनी परिभाषा की परिसीमा को देखते हुए अधिकतर लोग शैक्षिक परिभाषा का अधिक समर्थन करते हैं। शैक्षिक उद्देश्य के अन्तर्गत वे लोग जो बुरी तरह से दृष्टि बाधित होते हैं और जिन्हें ब्रेल द्वारा पढ़ाने की आवश्यकता होती है दृष्टि असमर्थी कहलाते हैं जो आंशिक दृष्टि वाले लोग होते हैं वे मुद्रित शब्दों को या मोटे-मोटे अक्षरों को पढ़ सकते हैं।
दृष्टि बाधितों / असमर्थियों की विशेषताएँ:-
दृष्टि बाधितों/असमर्थियों की मुख्य विशेषताओं का अध्ययन हम निम्न शीर्षकों के अन्तर्गत करते हैं-
- भाषा विकास
- बौद्धिक योग्यता
- शैक्षणिक उपलब्धि
- सामाजिक और कार्य समायोजन
1. भाषा विकासः-
(i) दृष्टि बाधितों या असमर्थियों की भाषा का विकास बाधित नहीं होता ऐसी बात अध्ययनों परिणामस्वरूप सामने आई है। अन्धा व्यक्ति भाषा से सुन सकता है तथा वह दृष्टियुक्त बच्चे को अधिक भाषा का प्रयोग कर सकता है क्योंकि उसके पास संप्रेषण का यही मुख्य साधन होता है।
(ii) बेशक ऐसे बच्चो की भाषा बाधित नहीं होती लेकिन यह सामान्य बच्चो की भाषा से भिन्न होती है। सामान्य बच्चो की भाषा उसके संवेदी अनुभवों के अनुसार ही स्थाई होती है परन्तु अन्धा व्यक्ति ‘शाब्दिक अवास्तविकता का प्रदर्शन करता है। अर्थात वह शब्दों का अपर्याप्त निर्भरता को प्रदर्शित करता है।
2. बौद्धिक योग्यता:-
(i) दृष्टि बाधित बच्चे निम्न बुद्धि वाले नहीं होते। जिन बच्चों का I.Q. शुरू के वर्षों में कम होता है। वे अचानक नाटकीय ढंग से पर्याप्त शैक्षिक सुविधाओं के कारण बुद्धि का प्रदर्शन करते हैं।
(ii) अच्छे बच्चों की संप्रत्यात्मक योग्यताएँ सामान्य बच्चों से निम्न स्तर की नहीं तो अलग अवश्य होती है। संप्रत्यात्मक विकास में कमी पर्याप्त अधिगम अनुभवों के अभाव के कारण होती है।
(iii) ऐसे बच्चे स्थान को समझने में कठिनाई महसूस करते हैं। वे दूरी को नहीं देख सकते। वे स्थान का अनुभव किसी स्थान पर पहुँचने में लगे समयके आधार पर करते हैं। आवाजों से वे दिशा और दूरी का अनुमान प्राप्त करते हैं।
(iv) ऐसे बच्चों में ध्यान की योग्यता अधिक होती है क्योंकि इनकी अन्य इन्द्रियों पर निर्भरता अधिक होती है। वे कार्य को अच्छी तरह से सुन सकते हैं।
3. शैक्षणिक उपलब्धि:
(i) आंशिक रूप से और पूर्ण रूप से दृष्टि बाधित बच्चे दृष्टि वाले बच्चों से मानसिक आयु की दृष्टि से पीछे होते है।
(ii) दृष्टि बाधित बच्चों की उपलब्धि उतनी प्रभावित नहीं होती जितनी कि श्रवण बाधित बच्चों की होती है क्योंकि सुनने की योग्यता स्कूल अधिगम के लिए अधिक महत्त्वपूर्ण है।
4. सामाजिक और कार्य समायोजन:
(i) ऐसे बच्चों में यदि समायोजन की समस्या पैदा होती है तो वह इस कारण से हो सकती है कि समाज ने उनके साथ अलग प्रकार का व्यवहार किया है। दूसरे शब्दों में अन्धे व्यक्ति के प्रति समाज की प्रतिक्रिया उसके समायोजन को निर्धारित करती है।
(ii) दृष्टि बाधित बच्चों को उनके साथियो द्वारा उचित प्रकार से स्वीकार नहीं किया जाता है। अधिक दृष्टि बाधित बच्चों को कम बाधित बच्चों की अपेक्षा अधिक स्वीकार किया जाता है। क्योंकि उनके प्रति उनकी सहानुभूति भी बढ़ जाती है।
(iii) यह आवश्यक नहीं होता कि अन्धे व्यक्ति अधिक आश्रित और निसहाय होते है। अन्धे व्यक्ति की निर्भरता और निःसहायता अन्धे के प्रति समाज के दृष्टिकोण और अपेक्षाओं के परिणाम स्वरूप होती है।
दृष्टि असमर्थियों की पहचान:-
जो बच्चे जन्म से अन्धे होते हैं। उनकी पहचान उनके माता पिता जीवन के वर्ष में ही कर लेते है। लेकिन जिन बच्चों में दृष्टि बाधिता कम होती है। उनकी पहचान प्राथमिक स्कूल से पहले नहीं हो पाती जब स्कूल कार्य मे दृष्टि आवश्यक हो जाती हैं।
इन बच्चों की पहचान लिए प्रशिक्षित व्यावसायिक लोगों की सहायता लेनी चाहिए ताकि दृष्टि बाधिता की मात्रा और प्रकृति की पहचान की जा सके। जिन बच्चों की आँखें देखने में सामान्य लगती है। उनकी पहचान जल्दी से नहीं हो पाती। अध्यापक ऐसे बच्चों की पहचान निम्न चेक लिस्ट की सहायता से कर सकता है। जिसे NCERT, नई दिल्ली ने विकसित किया है। यह ध्यान रहे कि कंवल एक ही व्यवहार से इनकी पहचान नहीं होती है। एक से अधिक व्यवहारों का होना आवश्यक है।
1. व्यवहार इसके अन्तर्गत-
- बच्चा आँखों को अत्यधिक मलता रहता है।
- एक आँख को ढक कर सिर आगे को झुकाता है।
- पलकों को बहुत बार झपकता है।
- दूर की दृष्टि वाली खेलों में भाग लेने के योग्य नहीं होता ।
- रोशनी के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होना।
- पुस्तकों को आँखों के निकट रखकर पढ़ना।
- कक्षा में बोर्ड से नोट उतारते समय अन्य बच्चों से पूछना।
Appearance-
- ऐसे बच्चों की आँखें erossed होती हैं।
- पलकें सूजी हुई होती हैं।
- आँखों में पानी भरा होता है।
Complants-
- आँखों में जलन या खुजली का महसूस होना।
- ठीक प्रकार से देख न पाना।
- सिरदर्द रहना, आँखों पर जोर डालकर काम करने के बाद घबराहट का होना।
- धुँधली या दोहरी दृष्टि का होना ।
अध्यापक द्वारा ऐसे विद्यार्थियों की पहचान करने के बाद उन्हें विशेषज्ञों के पास भेजना आवश्यक होता है ताकि उनकी मेडिकल जाँच की जा सके। जैसे विद्यार्थियों को उपयुक्त स्कूलों में समायोजित किया जाना चाहिए ताकि वे ठीक प्रकार की शिक्षा और प्रशिक्षण प्राप्त कर सकें। इनके लिए निम्नलिखित प्रकार के स्कूल हो सकते हैं-
- (a) आवासीय स्कूल।
- (b) नियमित स्कूलों में विशेष कक्षा में इन्हें रखना।
- (c) एकीकृत ढाँचे में नियमित कक्षा कक्ष में इन्हें स्थापित करना ।
- (d) कई स्कूलों का एक ही इंचार्ज अध्यापक का होना।
(a) आवासीय स्कूल- अत्यधिक दृष्टि असमर्थी बच्चों को आमतौर पर आवासीय स्कूलों में रखा जाता है। वे यहाँ अपने माता-पिता से तथा अन्य साथियों से अलग रहते हैं। रात दिन यहीं व्यतीत करते हैं लेकिन इस प्रकार की व्यवस्था बहुत कम लोकप्रिय है। विशेषज्ञ यह मानते हैं कि आवासीय सुविधा केवल अंतिम कदम है। अभी हाल की यही प्रवृत्ति रही है कि अन्धे बच्चों को आवासीय संस्थाओं में न रखा जाये जब तक कि उनमें कोई अन्य न्यूनता या कमी ने हो, जैस मानसिक विकलांगता, बहरापन आदि। ब्रेल सिखाकर इन्हें नियमित कक्षा में रखना चाहिए। ऐसी सरकार की योजना है ‘असमर्थी बालकों के लिए एकीकृत शिक्षा’ का नाम दिया गया है ।
(b) विशेष कक्षा में रखना- इन्हें विशेष कक्षा में रखना लोकप्रिय विधि है। बच्चा अपना सारा समय विशेष कक्षा में बिताता है तथा नियमित स्कूल में ही रहता है। विशेष रूप में प्रशिक्षित और शिक्षित अध्यापक उनके शिक्षण का कार्य करेंगे।
(c) संसाधन कक्ष की सुविधा वाली कक्षा में रखना- यह विधि सब से अधिक प्रभावशाली है। इस व्यवस्था के अन्तर्गत बच्चे दृष्टि वाले बच्चों के साथ रखे जाते हैं। वे उनके साथ नियमित कक्षा में आधा दिन व्यतीत करते हैं और नियमित अध्यापकों द्वारा इन्हें पढ़ाया जाता है। विशेष अनुदेशनों के लिए उन्हें संसाधन कक्ष में ले जाया जाता है ताकि संसाधन अध्यापक की सहायता ली जा सके। बच्चे की शिक्षा नियमित अध्यापक और संसाधन अध्यापक की संयुक्त उत्तरदायित्व होता है। यह व्यवस्था तभी प्रभावशाली होगी जब अन्धों की संख्या नियमित स्कूलों में पर्याप्त होगी।
(d) कई स्कूलों का एक ही इंचार्ज अध्यापक- जब अन्धों की संख्या अधिक नहीं होती तथा एक ही स्कूल में एक संसाधन अध्यापक की नियुक्ति संभव न हो, ऐसी स्थिति में एक ही संसाधन अध्यापक कई स्कूलों का इंचार्ज बन जाता है तथा वह हर स्कूल में घूम-घूमकर अन्धे बच्चों को विशिष्ट निर्देशन प्रदान करता है। यह व्यवस्था ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत लोकप्रिय है।
दृष्टि असमर्थी बच्चों की देखभाल और प्रशिक्षण-
हर बच्चे को चाहे व किसी भी प्रकार का असमर्थी क्यों न हो, या सामान्य ही क्यों न हो, उपयुक्त शिक्षा एवं प्रशिक्षण प्राप्त करने का अधिकार है। हर समाज को यह अधिकार दृष्टि असमर्थी बालक को भी प्रदान करना चाहिए ताकि वे भी समाज के लाभकारी सदस्य बन सकें।
दृष्टि असमर्थी बच्चों में कई प्रकार के बच्चे शामिल हो सकते हैं- जैसे पूर्ण अन्धे, आंशिक दृष्टि असमर्थी, कम दृष्टि वाले तथा एक आँख वाले शिक्षा और प्रशिक्षण तथा उनकी देखभाल इनके दृष्टि दोष के अनुसार ही होनी चाहिए। ऐसी देखभाल शिक्षा और प्रशिक्षण माता-पिता, अध्यापकों और समुदाय के सदस्यों का संयुक्त उत्तरदायित्व होता है। दृष्टि असमर्थी बच्चों की शिक्षा तथा प्रशिक्षण और उनकी देखभाल के लिए निम्नलिखित विधियों का प्रयोग कर सकते हैं-
1. मोटी टाइप वाली मुद्रित सामग्री- आंशिक रूप से असमर्थी बच्चों को मोटी टाइप वाली मुद्रित सामग्री उपलब्ध करानी चाहिए। ऐसी पुस्तकों में टाइप मोटा होता है। इनके लिए 18 प्वाईंट टाइप की सिफारिश भी की जाती है। इससे पढ़ने की गति कम हो जाती है।
2. ब्रेल- जो बच्चे नियमित प्रिंट सामग्री का प्रयोग करने में असर्थ होते हैं। उन्हें ब्रेल में प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिए। यह अन्धों के पढ़ने और लिखने की एक मूल प्रणाली है। यह 6 डॉट सेल की बनी होती है जो 63 भिन्न-भिन्न चरित्रों बताती है । 26 Dots का प्रयोग 26 अक्षरों के लिए किया जाता है तथा बाकी 33 Dots चिन्हों आदि का प्रतिनिधित्व करते हैं। कुछ हद तक यह शार्टहैंड की ही प्रणाली है। लेकिन इसमें बच्चों को स्पेलिंग की समस्या का सामना करना पेड़गा। इस ब्रेल में छपी पुस्तकें बहुत मोटी तथा महंगी होती हैं और भंडारण के लिए बहुत स्थान घेरती हैं। ये सभी विषयों और भाषाओं में उपलब्ध भी नहीं हैं।
3. बोलने वाला कैल्कुलेटर- आशिक और पूर्ण अन्धों के लिए बोलने वाले कैल्कुलेटर का प्रयोग किया जा सकता है। इसमें संख्यात्मक प्रविष्टियों को इयरप्लग द्वारा ऊँचा बोला जाता है। गणित को सीखने के लिए अन्धे बच्चे इससे अधिक लाभ उठा सकते हैं।
4. टेपरिकार्डर- उच्च स्तर की पाठ्य पुस्तकों से पाठ्य सामग्री को अध्यापक ‘टेप’ करके अन्धे बच्चों को सुना सकता है। टेप रिकार्डर का प्रयोग आजकल अधिक लोकप्रिय हो रहा है। विशेषकर भाषा, इतिहास, भूगोल, विज्ञान आदि के शिक्षण में अन्धा बच्चा भी इस प्रकार की सामग्री से अधिक शीघ्रता से पूरा अध्ययन कर सकता है। दृष्टि वाले बालक अन्धे बच्चों की अपेक्षा ज्ञान अर्जित करने में आगे होते हैं। दृष्टि वाले बालक पर्याप्त अनुभव प्राकृतिक ढंग से अर्जित करते हैं जबकि दृष्टि बाधित बालक ‘टुकड़ों में सूचना ग्रहण करते हैं। दृष्टि वाले बच्चें अनुभव ‘पूर्ण’ रूप में ग्रहण करते हैं, जबकि अन्धे बच्चे टुकड़ों में।
5. मैगनिफाइंग शीशा- आंशिक रूप से दृष्टि वाले बच्चे इस प्रकार के शीशे का प्रयोग कर सकते हैं ताकि वे मुद्रित सामग्री के शब्दों को बड़े देख सकें और सुगमता से पढ़ सकें।
6. क्लोज्ड सार्किट टेलीविजन- आंशिक रूप से दृष्टि बाधित बच्चों के लिए क्लोज्ड सर्किट टेलीविजन का प्रयोग पश्चिमी देशों में किया जा रहा है। कैमरे द्वारा पुस्तक के पृष्ठ का चित्र खींचकर उसे टेलीविजन की स्क्रीन पर बड़ा करके दिखाया जाता है। इस प्रकार प्रिंट के आकार को नियंत्रित किया जा सकता है।
7. सामान्य पाठ्यक्रम- बहुत से विशेषज्ञ यह मानते हैं कि अन्धे बच्चों को सामान्य विधियों द्वारा ही शिक्षित किया जाना चाहिए तथा उन्हें सामान्य सिद्धान्तों का फलन करते हुए दृष्टि वालें बच्चों के साथ ही शिक्षित किया जाये। यह कार्य नियमित स्कूलों में ही हो तथा एकीकृत स्थिति में हो। दृष्टि असमर्थी बच्चों का पाठ्यक्रम दृष्टि वाले बच्चों जैसा ही होना चाहिए। अध्यापक को चाहिए कि-
- जहाँ तक व्यवहारिक हो, दोहरे अनुभव प्रदान किये जाने चाहिए।
- अनुभवों में संशोधन किया जाना चाहिए तथा सामग्री के प्रकारों में, विधियों में भी परिवर्तन किया जाना चाहिए।
- जो पाठ दृष्टि करते बच्चे को दिया जाता है उसी से मिलता-जुलता पाठ ही दृष्टि-असमर्थी बालकों को भी दिया जाना चाहिए।
8. सहगामी क्रियाएँ- स्कूल में दृष्टि-असमर्थी बच्चों को सहगामी क्रियाओं में भाग लेने के अवसर प्रदान करने चाहिए। उनकी दृष्टि बाधित को ध्यान में रखकर ये क्रियाएँ उनसे करवाई जा सकती हैं-
गाना गाना, यंत्र वादन, भाषण, कविता की रचना करना, खेले जिनमें आवाज का साथ हो जैसे साधारण गेंद के साथ घंटी बजने की व्यवस्था हो । इन गतिविधियों में दृष्टि बाधितों को दृष्टि वाले बच्चों के बराबर रखना ठीक नहीं होगा।
अध्यापक की भूमिका-
दृष्टि असमर्थी बच्चों के समायोजन में अध्यापक की मुख्य भूमिका निम्न प्रकार की हो सकती है-
- नियमित अध्यापक ऐसे बच्चों में स्वतन्त्रता की भावना पैदा करने के उद्देश्य से उन्हें कमरे में अपनी चीजों की स्वयं देखभाल करने के लिए कहें।
- नियमित अध्यापक दृष्टि बाधित और सामान्य दृष्टि वाले बच्चों में स्वस्थ अन्तःक्रिया को प्रोत्साहित करे।
- नियमित अध्यापक दृष्टि बाधित और सामान्य दृष्टि वाले बच्चों को एक समान विशेष कार्य प्रदान करे।
- अध्यापक कक्षा में सामान्य दृष्टि वाले बालक को दृष्टि असमर्थी बच्चों को ‘गाइड’ बनने को भी कह सकता है।
- अन्धे बच्चों के साथ वैसा ही व्यवहार किया जाना चाहिए, जैसा कि उसके अन्य सामान्य साथियों के साथ किया जाता है।
- दृष्टि असमर्थी बच्चों की शिक्षा की योजना बनाते समय नियमित अध्यापक को संसाधन अध्यापक से विचार-विमर्श अवश्य कर लेना चाहिए। वह नियमित अध्यापक का मार्गदर्शन कर सकता है।
- आंशिक रूप से अन्धे बच्चों के लिए नियमित अध्यापक कक्षा में उपयुक्त भौतिक वातावरण सुनिश्चित कर सकता है। जैसे पर्याप्त रोशनी, बैठने की व्यवस्था आदि।
- अध्यापक को चाहिए कि वह कक्षा में शाब्दिक रूप से पढ़ाये, न कि अशाब्दिक संकेतों का प्रयोग करें।
- प्रारम्भ में अध्यापक को चाहिए कि वह दृष्टि असमर्थी बच्चों को सभी वस्तुओं का दिशा, स्थिति और दूरी, कमरों की स्थिति आदि को पूर्ण रूप से स्पष्ट कर दें।
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