द्वितीय विश्वयुद्ध कि परिणामों का वर्णन कीजिए।
द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणाम – द्वितीय विश्वयुद्ध में अपार धन-जन की हानि हुई थी। विशेषज्ञों के अनुसार इस युद्ध युद्धरत राष्ट्रों को 1 लाख करोड़ रूपए से भी ज्यादा का युद्ध-व्यय करना पड़ा था। अकेले ब्रिटेन में में लगभग दो हजार करोड़ रूपये के मूल्य की सम्पत्ति का विनाश हुआ। सोवियत संघ की सम्पूर्ण राष्ट्रीय सम्पत्ति के विनाश का कोई अनुमान नहीं लगाया जा सका हैं।
अनुमानतः इस युद्ध में दोनों पक्षों के डेढ़ करोड़ से ज्यादा सैनिक मारे गए एवं लगभग 1 करोड़ सैनिक भीषण रूप से घायल हुए। हवाई आक्रमणों एवं यात्री जहाजों के डुबाए जाने से लगभग एक करोड़ से ज्यादा नागरिक मारे गये।
औपनिवेशिक साम्राज्य का अन्त द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद एशिया महाद्वीप से यूरोपीय राष्ट्रों की प्रभुता की लगभग समाप्ति हो गई। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद भारत, लंका, वर्मा, मलाया, हिंदेशिया, मिस्र आदि ने स्वतंत्रता पाई।.
इंग्लैण्ड की शक्ति का ह्रास एवं रूस तथा अमेरिका की शक्ति में वृद्धि – प्रत्यक्ष रूप से तो इस युद्ध में जर्मनी एवं इटली की हार हुई, परन्तु अप्रत्यक्ष रूप से इस युद्ध में इंग्लैण्ड की भी पराजय हुई। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद इंग्लैण्ड विश्व की सबसे बड़ी शक्ति नहीं रह गया। युद्ध के पहले अंग्रेजों के साम्राज्य में सूर्य अस्त नहीं होता था, पर युद्ध के बाद ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई कि ब्रिटेन को एक एक करके अपने सभी उपनिवेशों को मुक्त करना पड़ा। उसकी शक्ति सीमित हो गई एवं इसके बदले में संयुक्त राज्य अमेरिका एवं सोवियत संघ अपने असीम आर्थिक साधनों के साथ विश्व की राजनीति में शक्तिशाली देश के रूप में उभरे।
अणुबम का निर्माण एवं संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना- द्वितीय विश्वयुद्ध ने एक और जैसे संहारक अस्त्र का निर्माण कर विश्व शान्ति को खतरे में डाल दिया तो दूसरी ओर संयुक्त अणुबम राष्ट्र संघ का निर्माण कर विश्व शांति को कायम रखने की चेष्टा भी की। आज स्थिति यह है कि एक और संहारक अस्त्रों के निर्माण की होड़ लगी है, तो दूसरी ओर संयुक्त राष्ट्र संघ शांति स्थापना में लगा हुआ है। इसलिए यह ठीक ही कहा जाता है कि द्वितीय विश्व युद्ध ने एक ओर मानवता के नाश के लिए अधिक से अधिक संहारक अस्त्रों का ईजाद किया तो दूसरी तरफ युद्ध रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्रसंघ की भी स्थापना की।
विश्व में तीन गुटों का निर्माण- पहले विश्व की राजनीति में इंग्लैण्ड छाया हुआ था। किन्तु द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व साम्यवादी एवं पूँजीवादी दो गुटों में बँट गया जिसमें एक को अमेरिका नेतृत्व प्रदान करता है तो दूसरे को सोवियत संघ। लेकिन इधर के वर्षों में एक तीसरा गुट भी सामने आया है जिसे गुट निरपेक्ष राज्यों का संघ का जा सकता है। इसके सदस्य पूँजीवादी एवं साम्यवादी खेमें से हटकर विश्व में धनहीन राष्ट्रों को आगे बढ़ाने एवं विश्व शान्ति स्थिर रखने का प्रयास करते हैं। अब सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् केवल संयुक्त राज्य अमेरिका ही एकमात्र विश्व शक्ति रह गया है, यद्यपि उसकी आर्थिक स्थिति भी पहले जैसी मजबूत नहीं रही है।
साम्राज्यवाद का स्वरूप बदला- द्वितीय विश्वयुद्ध ने विश्व को यह बता दिया कि अब युद्ध कर किसी देश को जीतना सुगम नहीं है एवं किसी भी देश पर आक्रमण के गम्भीर परिणाम हो सकते हैं। फलतः द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् साम्राज्यवाद का रूप परिवर्तित हो गया। अब परतंत्र राष्ट्र स्वतंत्रता के लिए जबर्दस्त आन्दोलन करने लगे एवं बाध्य होकर साम्राज्यवादी राष्ट्रों को उन्हें स्वतन्त्र करना पड़ा। फिर भी साम्राज्यवादी देश अपने आर्थिक हितों को छोड़ने को तैयार नहीं थे। इसके लिए नए साम्राज्यवाद का जन्म हुआ। अब साम्राज्यवादी राष्ट्र परोक्ष-अपरोक्ष रूप से अपना राजनीतिक रभाव अविकसित राज्यों पर कामय करते हैं और उस प्रभाव का उपयोग कर वहाँ से कच्चा माल प्राप्त करते हैं एवं अपना तैयार सामान उन देशों में बेचते हैं और दूसरे आर्थिक हितों की पूर्ति करते हैं। मध्य के तेल-धनी देशों में संयुक्त राज्य अमेरिका इसी नीति का अवलम्बन कर रहा है।
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