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विश्व में शांति की सार्थकता एवं इसके महत्त्व | Meaning and Importance of peace in the world

विश्व में शांति की सार्थकता एवं इसके महत्त्व | Meaning and Importance of peace in the world
विश्व में शांति की सार्थकता एवं इसके महत्त्व | Meaning and Importance of peace in the world

विश्व में शांति की सार्थकता को सिद्ध कीजिए, एवं इसके महत्त्व को स्पष्ट कीजिए |

मानव कल्याण तथा विश्व शांति के आदर्शों की स्थापना हेतु विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्था वाले देशों में पारस्परिक सहयोग के पाँच आधारभूत सिद्धान्त हैं। जो इस प्रकार हैं-

  1. एक दूसरे की प्रादेशिक अखंडता एवं प्रभुसत्ता का सम्मान करना ।
  2. एक दूसरे के विरुद्ध आक्रामक कार्यवाही न करना।
  3. एक दूसरे के आंतरिक विषयों में हस्तक्षेप न करना।
  4. समानता एवं परस्पर लाभ की नीति का पालन करना ।
  5. शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की नीति में विश्वास रखना।

माना जाता है यदि विश्व उपर्युक्त पाँच बिन्दुओं पर अमल करे तो हर तरफ चैन एवं अमन का ही वास होगा। इसे पंचशील का सिद्धान्त भी कहते हैं। जिसे भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने विश्व में शांति एवं अमन स्थापित करने के लिए पांच मूलमंत्र के रूप में दिये थे।

‘विश्वशांति दिवस’ के उपलक्ष्य में प्रत्येक देश में जगह-जगह सफेद रंग के कबूतरों को उड़ाया जाता है, जो कहीं न कहीं पंचशील के ही सिद्धान्तों को दुनिया तक फैलाते हैं। ‘विश्व शांति दिवस’ के अवसर पर सफेद कबूतर उड़ाने की परम्परा अत्यंत पुरानी है। इन कबूतरों को उड़ाने के पीछे एक शायर का निम्न शेर बहुत ही विचारणीय है-

लेकर चलें हम पैगाम भाईचारे का,
ताकि व्यर्थ खून न बहे किसी वतन के रखवाले का।

वर्ष 1982 से शुरू होकर 2001 तक सितम्बर महीने का तीसरा मंगलवार अन्तर्राष्ट्रीय शांति दिवस’ या ‘विश्वशांति दिवस’ के लिए चुना जाता था, लेकिन वर्ष 2002 से इसके लिए 21 सितम्बर है। का दिन घोषित कर दिया गया। जो प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है।

उद्देश्य- सम्पूर्ण विश्व में शांति कायम करना आज संयुक्त राष्ट्र का मुख्य लक्ष्य है। संयुक्त राष्ट्र चार्टर में भी इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि अन्तर राष्ट्रीय संघर्ष को रोकने एवं शांति की संस्कृति विकसित करने के लिए ही U.N. का जन्म हुआ है। संघर्ष, आतंक एवं अशांति के इस दौर में अमन की अहमियत का प्रचार-प्रसार करना बेहद जरूरी तथा प्रासंगिक हो गया है। इसलिए संयुक्त राष्ट्र संघ, उसकी तमाम संस्थाएँ, गैर-सरकारी संगठन, सिविल सोसायटी एवं राष्ट्रीय सरकारें प्रतिवर्ष 21 सितम्बर को ‘अन्तर्राष्ट्रीय शांति दिवस का आयोजन करती हैं। शांति का संदेश दुनिया के कोने-कोने में पहुँचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने कला, साहित्य, सिनेमा, संगीत एवं खेल जगत की विश्व विख्यात हस्तियों को शांति दूत भी नियुक्त कर रखा है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने तीन दशक पहले यह दिन सभी देशों एवं उनके निवासियों में शांतिपूर्ण विचारों को सुदृढ़ बनाने के लिए समर्पित किया था।

वर्तमान परिवेश में शांति की सार्थकता- आज विश्व के देशों में शस्त्रीकरण की दौड़ हैं, एवं शस्त्रों की बिक्री तथा व्यापार राजनीति स्वार्थों के लिए जारी हैं। यदि इसको न रोका गया तो इसका परिणाम एक और विश्वयुद्ध हो सकता है। अतः आवश्यकता इस बात की है, कि शस्त्रों का त्याग किया जाए, जिससे विश्व शांति से रह सके। प्रो. कोहन का मत है, कि शस्त्रीकरण के द्वारा विश्व के राष्ट्रों में भय मनमुटाव पैदा होता है। जबकि निःशस्त्रीकरण के द्वारा भय एवं मनमुटाव को कम करके आपसी विवादों को शांति पूर्वक ढंग से हल किया जा सकता है। इसी प्रकार के विचार व्यक्त करते हुए आइनिस क्लाड ने कहा है कि शस्त्र सज्जा के द्वारा राजनीति के विद्वान युद्ध करने के. लिए प्रेरित होते हैं। अतः यदि हम शक्ति के आकांक्षी हैं, तो हमें शास्त्रों का तथा शस्त्र प्रतिद्वन्द्विता का परित्याग कर देना चाहिए। निःशस्त्रीकरण की प्राप्ति अन्ततः हमें शांति स्थापना की ओर ले जाती है। अमरीकन मित्र सेवा समिति का भी मत या, कि “शस्त्रीकरण देश की सुरक्षा को मजबूत नहीं करता, वरन् यह देश को तथा विश्व को असुरक्षित बनाता है।” इस प्रकार शस्त्रीकरण से युद्ध की सम्भावनाएँ तथा प्रतिद्वन्द्विता बढ़ती है, अतः शास्त्रास्त्रों पर प्रतिबंध ही शांति स्थापना का एक मात्र साधन है।

विभिन्न विचारकों एवं शिक्षा विदों का मत है कि शांति शिक्षा का विद्यालयों, कॉलेजों एवं विश्व विद्यालयों में एक अतिरिक्त विषय के रूप में प्रतिपादित नहीं किया जाना चाहिए बल्कि विभिन्न विषयों के पाठ्यक्रमों का ऐसे ढंग से पुनर्गठन किया जाए कि विश्वशांति विद्यालय के पाठ्यक्रम, पाठ्यसहगामी क्रियाओं तथा कार्यानुभवों का एक अभिन्न अंग बन जाए। इनके माध्यम से छात्र स्वयं को विश्व का एक अभिन्न अंग मानना सीख जाएँगे। पाठ्यक्रम में निहित शान्ति विषयों का अध्यापन औपचारिक ढंग से किया जा सकेगा। इसके अतिरिक्त छात्रों को विश्व शांति विश्व-बंधुत्व, भ्रातृत्व भावना आदि के प्रति सजग बनाने हेतु जनसंचार साधनों- रेडियो, टी वी, आडियो, कैसेट, चलचित्र, समाचार पत्र एवं पत्रिकाएँ आदि का भी प्रयोग किया जाना चाहिए।

जनसाधारण को शांति संदेश प्रदान करने के लिए ऐच्छिक संगठनों का भी प्रयोग किया जाना चाहिए, इसके लिए शांति प्रचार केन्द्रों की स्थापना ‘शांति सेना’ का संगठन, शांति-यात्रा आदि की व्यवस्था की जानी चाहिए। समाज के संघर्षों एवं तनावों को दूर करने के लिए अहिंसक साधनों का प्रयोग किया जाना चाहिए।

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