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संयुक्त राष्ट्र के निर्माण के विभिन्न चरण | Different stages of the formation of the united nations

संयुक्त राष्ट्र के निर्माण के विभिन्न चरण | Different stages of the formation of the united nations
संयुक्त राष्ट्र के निर्माण के विभिन्न चरण | Different stages of the formation of the united nations
संयुक्त राष्ट्र के निर्माण के विभिन्न चरणों की व्याख्या कीजिए।

युद्धोत्तर अन्तर्राष्ट्रीय संगठन के पक्ष में सरकारी घोषणा- द्वितीय विश्व युद्ध के प्रारम्भ होते ही मित्र राष्ट्र एक नयी व्यवस्था स्थापित करने की योजना बनाने लगे। समाचार पत्र, जनता, विधान मंडल एवं सरकारी विभाग भविष्य की विश्व संस्था की रूपरेखा तैयार करने में संलग्न हो गये। जैसे जैसे युद्ध की भीषणता बढ़ती गयी वैसे-वैसे इस कार्य में शीघ्रता आती गयी। भावी अन्तर्राष्ट्रीय संगठन के ध्येयों को स्पष्ट करने के लिए सरकारों द्वारा अनेक सम्मेलन बुलाए गए। जिनमें निम्नवत् प्रमुख हैं।

(1) लन्दन की घोषणा (12 जून 1914)- 12 जून 1914 ई. को मित्र राष्ट्रों द्वारा एक घोषणा की गयी। चूँकि यह घोषणा लंदन में हुई थी, इसलिए इसे लन्दन घोषणा के नाम से जाना जाता है। इस घोषणा में भावी अन्तर्राष्ट्रीय संगठन के ध्येयों की ओर संकेत किया गया था। लंदन के सेन्ट जेम्स पैलेस में ब्रिटेन, कनाडा, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, दक्षिण अफ्रीका, निर्वासित बेल्जियम, चेकोस्लोवाकिया, ग्रीस, लक्जमबर्ग, नीदरलैंड, नार्वे, पोलैण्ड, युगोस्लाविया तथा जेनरल दगाल के फ्रांस ने मिलकर इस घोषणा पर हस्ताक्षर किये। यह घोषणा नाजी आक्रमण से ग्रस्त होकर की गयी थी। इस घोषणा में निम्नलिखित दो बातों का उल्लेख था-

(2) एटलांटिक चार्टर- एक नयी विश्व संस्था की स्थापना की दिशा में प्रथम पग 14 अगस्त, 1914को एटलांटिक-घोषणा द्वारा उठाया गया। 9 अगस्त 1941 को राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल को सुझाव दिया कि वे मिलाकर एक घोषणा करें जिसमें कुछ व्यापक सिद्धान्तों का उल्लेख हो जो उनकी नीतियों को निर्देशित करें। 12 अगस्त, 1941को रूजवेल्ट एवं चर्चिल एटलांटिक महासागर में एक युद्धपोत पर मिले। आपस में विचार-विमर्श के बाद उन्होंने एक घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किये। 14 अगस्त 1941 को उसकी घोषणा की गयी। यह घोषणा पत्र एटलांटिक-चार्टर के नाम से विख्यात हुआ। एटलांटिक चार्टर एक सामान्य सिद्धान्तों की घोषणा थी जिन पर सुनहरे भविष्य की आशा आधारित थी। एटलांटिक चार्टर में एक सामान्य प्रस्तावना और 8 खंड थे। इसकी तुलना राष्ट्रपति विल्सन के 14 सूत्रों से की गयी।

इस घोषणा की प्रस्तावना में राष्ट्रपति रूजवेल्ट तथा प्रधानमंत्री चर्चिल ने यह घोषणा किया कि वे अपने देशों की राष्ट्रीय नीति के कुछ सामान्य सिद्धान्तों को बताना अपना कर्तव्य समझते हैं जिन पर विश्व के अच्छे भविष्य की आशा निर्भर है।

(3) संयुक्त राष्ट्र घोषणा, 1 जनवरी 1942- संयुक्त राष्ट्र संघ को स्थापित करने की दिशा में दूसरा महत्वपूर्ण कदम संयुक्त राष्ट्र संघ की घोषणा के रूप में उठाया गया। यह घोषणा संयुक्त राष्ट्र घोषणा, 1 जनवरी 1942 को की गयी थी। यह युद्धकाल की दूसरी महत्त्वपूर्ण घोषणा थी। वेन्डेनबोश तथा होगन ने ठीक ही लिखा है कि “यदि एटलांटिक घोषणा संयुक्त राष्ट्रसंघ को स्थापित करने में प्रथम पग था तो 1 जनवरी 1942 को संयुक्त राष्ट्रसंघ घोषणा दूसरा पग” इस घोषणा पर 26 राष्ट्री ने हस्ताक्षर किये थे। इस घोषणा में अटलांटिक चार्टर के सिद्धान्तों को स्वीकार कर लिया गया था।

(4) मास्को घोषणा- संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की दिशा में तीसरा पग 30 अक्टूबर 1943 को मास्को घोषणा में उठाया गया। मास्को सम्मेलन युद्ध के दौरान मित्रराष्ट्रों का सर्वप्रथम सम्मेलन था। इस सम्मेलन में अमरी की विदेश सचिव कार्डेल हल, ब्रिटिश विदेश मंत्री ईडेन, रूस के विदेश मंत्री मोलो तोव एवं चीन की ओर से फू पिगशुंग ने भाग लिया। इस सम्मेलन का उद्देश्य ‘संयुक्त राष्ट्र’ के बीच किसी प्रकार की दरार को रोकना था।

(5) तेहरान सम्मेलन- मास्को-सम्मेलन के बाद ईरान की राजधानी तेहरान में संयुक्त राष्ट्र के तीन बड़े नेताओं- चर्चिल, रूजवेल्ट एवं स्टालिन का एक सम्मेलन हुआ। सम्मेलन 28 नवम्बर 1943 से 1दिसम्बर 1943 ई. तक हुआ एवं तेहरान सम्मेलन के नाम से विख्यात हुआ। यह द्वितीय युद्ध काल को प्रथम शिखर सम्मेलन था। जिसमें तीनों राज्यों के अध्यक्ष सम्मिलित हुए। यह सम्मेलन इसलिए भी महत्वपूर्ण था, क्योंकि यह पहला अवसर था जब राष्ट्रपति रूजवेल्ट तथा मार्शल स्टालिन एक-दूसरे के में आए।

(6) डम्बार्टन ओक्स सम्मेलन- ऊपर हमने देखा कि 1943 के अन्त तक आते-आते सभी बड़ी शक्तियाँ एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की स्थापना के प्रश्न पर सहमत हो गयीं थीं। युद्ध की समाप्ति के शीघ्र ही बाद उन्होंने इस तरह के संगठन के निर्माण का संकल्प घोषित कर दिया था। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि इस बार संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत रूस इस तरह के संगठन में शामिल होने की घोषणा कर चुके थे। ऐसा करके उन्होंने उन लोगों के भय को निराधार बना दिया था जो यह समझते थे कि राष्ट्रसंघ की भाँति भावी संगठन को भी उक्त दोनों शक्तियों का सहयोग नहीं प्राप्त होगा। इस प्रकार हम देखते हैं कि एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन के निर्माण के लिए उपयुक्त वातावरण तैयार था। परन्तु भावी संगठन का स्वरूप क्या होगा। उसमें कौन-कौन से अंग रहेंगे? इस सभी बातों पर विचार नहीं हो पाया।

(7) याल्टा सम्मेलन- डम्बार्टन ओक्स सम्मेलन में बहुत सी बातों पर विचार नहीं हो सका था। कुछ विषयों पर अभी भी मतभेद विद्यमान था। इन मतभेदों को दूर करने हेतु रूस के प्रदेश क्रीमिया के याल्टा नगर में एक सम्मेलन का आयोजन हुआ। यह सम्मेलन 4 फरवरी 1945 से 11 फरवरी 1945तक हुआ। इस सम्मेलन में रूजवेल्ट, स्टालिन तथा चर्चिल ने भाग लिया। यह दूसरा अवसर था जब ये तीनों राजनीतिज्ञ एक दूसरे से मिले थे। इसलिए इसे द्वितीय महायुद्ध काल का दूसरा शिखर सम्मेलन कहा जाता है। इस सम्मेलन में डम्बार्ट ओक्स के अधूरे कार्य को पूरा किया गया। अनेक विषयों पर विचार हुआ एवं निर्णय लिया गया।

(8) सेन फ्रांसिस्को सम्मेलन- याल्टा सम्मेलन के निर्णय के अनुसार 25 अप्रैल 1945 को अमेरिका के सेन फ्रांसिस्को शहर में संयुक्त राष्ट्रों का एक सम्मेलन बुलाया गया। इस सम्मेलन का उद्देश्य राष्ट्र संघ के घोषणा पत्र को तैयार करना, एवं संयुक्त राष्ट्रसंघ को पूर्णतया स्थापित करना था। इस सम्मेलन में 46 राज्यों के प्रतिनिधि उपस्थित थे। बाद में चार अन्य राज्यों के प्रतिनिधि भी शामिल हुए। सम्मेलन में भाग लेने के लिए आए हुए प्रतिनिधियों की संख्या 282 थी। विभिन्न प्रतिनिधि मंडलों के साथ अनेक सलाहकार भी आये थे। सलाहकारों की कुल संख्या 1500 से अधिक थी। विश्व प्रेस तथा रेडियो-सेवाओं की ओर से 2636 प्रतिनिधियों को भेजा गया। इस प्रकार यह इतिहास का सबसे बड़ा सम्मेलन था।

इस सम्मेलन की तुलना सन् 1919 में होने वाले पेरिस सम्मेलन से की जाती है। जिस प्रकार प्रथम विश्वयुद्ध के बाद शांति-संधियों तथा राष्ट्रसंघ के विधान का निर्माण करने के लिए सन् 1919 में शान्ति सम्मेलन का आयोजन किया गया था उसी प्रकार संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणा पत्र का निर्माण करने हेतु 1945 में सेन फ्रांसिस्को सम्मेलन का आयोजन किया गया। परन्तु दोनों सम्मेलनों के उद्देश्य एवं कार्य-प्रक्रिया एक-दूसरे से भिन्न थे।

यह सम्मेलन अप्रैल से जून 1945 तक चला 25 जून को संयुक्त राष्ट्रसंघ का चार्टर सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया एवं 26 जून को 50 देशों के प्रतिनिधियों ने इस पर हस्ताक्षर कर दिए। पोलैण्ड के प्रतिनिधि किसी कारण उपस्थित न हो सके। अतः उनके हस्ताक्षरों के लिए स्थान छोड़ दिया गया। इस प्रकार संयुक्त राष्ट्र संघ के कुल 51 प्रारम्भिक सदस्य थे। 24 अक्टूबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र संघ का चार्टर लागू हो गया। अतः यह दिन विश्व में ‘संयुक्त राष्ट्र दिवस’ (U. N. O.) के रूप में जाना जाता है। 10 फरवरी, 1946 को लन्दन के वेस्ट मिनिस्टर हाल में संघ का प्रथम अधिवेशन हुआ। इसमें अनेक पदाधिकारी चुने गए। 15 फरवरी 1946 को संघ का प्रथम अधिवेशन समाप्त हुआ। संघ का प्रधान कार्यालय पहले लेक सक्सेस (अमेरिका) में रखा गया एवं तत्पश्चात् न्यूयार्क में बने विशाल भवन में स्थानान्तरित कर दिया गया।

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